महाभारत के पात्रः शिखंडी-शील निगम / जुलाई-अगस्त 16

शिखंडी

shikhandi
स्त्री पुरुष का पर्याय: शिखण्डी

शिखण्डी की कथा विचित्र इसलिए है कि उसे स्त्री और पुरुष दोनों रूपों में जाना जाता है. महाभारत के युद्ध के समय भीष्म पितामह ने दुर्योधन से कहा था कि वे किसी ऐसे पुरुष पर अपने शस्त्र नहीं चलायेंगे जो पहले स्त्री रहा हो. अंत में शिखंडी ही उनकी मृत्यु का कारण बना.

भीष्म अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के विवाह के लिए काशीराज की तीन पुत्रियों को भरी सभा में से हर कर ले आये थे. जिनका नाम था अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका. जब भीष्म को पता चला कि अम्बा राजा शाल्व से प्रेम करती है तो उन्होंने उसे राजा शाल्व के पास भेज दिया पर राजा शाल्व ने उसे अपनाने से इंकार कर दिया क्योंकि भीष्म द्वारा उसका हरण हो चुका था. अम्बा के नाना राजर्षि होत्रवाहन भीष्म के गुरु परशुराम के साथ भीष्म के पास आये तो उन्होंने भीष्म से अम्बा के साथ विवाह करने के लिए कहा पर भीष्म ने मना कर दिया क्योंकि उन्होंने आजीवन विवाह न करने का प्रण लिया था. तब परशुराम को बहुत क्रोध आया और भीष्म और परशुराम में भयंकर युद्ध हुआ जो तेईस दिन तक चला जिसका कोई परिणाम नहीं निकला. अंत में चौबीसवें दिन जब भीष्म ने ‘महाभयंकर प्रस्वापास्र’ अस्त्र का प्रहार परशुराम पर करना चाहा तो सप्तऋषियों के हस्तक्षेप से वह युद्ध रुका. अम्बा भीष्म से बदला लेना चाहती थी इसलिए वह यमुना तट पर रहकर तप करने लगी. तप करते करते उसने वहीं अपना शरीर त्याग दिया. अगले जन्म में वह वत्स देश के राजा की कन्या के रूप में पैदा हुई. उसे अपने पूर्व जन्म की जानकारी थी. इस जन्म में भी उसने अपनी तपस्या जारी रखी. तब भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए. भगवान शिव से उसने भीष्म को मार देने का वरदान माँगा. मनचाहा वरदान मिलने पर अपनी शंका का समाधान करने के लिए अम्बा ने शिव जी से पूछा कि ‘मैं स्त्री का रूप में कैसे भीष्म का वध कर पाऊँगी?’ तो शिवजी ने कहा कि ‘वह स्त्री के रूप में जन्म लेगी पर युवा होने पर पुरुष बन जाएगी और भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी’. यह जान कर उसने अपना शरीर आग की लपटों के हवाले कर दिया. जिससे वह शीघ्र ही अगला जन्म ले सके. फिर वही हुआ. राजा द्रुपद के जब कोई संतान न थी तो महादेव को प्रसन्न करके उनसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान माँगा. महादेव ने उन्हें बताया उनके घर में एक कन्या पैदा होगी जो बाद में पुरुष बन जाएगी.

महादेव के वरदान से राजा द्रुपद की पत्नी ने एक कन्या को जन्म दिया जिसका नाम शिखण्डिनि रखा जो बाद में शिखण्डी बना. आरम्भ से ही उसे बालक के वेश में रखा गया और लड़कों की तरह उसका पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा हुई. युवा होने पर उसका विवाह दशार्णराज हिरण्यवर्मा की पुत्री से हुआ. जब हिरण्यवर्मा की पुत्री को पता चला कि उसका विवाह एक स्त्री से हुआ है, तो उसने यह बात अपने पिता को बता दी. यह बात जानकर राजा हिरण्यवर्मा को बहुत क्रोध आया और उसने राजा द्रुपद को संदेश भिजवाया कि ‘यदि यह बात सत्य हुई तो मैं तुम्हारे कुटुंब व राज्य सहित तुम्हें नष्ट कर दूँगा.’ राजा द्रुपद ने राजा हिरण्यवर्मा को समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन उसने अपने साथी राजाओं के साथ मिलकर पांचालदेश पर आक्रमण करने का विचार किया.

राजा हिरण्यवर्मा व अन्य राजाओं ने मिल कर निश्चय किया कि यदि शिखण्डी सचमुच स्त्री हुआ तो वे राजा द्रुपद को कैद कर उसके राज्य पर अधिकार कर लेंगे और बाद में द्रुपद और शिखण्डी का वध कर देंगे. राजा हिरण्यवर्मा द्वारा आक्रमण करने की बात जब स्त्री रूपी शिखण्डी को पता चली तो वह बहुत घबरा गई और अपने प्राण त्यागने की इच्छा से वन में चली गई.

उस वन की रक्षा स्थूणाकर्ण नाम का एक यक्ष करता था. यक्ष ने जब शिखण्डी को देखा तो उससे वहाँ आने का कारण पूछा. तब शिखण्डी ने उसे पूरी बात सच-सच बता दी. पूरी बात जानने के बाद उस यक्ष ने शिखण्डी की सहायता करने के उद्देश्य से अपना पुरुषत्व उसे दे दिया और उसका स्त्रीत्व स्वयं धारण कर लिया. यक्ष ने शिखण्डी से कहा कि वह अपना कार्य सिद्ध होने पर वह पुरुषत्व उसे वापस लौटा दे. शिखण्डी यक्ष की बात मान कर अपने नगर लौट आया. शिखण्डी को पुरुष रूप में देखकर राजा द्रुपद बहुत प्रसन्न हुए. राजा हिरण्यवर्मा ने भी शिखण्डी के पुरुष रूप की परीक्षा ली और उसे पुरुष ही पाया.
जब शिखण्डी अपने पुरुष रूप में पांचाल नगर में रह रहा था तो एक दिन यक्षराज कुबेर घूमते-घूमते स्थूणाकर्ण के पास पहुँचे, लेकिन वह यक्ष उनके अभिवादन के लिए नहीं आया. तब कुबेर ने अन्य यक्षों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने पूरी बात यक्षराज को बता दी और कहा कि इस समय स्थूणाकर्ण स्त्री रूप में है, इसलिए संकोचवश वह उनके सामने नहीं आ रहा है. पूरी बात जानकर यक्षराज कुबेर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने स्थूणाकर्ण को श्राप दिया कि अब उसे स्त्री रूप में ही रहना होगा.
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ही सबसे शक्तिशाली योद्धा थे. उन्हें पता था कि उनकी मृत्यु का कारण शिखण्डी ही बनेगा. रणभूमि में शिखण्डी को सामने देख कर उन्होंने अपने शस्त्र धरती पर रख दिए. तब अर्जुन ने शिखण्डी की आड़ ले कर भीष्म पितामह पर बाण चलाये और उन्हें शरशैया पर लिटा दिया. भीष्म को अपने पिता शांतनु से ‘इच्छा मृत्यु’ का वरदान प्राप्त था, उस समय सूर्य दक्षिणायण में होने से वे अपना शरीर त्याग नहीं करना चाहते थे क्योंकि ऐसा करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता. उन्होंने प्रण लिया जब तक सूर्य उत्तरायण में नहीं आयेंगे, वे अपने प्राणों का अंत नहीं होने देंगे. अंत में उनकी इच्छा पूरी हुई और उन्होंने अपने प्राण त्यागे.
जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तो कौरवों की सेना के लगभग सभी शूरवीर मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे. दुर्योधन भीम से गदायुद्ध में हार कर द्वेत सरोवर में छुपा हुआ था. उस समय कौरवों के केवल तीन ही वीर योद्धा जीवित थे. कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा. दुर्योधन ने अश्वत्थामा को अपना सेनापति बनाया.

सेनापति बनने के बाद रात के समय जब सभी लोग सो रहे थे, अश्वत्थामा ने पाण्डवों के सभी शूरवीर पुत्रों को मार डाला. शिखण्डी भी अपने भाई धृष्टद्युम्न के साथ वहीं सो रहा था. अश्वत्थामा ने शिखण्डी और उसके भाई को भी मौत के घाट उतार दिया.

बस यहीं समाप्त हुई अम्बा के प्रतिशोध और शिखण्डी की नियति की कहानी.

शील निगम
(मैनचेस्टर, यू. के.)

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