10 नवंबर 1934 को जन्मे और 8 जनवरी 2023 को हमें छोड़कर जानेवाले श्री केसरीनाथ त्रिपाठी जी का जाना, एक मित्र और हितैषी का जाना है, विशेषकर हम ब्रिटेन के हिन्दी प्रेमियों के लिए। कविता की यात्रा 1998 से शुरु हुई उनकी और शुरु हुई तो ऐसी कि खास शगल और शौक बन गया जीवन का। उनके बहु चर्चित, सफल और लंबे राजनैतिक जीवन के बारे में तो सभी जानते हैं पर कवि केसरीनाथ के परिचय से श्रद्धांजलि देना चाहूंगी मैं।
बादलों की बेटी
वर्षा के झूले पर
धरती पर आई
कच्ची माटी के आँगन में
पोर-पोर समाई।
पर बदले रूप में
बड़ी ही इठलाई
जब पकी ईटों पर आई
वही बूँद,
बूँद-बूँद छितराई।
ममता भी
कभी रूप बदलती है
कभी शालीन
कभी उन्मुक्त होती है।
उसकी गाथा
उसके मिलन पर
उसकी अनुभूति होती है।
– केसरी नाथ त्रिपाठी
वर्षों लोकसभा के स्पीकर, फिर बंगाल के गवर्नर, एक सफल और अंततक सक्रिय राजनेत केसरीनाथ त्रिपाठी जी एक संवेदन शील पारिवारिक व्यक्ति थे जिन्हें इन्सान और रिश्तों की परवाह थी। समझ थी।
पूर्णतः समाज और साहित्य को समर्पित, एक कवि, एक राजनेता। भावुक भी और व्यावहारिक भी। कूटीनीति के साथ-साथ रसिकता भी। एक दुर्लभ संयोग। हंसमुख व्यक्तित्व के धनी केसरीनाथ त्रिपाठी जी के अपनत्व भरे व्यवहार ने सदा ही प्रभावित किया। जब भी मिले बहुत ही सहज रूप से। ऐसा लगता जैसे कोई पुराने परिचित हैं परिवार के सदस्य और हमारे अपने बड़े हैं। हम यू.के. वासियों पर तो उनका विशेष और सहज स्नेह रहा। करीब-करीब हर वर्ष ही आते थे न सिर्फ स्वयं आते थे, अन्य कवि और गीतकारों को भी साथ लाते थे। उन्होंने भारत के कई कवि और गीतकारों से हमें मिलवाया। एक सहज मिलनसार, रसमय व्यक्तित्व था उनका। मिलने के कई मौके मिले। कविता शेर-शायरी के अलावा गंभीर विषय और ग्रंथों पर भी खुलकर बातें करते थे। एक सहज एप्रोचैबल खुला व्यक्तित्व था उनका। एक जगह से दूसरे जगह जाते कार में कई बार और एक बार घर पर भी ठहरे थे त्रिपाठी जी। जिस वजह से उनके साथ समय बिताने का सौभाग्य मिला। कवि की तरह उन्होंने लेखनी के लिए भी अपनी रचनायें भेजीं और विनम्रता देखें -फुट नोट था कि अगर उपयुक्त लगें, तो स्थान दें। अपनी कविता की किताब भी दी, यह कहकर कि मुझे कोई भी कविता छापने की स्वतंत्रता है। यह विश्वास मनछूता था। एक घटना याद आ रही है, जब ब्रिटेन नहीं, बनारस में अचानक ही एक संस्था के आयोजन में उनके हाथों से सम्मान लेने का अवसर आया तो देखते ही बोले अरे यह तो अपनी शैल जी हैं। और तब मेरे मुंह से निकला था , हाँ और आज अपने शहर में खड़े होकर अपनों के हाथों से सम्मानित होने का सुख व सौभाग्य है इनका।
और तब उनके चेहरे पर जो आत्मीय निश्छल हंसी आई थी, भूल पाना असंभव है। हाल ही में दो तीन बरस पहले एक बार ट्रेन में भी मुलाकात हुई। वह कलकत्ते से इलाहाबाद जा रहे थे और हम बनारस से दिल्ली। हालांकि घंटे -दो घंटे का ही साथ था परन्तु मुलाकात में हुई बातें अविस्मरणीय। बनारस और इलाहाबाद दो पड़ोसी शहरों के बीच कुछ बेहद अपने परिचित निकल आए हमारे बीच और तब अपने आप बेहद नजदीक के से व्यक्ति मालूम पड़े थे त्रिपाठी जी। उनका वह बारबार चित्रकूट घुमाने का आमंत्रण संभव नहीं हो पाया वक्त की मारामारी की वजह से परन्तु जब भी चित्रकूट घूमने जाऊंगी एकबार तो त्रिपाठी जी अवश्य ही याद आएंगे।
जूम मीटिंग के इस अति व्यस्त और धुआधार युग में भी, तकनीकी से भलीभांति परिचित न होते हुए भी जब भी बुलाया , अस्वस्थ होने के बावजूद भी , ना नहीं की। खूब कवितायें सुनी और सुनाई ।अंत तक बैठे भी रहे। ऐसे हम सबके अपने प्रिय केसरीनथ त्रिपाठी जी को विनम्र और भावपूर्ण श्रद्द्धांजलि। भगवान उनकी आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे। और मित्र व परिजन , जिनमें हम कई ब्रिटेन वासी भी शामिल हैं, हमें यह विछोह सहने की शक्ति दे।
पुनः पुनः दिवंगत पुष्यात्मा को नमन करती हूँ।
शैल अग्रवाल
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