दलित और आदिवासी हों या फिर शोषित नारी, हर उपेक्षित के लिए युद्धरत् रमणिका गुप्ता जी का कल 26 मार्च 2019 को दिल्ली के मूलचन्द अस्पताल में निधन हो गया, वे 89 वर्ष की थीं। 22 अप्रैल 1930 को पंजाब के बेदी परिवार में जन्मीं रमणिका के स्वर्गीय पति सिविल सर्विस में थे। उनकी दो बेटियां और एक बेटा है, जो करीबी सूत्रों के अनुसार विदेश में हैं। सामजिक आंदोलनों के लिए अपनी विशेष पहचान बनाने वाली रमणिका विधायक भी रही हैं। उन्होंने बिहार विधानपरिषद और विधानसभा में विधायक के रूप में कार्य किया। ट्रेड युनियन लीडर के तौर पर भी काम किया। उनके आदिवासी-दलित अधिकारों से लेकर स्त्री विमर्श तक पर कई किताबें, कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वहीं आत्मकथा ‘हादसे और आपहुदरी’ स्त्री विमर्ष के कई अनछुए पहलुओं को उजागर करती है।
रमणिका जी जीवन के आखिरी समय तक सामाजिक कार्यों और साहित्य में सक्रिय रहीं। उनका घर साहित्यिक और सामाजिक गतिविधियों के लिए सदा खुला रहता था और आप सामाजिक सरोकारों की पत्रिका ‘युद्धरत आम आदमी’ का सम्पादन भी करती थीं। आपके निर्देशन में संपादित पुस्तक ‘ मलमूत्र ढोता भारत ‘ में दलितों का मार्मिक और विचारोत्तेजक चित्रण देखने को मिलता है। आपने महिला लेखिकाओं को भी प्रोत्साहन दिया। पिछड़े वर्ग और दलितों ने तो अपना एक सच्चा हितैषी ही खो दिया । वह एक जुनूनी और क्रांतिकारी साहित्यकार थीं। अपने इसी संवेदनशील और समाज के प्रति जागरूक स्वभाव की वजह से कइयों ने उन्हें बामपंथी भी कहा। परन्तु सच्चाई तो यह है कि उनका जाना साहित्य और समाज दोनों की ही क्षति है। कलम और कुदाल के बहाने, दलित हस्तक्षेप, निज घरे परदेसी, साम्प्रदायिकता के बदलते चेहरे आदि उनकी अन्य किताबें हैं जो उनके विचारों को दृढ़ता से प्रस्तुत करती हैं। इसके अलावा उपन्यास- सीता-मौसी, कहानी संग्रह- बहू जुठाई, गद्य पुस्तकें- कलम और कुदाल के बहाने, दलित हस्तक्षेप, सांप्रदायिकता के बदलते चेहरे, दलित चेतना- साहित्यिक और सामाजिक सरोकार, दक्षिण- वाम के कठघरे और दलित साहित्य, असम नरसंहार- एक रपट, राष्ट्रीय एकता, विघटन के बीज आदि उनकी कलम से निकली कई पुस्तकें हैं जो उनके विचारों को जिन्दा रखेंगी। काव्य संग्रह भी हैं- भीड़ सतर में चलने लगी है, तुम कौन, तिल तिल नूतन, मैं आजाद हुई हूँ, अब मूरख नहीं बनेंगे हम, भला मैं कैसे मरती, आदम से आदमी तक, विज्ञापन बनते कवि, कैसे करोगे बंटवारा इतिहास का, निज घरे परदेसी, प्रकृति युध्दरत है,पूर्वांचल: एक कविता यात्रा, आम आदमी के लिए, खूंटे, अब और तब, गीत – अगीत
‘लेखनी’ परिवार की तरफ से विचारों की धनी और कलम की सिपाही इस जागरूक साहित्यकारा को विनम्र श्रद्धांजलि।
Leave a Reply