धारावाहिक मिट्टीः भाग 16- शैल अग्रवालः फरवरी/ मार्च 2015

14008202-happy-group-of-young-people-in-a-row-isolated-over-white‘  अपना तो यही फलसफा है, दोस्त। खोया, रोया, और फिर भी न मिला तो बस अंसुवन धोया । और फिर सब बाहर, सब साफ। कोई जिद नहीं, कोई आग्रह नहीं, न खुद से, ना ही किसी और से। जो अपना है बस वही अपना  है, नहीं, तो नहीं। पर यहाँ बंधन नहीं, तो मुक्ति भी तो नहीं । कच्चे धागे जो ठहरे…पर उलझूंगा नही मैं इनमें।  फिसलूंगा तो हरगिज ही नहीं। और अगर फिसला भी तो संभाल लूंगा  खुद को… इतना भरोसा है मुझे खुद पर। माना यह शरीर मिट्टी का बनाया  है उसने, पर ये मन तो उसी का अपना अंश है। तभी तो सब कुछ समा जाता है इसमें। पूरा का पूरा आसमान फैला रहता  है यहाँ भी। जगमग सूरज चांद हैं तो हजारों टिमटिम तारे भी, तो । सबका अपना अलग-अलग अस्तित्व, अपनी अपनी पहचान…फिर भी एक दूसरे से जुड़े हुए, एक दूसरे पर ही निर्भर। जब जब अंधेरों में मन का सूरज डूबा है, चांद बनकर उग आया है वह। इसी आसमान पर उमड़ते-घुमड़ते अनगिनित आंधी तूफान भी तो हैं, इनका क्या करूँ मैं? तुम्हें भी तो दिखते ही होंगे ये! यह ख्वाइश एक तितली ही तो है, कभी इस फूल पर तो कभी उस फूल पर। बस, कहीं टिके तो सही! पर एक बात तो है, दोस्त- जब जब कोई बिजली कड़कड़ती है, यहाँ इस दिल में, आँखें तुरंत ही संभाल लेती हैं सबकुछ। बहा देती हैं सारा दर्द बाहर…साथ में कूड़ा-कचरा, अनचाहा सभी कुछ। और हाँ, वो रंगीन फिसलती मछलियाँ भी…सबकुछ जो बेचैन कर रहा था या करेगा आगे जाकर हमे। जानते हो, भय और दुख से तन-मन छुआरा हो जाते हैं और बड़ी लगन से सींचा है मां ने इन्हें। यही उसका आशीर्वाद हैं। एक सेफ्टी मैकेनिज्म है अंदर भी । तुम्हें क्या पता कितने समन्दर बहे हैं इन बन्द इन पलकों के नीचे से ।‘ चांद तेरा चेहरा सही, तो क्या मन अपना भी तो एक समंदर लहक –लहक के लौटेगा खुद अपनी ही मर्यादा में….. और तब गाते-गुनगुनाते मदहोशी की हालत में भी उसकी आँखें रोजलिन के चेहरे पर जा टिकी थीं। सभी ने देखा, चेहरे पर नहीं, मानो बस आँखों से आत्मा तक जा उतरी हों। आँखें ही रह गई थीं तब वहाँ उस कमरे में, एक दूसरे को टटोलती, तलाशती…पहचानती और मौजूदा हर शख्स से पूरी तरह से बेपरवाह। मानो  किसी और का कोई अस्तित्व ही नहीं हो वहाँ,  और का क्या, खुद उनका भी कोई अस्तित्व ही नहीं था अब तो । सदा ही शांत और गंभीर रहने वाले अक्षत का यह नया रूप था। किसी ने नहीं देखा था इसे । उसका यूँ प्याज के छिलकों सा परत-दर-परत बिखरना और बहक जाना सबके लिए एक कौतुक बन चुका था अबतक। ‘ वाह, वाह। क्या फलसफा झाड़ा है। पैदाइशी शायर और गालिब का भतीजा निकला तू तो, यार । बेकार ही डॉक्टर बना और नेवी जौइन की। ‘ पलक झपकते ही उठकर गले लगाते और अक्षत की पीठ ठोंकते केशव के साथ ही तीनों मित्रों ने भी एक जोरदार ठहाका लगाया और माहौल एकबार फिरसे हल्का हो गया। विह्स्की के पहले पैग के साथ ही शाम अब पूरी तरह से शायराना हो चुकी थी। तीनों दोस्तों को भी तो अक्षत की इन बहकी-बहकी बातों में पूरा ही लुफ्त आने लगा था। ‘ क्या कोई भीष्म प्रतिज्ञा ली है तुमने ? हम भी देखेंगे। अभी मेनका नहीं मिली न विश्वामित्र को इसलिए ऐसी बढ़-चढ़के बातें कर रहा है, यह। ‘ ‘ मिली..? बनी ही नहीं है।‘ अक्षत ने तुरंत ही रोजलिन की बात वहीं पर काट दी। और तब केशव ने तुरंत ही नए ठहाके के साथ एक और पैग बना दिया अक्षत के लिए। … नई दोस्ती और नई नौकरी सबकुछ नया-नया ही था डाँ. अक्षत राजन के लिए घर और माँ से दूर, प्लिमथ के उस नेवल अस्पताल में। सच कहा जाए तो आज से पहले कभी यूँ पी ही नहीं थी, ना दोस्तों के साथ और ना ही अकेले में। वह तो घूमने तक नहीं गया था कहीं किसी हमउम्र के साथ या झुंड में। न किसी स्कूल की ट्रिप में और ना ही यूनी के अनगिनित मिनी ब्रेक्स पर। चौबीस वर्ष का हो गया था तो क्या, मेडिसिन तक तो वहीं बरमिंघम से ही की थी उसने घर पर ही रहकर। पर आज जब बात साख और मर्दानगी पर आ गई थी, एक चुनौती बन गई थी, तो वह पीछे कैसे हटता ! अब शर्त लगा-लगाकर चारो रेजिडेन्ट पी रहे थे किसी ने भी गिलास उलटा नहीं ऱखा था अभी तक। अक्षत, केशव विलियम और रोजलिन, चारो जमीन से जुड़े और सुलझे मित्र मानो बहकने की जिद पर थे आज। ‘ इसका बृहम्चर्य तोड़ ही दे तू आज।‘ केशव झुककर रोजलिन के कान में फुसफुसाया। रोजलिन वेल्स जो मन ही मन अक्षत राजन को बेहद पसंद करती थी, मित्रों के इस अभद्र और चपल प्रस्ताव की कल्पना मात्र से कान तक सुर्ख हो गई। और तब तीनों मित्रों को शराब के उस चुनौती भरे मैरेथन में अकेला ही जूझता छोड़ , ‘ चलती हूँ अब।‘ कहकर उठी और लड़खड़ाती-सी तुरंत ही तेज कदमों से बाहर निकल आई। अभी मुश्किल से दस कदम ही चली होगी कि पीछे से अक्षत की बेचैन आवाज आई-‘ रुको रोजलिन, रुको। थोड़ी बहुत पी अवश्य ली है मैंने, पर इतनी भी नहीं कि महिला मित्रों के साथ अभद्र व्यवहार होते देख पाऊँ। मैने भी सुन लिया था-ये तीनों मूर्ख क्या सुझा रहे थे। उनकी तरफ से मैं माफी मांगता हूँ तुमसे।‘ ‘ नहीं, नहीं। माफी मांगने की क्या जरूरत है अक्षत। भूल चुकी हू मैं सब। दोस्तों के बीच तो ऐसे हंसी मजाक चलते ही रहते हैं। ‘ समझदार रोजलिन ने कैसे भी बात संभालने की कोशिश की। ‘ तुम बहुत अच्छी हो । बहुत समझदार और उदार… ‘ वाक्य पूरा भी हो तभी अक्षत एक जोरदार कै के साथ वहीं जमीनपर गिरता सा बैठ गया। पी अवश्य ज्यादा ली थी उसने पर अभी भी इतना होश और संयम था कि खुद को कैसे भी संभाल ले । दूर खड़ी रोजलिन भी दौड़ती-सी तुरंत ही आगे बढ़ी और सहारा देकर वापस पैरों पर खड़ा कर दिया उसने बिखरे-से गिरते-पड़ते अक्षत को। यही नहीं कैसे भी कंधों का सहारा देती, लड़खड़ाते अक्षत को कमरे तक भी पहुँचा आई । अब अक्षत, जो खुद शर्मिंदा था अपनी और मित्रों की बेवकूफी पर मूर्ख और अटपटा-सा महसूस कर रहा था, एकांत चाहता था। बहुत कुछ था उसके तन और मन पर …जो परेशान कर रहा था। साफ कर लेना चाहता था वह। ‘ धन्यवाद मित्र ‘ कहकर एक अटपटी-सी व्यग्र विदा ले ली उसने रोजलिन से। … नहाया धोया और पूर्णतः शान्त अक्षत जब घंटे भर बाद बैठकी में वापस आया तो रोजलिन को वहीं बैठे और उसका इंतजार करते ही पाया – ‘ अरे, अभी भी तुम यहाँ, गई नहीं?’ चौंककर पूछा उसने। ‘ नहीं, कौफी पियोगे, बनाऊँ ?’ एक सरल मुस्कान के साथ रोजलिन ने जबाव दिया। ‘ पता नहीं, तुम्हारी तबियत कैसी है, जाने क्या जरूरत पड़ जाए, यह सोचकर दरवाजे से ही वापस लौट आई, मैं। जा नहीं पाई।‘ ‘ …।‘ समन्दर में आते तूफान का अंदेशा है यह तो। स्तब्ध था अक्षत। ‘ पर रात बहुत हो चुकी है। तुम बैठो। मैं बनाता हूँ। । तुम भी तो थक गई होगी। जाओ आराम करो तुम भी अपने प्लैट में। ‘ सोफे पर निढाल पड़ा अक्षत होठो ही होठों मे चौके में कौफी बनाती रोजलिन से बोला। ‘ मैं ऐस्प्रेसो कौफी बनाने में एक्सपर्ट हूँ, अक्षत। एक बार पिओगे तो रोज ही फरमाइश करने लग जाओगे। बचपन से ही कौफी तो मैं ही बनाती हूँ अपने घर में।‘ ‘ अच्छा, फिर तो पीनी ही पड़ेगी । मैं तुम्हारे घर में कौफी पीने का यह मौका कैसे गंवा सकता हूँ।‘ अक्षत को अच्छा लग रहा था कैसे रोजलिन ने बारबार उसके ना करने पर भी, उसे और उसके फ्लैट को पूरी तरह से मिनटों में संभाल लिया था। गंदे कपड़े वाशिंग मशीन में धुल रहे थे और हाल की रिलीज ओशन ग्रूप की उसकी मनपसंद सी.डी की राहत भरी स्वर लहरियाँ हर तनाव को दूर कर रही थीं। ‘ पर इसे कैसे पता चला मुझे क्या पसंद है और सोने जाने से पहले रोज मैं यही सी.डी. सुनता हूँ !’ आश्चर्य चकित था वह रोजलिन की सहृदयता और छठी ज्ञानेन्द्रिय पर…हिंदी इंगलिश में तरह-तरह के गाने और कई कविताएँ और इधर उधर की बातचीत के साथ-साथ तीन-तीन कप कौफी पी चुके थे दोनों। ‘ थोड़ी देर सो लिया जाए वरना कल काम पर जाना मुश्किल हो जाएगा।‘ धड़ी पर नजर जाते ही दोनों ही एक साथ बोले। सुबह के चार बज गए थे। वक्त कैसे फुर्र हो गया, दोनों को ही पता नहीं चला। और तब ‘ चलती हूँ। खुद को अक्षत से कैसे भी काटती-सी रोजलिन बाहर निकल आई। अक्षत ने भी नहीं रोका उसे। संस्कार और पालन-पोषण महिला मित्र के साथ अकेले, एक ही छत के नीचे सोने की इजाजत नहीं दे सकतो थे उसे। ‘ धन्यवाद मित्र।‘ अक्षत ने जाती रोजलिन से बस इतना ही कहा उसदिन। …. ‘ कितना अलग-थलग है यह सबसे। लड़कियों को पटाना तो दूर, लाइन मारना तक नहीं आता इसे तो।‘ रोजलिन को जाना ही कितनी दूर था। समने की बिल्डिंग में ही तो रहती थी वह। ‘ तुम औरतों को जादू आता है । मिनटों में ही घोसले को घर बना देती हो। मेरे पास इतनी अच्छी अच्छी सीडी हैं मुझे तो पता ही नहीं था। और हाँ कौफी वाकई में बहुत अच्छी बनी थी। अगला कप , जब तुम चाहो अभी से बुक करता हूँ। ‘ अक्षत की एक एक बात बारबार उसके कानों में गूंज रही थी। जाने क्या-क्या सोचती मुस्कुराती रोजलिन जब फ्लैट में घुसी तो आदमकद शीशे में खुद को ही न पहचान पाई। ‘ इतनी सुंदर तो नहीं, वह।‘ सोने की तैयारी कर ही रही थी कि दरवाजे पर हुई हलकी सी खटखट ने फिर से उठने को मजबूर कर दिया । दरवाजा खोला तो आम कपड़ों में दो पुलिस औफिसर पहचान पत्रों के साथ खड़े थे। ‘ क्या हम अंदर आ सकते हैं ? ‘ पूछते ही, बिना जबाव सुने ही अंदर भी आ चुके थे वे। ‘ क्यों नहीं।‘ हतप्रद रोजलिन ने चुपचाप दोनों को सोफे पर बैठने के लिए इशारा किया। अब कई प्रश्न उसके चेहरे और आँखों में तैर रहे थे। सुबह-सुबह, इतनी जल्दी, उसके कमरे में पुलिस, आखिर वजह क्या है?’ इसके पहले कि वह कुछ भी पूछे, एक औफिसर ने तस्बीर निकालकर सामने मेज पर रख दी। ‘ क्या आप इसे पहचानती हैं? ‘ अब उसके सामने बचपन से मेडिकल स्कूल तक सहपाठी रह चुके जेम्स रिजवी की फोटो रखी थी। सबसे हंसमुख , सबसे शरारती और सबसे तेज जेम्स रिजवी। ‘ जेम्स रिजवी।‘ ‘ और कौन कौन है जो तुम दोनों के साथ पढ़ा है और इसे जानता है? ‘ पुलिस अब सवाल पर सवाल पूछे जा रही थी। ‘ मैं और अक्षत राजन। हम तीनों ही बरमिंघम यूनी के ग्रैजुएट हैं। पर आखिर बात क्या है, यह तो बताएँ? आप आखिर यह सब पूछताछ क्यों कर रहे हैं ? ‘ ‘ क्योंकि पिछले तीन महीने से जेम्स लापता है। इसकी माँ एलेना ने ग्लास्को से कल ही इसके लापता होने की खबर लिखवाई है। पिछले तीन महीने से उसने माँ से संपर्क नहीं किया है। जबकि हफ्ते में एक बार तो वह माँ को अवश्य ही फोन करता था। क्या आप में से किसीको उसके ‘ वेयर अबाउट‘ की कोई जानकारी है या कोई मदद दे सकती हैं आप हमें? एलेना ने जो कालेज की ग्रूप फोटो हमें दी है , उसमें जेम्स के साथ आप भी खड़ी हैं। इसलिए हमने आपको यह तकलीफ दी है।‘ ‘ क्या…’अब चौंकने की रोजलिन की बारी थी। ‘ पर पिछले दो वर्ष यानी ग्रैजुएशन के बाद से हम नहीं मिले हैं। उसे और हम दोनों को ही थियेटर का शौक था। दोनों ने स्कूल के ही दिनों से कई नाटकों में एक साथ काम भी किया है। मेरा अच्छा मित्र था वह। पर पिछले इन दो वर्षों में हम इतना मशरूफ रहे हैं अपनी-अपनी जिन्दगी और इसके इम्तहानों में कि फोन पर हलो तक नहीं कर पाए हैं एक-दूसरे से। शायद अक्षत जानता हो कुछ ।‘ ‘ कहाँ मिलेगा अक्षत ? ‘ ‘ सामने के ही ब्लौक में रहता है। उसने भी इसी अस्पताल में रेजिडेंसी ली है। ‘ अक्षत का पता लेते ही दोनों औफिसर ‘ थैंक्यू मिस ‘ कहकर जाने के लिए उठ खड़े हुए। तभी दौड़ती सी रोजलिन ने उन्हें रोक लिया। ‘रुकें, मैं भी आपके साथ चलती हूँ। अक्षत की तबियत ठीक नहीं है। सोया भी नहीं है कल पूरी रात । शायद उसे और आपको मेरी जरूरत पड़े।‘ पुलिस ने सहर्ष कार में बिठा लिया। पांच मिनट के अंदर ही वह फिर से अक्षत के फ्लैट में थी। ‘ हाँ, मैं और जेम्स अच्छे मित्र हैं। पांच छह महीने पहले ही हम फैज अहमद फैज की 100 वी सालगिरह के जलसे में पाकिस्तान की एम्बेसी में मिले थे । फानूसे इल्म ने यह दावत दी थी मुशायरे की। मैंने, जेम्स और कमाल ने भी अपनी नज्में पढ़ी थीं वहाँ। फैज और इकबाल हम तीनों के पसंदीदा शायर हैं और हम तीनों को ही उनकी नज्में बेहद पसंद हैं। ‘ ‘ इकबाल हू? फैज हू ?‘ पुलिस को अब सवालों का एक नया सिरा मिल चुका था। ‘ टू वेरी फेमस पोएट्स औफ अवर टाइम फ्रौम इंडिया एड पाकिस्तान । ‘ अक्षत ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया-‘ नाओ बोथ नो मोर।‘ तो जनाब वाकई में शायर है। रोजलिन की आंखों से अक्षत के गालों पर आती-जाती गुलाबी रंगत छुपी न रह सकी। ‘ काफी दिनों से मेरी भी कोई बात नहीं हुई जेम्स से। शायद कमाल कुछ जानता हो।‘ झेंप मिटाता सा अक्षत तुरंत ही बोला। फिर पुलिस औफिसर के पूछे बगैर ही कमाल के घर पर फोन भी मिला लिय़ा उसने। फोन उसकी छोटी बहन रोशीना ने उठाया। कमाल का हाल-चाल पूछते ही फूट-फूटकर रोने लगी। ‘ क्या बताऊं मैं आपको भाई के बारे में! कमाल भाई तो पिछले तीन महीने से लापता है। हम सब परेशान हैं। कोई नहीं जानता- भाई कहाँ है-कैसा है? माँ का तो रो रोकर बुरा हाल है और हमारा अब्बू तो पिछले महीने भर से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के ही चक्कर लगा रहा है उन्हें तलाशता, उनका पता पूछता। मंगेतर रेशमा तक नहीं जानती-कहाँ है और कैसा है हमारा कमाल भाई, है भी या नहीं! ‘ सान्त्वना का एक शब्द तक न कह पाया स्तब्ध अक्षत। ‘ थैंक्यू बोथ। यू हैव बीन ए बिग हेल्प।‘ कहकर पुलिस चली गई उन्हें अपने सारे भयावह प्रश्नों के साथ अकेला छोड़कर। यह बात दूसरी थी कि उन्होंने न सिर्फ कमाल के घर का पता और नंबर ले लिया था उससे बल्कि पूरी बातचीत भी रिकौर्ड कर ली थी और साथ मे किसी से कुछ न कहने की पूरी हिदायत भी दे दी थी उन्हें। अक्षत और रोजलिन, दोनों के लिए ही दिन की शुरुवात बेहद उलझी-उलझी-सी ही रही। बिना कुछ कहे-सुने और चिंतित नजरों से एक दूसरे को देखते दोनों उठे और ड्यूटी पर जाने के लिए खुद से और कमरे से, तुरंत ही बाहर आ गए। सुबह के सात बज चुके थे । दोनों का ही पहला-पहला दिन था नए अस्पताल और नए शहर में।..

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

error: Content is protected !!