चीन का चन्द्रोत्सवःएक राष्ट्रीय त्योहार- कादम्बरी मेहरा

सम्पूर्ण विश्व में चंद्र-पूजन प्रागैतिहासिक काल से चला आ रहा है। सम-शीतोष्ण देशों में इसका विशेष महत्त्व रहा है।सूर्य की पूजा करने वाले धर्मों में चन्द्र को स्त्री माना गया है। इसका कारण चन्द्र की कला का स्त्री के मासिक-धर्म के बराबर होना है। चन्द्र मास २९.५ दिन में पूर्ण होता है। जब विज्ञान केवल दृश्य तथ्यों पर आधारित था यह स्त्रियों के २८ दिन के मास -जैसा प्रतीत होता था। इसलिए चन्द्रमा को एक देवी मान लिया गया। मानव स्वभाव परामानव शक्तियों को कल्पित कर उनके आधीन रहना पसंद करता है। स्त्रियों का मासिकधर्म चूंकि प्रसव से सम्बंधित है इसलिए चन्द्रमा देवी को सन्तानफल देनेवाली मान लिया गया और वंश-वृद्धि की कामना से उसकी पूजा होने लगी। करीब करीब ३०० चन्द्र – देवियों का उल्लेख विभिन्न देशों की संस्कृतियों में मिलता है जो आज भी पूजित हैं।

रोम और ग्रीक धर्मों में अरतिमिस और फीबि ,तो अरब में माहा। माहा शब्द से बना है माह या महीना। अनेकों सभ्यताएं चंद्रमास से ही संचालित रही हैं। दुनिया भर के धार्मिक उत्सव चंद्रमास से निर्धारित किये जाते हैं आज तक। चन्द्रमा को पुरुष रूप में पूजनेवाले धर्म गिने चुने ही हैं। मेसोपोटामिया में इसे ” सिन ” कहा जाता है जो पुरुष देव है। जर्मनी के देवताओं में इसका नाम ” मानी ” है। जापान में ” त्सुकूयामी ” देव कहा जाता है। जापान में दो धर्म समानांतर चलते हैं। पहला शिंटो धर्म ,जिसमे अनेक भौतिक शक्तियों को देवी देवता की भाँति पूजा जाता है और दूसरा बौद्ध धर्म। भारत में चन्द्र आदिकाल में सागरमंथन से निकला। देवी लक्ष्मी भी सागर मंथन से निकलीं अतः दोनों भाई बहिन हुए रिश्ते में। अब चूंकि देवी लक्ष्मी ने विष्णु जी का वरण किया जो जगत पिता थे ,इसलिए उनको जगत माता का पद मिला और चन्द्रमा इस रिश्ते से जगत का मामा बन गया।
चीन में चन्द्रमा का पूजन राष्ट्रीय पर्व है। चन्द्रमा की देवी को ” चैंग ” कहा जाता है। यह उत्सव आठवें चंद्रमास की पंद्रहवीं तिथि,यानि पूर्णिमा वाले दिन पड़ता है। इसे मध्य शरत ऋतु का उत्सव भी कहा जाता है। क्रिसमस और दीवाली की तरह यह चीन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्सव है।
प्रथा के अनुसार इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने बच्चों के साथ पहले अपने माता पिता से मिलने जाती हैं। तत्पश्चात वह वापिस अपने पति के घर आकर सारे परिवार के संग त्यौहार मनाती हैं। इस दिन सब मिलकर पूरे परिवार के साथ चंद्रोदय देखने जाते हैं और जब वह ऊपर उठ आता है तब मिठाइयां बाँटते ,देते लेते हैं। इन विशेष मिठाइयों को ” चन्द्रमिष्टि ” ,अंग्रेजी में मून केक कहा जाता है। यह घर में बनाई जाती है। यह एक तरह की गुझिया होती है जिसमे तरह तरह की भरावन भरी जाती है। आजकल यह बाज़ारू बनी बनाई भी मिल जाती है परन्तु यह इतनी स्वादिष्ट नहीं होती।

प्रेमी हृदयों के लिए यह पर्व विशेष महत्त्व रखता है। बिछुड़े प्रेमी भी चाँद को माध्यम यानि दूत बना कर गीत गाते हैं और कल्पना करते हैं की उनका प्रियतम भी उस समय चाँद को देख रहा होगा व उनका सन्देश पहुँच गया होगा।
अपना भारत का गीत याद आता है —” चंदा रे,. जा रे जा रे। पिया से संदेसा मोरा कहियो जाय। ”

मिलन व बिछुरन के कई आख्यानों पर लिखी गयी प्रेम कविताओं से चीनी साहित्य भरा पड़ा है।
इस पर्व के तीन प्रमुख अंग हैं। —
१. जमावड़ा —- यानि सारा परिवार एकत्र हो।
२. धन्यवाद —- यानि नई फसल कटने पर भगवान का धन्यवाद जो कि चन्द्र पकवानों के रूप में लिया दिया जाता है. ।
३. प्रार्थना —– यानि परिवार समेत मिल कर ईश वंदना और आगामी इच्छापूर्ति के लिए अनुष्ठान प्रार्थना आदि।
कहा जाता है कि यह पर्व ईसा से २००० वर्ष पूर्व से चीन में मनाया जाता रहा है। तांग वंश के राजा — ६१८ ई ० से ९०७ ई ० तक —- इसे राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने लगे। ई ० पू ० छठी शताब्दी में लिखी गयी एक किताब ” झू के रीती रिवाज़ ” में पहली बार ‘ मध्य शरद ऋतु पर्व ‘ का उल्लेख भी मिलता है। भौगोलिक सच यह है कि यह एक कृषि पर्व है। फसल काटने पर जो समृद्धि व पूर्णता समाज को प्राप्त होती है वह इसी तरह उल्हास पर्व में व्यक्त होती है। ठीक हमारी दिवाली की तरह । फसलों से सम्बंधित जल देवता ” झू रौंग ” यानि चीनी ड्रैगन की पूजा की जाती है इस दिन। –

इसी दिन सुहागिनें वंश वृद्धि की कामना से प्रार्थना करती हैं।चीनी लोक गाथाओं में सूर्य व चन्द्र पति पत्नी हैं। सितारे इनके बच्चे हैं। ऐसा माना जाता था कि जब चाँद गोल होती है तब वह गर्भिणी होती है। और प्रसव के बाद पुनः लकीर नुमा नवचन्द्र बन जाती है। इसी कारण स्त्रियां संतानप्राप्ति की कामना से चन्द्र को अर्ध्य चढ़ाती हैं। चीन में अभी तक स्त्रियां चन्द्रमा की पूजा करती हैं।चूंकि यह संतान एवं वंश वृद्धि से सम्बंधित है , वियतनाम में इसे बालदिवस के रूप में मनाया जाता है। –

इस पर्व से जुडी एक प्रेमी युगल की कथा कही सुनी जाती है।

कहते हैं आदिकाल में चीन में एक बहुत पराक्रमी युवा नेता था। उसका नाम था ” हू यी ” . वह धनुष विद्या में बेजोड़ था। एक बार आकाश में दस सूर्य एक साथ उदित हुए जिनके ताप के कारण धरती, पशु- पक्षी, फसलें मनुष्य आदि सब जलने लगे और बहुत तबाही होने लगी। हू यी ने नौ सूर्यों को अपने बाणों की वर्षा करके धराशायी कर दिया व एक को रौशनी देने के लिए छोड़ दिया। उसके शौर्य को देखकर अमरत्व का देवता ” झिवांगमू ” उससे बहुत प्रसन्न हो गया। उसने उसे अमृत का पात्र दिया जिसे हू यी ने छुपा कर रख लिया। हू की पत्नी का नाम चैंग था और वह अद्वितीय सुंदरी थी। हू यी उससे बहुत प्रेम करता था। उसे धरती पर छोड़कर स्वयं अमृतपान कर वह देवलोक नहीं जाना चाहता था।
हू यी ने अमृत का पात्र चैंग को सुरक्षित रखने के लिए दे दिया। परन्तु हू यी का शिष्य ‘ फेंग मेंग ‘ इस राज़ को जान गया। एक बार जब हू यी शिकार पर गया हुआ था उसने उसकी अनुपस्थिति का लाभ उठाना चाहां और चैंग को डराया धमकाया कि वह अमृतपात्र उसे दे दे। कशमकश में चैंग ने सारा अमृत स्वयं पी लिया ताकि फेंग -मेंग जैसा विश्वासघाती व दुष्ट व्यक्ति उसे पीकर अमर न हो जाए। अमृत पीते ही वह देवलोक को उड़ चली। जबतक उसे भान हुआ वह चाँद तक जा पहुंची थी अतः वह वहीँ रुक गयी और वहीँ रहने लगी ताकि अपने प्रियतम से और दूर न जा पड़े। तभी से यह मान्यता है की चाँद पर उसका महल है।
जब हू यी घर आया और उसे इस घटना का पता चला तो उसका ह्रदय विदीर्ण हो गया। उसने अपनी सम्पदा ,फल मिठाई आदि जो भी चैंग को पसंद था , अपने आँगन में सजा दी। और पत्नी को चाँद में बैठी जानकार अनेकों प्रकार का चढ़ावा चढ़ाया। जिस दिन चैंग ने धरती को छोड़ा वह आठवें मॉस का पन्द्रहवां दिन था अतः प्रतिवर्ष हू यी उसे इसी दिन चढ़ावा चढाने लगा। तभी से यह रिवाज़ बन गया। लोग अपने प्रियजनों को भेंट देते हैं व नवयुगल प्रेमगीत गाते हैं।
अतः आज भी लोग चैंग की पूजा करते हैं।
प्रेमियों का पर्व होने के कारण यह कहानी बहुत अधिक लोकप्रिय है। इसे लेकर अनेकों साहित्यिक रचनाएँ व चित्र बनाये गए हैं। इस समय चावल और गेहूं की फसल काटी जाती है। उत्तर भारत में भी यह समय चावल की फसल का होता है। धान शब्द से ही धन शब्द बना है और धन से धनी। पूजा में चीनी धूप बत्तियां जलाते हैं। ड्रैगन डांस करते हैं। कंडीलों पर पहेलियाँ लिखकर बुझाने के लिए छोड़ी जाती हैं। कहा जाता है इस दिन चैंग को चाँद पर नृत्य करते हुए भी देखा जा सकता है। अतः लोग रात रात भर खुले आकाश के नीचे नाचते गाते हैं।

भूत पर्व : —-
इस त्यौहार के ठीक एक मॉस पूर्व पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने का त्यौहार मनाया जाता है जिसे भूत पर्व कहा जाता है। हमारे देश में भी दिवाली से एक महीने पहले श्राद्ध मनाया जाता है। चीन में सातवें चन्द्र मास में भूत पर्व होता है।ऐसी मान्यता है कि पूर्वजों की आत्माएं धरती पर विचरण करने आती हैं और अपने वंश को आशीर्वाद देती हैं अतः उनका सत्कार किया जाता है। इस पूरे महीने लोग तरह तरह के भोजन बनाकर कपडे गहने व अन्य काम की वस्तुएं पूर्वजों को चढ़ाते हैं। अगरबत्ती जलाते है उनके नाम की। भोजन के समय पूर्वजों की खाली जगहों पर खाना परोसकर रखा जाता है। ऐसा मानते हैं कि वह भी साथ बैठे हैं। जौस कागज़ यानि सुगन्धित कागज़ के बने सामान ,जैसे घर मकान ,कारें , टेलीविज़न ,आदि जलाते हैं ताकि पूर्वजों की अपूर्ण इच्छाएं पूरी हो सकें। नहीं तो जॉस पेपर यानि सुगन्धित कागज़ से बने नकली नोट जिन्हें ” नरक के बैंक नोट ” कहा जाता है जलाये जाते हैं। रात के समय लोग कागज़ की बनी सुन्दर सुन्दर नावो में दिए जलाकर पानी पर तैराते हैं ताकि पूर्वजों की आत्माएं अपने स्थान पर वापिस राजी ख़ुशी पहुँच सकें। रास्ता न भूले ,भटकें न।

ऐसा नहीं लगता जैसे यहां भी भवसागर की कल्पना की गयी हो ?

जब समस्त परिवार साथ हो , खूब सारा भोजन मिठाई आदि हो और समवेत गायन ,नृत्य आदि हो तब यह सारी कायनात एक पूर्ण सत्य लगती है ,इसीलिए चीनी लोग इस पर्व को सर्वोपरि मानते हैं और इसे राष्ट्रीय पर्व मानते हैं।
यह त्यौहार शर्त पूर्णिमा से एक मास पूर्व पड़ता है। हमारे यहां करवा चौथ स्त्रियां अपने पति के लिए रखती हैं। भारत में भी अनेक स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए शरत पूनम का व्रत रखती हैं। बायना काढ़कर सास को देती हैं। और कृष्ण जी की रासलीला ,युगलप्रेम की शाश्वत अभिव्यक्ति , इस दिन ही रचाई जाती है। धर्मों की आत्मा में झांकिए ,सब अपने से लगेंगे।

कादम्बरी मेहरा

श्रीमती कादंबरी मेहरा पचपन वर्षों से लंदन निवासिनी हैं। अपने कार्यकाल में वह लंदन की शिक्षा व्यवस्था में मुख्य धारा की अध्यापिका रही हैं। अवकाश प्राप्ति के उपरान्त उन्होंने लेखन की ओर अपना ध्यान लगाया है। उनकी अबतक दस किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और कुछ अभी प्रकाशन का इंतज़ार कर रही हैं।
इन्होने पांच कहानी संग्रह सामाजिक हालातों पर लिखे हैं।
कुछ जग की , ( स्टार प्रकाशन,दरियागंज दिल्ली ) ; पथ के फूल ( सामयिक प्रकाशन ,जटवाड़ा ,दरियागंज दिल्ली ) ,रंगों के उस पार ( मनसा प्रकाशन ) , चिर परायी ( प्रभात प्रकाशन ,दरियागंज ,दिल्ली ) , डैफ्नी ऑस्ट्रेलिया ( अयन प्रकाशन दिल्ली )
एक विशिष्ट संग्रह रहस्य कथाओं का है जो सर्वथा मौलिक हैं। — ंनीला पर्दा ‘ — ( मनसा प्रकाशन लखनऊ )
इनके अतिरिक्त एक उपन्यास भी एक हत्या पर लिखा खुलासा है। निष्प्राण गवाह ( शिवना प्रकाशन , सीहोर )
एक पुस्तक अपने संस्मरणों की — अतीत की अनुगूंज ( मनसा प्रकाशन )
एक इतिहास— चाय की विश्व्यात्रा (अयन प्रकाशन )
एक शोध निबंधों की पुस्तक — भारत के मूक प्रवासी। — ( राष्ट्रीय पुस्तक न्यास दिल्ली द्वारा प्रकाशित )
कादम्बरी का पता है
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ईमेल —- kadamehra@gmail.com

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