कहानी समकालीनः गौरैया-अनिता रश्मि

रीना ने बहुत दिनों तक अनदेखी करने के बाद अंततः उस शख्स की फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली। नहीं जानती थी, आ बैल मुझे मार की स्थिति बन जाएगी। वह अभी-अभी तो फेसबुक और व्हाट्स एप में कुछेक ग्रुप से जुड़ी थी। सर मुड़ाते ओले पड़ेंगे, उसने सोचा नहीं था। उसे लगता है, वह अभी पूरी तरह से टेक्निकल चीजों को हैंडल करना नहीं जानती। अभी सीखने के लिए बहुत कुछ बाकी है।
बस, फोटो डालना, लाइक, कमेंट करना सीख पाई थी। कभी-कभार उर्वशी की सहायता से अपने कुछ छोटे-छोटे मनोभावों को व्यक्त करती। कभी काव्य पंक्तियाँ मन में मचलतीं, तो उसे पोस्ट करने के लिए भी उर्वशी की सहायता जरूरी थी।
नए-नए स्मार्ट फोन में उलझकर पूरी शिद्दत से उसे समझने, सीखने की कोशिश भी करती। कभी-कभार अटक जाने पर अमित से भी पूछ लेने में कोई बुराई नहीं समझती थी। हालांकि अमित की बेहद व्यस्त दुनिया थी… बिजनेस और यात्राओं की भरी-पूरी दुनिया! विदेशों में विजिटिंग और मीटिंग की दुनिया।
आज अमित घर पर थे। रीना ने आज बहुत हौले से अमित से कहा ” मैं आपको एक बात बताना चाहती हूँ। ”
” आज? अभी ?… अभी छोड़ दो। बहुत थक गया हूँ। ”
और वह शूज सहित डनलप पर लुढ़क गया। रात के आठ बजे ही। बेतरतीब ढंग से। यों उन लोगों की जिन्दगी बड़ी तरतीब से चल रही थी। अपने शहर में ही इंजीनियरिंग करती बेटी ऊर्वशी। मल्टी नेशनल कम्पनी में अमित। किसी चीज की कमी नहीं। बड़ा क़ाटेज, दो-दो गाड़ियाँ, मेड, सर्वेंट, ड्राइवर, माली, लान में खूबसूरत फूलों की क्यारियाँ, मौज-मस्ती, जीवन का भरपूर आन्नद!
असमंजस से घिरी रीना ने घबराकर मोबाइल को कबर्ड में रख दिया और सोफे पर पसर गई। वह नहीं चाहती थी, उर्वशी को या किसी और को यह बात पता चले।
” लोग कहेंगे, मेरी ही गलती है। मैंने ही छूट दी होगी। ” – रीना की होठों पर बुदबुदाहट थी… अस्फुट!… कोई सुन न सके, इस सावधानी के साथ। उसे ठंडे पसीने आ रहे थे।
उसे मोबाइल से डर लग रहा था। बहुत डर! आन्नद देनेवाला मोबाइल इतना डरा भी सकता है, कहाँ सोचा था। पर देर करने से तो और यूजर्स भी देख लेंगे ना। – उसके डर ने कोंचा उसे। वह अमित को झकझोरने लगी।
” क्या बात है यार!… क्या है ये? ”
” उठो। उठो। प्लीऽज उठो। ”
” पहली बार तुम्हें इस तरह का बिहेव करते देख रहा हूँ। इतनी उतावली तो तुम कभी नहीं… । ”
” … बात ही ऐसी है। ”
रीना अमित को आश्चर्य में डालती कबर्ड तक आ, मोबाइल निकाल लाई।
” …इसमें एक आदमी ने कितनी वाहियत तस्वीर और वीडियो मेरे वाल पर भेजा था। मैं बुरी तरह डर गई थी। ”
” कहाँ है, दिखाओ। ”
” मैंने डिलीट कर दी। ”
” मुझे दिखलाना था न।… ठीक, अब सो जाओ। ”
” मैं सो नहीं पा रही हूँ। कहीं उसने फिर भेजा तो? ”
” तो फिर डिलीट कर देना।
” अरे!… मैं ठीक से कुछ भी जानती कहाँ हूँ। जानते हो, डिलीट की जगह मैंने पहले गलती से वीडियो में साझा दबा दिया था।… वह तो मेरे नाम के साथ होगा ही। ”
अमित रीना की मासूमियत को देखता रह गया। वह बताने को उतावली हो रही थी,
” फिर फटाफट सब कुछ डिलीट किया। कहीं किसी ने देखा हो?… या अभी भी रह गया हो?… या उस गंदे ने फिर भेजा तो? ”
अमित ने रीना के केशों पर अपना थका हुआ दाहिना हाथ फेरा।
“अब सो जाओ। ऐसा कुछ नहीं होगा रीना।”
वह लुढ़क गया तुरंत। वह सच में बेहद थका था। लंबे सफर, उबाऊ मीटिंगों और फिर सफर!… सफर-दर-सफर!… थकान होनी ही थी।
गाँव की गलियों को छोड़ कर आए हुए पंद्रह वर्ष बीते। इन बीते वर्षों में अमित ने ना केवल पगडंडियों की गँवीली धूल को झाड़ कर पूरी तरह से शहर के कोलतार को अपना लिया बल्कि गाँव का पुराना बड़े आँगनोंवाला घर बेच अपना नया घर-संसार भी खूब बढ़ा डाला। आँगन की गौरैयाँ के साथ-साथ वहाँ की यादें भी बिसरा दीं।
लेकिन गौरैया-सी कोमल रीना में अब भी कुछ गाँव बाकी था। अम्मा-बावजी बाकी थे। खेत की माटी का सोंधापन और हरियरी बाकी थी। गाछों की हिलोर और बाँसों की सरसराहट बाकी थी।

साँपों की चमकती रंगीली धारियाँ औ लहराती त्वचा की खूबसूरती बाकी थी। आँगन में छींटे जाते दाने बाकी थे। सकोरों पर बैठी पानी पीती गौरैयाँ की चहचहाहट बाकी थीं। बहुत धीरे-धीरे उसके अंदर शहर गाँव की जगह ले रहा था… बहुत धीरे-धीरे।
भोली-भाली, गौरांग, सुंदर, तन्वंगी गृहणी रीना दूसरे-तीसरे दिन तक डरती रही। उसकी बड़ी-बडी़ आँखों में घबराहट की परछाईं देखी जा सकती थी। जैसे गौरैया चौकन्नी रहती है, वैसे ही वह रह रही थी। वैसे भी अमित शादी की रात से ही रीना को गौरैया ही तो कहता था।
दूसरी सुबह ही मुसाफिर अगली मीटिंग के लिए अगली यात्रा पर। वह नहीं चाहती थी कि उर्वशी को कुछ भी पता चले। ऐसे भी वह वीडियो उर्वशी के देखने लायक नहीं था। छिः! छिः!
कुछ दिनों पहले ही तो एक महीने से प्रतीक्षित फ्रेंड रिक्वेस्ट को स्वीकारा था।
ठीक बताया था उर्वशी ने कभी,
” हर किसी के फ्रेंड रिक्वेस्ट को मत एक्सेप्ट करो मम्मा। उसका प्रोफाइल खोलकर देखो। उसके परिचितों का नाम देखो। उसकी पोस्ट देखो। अपने मनलायक हो, तभी एक्सेप्ट करो। ”
इस शख़्स ने तो मैसेंजर पर ” हैलो! हाई! गुड माॅर्निंग! गुड नाइट ” फूलों की इमोजी की झड़ी लगा तंग कर रखा था। चाय से भरी इमोजी ने भी कम तंग नहीं किया था। मैसेंजर पर प्रायः झाँकने भी नहीं जाती थी रीना। जवाब देना तो दूर। हाँ, कभी-कभी ” ओके ” …बस।
” आप माधुरी दीक्षित जैसी खूबसूरत हो। ” – कभी यह तो कभी –
” माधुरी को देखता हूँ तो आप याद आती हैं, आपको देखता हूँ तो माधुरी का माधुर्य। ”
रीना डिलीट कर देती मैसेंजर का पूरा मैसेज एक साथ। और अब यह…
” हुँह! इतनी बड़ी हिमाकत! ”
भय का कद चार दिनों में कम हो गया, चिढ़ ने जन्म ले ली।
एक बार फोन से पूछ लिया अमित ने,
” अब तो नहीं आया फिर वीडियो ? ”
” नहीं अमित! ”
” नहीं आएगा। निश्चिंत रहो। हाँ, जरा अपनी मीठी आवाज में वह गाना तो सुना दो। ”
” गाना? कौन सा? ”
उसे अब सुकून का एहसास हो रहा था। मन में सागर की तरंगें उठीं।
” वही। हमलोगों का पसंदीदा। ठीक है, मैं ही सुना देता हूँ … ये नयन डरे-डरे / ये इजा भरे-भरे / जरा पीने दो… ”
तरंगों ने सराबोर कर दिया उसे और वह शांत होती चली गई।
हफ्तेभर के बाद वह पूरी तरह निश्चिंत। दसवें दिन दोपहर को काम निपटाकर, दोबारा गौरैया, गिलहरी और कबूतरों के लिए लाॅन में दाना-पानी रखकर लाॅन चेयर पर जा बैठी। मोबाइल हाथ में… आॅन किया। फेसबुक खोलते ही एक वीडियो… पुनः।
डर, उत्सुकता! नहीं! अब ऐसी हिमाकत नहीं करेगा वह बंदा। टच करते ही घबराहट हावी फिर। वैसी ही हरकत! उसे कभी साँपों से भय नहीं लगा। अक्सर वे खेत की मेड़ों पर पाँवों के पास या टूटी टीन के दरवाजेवाली संडास के ग्रिल पर नजर आ जाते।

वह एकटक उनकी खूबसूरती देखती रह जाती। न जाने कितने रंग के, कितने रूप…सच में रीना को कभी डर की झुरझुरी नहीं छूटी। हाँ, उनके लिजलिजेपन से घिन आती थी, सदा। आज वही घृणा की लहर उठी।
रीना ने अपने गांँव की भाषा में सोचा,
‘ थेथर है क्या? अबकी अमित नहीं, मैं ही सबकवा सिखाऊँगी बच्चू। ‘
लेकिन उससे पहले काँपते हाथों ने पुनः वही गलती कर दी। बीच में साझा का चिन्ह था। उसे हड़बड़ाहट में डिलीट का लगा। उसने जैसे छुआ। फिर तुरंत गलती समझ में आ गई। धड़ाधड़ सब डिलीट की, तब रीना की साँस में साँस आई। उर्वशी से ब्लाॅक करना सीखना चाहती थी। या अनफ्रेंड करना।
अब तक सीख कहाँ पाई थी। अभी तो फोन के सहारे नवीन दुनिया में गोते लगाने के बाद एकाएक आकाश की ऊँचाई नाप लेने का उछाह ही उड़ाए लिये जा रहा था… ऊपर और ऊपर! उसकी पोस्ट को कितने लाइक्स और कमेंट्स मिलने लगे थे। शेयर पर शेयर… आकाश, समुद्र सब उँगली के इशारों में। गहरी खाई में भी गिर सकती है, कल्पना भी कहाँ कर पाई थी। ‘ इतना भी बुद्धू नहीं होना चाहिए मुझे। डिजिटल युग है। मुझे भी सजग रहना चाहिए था।’ – उसने कपोल पर बैठी मक्खी को उड़ाते हुए सोचा। सर्पों के लिजलिजेपन से खुद ही…।

इधर प्रोजेक्ट वर्क में फँसी दौड़ते-भागते बाहर के लिए निकल जाती उर्वशी टाइम कहाँ दे पा रही थी। खुद सैंडविच को जल्दबाजी में कुतरती गाड़ी में जा बैठती। रास्ते में सैंडविच आधा-अधूरा खाया जाता। फिर वेट वाइप से मुँह, हाथ पोंछकर फ्रेश हो लेती। लिपस्टिक, काॅम्ब करना सब रास्ते में।

रात ढले रास्ते से ही स्टेशनरी दुकान से होते हुए लौटने पर प्रोजेक्ट वर्क में व्यस्त उर्वशी!… ऐसे में उसे क्या डिस्टर्ब करे। कुछ दिनों बाद सीख लूँगी। अभी हड़बड़ी क्या है। अब तक जरूरत भी नहीं पड़ी थी।
लेकिन रीना को आज शिद्दत से महसूस हो रहा है कि पहले पूरी तरह से हैंडल करना सीखने की जरूरत… तब मोबाइल से खेलने की। नहीं तो फँस सकते हैं। खासकर स्त्रियों को बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है। ऐसे लार टपकाते लोगों से दूर रहने के लिए थोड़ी चालाकी सीखनी आवश्यक है।
रीना ने मन ही मन में सब गुना। फिर खुद से ही कहा,
‘ अभ्यास करने से ही तो सीख पाऊँगी। दो-चार बार रटा देने से क्या होगा। अभ्यास मुझे ही करना होगा।… और सबक भी मुझे ही सिखाना…। हर समय बैसाखी के सहारे नहीं चला जा सकता।
‘चौकन्नी गौरैया रीना’ ने गर्दन सीधी की। आँखों को स्थिर किया। सामने हमेशा की तरह एक-दो नहीं, आज चार गौरैया आकर इधर-उधर सर हिलाते हुए सकोरों पर चोंच मारने लगीं… बेखौफ – ठक !… ठक !!
रीना उन्हें देखती रही। फिर उसने बड़े इत्मीनान से मैसेंजर खोला। चाय से भरे कप के साथ दो लाल दिल चमक बिखेर रहे थे। एक अल्पवसना नारी अलग मैसेज की शोभा। एक युगल का चित्र भी।
देखने के बाद भी वह अभी घबराई नहीं। थोड़ी सी जो थरथराहट हुई, उसे भी परे ढकेल दिया… जोर से। बगल की मेज पर उसकी अपनी चाय पड़ी थी, अकेले कप में। उसकी स्वभावगत शांति लौट आई थी। शांतचित्त होकर की बोर्ड पर उँगली चलाने लगी। खूब सोचकर तरतीब से टाइप की,
” ऐसे वीडियो, चित्र मुझे नहीं भेजें। कोई रोग है, अपना इलाज करवाएँ। प्रेषित करते वक्त अपनी, माँ, बेटी, बहन, बुआ और पत्नी को याद रखें। ”
उसे सेंड करते हुए सुकून के एहसास से घिर गई। पहली बार अपने बल पर निर्णय लिया था। कोई उपाय किया था। उसने घूँट भरी। घूँट पर घूँट भरी। चाय की मिठास ने ताजगी भर दी उसके दिल-दिमाग में।
अब भी मन नहीं भरा रीना का। पुनः उँगली चली। नया मैसेज उभर आया ” कहें, तो मैं अपने हसबेंड से कहूँ कि आपके महिला परिजनों को ऐसा ही प्रत्युत्तर दें।… चलेगा न?… मंजूर? ”
और उसने उसे भी सेंड कर दिया। ‘हाँ! खुद निर्णय लेने का मजा ही कुछ और है।’ उस रात उसे बड़ी गहरी और निश्चिंतता भरी नींद आई।

दूसरी सुबह चार बजे ही रीना की आँखें खुल गईं। उसने अमित के पसंद की गुलाबी, फ्लोरल प्रिंटवाली शिफाॅन साड़ी पहन ली। बहुत दिनों के डर ने ठीक से तैयार भी होने नहीं दिया था। आज अमित सुबह की फ्लाइट से आनेवाले थे। फ्लाइट साढ़े छः बजे लैंड करता। ड्राइवर गाड़ी लेकर एयरपोर्ट जा चुका था।
वह बरामदे की कुर्सी पर जा बैठी। आकाश के दोनों छोर से दो गोलाकार आकृतियाँ ताके जा रही थीं। एक बादलों के पीछे से झाँकता उदीयमान गर्म होता सूर्य, दूसरा बादलों को परे हटाकर हौले-हौले घुँघट से झाँकता, छुपने को बेताब शीतल चाँद। चिड़ियों की चहचहाहट से पूरा परिसर गूँज रहा था। उसे बहुत भला-भला सा लगने लगा। तभी गेट खुलने की आवाज ने तंद्रा भंग की।
अमित ने जैसे भीतर कदम रखा, पूछा,
” तुम्हारे फैन का क्या हाल है गौरैया? फिर तंग…? ”
” … आपने तो तैरना सिखाए बिना दरिया में फेंक दिया था। ”
” तैरना सीखना हो तो खुद भी हाथ-पाँव मारने होते हैं मैडम! चलो, अभी सिखाए देते हैं।… क्या हुआ? ”
” बताती हूँ, पहले चाय-साय…। ”
थोड़ी देर में वे दोनों बरामदे के ईजी चेयर में धँसे चाय की सोंधी महक के बीच बतकही में व्यस्त। उसने सारी बात बता दी। इस बार अमित ने गौर से रीना की बात सुनी और ब्लाॅक करने, अनफ्रेंड करने का तरीका बताने लगा।
“वैसे अब जरूरत नहीं उसे ब्लाॅक करने की। बच्चू समझ गया होगा।”
“ओ! मेरी गौरैया का छुईमुईवाला रूप अब बदल रहा है।”

अमित का एक पुरजोर ठहाका लॉन की खुशबूओं के बीच, रीना के नाम।

कहना न होगा कि उसके बाद से नमस्कार, फूलों का बंच, सुबह-शाम का ” गुड माॅर्निंग! गुड नाइट! ” चाय के कपों के साथ लिपस्टिक लगे होंठ, दिल और बेहुदी तस्वीरें… सब… सबकी सब गायब!… रीना को एहसास हुआ, जैसे हमेशा के लिए।

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अनिता रश्मि
संपर्क सूत्रः
४०१ ए, समृद्धि, चौबे पथ, अनंतपुर रॉंची-२
झारखण्ड

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