शैल अग्रवाल : नाम ही काफ़ी है।
काशी, एक ऐसा पवित्र नगर जो पतित-पावनी गंगाजी के तट पर अवस्थित है, जो शिव के त्रिशूल पर बसी हुई सबसे प्राचीन नगरी है। इसके साथ ही वह हिन्दू मान्यता के अनुसार, सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक है, एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान शिव यहीं विराजते है, शायद इसिलिए इसे अविमुक्त क्षेत्र भी माना गया है. इस नगरी में जगप्रसिद्ध बाबा विश्वनाथजी का मंदिर, अस्सी घाट, रामनगर किला आदि यहां के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं जो इसकी विशिष्ट पहचान है. साहित्यिक-सांस्कृति के आलोक में जगमगाती यह नगरी कबीर, भारतेन्दु, हरिश्चंद्र, मिर्जा गालिब, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद के साहित्य एवं काव्य की अमिट स्मृतियों को अपने में संयोए हुए है। इसी पवित्र और पावन धरा पर अनमोल साहित्य भी विपुल मात्रा में सृजित हुआ है. संत तुलसीदास जी ने इसी नगर के बीच से प्रवाहित होती गंगा के पावन तट पर बैठकर रामकथा-” रामचरित मानस” लिखा. बाबा विश्वनाथ के द्वार पर शहनाई बजाते ( स्व) बिस्मिल्लाह खान की स्वर-लहरी की गूंज इसी नगरी में गूंजी थी.
एक ऐसा शहर जो अपनी संगीत विरासत, नाटक और मनोरंजन के लिए भी जाना जाता है. जिसकी पहचान नृत्य परंपराओं, संगीत और नाटक मेलों और त्योहारों, अखाड़ों, खेल-कूद आदि का पुरातन केन्द्र रहा है. इतना ही नहीं यहाँ के पान की बात न की जाए तो बाद अधूरी रह जाएगी. यहाँ का पान अपने बेजोड़ स्वाद के लिए विश्व-विख्यात है.
जी, हाँ, मैं बात कर रहा हूँ विश्व विख्यात नगरी काशी की, जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है. बनारस में क्या नहीं है?. रस ही रस है. बनारस को लेकर यह भी मान्यता है कि इस भूमि में प्राण त्यागने वाले प्राणियों को ” शिवलोक” की प्राप्त होती है. लेकिन जिन लोगों की मृत्यु उनके समय निर्धारण से पूर्व हो जाती है, उनकी आत्मा तब तक यहाँ -वहाँ भटकती रहती है, जब तक वे अन्य शरीर धारण नहीं कर लेतीं. ऐसी अशरीरी आत्माएं या तो बुरी होती हैं या फ़िर भली. वे अपने-अपने स्वभाव के अनुसार लोगों के मदद ले लिए भी आगे आती हैं. इन अशरीरी आत्माओं के किस्से न सिर्फ़ बनारस में, बल्कि देश के अन्य क्षेत्रों में भी आए दिन सुनने और देखने को मिलते हैं. जिला छिन्दवाड़ा की तहसील जुन्नारदेव के ग्राम तालखमरा में कार्तिक मास में भूतों का मेला लगता है.
निश्चित ही आप सोच रहे होंगे कि शैलजी की कहानियों पर बात न करते हुए मैं बनारस अथवा काशी की पृष्ठ भूमि को ले बैठा. दरअसल इसके पीछे तथ्य यह है कि आपने अशरीरी आत्माओं को लेकर कुछ कहानियां लिखी गईं हैं. इससे प्रतीत होता है कि आपने बालपन में ऐसे अनेक किस्से-कहानियां अवश्य सुने होंगे, जो मन-मस्तिस्क के अंतरे कोने में जम गए और कालांतर में इन्हीं किस्सों को आपने अपनी कहानियों में स्थान दिया है.
काशी नगर की प्राचीनतम विरासत और आधुनिकता से मिश्रित इस नगरी में आपने जन्म पाया. आपकी शिक्षा-दीक्षा इसी नगरी में हुई, आपने संस्कृत, अंग्रेजी साहित्य तथा चित्रकला में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. फ़िर इसी विश्वविद्द्यालय से आपने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की. तत्पश्चात आपने ब्रिटेन को अपना कर्मक्षेत्र बनाया.
आप गद्य विधा के साथ-साथ, पद्य पर भी समान अधिकार रखती हैं. ब्रिटेन में रहते हुए भी आपके मन में हिंदी के प्रति एक विशेष अनुराग है. इसी अनुराग से प्रेरित होकर आपने हिन्दी के उन्न्यनन और प्रचार-प्रसार के लिए इन्द्रजाल पत्रिका “लेखनी” की स्थापना की है, जिसमें देश-विदेश के साहित्यकारों की रचनाएं प्रकाशित होती हैं.
अभी हाल ही में “वातायण-यूके प्रवासी संगोष्ठी -118” के मंच से आपके दो कहानी संग्रह- “सुर-ताल” एवं “चयनित कहानियाँ” का लोकार्पण दिनांक 10 सितंबर 2022 को हुआ, जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार श्री ओम निश्चल ने की. वक्ता थीं सुश्री संतोष श्रीवास्तव जी, डा.सुश्री इंदु झुंझुनवाला जी तथा मुझे भी एक वक्ता के रूप में सहभागिता करने का सुअवसर प्राप्त हुआ..इस कार्यक्रम की प्रस्तोता थीं सुश्री हंसा दीप और सह संचालन कर रही थीं सुश्री आशीष मिश्राजी.
सभी वक्ताओं ने आपने दोनों कहानी संग्रहों पर बेबाकी से अपने विचार रखे. जब मुझे बोलने का अवसर आया तो आडियो-विडियो ने साथ नहीं दिया. मैं आपकी दो-चार कहानियों की बुनावट तथा उनमें पसरे रहस्यों पर बात करना चाहता था, लेकिन नहीं कर पाया.
शैल जी से मेरा परिचय एकदम नया नहीं है और न ही बहुत अधिक पुराना है. आपसे मेरा जुड़ाव इंद्रजाल पत्रिका “लेखनी” के माध्यम से हुआ, जिसका प्रकाशन 1997 के बाद से, अब तक निरन्तर जारी है. मैं उत्साहपूर्वक उसमें रचनाएं प्रेषित करता रहा और स्थान पाता रहा. इसी निरन्तर प्रयास के कारण ही आपसे मेरा जुड़ाव संभव हुआ.
आपके दो कहानी संग्रह . “सुर-ताल” तथा “मेरी चयनित कहानियां” मुझे मेल के माध्यम से प्राप्त हुई थीं. मैंने आपकी अधिकांश कहानियों को पूरे मनोयोग के साथ पढ़ा है. कहानियों में भटकती आत्मा, कभी किसी के शरीर में प्रवेश करतीं, तो कभी अपनी उपस्थिति से रहस्यों को खोलतीं, पाठकों को रहस्य और रोमांच के अनोखे संसार में ले जाती है. कहानियो को पढ़कर पाठक वैसा नहीं रह जाता जैसा कि वह पढ़ने के पहले होता है. इन तमाम कहानियों को पढ़कर मुझे लगता है कि आपने अपनी छटी इन्द्री को प्रयोग में लाते हुए इन कहानियों को लिखा है.
वैसे हमारे शरीर में मुख्य रूप से पांच इन्दियां काम करती हैं. आंख, कान, नाक, जीभ तथा त्वचा. एक छटी इन्द्रीय भी होती है. इस इन्दिय से व्यक्ति में भविष्य में झांकने की क्षमता का विकास होता है. अतीत में जाकर घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है. मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुन सकता है. किसके मन में क्या विचार चल रहा है, शब्दशः पता लग सकता है. एक ही जगह में बैठे हुए दुनियां की किसी भी जगह की जानकारी पल भर में ही हासिल की जा सकती है. छटी इन्द्री पाप्त व्यक्ति से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता और इसकी क्षमताओ के विकास की संभावनाएं अनंत हैं.
हमारे देश में भटकती आत्माओं के अनेक किस्से-कहानियां सुनने को मिलते हैं. शायद अतृप्त आत्माओं का वजूद नहीं होता तो हमारे छिन्दवाड़ा के विकासखंड मुख्यालय जुन्नादेव से तीस किमी की दूरी पर ग्राम पंचायत के ग्राम तालखमरा प्रेतबाधा से मुक्ति के लिए दीपावली के पश्चात देव उठनी ग्यारस से पन्द्रह दिन तक तहसिल के ग्राम तालखमरा या खमराताल में मेला नहीं लगता?. पीढित व्यक्ति को यहां लाया जाता है और कुछ सिद्ध प्रयोगों के बाद उसे इस व्याधि से छुटकारा मिल जाता है. इसी प्रकार छिन्दवाड़ा की तहसील सौंसर के पास के गांव जामसांवली में मन्दिर में लेटे हुए श्री हनुमानजी की प्रतिमा है. इस चमत्कारी मन्दिर में शारीरिक दुर्बलताओं कहें या फ़िर कोई अतृप्त आत्मा किसी के शरीर में प्रवेश कर गयी हो, उस पीढ़ित व्यक्ति को यहां लाया जाता है. मन्दिर में प्रवेश करते ही वह आत्मा अपना अतीत बताने लगती है. कुछ सिद्ध प्रयोग के बाद वह इस व्याधि से छुटकारा पा लेता है. इन किस्सों का जखीरा अंतहीन और व्यापक है. निश्चित ही शैलजी ने अनेक रोमांचक प्रसंगों को या तो सुना होगा अथवा पढ़ा होगा तभी तो रहस्यमय और रोचक प्रसंग आपकी कहानियों में बेखटके चले आते हैं.
सुर-ताल कहानी संग्रह में कुल ग्यारह कहानियां संकलित हैं– बीज, नौका डूबी, कायर, चरिवेति, अकारण, प्रयोग, घटक, धागे, बावरी चिड़िया, लौटना तथा सुर-ताल तथा”मेरी चयनित कहानियां” संग्रह में चरैवेति, प्रयोग, अड़तालिस घंटे, आम आदमी, कल-की, विच, कनुप्रिया, नौका डूबी, लौटना, वापसी, जिज्जी, अनन्य, ध्रुवतारा, बीज तथा विसर्जन कहानियों का संकलन है.
मेरा अपना मानना है कि किसी भी संग्रह की कुछ ही कहानियों पर चर्चा की जानी चाहिए, जिसे पढ़कर पाठक को अन्य कहानियां पढ़ने की उत्कंठा जागे. अतः मैं इन दोनों संग्रहों की कुछ चुनिंदा कहानियों पर ही बात करुँगा.
सुर ताल कहानी संग्रह में प्रकाशित कहानी “कायर” में एक ऐसा त्रिकोण है, जिसके एक कोण पर बूढ़ी मां है तो दूसरे कोण पर बुढ़िया का पुत्र शिवचरण और तीसरे में उसकी पत्नी खड़ी है. यह घर-घर की कहानी है. सास कभी मां नहीं बन पाती और बहू कभी बेटी. दुर्योग से बुढ़िया दुर्घटना का शिकार हो जाती है और खाट पकड़ लेती है. यहाँ तक की टट्टी-पेशाब के लिए भी दूसरों पर आश्रित हो जाती है. बूढ़ी सास और बहू के बीच लगातार बढ़ता छतीस का आंकड़ा और रोज-रोज की चिकचिक से तंग आकर, बहू ने अपने पति शिवचरण को अल्टीमेटम दे दिया कि उसे किसी वृद्धाश्रम में छोड़ आए. घड़ी के पेण्डुलम की तरह दोलायमान होता शिवचरण का मन, कभी मां के पक्ष में तो कभी पत्नी के बीच डोलता रहा. निर्णय पत्नी के पक्ष में गया और उसने अपनी मां को वृद्धाश्रम में छोड़ आने का मन बना लिया.
मुझे लगता है कि इस कहानी को लिखते हुए, लेखिका ने संभवतः वृंदावन के विधवाश्रम में, परित्यक्त स्त्रियों की दुर्दर्शा को स्वयं अपनी आँखों से देखा होगा. उनके दुःख- दर्द को करीब से जाना और महसूस किया होगा. इस कहानी का ताना-बाना शायद यहीं से चुना गया होगा.
शिवचरण अपनी माँ को विधवाश्रम में तो छोड़ आया था. लेकिन अपनी कुटिलता छिपाने के लिए, उसने एक बहाना गढ़ते हुए यह प्रचारित किया कि गंगा जी में मां का पैर फ़िसल गया. हमने उसे लाख बचाने की कोशिश की लेकिन नहीं बचा पाए. यह भी संभव है कि मगरमच्छों ने उसे निगल लिया हो?. बदनामी के डर के चलते, ठीक तेरह दिन बाद, उसने पूरे गांव को न्योता भेजकर, तेरहवीं का कार्यक्रम कर भोज आदि करवा कर, अपने पापों पर पर्दा डाल कर प्रायश्चित कर लेना चाहा.
मूसलाधार बारिश के चलते ढोल-तासे के साथ जिंदा मां का क्रियाकर्म करने गए शिवचरण के पैरों से उसकी माँ का शव टकराया. यह देखकर उसके होश उड़ गए. किसी तरह शव को निकालकर उसने उसका दाह-संस्कार किया. जजमानों को भरपेट भोजन कराया और अपनी माँ की स्मृति में अस्पताल में एक कक्ष का निर्माण भी करवा दिया. लेकिन अपने अतीत से छुटकारा नहीं पा सका. उसकी आँखों के सामने माँ चलती-फ़िरती दिखाई देती. पगलाया सा रहने लगा था शिवचरण. उसकी दयनीय स्थिति देखकर पत्नी ने विंध्यवासिनी की पूजा पाठ करवाया, तब जाकर वह सामान्य स्थिति में आ पाया था.
व्यापार के सिलसिले में जब भी उसे इलाहबाद जाना होता, रास्ते में पड़ने वाले गांव हंडिया में वह चाय-पान के लिए रुकता. उसे रुकता देख, सामने वाले घर से तीन-चार साल की एक बच्ची उसे “शिब्बो” के नाम से पुकार कर उसे रुकने और मिलने को कहती. लेकिन वह उसे टाल देता. लेकिन मन में एक सवाल जरुर बना रहता कि छोटी-सी लड़की उसका नाम कैसे जानती है?.उसकी मां उसे शिब्बो ही कहकर पुकारा करती थी.
लड़की के पिता के अनुरोध पर जब वह उससे मिलता है तो वह छोटी बच्ची जिद करने लगती कि उसे अपने घर ले चले. बच्ची को वह घर ले आता है. घर में प्रवेश करते हुए बच्ची उस घर को अपना घर बताती है और हर उस चीज के बारे में बताते हुए कहती है कि कभी यह उसका अपना हुआ करता था. पटिया हटाकर छिपाए गए बहुमूल्य जेवर आदि शिवचरण को सौंपते हुए वह कहती है कि इसे तीनों बच्चों में बराबर-बराबर बांट देना. माल-असबाब सौंप देने के बाद बच्ची बेहोश हो जाती है. डाक्टर बुलाया जाता है, तब जाकर वह होश में आती है. इस घटना के बाद से शिवचरण के जीवन में व्यापक परिवर्तन तो आता था, लेकिन मन पर छाया अपराध-बोध किसी तरह भी कम नहीं होता.
ऐसी ही एक रहस्यों से भरपूरी और हैरत अंगेज कहानी है ” नौका डूबी”. बच्चन सिंह को उसके मित्र बधुआ से खबर मिलती है कि उसका भाई बिमार है, जो नदी से उस पार रहता है, मिलना चाहता है. बच्चन सिंह जाने को उद्धत होता है, लेकिन नदी में भयंकर बाढ़ आयी हुई है. उफ़नती-गरजती नदी को वह कैसे पास करेगा?, इस बात की चिंता उसे सताने लगती है. तभी अकस्मात एक मल्लाह आकर उसे ठाठस बंधाते हुए कहता है कि वह उसे उस पार पहुँचा सकता है. बिखरी हुई हिम्मत को बटोरकर वह नाव पर चढ़ता है. मल्लाह नाव खेने लगता है. बीच नदी में नाव के दो टुकड़े हो जाते हैं और वह पानी के तेज बहाव में बहने लगता है. डूबते-उतराते हुए वह बेहोश हो जाता है. जब उसे होश में आता है तो अपने आपको नदी के तट पर पाता है. उसे घोर आश्चर्य होता है कि उसे बचाने वाला कौन था? वह मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देना नहीं भूलता.
उसे जोरों से भूख लग आयी थी. घर से चलने समय उसने अखबार के एक टुकड़े में गुड़ और चना बांधकर पुड़िया बना लिया था. पानी में खराब न हो जाए इस डर से उसने उस पुड़िया को पालीथिन में अच्छे से लपेटकर, अपने पिठ्ठू बैग में रख लिया था. बैग अब भी उसकी पीठ पर टंगा था. उसने कंधे से बैग उतारा. बैग से पुड़िया निकाला. अखबार की तहों को खोलना शुरु किया उसने गौर से देखा. अखबार में कुछ लिखा है. वह उसे पढ़ने लगता है. अखबार में छपा था- “कल शाम तेज आंधी तूफ़ान में रामनगर के हिम्मती और परिचित कल्लू मांझी, कुछ यात्रियों को पार ले जाते वक्त, बीच मंझधार तूफ़ान में उसकी नाव पलट गई. दो यात्रियों का और कल्लू मांझी का शव नहीं मिला, बाकी सभी यात्रियों को बचा लिया गया है. सुबह नाव को भी गंगा मां की गोद से पुलिस ने बरामद कर लिया है.
दैनिक जागरण के अखबार पर छपी दुर्घटना की सूचना देती इन पंक्तियों को उसने बार-बार पढ़ा. कलेजा धक-धक कर रहा था. फ़ोटो पर आँख जाते ही उसका चेहरा निस्तेज होने लगा और सारा गुड़-चना हाथ से छूटकर रेत पर बिखर गया. वह थरथर कांप रहा था और सामने कल्लू मांझी की फ़ोटॊ मुस्कुराती-सी हवा में फ़ड़फ़ड़ा रही थी. वह सोचने लगता है कि यदि मैं किसी को इस घटना के बारें में बलताऊंगा, तो कौन उस पर विश्वास करेगा? मेरा अपनी माई भी विश्वास नहीं करेगी. उसने नजरें गड़ा कर फ़ोटो को फ़िर एक बार गौर से देखा. फ़ोटो उसी की थी, वही पार लाया था उसे. उसकी नजर अखबार में प्रकाशित तारीख पर पड़ी. तारीख तीन दिन पुरानी थी. इस अप्रयाशित घटना को याद करते हुए उसके शरीर में सिहरन होने लगी थी. सोचने-समझने की बुद्धि कुंठित होने लगी थी.
कहानी संग्रह की शीर्षस्थ कहानी है ” सुर-ताल”. भारतीय मूल की यूरोप में जन्मी अंतरा, अपने ही शहर में आयोजित होने वाले संगीत समारोह में शिरकत करने आयी हुई है. अपनी सधी हुई गायकी से वह सभी का मन जीत लेती है. हर किसी फ़नकार की दिली इच्छा होती है कि उसे उसके ही शहर में वह मान-सस्मान मिले जिसका की वह हकदार है. पर ऐसा बहुत कम ही होता है.
अंतरा को आत्मीय खुशी मिलती है कि उसे उसके अपने ही शहर में, अपने ही स्वजनों के द्वारा खूब सराहा गया. प्रशंसा पाकर वह फ़ूली नहीं समा रही थी. अपनों से अपनापन पाना और सम्मान पाना उसकी आत्मा की भूख थी. गदगद थी वह सब कुछ पाकर. सहसा मन में ख्याल आया कि काश इस सभागार में उसके पिता होते?. तभी एक फ़टेहाल, पागल सा दिखाई देने वाला व्यक्ति, जिसके बाल बेतरतीब तरीके से बिखरे हुए थे, आकर अंतरा को गले लगाकर कहता है- ज्योति तुम कहां थीं अब तक? मैंने तुम्हें कहां -कहां नहीं ढूँढा, लेकिन तुम नहीं मिलीं”. तभी एक व्यक्ति भीड़ में उठा और उसने उसे समझाते हुए बतलाया कि यह तुम्हारी बेटी ज्योति नहीं, अंतरा है. तब उसकी पहचान मास्साब के रूप में होती है, जो उसके नर्सरी के शिक्षक थे और जिनके जुड़वा बच्चे दीपक और ज्योति अंतरा के साथ ही पढ़ते और हमउम्र थे। मास्साब की बेटी ज्योति और पुत्र दीपक एक एक्सीडॆंट में मारे जाते हैं और पत्नी भी दिवंगत हो चुकी होती है. इस सदमें ने वह पागल-सा हो गया था.
कहानी अचानक फ़ैंटेसी की ओर मुड़ जाती है. उसी शहर में यूरोप से दो मीडियम आए हुए होते हैं, जो व्यक्ति के दिवंगत स्वजनों से मिलवाने का दावा करते हैं. अंतरा, मास्साब उस हाल में होते हैं जहां यूरोप से आए हुए मीडियम कर्णसिद्धि के बल पर दिवंगत व्यक्तियों से बात करवाते हैं.कभी किसी का बेटा, किसी की प्रेमिका, कोई पीछे छूटी पत्नी, या बिछुड़े हुए पिता से. तभी मिडितम अंतरा को उसकी मां से मिलवाती है.
अंतरा अपनी मां की आवाज सुनकर पहचान जाती है, लेकिन पिता से कोई बात नहीं होती. तभी मीडियम उसे बताती है कि तुम्हारे पिता आए थे, उन्होंने तुम्हारे कंधे पर अपनी हथेली भी रखी थी, लेकिन बिना कुछ बोले वे चले गए कि तुम अपने घर में अपने पति और बच्चों के संग बेहद खुश हो, वे किसी भी कीमत पर तुम्हारी खुशियां नहीं छीनना चाहते थे, अतः बिना कुछ बोले चले गए.
जीवन का खोया हुआ सुर उसे मिल गया था. उसने एक बच्ची की तरह मास्साब के कंधे पर अपना सिर टिका दिया, जो निरंतर अपनी बेटी को ढूंढ रहे थे और वह अपने पिता को। एक-दूसरे के दुःख में जीवन के गीत की सुरताल को वापस ढूंढ लिया था उन्होंने।
“बीज” कहानी को पढ़ते हुए बरबस ही मुझे भगवान विष्णु के प्रथम मत्स्य अवतार की कथा याद हो आती है. श्री विष्णु ने मनु को सब प्रकार के जीव-जंतु एकत्रित करने के लिए कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब उन्होंने नाव की रक्षा करते हुए उन्हें जीवन का निर्माण करने के आज्ञा दी थी. कहानीकार ने नव्या के माध्यम से इस कहानी की रचना का रचाव किया होगा, ऐसा मुझे प्रतीत होता है.
“मेरी चयनीत कहानियां”- कहानी संग्रह.
अडतालीस घंटे-
आतंकवाद का घिनौना रुप प्रदर्शित करती यह कहानी, मन और मस्तिस्क को न केवल बेचैन कर देती है, वहीं अनेक ज्वलंत प्रश्न मन के आंगन में तैरने लगते है- ऐसा और कब तक? आखिर क्यों ऐसा?. उन मृत और घायलों के बीच हम भी हो सकते थे?. थे क्या हो सकते हैं..कहीं पर और कभी भी? पर हम क्या कुछ भी नहीं कर सकते? जैसे अनेकानेक प्रश्न जेहन को चीर देने के लिए पर्याप्त हैं.
कहानी कोरा आख्यान नहीं है. फ़िर भी यह सही है कि कहानी के कहानीपन को सुरक्षित रखने में आख्यान की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. कहानी जीवन से जितनी घनिष्ठ होगी, सरलीकरण से उतनी ही सचेत होगी. कोई भी श्रेष्ठ रचना चाहे वह कथारूप में हो या काव्य में, संवेदना के चरम उत्प्रेरण का परिणाम होती हैं,
किसी भी कहानी को अच्छी कहानी बनाने वाला तत्व, उसका जीवन होता है. शैल जी की कहानियाँ उनकी भाषायी विशिष्ठता और शिल्प के कारण, दिल और दिमाक में देर तक गूंजती रहती है. उनकी कहानियों को पढ़कर पाठक वैसा नहीं रह जाता, जैसा कि वह पढ़ने से पहले होता है. आपकी कहानियों में भाषा ही वह औजार है जिससे वे चेतना और सामाजिक यथार्थ को परखने की अपनी दृष्टि को अपवर्तित करती हैं, इसलिए उनकी कहानियो का सूक्षम विश्लेषण उनके द्वारा सृजित भाषा में ही संभव है, सहजता-सरलता-तरलता और निश्छल भावुकता को अपने में समेटती आपकी कहानियाँ, शब्दों के माध्यम से हमारे सामने आती है. निःसंदेह आपका यह प्रयास श्लाघनीय है.
शैल जी की कहानियों में हवाओं-सी गाती हुई सांगीतिक प्रस्तुति है. वह हर समय उदास, खोई-खोई-सी उत्सव विरोधी मानसिकता नहीं है. उसमें अपनी अंतर्ध्वनि, लय की अनूगूंज है. शानदार कहानी संग्रहों के लिए आपको अशेष बधाइयाँ. शुभ कामनाएँ.
गोवर्धन यादव
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