ललितः हायकू विधा में ग्रीष्म ऋतु-डॉ. सरस्वती माथुर

ऋतुओं ने करवट ली और गर्मी के अंगार जैसे दिन आकर ठहर गए तो जाने कहाँ चला गया उमंगों का सारा वैभव ,फूलों से रचा मधुमास अनंग के अनगिन रंग ,सुगंधों का अक्षत भी देखते ही देखते वेदना के विस्फोट से भर गया और धरा का मन चटक गया। पेड़ भी अपनी हजारों दयालु भुजाएँ फैलाए खड़े हैं, पर वे भी कहाँ तक बचाये धरती को, वे तो खूद सुलग उठे हैं मानो पूछ रहें हों …बताओ तो दिनकर तमस से ज्योति की ओर जाने के लिए क्या जरूरी है इतना ताप? धरती जल रही है आकाश धधक रहा है लू के कोड़े से धरती की पीठ चटक गयी है। दुष्कर है न स्वयं जल कर दूसरों को उजालों से भरना, जानते हैं भास्कर हम सब जानते हैं कि ग्रीष्म ऋतु भारत की प्रमुख 4 ऋतुओं में से एक ऋतु है। तुम धधकते हो पर,तुम्हारा आना भी जरूरी है। अब आए हो तो अभिनंदन करते हैं तुम्हारा।

हमको मालूम है कि बसंत के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है। बसंत के बीतने और ग्रीष्म ऋतु के आने का बड़ा सुंदर चित्रण कवि अज्ञेय ने अपनी कविता माघ फाल्गुन चैत में किया है और निमाड चैत में भी कवि ने भीषण गर्मी का चित्रण किया है जो दर्शाता है कि मनुष्य या प्राणी ही नहीं पेड़ भी इस झुलसती गर्मी में अपनी छाया को बचाने के लिए ओट देकर चुपचाप खड़े हैं –

“पेड़ अपनी-अपनी छाया को ओढ़े
चुपचाप खड़े हैं।
तपती हवा उन के पत्ते
झराती जाती है!”

कितना सुंदर भाव दर्शाया है कवि ने! हम सब यह भी जानते हैं कि ग्रीष्म ऋतु में धरती गर्मी से तप जाती है ,मिट्टी का रस सूख जाता ,पानी के अभाव में पेड़ पौधे भी सूखने लगते हैं और सभी प्राणी इस गर्मी से व्याकुल हो जाते हैं! पुराने कवियों ने भी कहा है,
“जगत तपोवन सो कियो ,
दीर्घ तप्त निदान देखो ,
गर्मी की भयावहता का भरपूर वर्णन बिहारी जैसे महाकवि द्वारा ही संभव है!

ऐसे ही हाइकुकारों ने भी ग्रीष्म ऋतु पर हाइकुओं द्वारा ग्रीष्म की वेदना व सुंदरता आदि को खूबसूरती से पकड़ा है। हाइकु कविता तीन पंक्तियों में लिखी जाती है। हिंदी हाइकु के लिए पहली पंक्ति में ५ वर्ण, दूसरी में ७ वर्ण और तीसरी पंक्ति में ५ वर्ण, इस प्रकार कुल १७ वर्णों की कविता है। इस विधा में भी ग्रीष्म की दाह को हाइकुकारों ने अभिव्यक्ति के नए नए अंदाज व रंगों से भर कर अपने हाइकु में जान फूंकी है! जब सूर्य देवता ग्रीष्म ऋतु में अपने प्रचंड तेवर दिखाते हैं तो जीव जन्तु और मानव सभी त्राहि -त्राहि करने लगते हैं ,लू के थपेड़ों से और चिलचिलाती धूप लिए गर्मियों के आते ही शहर की सड़कों पर तपती दुपहर में सन्नाटा छा जाता है !मनुष्य की अंदरूनी ऊर्जा और उत्साह भी क्षीण होने लगता है !जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है ,गरम हवाओं और बढ़ते तापमान से मन भी त्रस्त हो जाता है इसका रूप इन हाइकुओं में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए निम्न हाइकु देखें —
1.
लू से झुलसी
जेठ की दुपहरी
कराहे पंखे
-डॉ भगवत शरण अग्रवाल

2.
नदिया सूखी
तपाता है सूरज
प्यासे हैं पंछी
-डॉ सुधा गुप्ता

3.
तपा सूरज
जले दिल पेड़ों के
बिलखी धरा
– डॉ सुधा गुप्ता

4.
हर गाल पे
लू ने जड़े थपेड़े
धरती झुलसी
– रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

5.
जेठ महीना
तपती दो पहर
छूटे पसीना
-डॉ हरदीप कौर संधु

6.
पंछी व्याकुल
प्यासे ही तड़पें
जल के बिना
-शैल अग्रवाल
7.
बेचैन करे
जलता जो सूरज
बहे पसीना
-शैल अग्रवाल
8.
गर्मी के बाण
टपकता पसीना
खोई है छाँव
-डॉ सरस्वती माथुर

9.
स्वयं का ताप
घबराया सूरज
ढूँढे बादल
-रचना श्रीवास्तव

10.
जलता सूर्य
प्यार में डूबी हुई
धरती तपी
– प्रियंका गुप्ता
11.

सूर्य उगले
आग का है दरिया
तन झुलसा
-जेन्नी शबनम

12.
आग का गोला
उगा आसमान में
झुलसा गया
-सुदर्शन रत्नाकर
13.

दौड़ती जाती
आग बरसाती है
शैतान धूप
-डॉ भावना कुँअर
14.

ढूँढती छाया
झुलसी वादियों में
गरम हवा
-डॉ भावना कुँअर
15.

लू का तमाचा
खटकाए किवाड़
करती वार
-कृष्ण वर्मा
16.

धरती दग्ध
सूरज ज्वालामुखी
व्याकुल प्राणी
-डॉ रमा दिवेदी
17.

झुलसा रही
पक्षियों का बदन
दुष्ट पवन
-डॉ भावना कुँवर

18.
जेठिया धूप
सूरज की सताई
आग बबूला
-पुष्पा मेहरा

19.
आग बरसे
जंगल में सन्नाटा
झिंगुर गाए
-ललित मावर

20.
जेठ -महीना
धूप की चिंगारियाँ
खूब बरसीं
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
21.

गर्म हवाएँ
खुली सड़क पर
बीन बजाएँ
-पूर्णिमा वर्मन
22.

जेठ महीना
अंगार हैं झरते
तपता सूर्य
-डॉ हरदीप कौर संधु

23.
गर्म बेचैन
धूपीले अनमने
उबाऊ दिन
-डॉ सुधा गुप्ता
24.

नदी-सी बहे
लपटें लपेटे लू
छाँव झुलसे
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
25.

गर्मी प्रचंड
धूप तपाये नीर
सूखें हैं नीर
-डॉ सरस्वती माथुर
26

ग्रीष्म तपन
प्रतीक्षा करती है
मेघदूत की
-नीलमेंदु सागर

27.
दहका मन
धरा हुई तंदूर
सूर्य है क्रूर
-डॉ सरस्वती माथुर

28
वृक्ष की छाया
तलाशती फिरती
तपती हवा
-डॉ भावना कुँवर
29.

ऊँघता कुआँ
जून की दुपहरी
लुएँ प्रहरी
-डॉ भावना कुँअर
30

गर्मी के गीत
धूल नाचती फ़िरे
चौराहों पर
-कमला निर्खुपी
31

गर्मी की रात
करके छिड़काव
बिछाई खाट
-डॉ हरदीप कौर संधु
32

तपता सूर्य
बनकर आतंकी
ढाए क़हर
– राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’

33
सूरज खफ़ा
चलीं किरन बर्छी
धूप के तीर
-डॉ सुधा गुप्ता
34
जलता सूर्य
भभकती दिशाएँ
बैचैन पंछी
-डॉ अमिता कौंडल
35
पिघला बर्फ
नंगे हुए पहाड़
गर्मी के मारे
-शैल अग्रवाल
36
सहमे ताल
बगिया मुरझाई
क्रोधित रवि
-शैल अग्रवाल

37
जेठ की गर्मी
तपता धरातल
प्यासी नदिया
-डॉ रमा दिवेदी
38

धूप की छोरी
गरम सलाखें ले
दागती फिरे
-पुष्पा मेहरा
39

दुपहरियाँ
गर्मियों की जो आई
मन भी जला
-डॉ सरस्वती माथुर
40

झोंके हैं लू के
बदहवास भागे
बदन फूँके
-ललित मावर
41.

गर्मी की पीड़ा
बेहाल हुई धरा
फूट-सी फटी
-राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’

42
पेड़ की छाँव
तलाशता है मन
कड़ी धूप में
-प्रियंका गुप्ता
43

भानु भड़के
सूनी गली सड़कें
रैला उदास
-कृष्ण वर्मा

44
ग्रीष्म ॠतु से
सहम गए पेड़
नाचे बैताल
-राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’
45

पानी की तंगी
मचा है हाहाकार
गर्मी की मार
-शशि पुरवार
46

चिलचिलाती
गरमाती दोपहर
झुलसाती है
-नमिता राकेश

47
उमस भरी
गर्मी की रितु आई
नहीं सुहाई
-सुदर्शन रत्नाकर
48
*ग्रीष्म की लू का दंश सभी को चुभता है, दाह के कटाह में निमग्न ग्रीष्म में सम्पूर्ण पृथ्वी तवे के समान प्रतीत होती है ,ग्रीष्म की इस दाह को हाइकुकारों ने अपनी अभिव्यक्ति के नए नए अंदाज देकर अपने हाइकुओं में उकेरा है! गर्मी के चित्र खींचते खींचते हाइकुकार कहाँ तक ले जाता है !इसी कड़ी में कभी कभी हाइकु कितने मर्मस्पर्शी बन जाते हैं देखिये —

49
भभक उठी
आँवाँ बनी धरती
पकते जीव
-डॉ सुधा गुप्ता
50

धूप ने छला
काला हुआ हिरन
पानी न मिला
-डॉ सुधा गुप्ता
51

कुन्दन धूप
सूखे कुम्भ औ कूप
कंठ व्याकुल
-कृष्ण वर्मा
52

सूखे हलक
पक्षी ताकें फलक
बूँद की आस
-कृष्ण वर्मा
53
पत्ते नहीं वो
पक्षी जाते झरते
गर्मी बेहाल
-शैल अग्रवाल
54
चुभें कंटीले
पानी पानी चीखते
सूखते गले
-शैल अग्रवाल
55

लू के थपेड़े
श्रमिकों की पीठ पे
पडते कोड़े
-राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘‘बन्धु’

56
धूप में बैठ
तोड़ती वो पत्थर
उफ़ न करे
-डॉ रमा दिवेदी
57

पाखी भटके
न तरु-सरोवर
छाँव न पानी
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
58

ये बचपन
फुटपाथ पे मरा
गर्मी की मार
-डॉ अमिता कौंडल
59
बूढा लाचार
जेठ की दुपहरी
भटके द्वार
-डॉ अमिता कौंडल
60
लू में जलता
लाचार बचपन
माँजे बर्तन
-डॉ. अमिता कौण्डल
61
धूप के कोड़े
झुलसती हवाएँ
किधर जाएँ
-राम स्वरूप मूंदड़ा
62
गर्म हवाएँ
जलते तन मन
करें क्रन्दन
-सुदर्शन रत्नाकर
63
सह न सके
उड़ चले पखेरू
बावड़ी सूखी
-डॉ.जेन्नी शबनम

धूप और तपन कि महिमा के कई रूप हैं ,सोच देखें ,अमलतास ,गुलमोहर, माँ का पंखी झलना,नानी के घर में बिताई गर्मी को याद कर हाइकुकार की स्वप्नपंखी कल्पना अपने नन्हें नन्हें पंखों से असीम आकाश बांधती दिखाई देती है। इस भाव के सुंदर बिम्ब इन हाइकुओं में देखिये —

64
बाण की खाट
खड़ी कर धूप में
माँ करे छाँव
-डॉ हरदीप कौर संधु
65

गर्मी थी आई
पंखी घुंघरू वाली
माँ ने बनाई
-डॉ हरदीप कौर संधु
66

ग्रीष्म ऋतु में
देखे जो आम
टपके लार
-डॉ हरदीप कौर संधु
67

सर उठाएँ
जब गरम हवाएँ
झरें दुआएं
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
68

पंखा झुलाती
माँ सुलाती थी गोद
गर्मी की रात
-डॉ अमिता कौंडल
69

पंखा झुलाती
माँ खिलाती थी कौर
गर्मी की साँझ
-डॉ अमिता कौंडल
70

धूप में तपा
पा गया सुर्ख रंग
टीले का टेसू
-डॉ जगदीश व्योम
71

गुलमोहर
सहता रहा ताप
हँसता रहा
-डॉ सुरेन्द्र वर्मा
72

कड़ी धूप में
मशाल लिये खड़ा
तन्हा पलाश
-कमलेश भट्ट कमल
73

ग्रीष्म तपाए
योगी गुलमोहर
मोद लुटाए
-डॉ शिवजी श्रीवास्तव
74

पेड़ों के साये
लरज़ाती धूप में
तमतमाए
-डॉ सरस्वती माथुर

75
ग्रीष्म-ताप
सूखे सरित सर
दरकी धरा
-शैल सक्सेना
76

धरती तपे
सिर उठा मुस्काता
गुलमोहर
-अनिता ललित
77

जेठ की गर्मी
सब झुलस रहे
मोगरा खिला
-डॉ सुधा गुप्ता
78

तपे धरती
अमलतास खिला
मेरे आँगन
-सुदर्शन रत्नाकर
79

तपी धरती
लाल अंगार बना
गुलमोहर
-ऋताशेखर मधु
80

जेठ की धूप
हँसे अमलतास
प्रेम के फूल
-शशि पुरवार

81
आना जी ग्रीष्म
गुलमोहर कहे
हमारे घर
-डॉ दयाकृष्ण विजयवर्गीय विजय

82
असहनीय
गुलमोहरी धूप
ये कैसा रूप ?
अंशु हर्ष
83
सुर्ख लाल सा
दहकता सा फूल
वाह पलाश
-अंशु हर्ष

कालीदास के ऋतुसंहार में ऋतुओं का बड़ा मार्मिक वर्णन है। वे ऋतुओं को प्रकृति की सहचरी मानते हुए कहते कि कठोर ग्रीष्म हो या कोमल बसंत ,वर्षा हो या बेधक हेमंत ,अनुराग प्रबोध शरद हो या मुरझा देने वाला शिशिर सर्वत्र प्रकृति मनुष्य की सहचरी के रूप में आती है !उसके अनुराग को दीप्त करती है ,वियोग को उकसा देती है ,आकांक्षा को तीव्र बनाती है और रमेंणेच्छा को उदीप्त करती है ! यद्धपि ग्रीष्म के दिन बड़े ही कष्टदायक होते हैं तथापि चंद्र्किरणों से चमकती हुई रात्रियाँ विलासी और विलासिनियों के प्रेम में नवीन प्राण शक्ति का संचार करते हैं इस भयंकर गर्मी में कमलों से भरे हुए और खिले हुए पाटल की गंध में बसे हुए जल में स्नान करना बहुत सुहाता है ,चंद्रमा की चाँदनी और मोतियों के हार सुख देते हैं l कालीदास विलासियों को आशीर्वाद देते हैं कि यह ऋतु तुम्हारे लिए आनन्ददायक हो ,ऐसा कि महल कि ऊपरी छत पर ललित गीत के साथ सुंदरियाँ आपका इस ऋतु में मनोविनोद करें !ग्रीष्म का यह आताप काल तो तपस्या है मानव क्या सारी प्रकति की तपस्या का समय इस तपस्या का फल बन कर ही तो खिलेगी पावस की हरियाली lजितना ताप उतनी हरियाली !हाँ सूरज !तुम्हारा ताप चाहे जितना जलाए ,तुम्हें यूं ही पुकारेगी यह धरा !तुम न आए तो कौन पिलाएगा उजालों का अमृत धरती के गर्भ से फूटे अंकुरों में कैसे उतरेगा जीवन का रस ? अत: प्रकति की हर ऋतु का महत्व है उसका स्वागत होना चाहिए ! एक दोहे में कवि बिहारी भी यही कहते हैं कि ग्रीष्म की दोपहरी में गर्मी से व्याकुल प्राणी वैर-विरोध की भावना को भूल जाते हैं। परस्पर विरोध भाव वाले जन्तु एक साथ पड़े रहते हैं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो यह संसार कोई तपोवन है यहाँ रहने वाले प्राणियों में किसी के प्रति दुर्भावना नहीं होतीं ।बिहारी का दोहा देखें

“कहलाने एकत वसत, अहि मयूर मृग-बाघ।जगत तपोवन सों कियो, दीरघ दाघ निदाघ। ”

तो चलिये सूरज रे जलते रहना कह कर ग्रीष्म ऋतु का अभिनंदन करे और देखें कुछ और वो बिम्ब जो हाइकुकारों ने उकेरे हैं l ऐसी ही कुछ गर्मी के परिदृश्यों से संबन्धित रचनायेँ दृष्टव्य हैं ..
84
.आसमाँ- चूल्हा
अंगारे दहकाती
ग्रीष्म ब्राह्मणी
-डॉ.उर्मिला अग्रवाल
85
तंदूर तपा
धरती-रोटी सिंकी
दहक लाल
-डॉ.सुधा गुप्ता
86
घास जो जली
धरा-गोद में पली
गौरैया रोए
– रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
87
नदियाँ प्यासी
झरने माँगे पानी
जेठ की बेला
-रचना श्रीवास्तव
88
लू के भँवर
तांडव करते से
दौड़े गली में
-डॉ सरस्वती माथुर
89
सूखा गुलाब
डटा है डाल पर
आदमी भागे
-शैल अग्रवाल
90
नागफनी सी
गले पड़ती गर्मी
कड़ी धूप में
-शैल अग्रवाल

प्रचंड गर्मी के दिनो में अक्सर मुझे तो वो गुजरी कॉलेज के दिनो की गर्मी की वो फुरसती दुपहरियाँ आज भी याद हो आती हैं जब मैं फुर्सत पाकर शरदचंद्र, बंकिंचन्द्र और रवीन्द्रनाथ जी की किताबें चाट जाया करती थी, साहित्य से मेरा गहरा नाता हो जाता था ! बाहर पछुआ हवाओं की साँय साँय भी मुझे नहीं अखरती थी ! गरमियाँ आते ही कॉलोनी में जब गूंजने लगती हैं बर्फ के गोले और टनटन करती कुल्फी वाले की घंटियाँ तब बड़ी नौस्टेल्जिक फीलिंग होती है ,जब छोटे थे तो भागते थे गोला लेने या कुल्फी खाने कितने मिठास भरे दिन होते थे ! और क्या भूल सकते हैं की सख्त गर्मी में बाहर जाने की मनाही थी तो घर में ही इंडोर गेम्स खेलते थे ! पास पड़ोस के बच्चे किसी एक जगह डेरा डाल लेते थे कभी किसी के कभी किसी के घर ,अपनी चौपाल जमा धमा चौकड़ी करते थे और कैरमबोर्ड की गौटियाँ ,लूडो या ताश के खेल में कब दुपहर से शाम हो जाती थी पता ही नहीं चलता था !आज तो नेट का जमाना है उसी में डूबे रहते हैं सभी ! और एसी में बैठें होते हैं तो पछुआ हवा का एहसास ही नहीं होता हमारे तो दिलोदिमाग में आज भी बसी है खिड़की पर लटके खस के परर्दों की भीनी भीनी खुशबू जो कमरों को ठंडा रखती थीं ! रात को छतों पर और घर के बाहर ठंडे पानी के छिड़काव से महकती मिट्टी की गंध क्या कभी भूल पाएंगे हम ? सुबह उठते ही ठंडाई घुटती थी तो दुपहर में आम शीतल पेय और लस्सी की बहार छाई रहती थी ! कुछ उदाहरण देखें —
91
छिड़क पानी
आँगन बिछी खाट
गर्मी की रात
रचना श्रीवास्तव
92
गर्मी जो आई
मीठी मलाई लस्सी
माँ ने बनाई
डॉ.हरदीप सन्धु
93
गर्मी यूँ झेले
पुदीना-जलजीरा
बिकता ठेले
डॉ.हरदीप सन्धु
94
रसीले आम
पिकनिक मनाते
शुक्रिया ग्रीष्म ।
डॉ.उर्मिला अग्रवाल
95
बर्फ की चुसकी
शीतल जो करती
तपी दोपहरी
-शैल अग्रवाल
96
बैठे खेलते
धूप से थे बचाते
कैरम ताश
-शैल अग्रवाल

97
तपा आकाश
नभ से छिड़कता
धूप की बूंदे
डॉ सरस्वती माथुर

इस मौसम की एक विशेषता यह है कि शाम को सब घर से बाहर निकलते हैं और आस पड़ोस या छत पर घूमते हैं तो वहाँ आपस में बतियाते हैं तो इससे सामाजिकता की भावना बहुत बढ़ जाती है जबकि सर्दियों में तो शाम पड़ते ही सब घर में दुबक जाते हैं ! बच्चे भी शाम को बाहर खेलते हैं तो चहल पहल बनी रहती है ! उस दृष्टि से गर्मियों का मौसम बहुत खुशनुमा लगता है ! हाइकुकारों ने भी इस मौसम पर बड़ी खूबसरती से लिखा है….
98
गर्मी के मारे
हलकान सूरज
बोला-‘नहा लूँ !’
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु
99
तपता सूरज
व्याकुल जा कूदा
बीच समुद्र
शैल अग्रवाल
100
गर्मी के दिन
भरी दुपहरी में
नींद के बीन
डॉ सरस्वती माथुर
000

डॉ सरस्वती माथुर
ए-2 ,सिविल लाइंस
जयपुर-6

सर्वाधिकार सुरक्षित @ www.lekhni.net
Copyrights @www.lekhni.net

error: Content is protected !!