व्यक्तित्वः कैलाश चन्द्र पंत-गोवर्धन यादव

दादा कैलाशचन्द्र पंत एक लाइट हाउस की तरह हैं।
“हिन्दी की रक्षा और सम्मान के लिए, हमें अपनी संस्कृति पर हावी होते इण्डिया और भारत के अन्तर से लडना होगा. बिना लडॆ हम हिन्दी के विकास की कल्पना नहीं कर सकते.

“भारत के पास वह आन्तरिक शक्ति है कि दुनिया की कोई भी सभ्यता या संस्कृति इस को नुकसान नहीं पहुँचा सकती”

“हिन्दी को जन-जन की भाषा बनाने के लिए हम यहाँ से शुरुआत करें कि हम अपनी गाडिय़ों-अपने घरों के नाम पट्ट हिन्दी में लिखवाएँ और अपने हस्ताक्षर हिन्दी में करें”

शहर छिन्दवाडा में1903 में निर्मित ऎतिहासिक भवन” टाउन हाल” के विशाल सभाग्रह में म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति जिला इकाई छिन्दवाडा के सदस्यों, जनसमुदाय,, तथा साहित्यकारों को “भूमण्डलीकरण व राष्ट्रभाषा की चुनौतियाँ” विषय पर लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकार, लेखक, संपादक,पत्रकार,समाजसेवी, चिन्तक,मनीषी तथा प्रखर वक्ता माननीय श्री कैलाशचन्द्र पंत(मंत्री-संचालक) ने सम्बोधित करते हुए उक्त विचार व्यक्त किए. 28 अक्टूबर 2007 छिन्दवाडा जिले का वह ऎतिहासिक दिन था, जब “दादा” हिन्दी की मशाल थामे भोपाल से चलकर यहाँ आए थे.

मंच पर वयोवृद्ध गीतकार पंडित रामकुमार शर्मा, डा.वरदमूर्ति मिश्र(एस.डी.एम), डा. कौशलकिशोर श्रीवास्तव, डा लक्ष्मीचंद तथा मैं स्वयं उपस्थित था. समिति की ओर से उन्हें शाल ओढाकर,श्रीफ़ल भेंट देकर,सारस्वत सम्मान देकर नागरिक अभिनन्दन किया गय़ा. दादा ने कवि मित्र ओमाप्रकाश”नयन” के काव्य संग्रह “ सच मानो शकुन्तला” का विमोचन भी किया. दादा को सुनने के लिए जन सैलाब उमड पडा था. भीतर और बाहर श्रोताओं की अच्छी-खासी भीड उमड आई थी. बावजूद इसके चारों ओर शान्ति व्याप्त थी. आज भी मुझे उन क्षणॊं की याद आती है तो मैं आत्मविभोर हो जाता हूँ.

मेरा अपना मानना है कि ऎसा सुयोग अनायास ही प्राप्त नहीं होता. निश्चित ही मैंने पुण्य अर्जित किए होंगे कि आपका आशीर्वाद तथा सान्निध्य मुझे प्राप्त हुआ. उस दिन से लेकर आज तक मैं हिन्दी के उन्नयन और संवर्धन के लिए पूरी ईमानदारी, पूरी निष्ठा तथा लगन से इस दायित्व को निभाता आ रहा हूँ. यह कोई गर्वोक्ति नहीं है और न ही कोई दावा ही कर रहा हूँ .इस सेतुबंध अभियान में मेरी भूमिका वीर हनुमान, नल-नील की सी है. बस मेरी भूमिका उस छोटी सी गिलहरी के तरह है जो अपने शरीर को पानी में भिगोती, रेत पर आकर लेटती और शरीर पर चिपके रेत के कणॊं को लाकर समुद्र में छोड देती है.

“दादा” से मेरा पहला परिचय और जुडाव किस तरह हुआ,यह एक दिलचस्प वाक्या है. मेरे एक हितैषी मित्र श्री प्रमोद उपाध्याय ने मुझसे हिन्दी भवन में आयोजित चौदहवीं पावस व्याख्यान माला (10-12.08.2007) में चलने का आग्रह किया. पावस व्याख्यान माला महीयसी महादेवी, हजारीप्रसाद द्विवदी जी तथा हरिवंशराय बच्चन जी के जन्म शताब्दी पर केन्द्रीत थी..

मित्र ने मेरा परिचय दादा से करवाया. परिचय प्राप्त होने पर उन्होंने बडी ही संजीदगी से मेरी ओर मुखातिब होकर कहा_”मुझे आपकी कुछ रचनाएं पढने को मिली थी. अच्छा लिखते हैं आप.” बात को मोड देते हुए उन्होंने मुझसे पूछा-“ अभी आप किस संस्था से जुडॆ हैं? मैंने कहा-“फ़िलहाल मैंने कोई संस्था की सदस्यता गृहण नहीं की है. जवाब सुनकर उन्होंने कहा-“राष्ट्र भाषा प्रचार समिति का मुख्य उद्देश्य, हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना है और यह एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है. यदि आप हिन्दी की सेवा करना चाहते हैं तो छिन्दवाडा में एक इकाई का गठन करें लोगों को जोडें और जन-जन तक संस्था के मंतव्य को पहुँचाए.”

बातों को गंभीरता से सुनते हुए मेरी नजरे उनके चेहरे पर केन्द्रीत थी. दिपदिपाता ओजमय चेहरा, होठॊं पर तैरती मंद-मंद मुस्कान, आत्मविश्वास से लबरेज उनका हृदय आदि देखकर मैं भीतर ही भीतर गदगद हो उठा था. अनुठे व्यक्तित्व के धनी, हिन्दी का एक कर्मठ सिपाही, हिन्दी भवन का संचालक, वर्धा समिति का मंत्री, विख्यात साहित्यकार, सामाजसेवी, एक आला दर्जे का संपादक, पत्रकार मुझसे रुबरु हो रहा था और मुझसे संस्था से जुडने का आग्रह कर रहा था. मैंने सारी बाते सुन चुकने के बात वादा किया कि मैं शीघ्र ही छिन्दवाडा में एक इकाई का गठन करुंगा और हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अपने आपको समर्पित कर दूंगा.मेहनत रंग लाई और इस तरह राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की इकाई का गठन हुआ. समिति ने समय-समय पर कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम किए. मराठी बहुल क्षेत्र सौंसर में समिति कि शाखा खोली गई. इसके बाद तामिया,मुलताई,बैतूल आदि स्थानों पर हिन्दी सेवियों की तलाश करते हुए शाखाओं का प्रसार किया गया. दादा पंत का जीवन वृत्त

26 अपैल 193 को महू(इन्दौर) म.प्र. में जन्मे श्री पंतजी ने एम.ए.साहित्याचार्य तथा ,साहित्यरत्न में दीक्षित होकर यूनियन थियोलाजिकल सेमीनरी इन्दौर(1957-59) मे व्याख्याता, पंचायतराज प्रशिक्षण केन्द्र भोपाल(1963-71) के प्राचार्य, विद्या भवन(एस,ई.टी.सी.) उदयपुर में प्रकाशन प्रमुख, दैनिक इन्दौर समाचार(1972-77) के संवाददाता, सोशलिस्ट कांग्रेसमैन,दिल्ली(61-62), दैनिक नवभारत,भोपाल(62),, दैनिक नवप्रभात,भोपाल(62-63),में सह-संपादक, मासिक “शिक्षा प्रदीप,भोपाल(63-64) साप्ताहिक जनधर्म,भोपाल(77-98), साप्ताहिक “दूरगामी आब्जर्वर,इन्दौर( 2000-01) तथा हिन्दी भवन से प्रकाशित होने वाली द्वैमासिक पत्रिका अक्षरा,भोपाल (2003 से अनवरत) संपादक का प्रभार सम्हाले हुए हैं. अपनी बेबाक संपादकीय के लिए आपकी विशिष्ठ पहचान बन चुकी है.

आपके व्यक्तित्व और कृतित्व का समग्र मूल्याकंन करते हुए, देश के 18 विशिष्ठ मंचों द्वारा दादा का सम्मान किया जा चुका है. इसके अलावा .भारत सरकार के प्रतिनिधि के रुप में आप फ़िलीपीन्स(76) नेपाल(87) इस्राइल(89) इंडोनेशिया(92), पांचवे विश्व हिन्दी सम्मेलन में म.प्र.शासन के प्रतिनिधि के रुप में ट्रिनिडाआड एवं टुबेगो(वेस्टैंडिज), लंदन के छटे विश्वहिन्दी सम्मेलन में म.प्र.शासन की ओर से भागीदारी, अन्तरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन ह्यूस्टन(यू.एस.ए) में भागीदारी, सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन सूरिनाम मे प्रतिभागिता तथा मिस्र, जोर्डन,स्विट्जर्लैंड, जर्मनी,फ़ांस,इटली,नीदरलैंड,सिंगापुर, नेपाल, और थाईलैंड की पर्यटन यात्राएं की है. इतना व्यस्ततम जीवन जीते हुए दादा अब भी अनेको साहित्यिक मंचॊं और अन्य सेवा संस्थानॊं में अपनी भागीदारी का निर्वहन कर रहे हैं.

(प्रकाशन)-कौन किसका आदमी, धुँध के आर-पार, शब्द का विचार-पक्ष, शैलेश मटियानी:सृजन यात्रा: संपादन, सत्ता,साहित्य और समाज,सांस्कृतिक धारा के हिन्दी रचनाकर आदि संग्रह और, साहित्यिक, सामाजिक और राजनैतिक विषयों पर करीब 800 आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं

हिन्दी भवन के निर्माण में आपका अथक योगदान रहा है. इसके अलावा समिति का कार्यालय, वाचनालय, निवास के लिए दो विशाल कक्षॊं का निर्माण भी दादा ने अपनी देखरेख में पूरे करवाए. वे यहीं नहीं रुके. इसकेश बाद साहित्यकार निवास,जिसमें लब्ध-प्रतिष्ठ साहित्यकारों के नाम बारह सुसज्जित कमरे,जिसमे सारी सुविधाएं उप्लब्ध है, का निर्माण कार्य करवाया. हिन्दी भवन के साथ ही यह निर्माण हिन्दी साहित्य जगत के लिए अभूतपूर्व योगदान है. हिन्दी भवन में पावस व्याख्यानमाला, बसंत व्याख्यानमाला एवं शरद व्याख्यानमाला के अन्तर्गत दिए गए व्याख्यानों के दस्तावेजीकरण की नयी पहल की और उनका “संवाद और हस्तक्षेप” एवं मंथन के नाम से प्रकाशन प्रारम्भ किया. यह साहित्यिक संस्थाओं के लिए सर्वथा नयी परम्परा थी. वे स्वयं प्रकाशक बने एवं युवा सहयोगियों के भी सम्पादन का अवसर दिया.

सन 2011 में अपने जीवन के पचहत्तर वर्ष पूरे कर चुके “दादा श्री कैलाशचन्द्र पंत “ का अमृत महोत्सव मनाए जाने के लिए हिन्दी भवन समिति तथा नगर और नगर के बाहर की संस्थाओं ने निर्णय लिया तथा उनकी स्मृतियों को अक्षुण्य बनाने के लिए एक स्मारिका के प्रकाशन का भी निर्णय लिया गया. माधवराव सप्रे स्मृति समाचार संग्रहालय एवं शोध संस्थान की ओर से डा.मंगला अनुजा जी ने प्रकाशन, का उत्तरदायित्व सभाला तथा डा.सुनीता खत्री, डा.सुषमा तिवारी ,डा, प्रतिभा गुर्जर, तथा डा. ललिता त्रिपाठीजी ने संपादक की भुमिका का निर्वह किया. आप सबने मिलकर इसके प्रकाशन-और साज-सजा के लिए कडी मेहनत की और इस तरह 276 पृष्ठों का महान ग्रंथ “दादा की स्मृति में प्रकाशित होकर आया.

रवीन्द्र भवन के मुक्ताकाश मंच पर, आयोजित इस भव्य समारोह में, प्रदेश के मुख्य मंत्री श्रॊ.शिवराजजी चौहान गृहमंत्री, संस्कृति मंत्री, खेल मंत्री,, जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानान्द सरस्वती के निज सचित,महापौर,सांसद, तथा देश के कोने-कोने से पधारे लब्ध-प्रतिष्ठ साहित्यकार, गणमान्य नागरिकों तथा विशाल जनसमूह की गरीमामय उपस्थिति के मध्य दादा का नागरिक अभिनन्दन किया गया. देश की कई नामी-गिरामी साहित्यिक संस्थाओं ने भी दादा को ,स्मृति चिन्ह भेंट किए.

इस भव्य समारोह में मुझे जाने का अवसर प्राप्त हुआ था. एक व्यक्ति के सम्मान के लिए प्रदेश के मुखिया सहित अनेक मंत्री, देश के कोने-कोने से पधारे साहित्यकार,अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा विशाल जनसमूह की उपस्थिति को देखकर सहज ही उस व्यक्ति की विराटता का अनुमान लगाया जा सकता है कि वह कितना जनप्रिय है.
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चाणक्य ने एक जगह लिखा है-“प्रियभाषी का कोई शत्रु नहीं होता. यह वास्तविकता है. जन-जन में संवाद शैली में गरिमा और मधुरता होनी चाहिए. शब्दों का अस्तित्व सर्वाधिक प्रबल होता है.उनके अपने संस्कार होते हैं. शब्द एक उर्जा है. शब्द ब्रह्म भी है. जिसने शब्द-ब्रह्म की उपासना की हो,जो जन-जन का प्रिय हो,उससे भला किसकी शत्रुता हो सकती है.” ,

दादा के पास प्रेमभाव है, सेवा भाव है. सेवाभाव से सदा प्रेम ही उपजता है. यही कारण है कि वे जन-प्रिय हैं. इसीलिए उनकी बातें ध्यान से सुनी जाती है. फ़िर वे एक अच्छे नाविक की तरह है, जो अपने लोगों को साथ लेकर यात्रा करता है. उनका मार्गदर्शन करता है. वे केवल मार्ग ही नहीं दिखलाते अपितु एक सच्चे हितैषी की तरह-/एक बडॆ भाई की तरह पूरे समय साथ बने रहते हैं.

हेनरी फ़ोर्ड ने अपने वक्तव्य मे लिखा है-“ आपका सच्चा मित्र वही है,जो आपके भीतर छिपे सर्वश्रेष्ठ को बाहर निकाले” सच है, जहां प्रतिभा चलती है,वही पथ बन जाता है. और श्रेष्ठी जिस मार्ग से चलते हैं,लोग उसका अनुसरण करते हैं. यही एकमात्र एक ऎसा कारण था कि लोग दादा के साथ चले और धीरे-धीरे कारवां बनता चला गया.

मेरा अपना मानना है कि भौतिक उपलब्धियां प्राप्त करने और आध्यात्मिक उपलब्धियां प्राप्त करने के अलग-अलग मार्ग हैं. आध्यात्मिक उर्जा प्राप्त करने के लिए अपने आपको तपाना पडता है. स्वयं प्रकाशित होना होता है,तब कहीं जाकर आप दूसरों का पथ-प्रदर्शन कर सकते हैं.वेदों में ऋषियों ने आव्हान किया है कि –“हम निरन्तर श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होते रहें. प्रकाश को ग्रहण करें और प्रकाशवन हो जाएं” दादा ने अपने आपको तपाया है और स्वयं प्रकाशित्र हुए है, और हमारा सबका पथ आलोकित कर रहे हैं. सच माने में दादा एक विराट लाइट हाउस की तरह हैं

कवि दिनकर की जयन्ती पर, दक्षिण अफ़्रीका के जोहान्सबर्ग मे 9 वां विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया जा गया. २२ सितम्बर से २४ सितम्बर तक चलने वाले इस तीन दिनी सम्मेलन में , भारत सहित दुनिया के अनेक देशों के हिन्दी प्रेमी उत्साह पूर्वक शामिल हुए.

इस अवसर पर हिन्दी भवन के संचालक, वर्धा समिति के मंत्री श्री कैलाशचन्द्र पंतजी के समग्र अवदानों के देखते हुए उन्हें विश्व मंच पर सम्मानित किया गया। कवि दिनकरजी की जयंती पर 22 सितम्बर 2012 की जोहानसबर्ग( दक्षिण अफ़्रीका में 9वां हिन्दी विश्व सम्मेलन बाईस सितम्बर से चौबीस स्सितम्बर २०१२(तीन दिन) का आयोजन किया गया था, इसमें दादा श्री कैलाशचन्द्र पंत जी का सम्मान किया गया। यह सममान दक्षिण अफ़ीका में गांधी के नाम से विख्यात ष्री नेल्सन मंडेला जी के हस्त प्रदत्त किया गया था। आपके यश और स्वास्थ की हम कामना करते हैं।

गोवर्धन यादव

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