कविवर नीरज जी ने कहीं लिखा है कि –आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य / मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य।
सौभाग्य ही तो है हमारा कि आज भी कविता को लिखने-पढ़ने, समझने वाले लोग मौजूद हैं और संवेदनाएं स्पंदित हैं । आज भी आत्मा के इस शब्द रूपी सौंदर्य को हम पकड़ सकते हैं। पहचानते हैं।
कहानी, व्यंग्य और लघु कथाएँ तो हैं ही, पर इस अंक का केन्द्र बिन्दु इसबार कविताएँ है। कविताएँ जो लेखनी सानिध्य के लिए हमारे पास आई थीं और समयाभाव के कारण वहाँ नहीं पढ़ पाए थे । कुछ वे कविताएँ भी हैं, जो चौथे लेखनी सानिध्य में पढ़ी गई थीं और अब हम इन्हे आप तक पहुँचाना चाहते हैं। हमने कई सरस कविताओं की भावपूर्ण लहरों को संजोने का प्रयास किया है यहाँ।
नवरात्रि के साथ ही त्योहारों का मौसम शुरु हो जाता है, इसलिए कुछ इनपर और दीपोत्सव मनाती दीपावली पर भी कविताएं व हायकू आदि भी संकलित किए गए हैं इस अंक में । गीत और ग़ज़ल के साथ-साथ दोहे भी हैं। हमें पूरा विश्वास है कि यह इंद्रधनुषी छटा आपके मन पर सतरंगी आभा अवश्य बिखेरेगी।
जी भरकर भीगें, डूबें, और जी खोलकर बहें इस काव्य सरिता के सुखद और सोचमय प्रवाह में। किस छींटे से आप पुलकित हुए, कब बस किनारे पर बैठकर ही लहरें गिनी, बताएँगे तो कवियों के उत्साह और लेखनी के आत्मबल दोनों में ही बृद्धि होगी।
एक बात और इस लेखनी सानिध्य अंक की वजह से ‘ किसकी धरती ‘ अंक अब दिसंबर जनवरी विशेषांक होगा जो कि वर्तमान विश्व की आक्रामक परिस्थिति और शरणार्थियों की पीर , सपने और टूटी-बिखरी आस पर केन्द्रित है । मानती हूँ कि विश्व एक खतरनाक जगह में परिवर्तित होता जा रहा है और हमारी भावी पीढ़ी और उनके सपनों के लिए असुरक्षित क्षेत्र बनता जा रहा है, परन्तु इन्हें बचाने का प्रयास तो करना ही होगा। फिर यह शरणार्थीयों का विषय तो वैसे भी इनकी परिस्तिथियों सा ही कठिन और पीड़ाप्रद है। समाधान और उपाय तो सभी को ढूंढने होंगे, क्यंकि समस्याओं की दुरुहता के प्रति जागरूक होना सभी के लिए जरूरी है, वरना विनाश की खाई ज्यादा दूर नहीं।
विश्व का कोई भी कोना तो अछूता नहीं इस विध्वंस और तोड़फोड़ से।
कितनी सही है यह अधिकरण और भेदभाव की राजनीति…क्या वाकई में कोई शरण है भी इन बेसहारों के लिए… कौन कितना जिम्मेदार है इस उथल-पुथल, अन्याय व अराजकता के लिए- हम आप या फिर ये बड़े-बड़े राजनेता इनका अपना लालच और कुसंचालन व अपव्यय ? आपके विचार और रचनाएँ आमंत्रित हैं। भेजने की अंतिम तिथि 25 नवंबर।
‘ किसकी धरती’ पर आधारित यह अंक लेखनी का वर्षांत और नव वर्ष संयुक्तांक होगा।
इस सारी वैश्विक उथल-पुथल के बीच एक छोटी-सी सुखद खबर भी है लेखनी परिवार के लिए, (आप सभी लेखक, कवि व पाठकगण जो इस परिवार का अभिन्न हिस्सा हैं )- अगला अंक लेखनी का 100 वाँ अंक है। विश्वास नहीं होता कि हम इतनी जल्दी इस मुकाम पर भी पहुँच गए। धन्यवाद आप सभी का यूँ साथ निभाने के लिए।
आगामी ज्योति पर्व और माह में पड़ने वाले अन्य त्योहारों की अशेष शुभकामनाओं के साथ,
It’s a real plurseae to find someone who can think like that