विमर्षः हमारे जीवन में “स्त्री” की अहमियत-गोवर्धन यादव

भारतीय संस्कृति को अक्षुण्य बनाने में स्त्री” का बहुत बड़ा योगदान है. तनिक सोचिये, दादी-मां की कहानियों के बिना, मां के प्यार-दुलार के बिना, पत्नी के जीवन-भर के साथ के बिना हमारी जिंदगी कैसे होती? बहन की प्यार भरी छेड़-छाड़, एक बेटी की प्यार भरी देखभाल, इसके बिना हमारा जीवन कितना नीरस और बेजान होता? “स्त्री” ही है जो सब में प्यार और खुशी बांटती है, सबका ध्यान रखती है. क्या हम सोच सकते हैं स्त्री के बिना हमारा परिवार कैसा होता?
स्त्री को जननी होने का अनमोल वरदान और खास तरह की जिम्मेदारी वहन करने की शक्ति परमपिता परमेश्वर ने दी है. जन्म देने का सामर्थ्य केवल उसे ही है. उसकी ममता के बारे में जितना भी कहा जाए उतना ही कम है. अपनी जान को खतरे में डालकर, बेहद शारीरिक पीड़ा सहकर खुशी-खुशी वह अपने बच्चे को जन्म देती है. उसकी देखभाल करते हुए वह अपने आराम के बारे में नहीं सोचती और बराबर अपनी जिम्मेदारी निभाती है. खुद भूखे रहकर वह अपने बच्चों का पेट भरती है. उसे जरा-सी चोट लग जाये तो उसका हृदय द्रवित हो उठता है. वह उसे बड़े लाड़-प्यार और दुलार से मरहम-पट्टी करती है. अगर बच्चा बीमार पड़ जाए तो थकान की परवाह किए बिना वह उसकी हर जरुरत का ध्यान रखती है. बच्चे ने कब क्या खाया, वे ठीक से पढ़-लिख रहे है, क्या वे अच्छी संगति में रह रहे है, क्या वे खुश हैं? आदि के बारे में सदा चिंतनशील रहती है. वह अपने बच्चे को बोलना सीखाती है, उसे जिन्दगी के वसूलों के बारे में सिखाती है. सही-गलत में फ़र्क करना बताती है. वह उसके सोच और चरित्र को संवारती है. वह केवल पढ़ाई-लिखाई में ही मदद नहीं करती बल्कि उसके सुरक्षित और अच्छे भविष्य की नींव रखती है. एक बारगी बच्चा अपनी मां को भूल जाय या उसके प्रति बेपरवाह हो जाए, लेकिन मां का प्यार कभी कम नहीं होता. उसके प्यार में उसका अपना मतलब नहीं झलकता. किसी ने कहा भी है कि एक मां के प्यार से ज्यादा पवित्र प्यार किसी का हो ही नहीं सकता.
एक सच्चे साथी के रूप मे वह अपने पति का साथ निभाती है, उसके दुःख-सुख में वफ़ादारी से उसका साथ देती है. वह न केवल अपने माता-पिता को प्यार और इज्जत देती है बल्कि अपने पति के परिवार को भी प्रेम की डोरी में बांधे रखती है. वह सभी रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों के साथ मेल-जोल बढ़ाकर, अपनेपन से रिश्तों का एक सुंदर और मजबूत ताना-बाना भी बुनती है. बच्चों से लेकर बूढ़ों और बीमारों तक, सभी की प्रेम और प्यार से देखभाल करती है.
हमारी संस्कृति रीति-रिवाज और परम्पराओं को जीवित रखने में उसका बड़ा योगदान रहता है. अगर हम संस्कृति के किसी भी पहलू पर नजर डालें-चाहे वह लोक-संगीत, नृत्य या कला हो, चाहे कपड़े पहनने का, भोजन बनाने का या फ़िर पूजा-पाठ करने का ढंग हो, वह सभी रिवाजों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने में उसका बड़ा योगदान रहता है. इसके जरिये वह सामाजिक मूल्यों को आगे बढ़ती है और परिवार और समाज को जोड़े रखती है. संक्षिप्त में कहा जाये की “स्त्री” हमारे समाज की रीढ़ की हड्डी है” तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता.
स्त्रियाँ आज भी दोयक दर्जे की नागरिक है. उसे वह स्थान अभी तक नहीं मिल पाया, जिसकी कि वह सच्ची अधिकारिणी है. उसके जीवन के हर पड़ाव पर बंधन है, रोढ़े हैं, प्रतिबंध है. एक अन्तहीन मकड़जाल अब भी उससे लिपटा हुआ है. वे आज भी घरेलु हिंसा की शिकार हो रही हैं. बावजूद इसके वह निरन्तर आगे बढ़ रही हैं. यह प्रसन्नता का विषय है.
समाज के प्रबुद्ध व्यक्तियों की सोच :-

१) औरत सम्पूर्ण है क्योंकि उसमें जीवन देने की, पालन-पोषण करने की और बदलाव लाने की शक्ति है (डायेन मरीचाइल्ड )
२) एक औरत के कई रूप है और उसका हर रूप अपने आप में खास और अनमोल है.
३) हमारी संस्कृति के कायम रखने में औरत का बड़ा योगदान है.
४) सब को प्यार देना-यह खूबी, यह शक्ति, औरत में तब और उभर आती है, अब वह माँ बनती है. माँ बनना, यह औरत को भगवान का वरदान है.( मदर टेरेसा)
५) वह कौन है जो मुझे प्यार करता है और हमेशा करता रहेगा? वह कौन है जो मेरी हर गलती के बावजूद मुझे नहीं ठुकराएगा ? वह तुम हो, मेरी माँ. (टामस कारलायल)
६) माँ के प्यार में उसका अपना मतलब नहीं झलकता. किसी ने ठीक ही कहा है कि एक माँ के प्यार से ज्यादा पवित्र प्यार किसी का नहीं हो सकता,
७) भगवान हर जगह नहीं हो सकता, इसीलिए उसने माँ को बनाया( एक यहूदी कहावत)
८) एक अच्छी माँ सौ अध्यापकों के बराबर है. (जार्ज हर्बर्ट)
९) पढ़ी-लिखी समझदार माँ न केवल पढ़ाई-लिखाई में अपने बच्चे की मदद करती है बल्कि उसके सुरक्षित भविष्य की नींव भी रखती है.
१०) एक बच्चे के भाग्य का निर्माण उसकी माँ ही करती है.( नेपोलियन बनापार्ट)
११) मेरी माँ सबसे सुन्दर औरत थी…..आज मैं जो कुछ हूँ उसी की बदौलत हूँ. मैं तो यही कहूँगा के मुझे सदाचार, समझदारी और सफ़लता देने वाली शिक्षा मेरी माँ से ही मिली.( जार्ज वाशिंग्टन)
१२) जीवन को सही तरीके से जीने के लिए जो सभ्याचार होना चाहिए, वह हमें औरत ही सिखाती है, जैसे- एक दूसरे का आदर करना, वे छॊटी-छॊटी बातें जिसमें हम दूसरों का दिल जीत सकें, हालात के मुताबिक अपने रवैये को ढालना और समाज के साथ कदम मिलाकर चलने के तौर-तरीके आदि(रेमी द गूरमाँ)
१३) एक सच्चे साथी के रूप में औरत ही अपने पति का साथ निभाती है. वह दुःख-सुख में वफ़ादारी से उसका साथ देती है.
१४) अगर समाज को तेजी से बदलना है तो औरतों को एकजुट होकर आगे बढ़ना होगा ( चार्ल्ज मलिक पूर्व अध्यक्ष संयुक्त राष्ट्र संघ-जनरल असेम्बली)
१५) आज के नए जमाने में औरत के गुणॊं का मूल्यांकन ऊँचा साबित हुआ है. मिल-जुलकर काम करना और् दूसरों को साथ लेकर आगे बढ़ना सफ़लता की निशानी है और औरत में ये गुण भरपूर हैं ( रोजाबेथ मास कैन्टर, हार्वर्ड बिजिनेस स्कूल प्रोफ़ेसर)
१६) परिवार में समाज में और संसार में औरत का योगदान अनमोल है. उसके बिना हमारे जीवन में पूर्णता नहीं आ सकती और न ही जीवन खुशहाल बन सकता है.
१७) आप किसी भी देश की हालात का अंदाजा लगाना चाहते हैं तो वहाँ की औरतों की हालात देखकर लगा सकते है. ( पं.जवाहरलाल नेहरु)
१८) आदमियों की प्रधानता का संबंध कई बातों से है, उनकी ’कमाऊ’ होने की स्थिति भी इसमें शामिल है. उनके पैसे कमाने की ताकत उनके परिवार में उनकी इज्जत का कारण होती है. जबकि औरतें कहीं अधिक समय तक रोजाना घर पर काम करती हैं परन्तु काम के बदले पैसे नहीं मिलते इसलिए परिवार की खुशहाली में उसके हाथ बटाने को कोई अहमियत नहीं दी जाती.( डा. अमर्त्य सेन)
१९) प्रभुजी, मैं तोरी बिनती करऊँ, पैंया पडूं बार-बार अगले जन्म मोही बिटिया न दीजे, नरक दीजे चाहे डार.
(उतर भारत का एक लोकगीत)
२०) आज लगभग हर घण्टॆ में कहीं न कहीं एक दहेज-हत्या का मामला कचहरी में दर्ज किया जाता है (*) हर 7 मिनट में पति और उसके परिवारवालों के निर्दयी बर्ताव के मामले की रिपोर्ट होती है
२१) पजाब, हरियाणा और राजस्थान में जन्मी बच्चियों के मारने का रिवाज इतिहास की जड़ों में है. परिवार के मुखिया के कहने पर दाई बच्ची के एक हाथ में गुड़ और दूसरे में रूई की पूनी रखकर कहती थी, ’ पूनी कत्तीं ते गुड खाईं, वीरे नूं भेजीं, आप न आईं. फ़िर बच्ची को मिट्टी की हाँडी में डालकर, हाँडी का मुँह बंद कर दिया जाता था और दाई उसे दूर सुनसान जगह पर रख आती थी. चूँकि समाज में इसकी मंजूरी थी, अतः न तो इसे पाप माना जाता था और न ही अपराध (दैनिक भास्कर-२००९)
२२) जब लड़के का जन्म होता है औरतें थाली बजाकर या हवा में आग उछालकर उसके जन्म की घोषणा करती हैं. लेकिन अगर लड़की पैदा हो जाए तो परिवार की कोई बुजुर्ग भीतर जाकर परिवार के आदमियों से पूछती थी. बारात रखनी है या लौटानी है? अगर आदमी जवाब दें ’लौटानी है’ तो सब लोग चले जाते हैं और जच्चा-माँ को नन्हीं बेटी के मुँह में तम्बाखू रखने के लिए कहा जाता है. जच्चा-माँ के इस बात का विरोध करने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि विरोध का मतलब है, जच्चा-माँ की जान को खतरा या उसे घर से निकाला जाना.
२३) एक सोची समझी नीति के अनुसार हमारे समाज में बेटियों की सत्ता को मिटाया जा रहा है. स्थिति इतनी गम्भीर हो चुकी है कि कुछ लोग इसे गुप्त रूप से हो रहा जनसंहार और कत्लेआम कहने लगे हैं
२३) जब तक हम बेटी के जन्म का भी वैसे ही स्वागत नहीं करते जितना बेटॆ के जन्म का, तब तक हमें समझना चाहिए कि भारत विकलांग रहेगा.( महात्मा गांधी)
२४) बेटे की इच्छा और पैसे के लालच में हम औरतों के खिलाफ़ न जाने कितने ही नीच और बेरहम कर्म कर बैठते हैं लेकिन क्या बेटे और धन सच में हमारे हैं ?
२५) अन्त में यह कहा जा सकता है कि हम इस सच को अनदेखा नहीं कर सकते- एक बच्चे या भ्रूण को मारना पाप है. सोच के जरिये, शब्दों के जरिये या कर्मों के जरिये-किसी औरत का जी दुखाना पाप है. जब हम किसी का दिल दुखाते हैं. उसे गाली देते हैं या उस पर जुल्म करते हैं तो यह अच्छी तरह जान लें कि हमें अपनी करनी का नतीजा जरूर भुगतना पडेगा. जब हम किसी को दुख देते हैं तो हमारी अपनी रूहानी तरक्की में रुकावट आ जाती है. इसीलिए आओ ! जागें और अपनी मानवता को पहचानें. हमें ऎसा जीवन जीना चाहिए जिसमें हम सब जीवों को बराबर का दर्जा दें. हम सब उस रूहानी नूर की किरणॆं हैं, जैसे कि कबीर साहिब ने कहा है-“ एक नूर ते सभु जगु उपजिआ, कउन भले को मंदे.”
२६) ये कहानियां उन साहसी लोगों की हैं जिन्होंने बदलाव लाने की कोशिश की. हम सब में यह शक्ति है कि हम बदलाव ला सकें. हम सब में यह काबिलियत है कि हम अपनी बेटियों के भविष्य को सुनहरा बनाएँ और उसके साथ अपनी जिन्दगी में भी बदलाव लाएँ.
२७) जो नौजवान दहेज की शर्तों पर शादी करता है, वह अपनी शिक्षा, अपने देश और नारी जाति सबका निरादर करता है. (महात्मा गांधी)
२८) कई अध्ययनों से हमें पता चलता है समाज में जब औरतें आत्मनिर्भर हों और समाज के कामों और फ़ैसले लेने में पूरी तरह से हिस्सा ले रही हों तो इससे समाज को बहुत फ़ायदा पहुँचता है.(डिप्टी सैक्रेटरी जनरल संयुक्त राष्ट्रसंघ)
२९) यदि कोई औरत निर्णय लेने में आजाद नहीं है तो जो वह मजबूरी में करती है उसे विकल्प नहीं कहा जा सकता.
३०) मैं अपने माँ-बाप की लाड़ली बेटी थी. मैं आज जो भी हूँ यह मेरे माँ-बाप की अच्छी परवरिश का नतीजा है. लड़की का भविष्य पूरी तरह से उसके माँ-बाप के आदर्शों पर निर्भर है कि वे उसका पालन-पोषण कैसे करते हैं ?. उसे पढ़ाइये, उसे आदर दीजिए और पैसे के मामले में उसे ऎसी शक्ति दीजिए कि उसे कभी किसी का मोहताज न होना पडे…अगर आज आप को लगता है कि आपकी बेटियाँ कमजोर हैं तो यह समझें कमजोर वे नहीं बल्कि आपकी परवरिश में कोई कमी रह गई है. अगर मेरे माँ-बाप भी इसी तरह से सोचते तो मैं जो आज हूँ वह कभी नहीं बन सकती थी. उनकी सोच मजबूत थी, इसलिए आज मैं एक शक्तिशाली औरत हूँ. आप भी ऎसा कर सकते हैं. अपनी बेटी को बड़े प्यार से, बड़े ध्यान से पालो. उसे अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाओ. आत्मनिर्भरता ही शक्ति है और आत्मनिर्भर होने के लिए शिक्षा की जरूरत है. अगर आप अपनी बेटियों के लिए ऎसा करेंगे तो वह आपकी इज्जत करेगी और जिन्दगी भर आपका ख्याल रखेंगी.( किरन बेदी (भारत की प्रथम महिला पुलिस अफ़सर.)
आदिकाल से लेकर, आज के युग तक की हम बात करें, तो पाते हैं कि स्त्री का रचना संसार कितना क्लिष्ट और विडम्बनाओं से भरा पडा है,.कभी वह ठुकराई गई, कभी यातनाओं की भट्टी में झोंक दी गई, कभी तरह-तरह के लांछन लगाए गए, कभी उसे बांझ कह कर प्रताड़ित किया गया, कभी उसकी भलमनसाहत का फ़ायदा उठाकर उसका दैहिक-मानसिक शोषण किया गया, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी. इतिहास गवाह है कि आदि काल से महिलाओं ने इस देश को और समाज काफ़ी कुछ दिया है. उसके इस उपकार को भुलाया नहीं जा सकता. यहां तक, देश की परतंत्रता के समय उसने पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाते हुए स्वाधीनता की अलख को जगाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. कुछ तो इतनी शूरवीर थीं कि वे अकेली ही संग्राम में कूद पड़ी थीं.
स्वाधीनता की अलख जगाती विरांगनाएँ
सन 1857 से 1947 तक स्वाधीनता की अलख जगाने और इस संग्राम में अपने प्राण की बाजी लगाने वालों में केवल पुरूष-वर्ग ही शामिल नहीं हुआ था, बल्कि अनेकानेक महिलाओं ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया था. लखनऊ की बेगम हजरतमहल, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, लखनऊ की तवायफ़ हैदरीबाई, ऊदा देवी, आशा देवी, नामकौर, राजकौर, हबीबा, गुर्जरी देवी, भगवानी देवी, भगवती देवी, इन्द्रकौर, कुशल देवी, रहीमी, गुर्जरी, तुलसीपुर रियासत की रानी राजेश्वरी देवी, अवध की बेगम आलिया, अवध के सलोन जिले के सिमरपहा के तालुकदार वसंतसिंह बैस की पत्नी और बाराबंकी के मिर्जापुर रियासत की रानी तलमुंद कोइर, सलोन जिले में भदरी की तालुकदार ठकुराइन सन्नाथ कोइर, मनियापुर की सोगरा बीबी , धनुर्विद्या मे माहिर झलकारीबाई, कानपुर की तवायफ़ अजीजन बाई, अप्रतिम सौंदर्य की मल्लिका मस्तानीबाई, नाना साहब की मुंहबोली बेटी मैनावती, मुज्जफ़रपुर के मुंडभर की महावीरी देवी, अनूप शहर की चौहान रानी, रामगढ की रानी अवन्तीबाई, जैतपुर की रानी, तेजपुर की रानी चौहान, बिरसा मुंडा के सेनापति गया मुण्डा की पत्नी माकी, मणिपुर की नागा रानी गुइंदाल्यू, कोमिल्ला की दो स्कूली छात्राएं-शांति घोष तथा सुनीता चौधरी, मध्य बंगाल की सुहासिनी अली, रेणुसेन, क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा की पत्नि दुर्गा देवी बोहरा (दुर्गा भाभी), सुशीला दीदी, भारत कोकिला सरोजनी नायडु, कमलादेवी चट्टॊपाध्याय, अरूणा आसफ़ अली, सुचेता कृपलानी, ऊषा मेहता, कस्तुरबा गांधी, सुशीला नैयर, इन्दिरा गांधी, श्रीमती विजयालक्षमी पंडित, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, ले.मानवती आर्या सहित लन्दन में जन्मी एनीबेसेन्ट, भारतीय मूल की फ़्रांसीसी नागरिक मैडम भीकाजी कामा, आयरलैण्ड की मूल निवासी और स्वामी विवेकानन्द की शिष्या मारग्रेट नोबुल (भगिनी निवेदिता), इंग्लैण्ड के ब्रिटिश नौसेना के एडमिरल की पुत्री मैडेलिन, ब्रिटिश महिला म्यूरियल लिस्टर और भी न जाने कितनी ही अनाम महिलाओं ने भारत की आजादी के लिए अपने प्राणॊं का उत्सर्ग कर दिया था. इन वीरांगनाओं के अनन्य राष्ट्रप्रेम, अदम्य साहस, अटूट प्रतिबद्धता और गौरवमयी बलिदान का इतिहास एक जीवन्त दस्तावेज है. हो सकता है उनमें से कईयों को इतिहास ने विस्मृत कर दिया हो, पर लोकचेतना में वे अभी भी मौजूद हैं. ये वीरांगनायें प्रेरणा स्त्रोत के रूप में राष्ट्रीय चेतना की संवाहक है और स्वतंत्रता संग्राम में इनका योगदान अमूल्य एवं अतुल्य है.
साहित्य लेखन में महिलाओं/स्त्रियों की भागीदारी.
आज से पचास साल पहले तक महिला लेखन को सम्मानीय दर्जा प्राप्त नहीं था. दो-चार महिलाएं रचनाएं करती थीं, उन्हें घर के सीमित दायरे की सीमित समस्याओं के घेरे में रचा लेखन मान लिया जाता था. उनके दो स्पेस थे-एक बाहरी दुनिया, एक भीतरी. भीतरी स्पेस आज भी महिलाओं के जिम्मे है. औरतों ने पढ़ना-लिखना शुरु किया. नौकरी करने लगीं लेकिन इसे सम्मानजनक नहीं माना गया. औरत ने जैसे-तैसे पहले स्पेस को लांघा, समाज में सवाल उठने लगे. बस यहीं से प्रतिरोध के स्वर उठने लगे….. यहीं से लावा फ़ूटा.
भारतीय समाज में स्त्री-शोषण का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही स्त्री के प्रतिशोध और क्रांतिकारी तेवर का भी. जब नारीवाद नारे और आंदोलन के रूप में चर्चित नहीं था, तब भी नारीवादी लेखन किया गया है. सुमित्राकुमारी सिन्हा, रुकैया सखवत, चन्द्रकिरण सौनरेक्सा, महादेवी वर्मा, कृष्णा सोवती, उषा प्रियंवद, मन्नु भंडारी, मालती जोशी,, शशि प्रभा जोशी, ममता कालिया,, चित्रा मुद्गल, राजी सेठ, सूर्यबाला, ज्योत्सना मिलन नासिरा शर्मा, मेहरुन्निसा परवेज, मैत्रेयी पुष्पा, नमिता सिंह, रमणिका गुप्ता, कमल कुमार आदि-आदि. ऐसे कितने ही नाम हैं, जो आज स्त्री लेखन से जुड़कर नया इतिहास, नया क्षितिज रच रही हैं.
वर्तमान समय में.
वर्तमान समय की हम बात करें, तो पाते हैं कि इस सदी के नए दशक में, महिलाएं बदलाव की नई इबारत लिख रही हैं. उनमें परिवर्तन लाने की ताकत है. पिछले दशकों में यह साबित हुआ है कि बिना उनके देश 100 फ़ीसदी आगे नहीं बढ़ सकता. कोविडकाल में उन्होंने जिस साहस, रचनात्मकता व उद्यमिता का परिचय दिया है, उससे लगता है कि 2021 में उनका प्रदर्शन और ज्यादा मजबूत व आत्मविश्वास से भरा हुआ है.
कोरोना काल पूरी दुनिया के लिए बड़ी विपत्ति का समय रहा, आपदा में ही हम अपनी क्षमताओं को पहचान पाते हैं, ऐसा कहा जाता है. ऐसे विकट दौर में महिलाएं ज्यादा शाइन करती हैं, यानी उनकी योग्यताएं और क्षमताएं ज्यादा उभरकर सामने आती हैं. यूएई के होप मार्स प्रोब का चेहरा है “सारा अल अमीरी”-.जुलाई में उन्होंने इस मिशन को लांच कराया था. जर्मनी की चांसलर एंजेला 2005 से जर्मनी की चासंलर हैं 2020 में 2020 में छिन्दवाड़ा (मध्यप्रदेश) की “सुश्री भावना डेहरिया जी” ने अभी हाल ही में माऊंट-एवरेस्ट के शिखर पर भारतीय ध्वज फ़हराया था. भारत की वित्तमंत्री सुश्री निर्मला सीतारमण ने 2021 का बजट एक फ़रवरी को पेश किया है. अमरीका की उपराष्ट्रपति “सुश्री कमला हैरिस” ने बीमारों की सेवा, घरेलु हिंसा से उबरने के लिए पॆड लीव की बात कही थी. चीन की लेखिका “सुश्री फ़ैंग-फ़ैंग” वुहान डायरी से चर्चा में आईं. उन्होंने डायरी में वुहान से फ़ैले कोरोना वायरस की दबी तहें खोली. एचसीएल के संस्थापक शिव नाडर की बेटी और कम्पनी की चेअरपर्सन रोशनी नाडर भारत की सबसे अमीर महिला बनी. उनकी कुल संपत्ति 54850 करोड़ रुपया है.
महिलाओं ने एक बार फ़िर साबित किया कि वे “राइज अप टू द ओकेजन” हैं. एडिशनल सालिसिटर जनरल आफ़ इंडिया ऐश्वर्या भाटी ने “पत्रिका”(अखबार) से खास बातचीत में कहा कि ये समस्त महिलाएं सकारात्मकता के साथ नए आयामों तक पहुंची हैं. उनके सपनों को पंख लग गए हैं. नए दशक में उनके सपनों को उड़ान मिलेगी. जहां तक जेंडर गैप की बात है आने वाले समय में बदलाव निश्चित ही आएंगे. अमरीकी सुप्रीम कोर्ट की दूसरी महिला जज सुश्री ” रूथ बदर गिंस्बर्ग” ने कहा था कि जब तक अगली जनरेशन की परवरिश में, पुरुषों का समान योगदान नहीं होगा, तब तक वास्तव में बराबरी की बात नहीं हो सकती.
स्त्री ही है जो सामाजिक, संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझती हैं और उसका परिक्षण करती हैं. दूसरी तरफ़ संविधान निर्माताओं की भावनाओं के अनुरूप, आधुनिक महिला ने कई कुरीतियों और कुप्रथाओं को नकारा भी है, जिसकी बदौलत समाज वर्तमान स्वरूप ले सका. पर्यावरण के संरक्षण और पशु-पक्षियों का ख्याल रखने में नारी का योगदान निर्विवाद है. तुलसी-बड़-पीपल की जड़ में नियम से पानी देती, गाय व कुत्तों को रोटी, चींटियों को आटा डालतीं स्त्री, संविधान की मूल भावना को साकार कर रही हैं.
महिलाओं की बड़ी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई हैं. महिलाएं समाज और देश की आधी आबादी है, वे जब तक अपनी क्षमताओं और योग्यताओं के हिसाब से समाज और राष्ट्र में भागीदारी नहीं कर पाएंगी, तब तक उनकी लड़ाई जारी रहेगी. हमारा विश्वास है कि वे नए दशक मे “देश की ताकत” बनकर उभरेंगी.

गोवर्धन यादव
103, कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
480-001

07162-246651 मोबा.0944356400
goverdhanyadav44@gmail.com

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