मेलबर्नः पूर्णिमा शर्मा

दोनों बेटे जब तक पढाई कर रहे थे सपने में भी नहीं सोचा था विदेश यात्रा का, विदेश की छोड़िये अपने देश ही कहाँ घूम पायी मैं ? बस पिताजी जहाँ तबादले पर जाते तब साथ जाते और वो शहर अच्छे से देखते !जॉब में बहुत बार मौका मिला मुझे पर साल के अंदर शादी तय होने पर सोचा शादी के बाद पति के साथ यहाँ घूमूंगी,वहां जाऊंगी …पर धत्त तेरे की !!! शादी हुई डॉक्टर से और तब जाना कि डॉ के पास सबकुछ होगा “समय”के अलावा ! वो तो बड़े भाई राजस्थान डेयरी में थे तो उनकी बदौलत राजस्थान में लगभग सभी बड़े शहर घूम ली !

जब बड़े बेटे की अमरीका में जॉब लगी तो उसने सीएटल,पोर्टलैंड ,सैनफ्रांसिस्को घुमाया और जब छोटे बेटे की जॉब लगी तो वो क्यों पीछे रहता ? मेरी भतीजी जिसे हम प्यार से मनु कहते हैं जो ऑस्ट्रेलिया में मेलबर्न में रहती है उसके साथ दोनों बेटों ने मिलकर हमे मेलबर्न और सिडनी घुमाने का प्रोग्राम बनाया !टूरिस्ट वीसा में कठिनाई तो कम हुई पर समय ज्यादा लगा !हमारी टिकट वाया कुआला लामपुर होकर थीं और वहां साढ़े तीन घंटे रुकना था दूसरी फ्लाईट लेने के लिए !

दिल्ली से रात ११ बजे की कुआला लामपुर की फ्लाइट थी जो ५ घंटे से कुछ ज्यादा देर की थी !भोजन के बाद ४ घंटे आराम से सो लिए,सुबह जगे तो कुआला आ चूका था ! मैंने जितने भी एयरपोर्ट देखे उनमे मुझे कुआला का सबसे अच्छा लगा वो इसलिए कि बहुत बड़ा नहीं है मुझे ज्यादा चलना नहीं और ना दुबई की तरह बड़े बड़े मॉल वाला,कॉफी पी और मेलबर्न की फ्लाइट ली जो ९ घंटे की दिन की लम्बी फ्लाइट थी लगा बोरियत होगी पर मेरा सहयात्री एक चीनी व्यापारी था ! इतना मिलनसार और बातूनी कि ऊबने नहीं दिया !
मेलबर्न रात में पहुंचे वहां भतीजी,दामाद के साथ स्वागत किया बारिश की फुहारों ने ! मनु का घर एयरपोर्ट से ६० किलोमीटर दूर था तो रात के समय में कम ट्रेफिक में जगमगाते शहर को देखा ! चिकनी सड़कों पर ही लॉन्गड्राइव का मज़ा है !”बोलते ब्रिज “( लिखा अंग्रेजी मेंBOLTE था पर पढ़ने में यही आया ) से गुजर कर हम घर पहुंचे, हमे लगा था ब्रिज बोलता होगा लेकिन यह बस उसका नाम भर था ! ओवरब्रिज तो कई जगह देखे किन्तु यहाँ नदी के अंदर से टनल जिसका नाम “बर्नले टनल “था गुजरे जो घर जाने के रास्ते में थी और उसके अंदर से गुजरना एक रोमांचक अनुभव था हमारे लिया ! ऑस्ट्रलिया शहर को अंग्रेजो ने अपने कैदियों को वहां लेजाकर बसाया है !उन कैदी अंग्रेजो ने वहां के मूल निवासियों को मार कर,हरा कर और अपनी तरह बना कर रखा है ! आज भी वहां यूरोप की महारानी ही वहां की रानी हैं जिनका शासन चलता है और उनका जन्मदिन छुट्टी देकर मनाया जाता है तो पूरे ऑस्ट्रेलिया पर यूरोप का भरपूर असर है ! वहीँ की सभ्यता,वहां जैसे बड़े बड़े चर्च,इमारतें लाइब्रेरी,पार्क और रहन सहन !

किंग केसिनो —
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एक दिन आराम करके दुसरे दिन शहर घूमने निकले ! सबसे पहले पहुंचे वहां के केसिनो KING में,इतने बड़े केसिनो की कल्पना भी नहीं थी मुझे ! बेटे ने बताया यह अमेरिका के लॉस वेगास के केसिनो से भी बहुत बड़ा,भव्य और सुन्दर था ! सबसे मज़े की बात कि वहां खेलने वाले ज्यादातर स्त्री पुरुष ६५ वर्ष से ऊपर की आयु वाले थे थोड़ा अजीब सा लगा !दामाद ने बताया कि “इन्हे हर हफ्ते ४०० डॉलर पेंशन मिलती है !ये ज्यादा से ज्यादा २०० डॉलर खर्च कर पाते हैं !बच्चों को फुर्सत नहीं,घूमना ज्यादा होता नहीं तो ये घर बैठ कर कुढ़ने या सबकी चिंता करने के बजाय यहाँ तरह तरह के गेम खेल कर भरपूर मनोरंजन करते हैं !रोज मिलते रहने से इनका अपना अलग सर्कल बन गया है तो ये मस्त रहते हैं और बच्चों के लिए खीजते भी नहीं !” बड़ा अच्छा लगा सुनकर और देख कर कि लोग यहाँ बुढ़ापे को बहुत सुवधाजनक तरीके से जी रहे हैं ! उन्हें पैसों के लिए किसी पर आश्रित नहीं होना पड़ता !

केसिनो “किंग ” आकार में काफी बड़ा है !एक दरवाज़ा एक सडक पर तो दूसरा छोर दूसरी सडक पर खुलता है और सडको को जोड़ता है शीशे का पुल जिससे पूरे मेलबर्न को मज़े से देखा जा सकता है ! वहां से निकल कर शहर घूमने निकले ट्राम पर जो एक अच्छी खासी ट्रेन ही थी,पुराने ज़माने की बनी, किन्तु सुविधायुक्त,जिसने बिना टिकट हमें लगभग पूरा शहर घुमाया ! वहाँ का पार्लियामेंट हाउस,स्टेट लाइब्रेरी,मेलबर्न म्यूज़ियम,चर्च ,दोक्लेंड्स …कुछ जगह के नाम भी याद नहीं रहे अब तो ! हाँ जब वहां का क्रिकेट स्टेडियम देखा तो टी वी पर देखे मैच की याद ताज़ा हो गयी !

मुझे याद है,उस दिन भारत की टीम औस्ट्रेलिया से हारी थी और मेरे मित्र ने कंगारू के साथ की मेरी फोटो पर तंज़ कसा था.” आप कंगारू को भोजन कराओ,वो हमे हमारे ही देश में धूल चटा रहे हैं !”
ट्राम यात्रा —
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……. खैर,ट्राम से पूरा मेलबर्न घूम कर हम वापिस विक्टोरिया पर आये,तब तक भूख भी जोर से लगने लगी थी ! मेरे दामाद प्रवीण ने बताया वहां बहुत अच्छा इंडियन ढाबा है तो मुझे विशवास नहीं हुआ पर जब ढाबे में घुसे तो एकबारगी लगा अपने ही देश के ढाबे में हैं ! एक तरफ मंजिया पड़ी थीं वही दूसरी तरफ कुर्सी मेज़ ! ढाबे के नाम था,” बेबे दा ढाबा ” खाना वाकई में टेस्टी था ठीक भारत के किसी अच्छे ढाबे जैसा !
फिर पैदल घूमने निकले ! बहुत ही खूबसूरत शहर है मेलबर्न ! सुन्दर तो हमारा भारत भी कम नहीं है, बस यहाँ हर खूबसूरती यत्र तत्र सर्वत्र फैली गंदगी के आगे धूमिल पड़ जाती है !

उस दिन शाम 7 बजे घर वापिस आये ! बेटे की पसंद का खाना बनाया फिर हम तीनो ( मैं,मेरी बहु रेचल और भतीजी मल्लिका ) सज धज कर लग गए परिवार संग फोटो खिंचवा कर नाचने गाने और इस यात्रा को अविस्मर्णीय बनाने में ! उस दिन रेचल को हमने साड़ी और जेवर से सजा कर अपनी की ख्वाहिश पूरी की ( मेरी बहु स्वीडन की है ) दामाद फोटोग्राफी में भी प्रवीण है सो सभी तस्वीरें बहुत सुन्दर आयीं !

दुसरे दिन दामाद प्रवीण ने लव और रेचल के लिए गिफ्ट रखा था “ग्रेट ओशन रोड ” घुमाने का ! गेंहूं के संग बथुए को भी पानी लगना ही था सो बड़ी गाड़ी लेकर हमारे परिवार के साथ प्रवीण घूमने निकले ! उनके दोनों बेटों ने देखा हुआ था और उनके स्कूल भी खुल गए थे,भतीजी की भी नयी जॉब थी तो वो तीनों रुक गए और हम अपने साथ ,पानी और ढेर सारे नाश्ते के साथ निकले !
मेलबर्न में दरसल जनसँख्या कम और लेंड ( ज़मीन ) ज्यादा है सो शहर से निकलते ही दूर दूर तक फैले खेत, खूबसूरत जंगल,बाग़-बगीचे दीखते गए !
मुझे आश्चर्य हुआ देख कर कि वहां पेड़ भी बड़े करीने से लगाए गए थे जंगल में जो कुछ कुछ ज्यामितीय रचना में थे,कितनी मेहनत और दिमाग लगाया होगा इसकी कल्पना ही की जा सकती है बस ! इस तरह का जंगल पहली बार देखा मैंने !

कई जगह खेतों में चरती हुई ढेर सारी गाय दिखाई दीं तो मन हर्षित हुआ,मुझे लगा डेनमार्क की तरह यहाँ दूध उत्पादन ज्यादा होता होगा ! पूछने पर पता चला दूध के अलावा वहां गाय खायी भी ज्यादा जाती हैं, मन थोड़ा खिन्न हुआ ! पर सुन्दर प्राकृतिक दृश्य देख फिर उन्ही में खो गयी ! प्रवीण बहुत खुशमिजाज़ और एक बहुत अच्छे मेज़बान हैं,उनके साथ कोई बिलकुल भी बोर नहीं हो सकता ! जहाँ वो अपने साले-सलहज से हंसी मज़ाक कर रहे थे वही मेरा और पतिदेव का भी पूरा पूरा ख्याल रख रहे थे ,खासकर मेरे पतिदेव का !

ग्रेट ओशन रोड —
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ग्रेट ओशन रोड नाम से कुछ ज्यादा आकर्षित नहीं हुई उतना तो उसे देख कर हम सब अचंभित हो गए ! इंद्रधनुष से कहीं ज्यादा रंग दिख रहे थे एक साथ सागर में ! दूर क्षितिज में काला,फिर गाड़ा सलेटी,फिर गाड़ा नीला,हल्का नीला, लालिमा लिये नारंगी,गाड़ा गुलाबी,हल्का गुलाबी,गहरा हरा,हल्का हरा,फिरोज़ी,चटक लाल,केसरिया पीला और समीप से देखने पर नीलिमा लिया साफ़ पानी ! उठते हुए तेज ज्वार-भाटे ,तेज हवा के झोंके लगता था सागर की लहरों संग हमे ही उड़ा ले जाएंगे ! विंड चीटर पहने होने के बावजूद मुझे और इन्हे कंपकपी छूट जाती ! अचानक ही सूर्य बादलों पर हावी हो जाता तब बदन गरमा जाता ! लगता था सूर्य की हवा से शर्त लगी है कि,” आज देखतें हैं जीत किसकी होती है ?”… मुझे बचपन में पढ़ी इसी भाव की कविता याद भी आ रही थी जिसमे हवा और सूरज की शर्त लगी थी,किन्तु कविता याद नहीं आ रही ( अब मैं पढ़ा-लिखा सब भूलने लगी हूँ ) रस्ते में कई सुन्दर” बीच” थे,एक जगह हमने गाड़ी रोक कर विश्राम किया नाश्ता जो घर से बना कर ले गए थे खाया ! समुद्र तट पर बहुत सी नवयौवनाएं स्वीमिंग सूट में सनबाथ लेती दिखीं ! कुछ जोड़े कार के भीतर एक दुसरे में समाए अर्धनग्न अवस्था में दिखे ! अमेरिका में इतनी नग्नता नहीं दिखी जितनी यहाँ दिखी !

ग्रेट ओशन रोड 664 किलोमीटर लम्बी सड़क है जहाँ हमने कई जगह सागर के सुन्दर नज़ारे देखने को गाडी रुकवाई जिनमे १- लन्दन ब्रिज,२- 12 एपोस्टल और ३- कनिघम पीर देखे ! दूर तक फैले अथाह सागर में ये एपोस्टल ,सचमुच किसी देवदूत सामान स्थित थे,भयंकर ज्वार-भाटों में भी निश्चिन्त,अटल खड़े मानो अपनी विजय पर इतराते खड़े थे ! प्रकृति के इन सुन्दर नज़ारों से हटने का मन ही नहीं हो रहा था किन्तु शाम होने को थी और अब हमे किसी जगह पनाह लेनी ही थी !

प्रवीण ने पहाड़ी इलाके की खूबसूरत वादी में एक बहुत सुन्दर और बड़ा घर रेंट किया हुआ था ! विदेशों की यह तहजीब मुझे बहुत पसंद आती है कि लोग पर्यटकों को अपना पूरा घर मय रसोई के सामान और फलों,ब्रेड मक्खन दूध और जूस से भरे फ्रिज के साथ रेंट पर दे देते हैं ! रेंट भी बहुत ज्यादा नहीं होता (यह तब जब मकानमालिक खुद घूमने चले) किन्तु मकान मालिक का घूमने का किराया निकल आता है ,घर की देखभाल भी होती है और सबसे बड़ी बात कि पर्यटकों को घर और रसोई मिलने से वो अपना चाय,नाश्ता,खाना खुद बना सकते हैं क्यों कि ऑस्ट्रेलिया में शाम 7 बजे के बाद मार्किट बंद हो जाते हैं !

तो उस सुन्दर घर में जहाँ लांड्री भी थी और रसोई भी वहां मुझे और पतिदेव को छोड़कर बच्चे अपने जीजाजी के साथ कार में पेट्रोल भरवाने और खाना पैक करवाने चले गए ! घर क्या वो पूरी कोठी थी जिसमे सामने की तरफ बड़ा सा पोर्टिको और दोनों तरफ तथा कोठी के पीछे 3 वरांडे थे ! तीनो में टेबल और चार चार कुर्सियां पड़ी थीं,जिन पर सुन्दर गुलदान में कई रंगों के गुलाब सजे थे !
बाहर गार्डन में गुलाब की कम से कम 15 किस्मे थीं और थे नीम्बू से लदे पेड़ !

रसोई इतनी बड़ी कि दो चारपाई आ सकें ! कोठी में 4 बेड रूम 2 बाथरूम थे ! ड्राइंग रूम में दो जोड़ी भव्य सोफे और बड़ी बड़ी सुन्दर तस्वीरें सजी थीं ! मैं विदेश में बाहर का खाना नहीं खाती क्यों कि मैं अंडा नहीं खाती ,मांस नहीं खाती तो अपने साथ बढ़िया बासमती चावल,आलू प्याज और थोड़े मसाले हरी मिर्च लेकर चलती हूँ साथ में पापड़ भी !

बच्चे वापिस आये तो पिज़ा लेकर ! सबने पहले चाय पी ! उसके बाद बच्चों ने पिज़ा खाया पर आधा-अधूरा ( शायद जितना अच्छा दिख रहा था उतना स्वादिष्ट नहीं था ) ! मैं आलू प्याज काट कर तहरी बनाने की तैयारी कर रही थी तभी प्रवीण आये,”बुआ,आप सारे चावल छौंक लें सभी खाएंगे !”मैंने पुलाव बनाया और प्रवीण ने वाईन की बोतल खोलकर आवाज़ दी,”बुआ आपकी वाइन लीजिये हम सर्व कर देंगे !”

वाइन के साथ हंसी मज़ाक,बचपन के किस्से और पापड़ नमकीन काजू का दौर चला फिर सबने पेट भर के पुलाव खाया और अपने अपने कमरों में आये ! सोने के समय मैंने नाइट बल्ब बंद करना चाहा पर उसका स्विच मिलकर नहीं दिया ! वाइन का सुरूर कम होने की झुंझलाहट होने लगी तभी गलती से लेम्प से मेरा हाथ छू गया और लेम्प ऑफ़ हो गया,मैंने दुबारा टच किया तो जल गया फिर टच किया तो बुझ गया ! मैंने थोड़ी देर छोटी बच्ची बनकर लेम्प से खेलती रही,कब नींद के आगोश में गयी पता ही नहीं चला !
बर्तन रात में ही डिशवाशर में बच्चों ने लगा दिए थे,चाय नाश्ता कर घर की सफाई करके हम वापिसी को रवाना हुए ! रास्ते जगह जगह हमे जंगली कंगारू,नील गाय और कुछ अन्य जंगली जानवर भी दिखे जिनके नाम ठीक से याद नहीं ! कुछ ज्यादा ही लम्बी ड्राइव थी तो कभी बेटा गाड़ी चलता कभी दामाद ! रास्ता आसानी से काटने के लिए गाने गाते, बिस्किट,टॉफी खाते कि गाड़ी चलाने वाले को नींद ना आ जाये !
फिलिप आइलैंड —
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अगले दिन मेलबर्न के फिलिप आइलैंड गए ! यहाँ छोटा सा चिडयाघर था जहाँ ढेर सारे कंगारू और वहां के रंगीले मोर,पेंगुईन देखे ! कंगारू एक पालतू कुत्ते के सामान प्यार से हमारे करीब आये और उनका भोजन जो हमने वहीं खरीदा था वो हमारी हथेली से इस तरह प्यार से खा रहे थे जैसे हमे बरसों से जानते हों ! उनके हथेली से भोजन लेने से वहां गुदगुदी होने लगी हमें इतना आनन्द मिला जिसे शब्दों में बताया नहीं जा सकता ! उसी रात हमने समुद्र के किनारे रात 9. 30 के करीब होने वाली” पेन्गुइन परेड”देखी ! एकदम अँधेरा होने के बाद बर्फीली ठण्ड में जब समुद्र के बाहर का तापमान बर्फीले पानी के तापमान के बराबर हो जाता है तब सागर से हज़ारों की संख्या में पेंगुइन निकल कर तट पर बनाये अपने ज़मीन के भीतर के घरों में अपने अंडे और उसमे से निकले बच्चे देखने,उनके साथ रात बिताने आती हैं और सुबह सूरज निकलने से पहले झुण्ड बना कर वापिस सागर में ! बड़ा ही अलौकिक दृश्य था वो माँ-बच्चे के मिलने का ! पेंगुइन और उनके बच्चे ज्यादा भीड़भाड़ और रौशनी देख डर ना जाएँ इसलिए वहां अँधेरा और पिन ड्राप साइलेंस किया जाता है !
इसके अलावा मेलबर्न के म्यूज़ियम,चॉकलेट फ़ैक्ट्री, विनयार्ड जो कि सैंकड़ों की संख्या में हैं सब देख कर बहुत मज़ा आया !
ऑस्ट्रेलिया में जहाँ वृद्ध लोगों को सुविधाएं मिलती हैं उतनी ही पढ़ने वाले बच्चों को भी यह वहां की सबसे अच्छी व्यवस्था लगी ! जिनकी आय कम और बच्चे ज्यादा हैं उनके हर बच्चे को शिक्षा पर होने वाले खर्चे का आधा सरकार की तरफ से मिलता है, यह व्यवस्था सरकारी स्कूलों में ही है ! उच्च शिक्षा के लिए इंटरेस्ट फ्री लोन भी सरकार उपलब्ध करवाती है ! जब इतनी सुविधाएं हैं तो शिक्षा का स्तर भी बहुत अच्छा है ! अच्छी पढाई करने वालों को नौकरी के लिए मारा मारा नहीं फिरना पड़ता है और ना किसी राजनितिक नेता की सिफारिश और ना रिश्वत का सहारा ! यह जानकार मन में टीस उठी कि काश हमारे देश में भी ऐसा होता तो देश की प्रतिभाओं को बाहर जाने की जरुरत नहीं पड़ती !

मेलबर्न में भारतियों की संख्या भरपूर है जिनमे सरदार के अलावा गुजरती लोग जो वहां भी व्यापार कर रहे हैं और मद्रासी बहुतायत से हैं ! इन्होने वहां गुरूद्वारे, मंदिर बना रखे हैं जो सुन्दर होने के साथ बहुत सफाई व्यवस्थायुक्त हैं ! अपने त्योहारों, जन्मदिन आदि पर सब वहां एकत्र होते हैं और हमसे बेहतर तरीके से त्यौहार मानते हैं ! यहाँ साऊथ इंडियन भोजन के रेस्त्रां भी तमिलनाडु के लोगों ने खोल रखे हैं जहाँ नॉन वेज बड़े भी खूब मजे से वहां के लोग खाते हैं !

सिडनी —
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इसके बाद 4 दिन हमने सिडनी घूमने का कार्यक्रम बनाया ! यहाँ भी रेंटल घर लिया ! यहाँ के बड़े बड़े चर्च,बहुत सुन्दर लुभावने हैं ! सिडनी,ऑस्ट्रेलिया का सबसे पुराना शहर है !यहाँ ब्राउन रेत के 40 से भी ज्यादा बीचेज़ हैं जिनमे से हम बस 2 ही देख सके ! यहाँ फैरी ( बड़ी नौका ) से हम 1 घंटे घूमे,इसका आनंद भी गजब का था क्यों कि एक तरफ “हार्बर ब्रिज”और दूसरी तरफ “ओपेरा हॉउस” की सुंदरता देखते ही बनती थी !
ओपेरा हॉउस —
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यह न्यू साऊथ वेल्स में स्थित प्रदर्शन कलाओं का एक बहुत बड़ा कला-संकुल है जो बाहर से कुछ कुछ लोटस टेम्पल की तरह दीखता है किन्तु अंदर से बहुत भव्य और दुमंज़िला ईमारत है !
इसमें थिएटर भी हैं और बड़े बड़े हॉल भी ! जहाँ नाटक, प्रदर्शनी, थियेटर और अन्य कार्यक्रम होते हैं ! ओपेरा हॉउस जितना बाहर से सुंदर है उससे कहीं ज्यादा अंदर से ! दर्शकों के बैठने के लिए आराम दायक कुर्सियां,वाशरूम इत्यादि सभी सुविधाओं से युक्त !
रॉयल बॉटेनिकल गार्डन —
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ओपेरा हॉउस के एक छोर पर सामने की तरफ यह गर्दन बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है ! जहाँ एक तरफ फूलों के,दूसरी तरफ ऑर्किड्स के और सभी तरह की वनस्पतियां हैं ! यहाँ पैदल घूमना वो भी कुछ घंटों में मेरे लिए असम्भव था तो कुछ देर पैदल,फिर कार्ट से घूमी किन्तु इतना थक गयी कि चाह कर भी आधा भी नहीं देख सकी ! बच्चे पूरा घूमे और मैं पार्क की बेंच पर बैठ ऊँघने लगी !

एक्वेरियम —
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तीन मंजिला एक्वेरियम !! आप कल्पना कर सकते हैं कि कितना बड़ा होगा ? मानव-विकास क्रम की नॉन-कॉर्डेट से व्हेल तक की छोटी से बड़ी ना जाने कितनी जाति -प्रजाति थीं वहां ! व्हेल,शार्क मछली को पहली मंज़िल से नीचे से ऊपर की ओर ,दूसरी मंज़िल से ठीक सामने से और तीसरी मंज़िल से ऊपर से नीचे की ओर करीब से देखा तो देखती ही रह गयी ! एक्वेरियम इतना बड़ा था कि यह मछलिया एक चैंबर से दूसरे चैंबर तक मज़े में विचरण करती इतनी लुभा रही थीं कि उनके पास से हटने का मन ही नहीं हो रहा था किन्तु पैरों ने जवाब दे दिया था !
हमे रात की फ्लाईट से वापिस मेलबर्न जाना था और बड़े बेटे को सिडनी से सीएटल ! हम चार दिन सिडनी रहे और चारों दिन बारिश होती रही तो बहुत सी जगह बिना देखे मन मारकर वापिस आना पड़ा ! बेटे को उसके दुसरे रेंटल घर में जो सिर्फ एक कमरे का था वहां छोड़कर हमने एयरपोर्ट की राह पकड़ी ! मेलबर्न पहुँच कर जिस टेक्सी से हम घर तक आये उसे हैदराबाद का एक अधेड़ चला रहा था जो रस्ते भर चिकनी चुपड़ी बातें बनता रहा और घर पहुँच कर उसने फिक्सड से 5 डॉलर ज्यादा वसूल कर लिए ! बहुत बुरा लगता है जब अपने ही देश के लोग विदेश में हमे उल्लू बनायें, लेकिन रात का 1 बज चूका था और हम बेटी दामाद,और उनके पड़ौसियों की नींद में खलल डाल कर यात्रा का मज़ा किरकिरा नहीं करना चाहते थे ! २० दिन के प्रवास में हमने वहां भरपूर लुत्फ़ उठाया जीवन का जो हमेशा याद रहेगा !


पूर्णिमा शर्मा
Poornima Sharma
Santacruz West
mumbai
मेलबर्न —
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दोनों बेटे जब तक पढाई कर रहे थे सपने में भी नहीं सोचा था विदेश यात्रा का, विदेश की छोड़िये अपने देश ही कहाँ घूम पायी मैं ? बस पिताजी जहाँ तबादले पर जाते तब साथ जाते और वो शहर अच्छे से देखते !जॉब में बहुत बार मौका मिला मुझे पर साल के अंदर शादी तय होने पर सोचा शादी के बाद पति के साथ यहाँ घूमूंगी,वहां जाऊंगी …पर धत्त तेरे की !!! शादी हुई डॉक्टर से और तब जाना कि डॉ के पास सबकुछ होगा “समय”के अलावा ! वो तो बड़े भाई राजस्थान डेयरी में थे तो उनकी बदौलत राजस्थान में लगभग सभी बड़े शहर घूम ली !

जब बड़े बेटे की अमरीका में जॉब लगी तो उसने सीएटल,पोर्टलैंड ,सैनफ्रांसिस्को घुमाया और जब छोटे बेटे की जॉब लगी तो वो क्यों पीछे रहता ? मेरी भतीजी जिसे हम प्यार से मनु कहते हैं जो ऑस्ट्रेलिया में मेलबर्न में रहती है उसके साथ दोनों बेटों ने मिलकर हमे मेलबर्न और सिडनी घुमाने का प्रग्राम बनाया !टूरिस्ट वीसा में कठिनाई तो कम हुई पर समय ज्यादा लगा !हमारी टिकट वाया कुआला लामपुर होकर थीं और वहां साढ़े तीन घंटे रुकना था दूसरी फ्लाईट लेने के लिए !

दिल्ली से रात ११ बजे की कुआला लामपुर की फ्लाइट थी जो ५ घंटे से कुछ ज्यादा देर की थी !भोजन के बाद ४ घंटे आराम से सो लिए,सुबह जगे तो कुआला आ चूका था ! मैंने जितने भी एयरपोर्ट देखे उनमे मुझे कुआला का सबसे अच्छा लगा वो इसलिए कि बहुत बड़ा नहीं है मुझे ज्यादा चलना नहीं और ना दुबई की तरह बड़े बड़े मॉल वाला,कॉफी पी और मेलबर्न की फ्लाइट ली जो ९ घंटे की दिन की लम्बी फ्लाइट थी लगा बोरियत होगी पर मेरा सहयात्री एक चीनी व्यापारी था ! इतना मिलनसार और बातूनी कि ऊबने नहीं दिया !
मेलबर्न रात में पहुंचे वहां भतीजी,दामाद के साथ स्वागत किया बारिश की फुहारों ने !मनु का घर एयरपोर्ट से ६० किलोमीटर दूर था तो रात के समय में कम ट्रेफिक में जगमगाते शहर को देखा ! चिकनी सड़कों पर ही लॉन्गड्राइव का मज़ा है !”बोलते ब्रिज “( लिखा अंग्रेजी मेंBOLTE था पर पढ़ने में यही आया ) से गुजर कर हम घर पहुंचे, हमे लगा था ब्रिज बोलता होगा लेकिन यह बस उसका नाम भर था ! ओवरब्रिज तो कई जगह देखे किन्तु यहाँ नदी के अंदर से टनल जिसका नाम “बर्नले टनल “था गुजरे जो घर जाने के रास्ते में थी और उसके अंदर से गुजरना एक रोमांचक अनुभव था हमारे लिया ! ऑस्ट्रलिया शहर को अंग्रेजो ने अपने कैदियों को वहां लेजाकर बसाया है !उन कैदी अंग्रेजो ने वहां के मूल निवासियों को मार कर,हरा कर और अपनी तरह बना कर रखा है ! आज भी वहां यूरोप की महारानी ही वहां की रानी हैं जिनका शासन चलता है और उनका जन्मदिन छुट्टी देकर मनाया जाता है तो पूरे ऑस्ट्रेलिया पर यूरोप का भरपूर असर है ! वहीँ की सभ्यता,वहां जैसे बड़े बड़े चर्च,इमारतें लाइब्रेरी,पार्क और रहन सहन !

किंग केसिनो —
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एक दिन आराम करके दुसरे दिन शहर घूमने निकले ! सबसे पहले पहुंचे वहां के केसिनो KING में,इतने बड़े केसिनो की कल्पना भी नहीं थी मुझे ! बेटे ने बताया यह अमेरिका के लॉस वेगास के केसिनो से भी बहुत बड़ा,भव्य और सुन्दर था ! सबसे मज़े की बात कि वहां खेलने वाले ज्यादातर स्त्री पुरुष ६५ वर्ष से ऊपर की आयु वाले थे थोड़ा अजीब सा लगा !दामाद ने बताया कि “इन्हे हर हफ्ते ४०० डॉलर पेंशन मिलती है !ये ज्यादा से ज्यादा २०० डॉलर खर्च कर पाते हैं !बच्चों को फुर्सत नहीं,घूमना ज्यादा होता नहीं तो ये घर बैठ कर कुढ़ने या सबकी चिंता करने के बजाय यहाँ तरह तरह के गेम खेल कर भरपूर मनोरंजन करते हैं !रोज मिलते रहने से इनका अपना अलग सर्कल बन गया है तो ये मस्त रहते हैं और बच्चों के लिए खीजते भी नहीं !” बड़ा अच्छा लगा सुनकर और देख कर कि लोग यहाँ बुढ़ापे को बहुत सुवधाजनक तरीके से जी रहे हैं ! उन्हें पैसों के लिए किसी पर आश्रित नहीं होना पड़ता !

केसिनो “किंग ” आकार में काफी बड़ा है !एक दरवाज़ा एक सडक पर तो दूसरा छोर दूसरी सडक पर खुलता है और सडको को जोड़ता है शीशे का पुल जिससे पूरे मेलबर्न को मज़े से देखा जा सकता है ! वहां से निकल कर शहर घूमने निकले ट्राम पर जो एक अच्छी खासी ट्रेन ही थी,पुराने ज़माने की बनी, किन्तु सुविधायुक्त,जिसने बिना टिकट हमें लगभग पूरा शहर घुमाया ! वहाँ का पार्लियामेंट हाउस,स्टेट लाइब्रेरी,मेलबर्न म्यूज़ियम,चर्च ,दोक्लेंड्स …कुछ जगह के नाम भी याद नहीं रहे अब तो ! हाँ जब वहां का क्रिकेट स्टेडियम देखा तो टी वी पर देखे मैच की याद ताज़ा हो गयी !

मुझे याद है,उस दिन भारत की टीम औस्ट्रेलिया से हारी थी और मेरे मित्र ने कंगारू के साथ की मेरी फोटो पर तंज़ कसा था.” आप कंगारू को भोजन कराओ,वो हमे हमारे ही देश में धूल चटा रहे हैं !”
ट्राम यात्रा —
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……. खैर,ट्राम से पूरा मेलबर्न घूम कर हम वापिस विक्टोरिया पर आये,तब तक भूख भी जोर से लगने लगी थी ! मेरे दामाद प्रवीण ने बताया वहां बहुत अच्छा इंडियन ढाबा है तो मुझे विशवास नहीं हुआ पर जब ढाबे में घुसे तो एकबारगी लगा अपने ही देश के ढाबे में हैं ! एक तरफ मंजिया पड़ी थीं वही दूसरी तरफ कुर्सी मेज़ ! ढाबे के नाम था,” बेबे दा ढाबा ” खाना वाकई में टेस्टी था ठीक भारत के किसी अच्छे ढाबे जैसा !
फिर पैदल घूमने निकले ! बहुत ही खूबसूरत शहर है मेलबर्न ! सुन्दर तो हमारा भारत भी कम नहीं है, बस यहाँ हर खूबसूरती यत्र तत्र सर्वत्र फैली गंदगी के आगे धूमिल पड़ जाती है !

उस दिन शाम 7 बजे घर वापिस आये ! बेटे की पसंद का खाना बनाया फिर हम तीनो ( मैं,मेरी बहु रेचल और भतीजी मल्लिका ) सज धज कर लग गए परिवार संग फोटो खिंचवा कर नाचने गाने और इस यात्रा को अविस्मर्णीय बनाने में ! उस दिन रेचल को हमने साड़ी और जेवर से सजा कर अपनी की ख्वाहिश पूरी की ( मेरी बहु स्वीडन की है ) दामाद फोटोग्राफी में भी प्रवीण है सो सभी तस्वीरें बहुत सुन्दर आयीं !

दुसरे दिन दामाद प्रवीण ने लव और रेचल के लिए गिफ्ट रखा था “ग्रेट ओशन रोड ” घुमाने का ! गेंहूं के संग बथुए को भी पानी लगना ही था सो बड़ी गाड़ी लेकर हमारे परिवार के साथ प्रवीण घूमने निकले ! उनके दोनों बेटों ने देखा हुआ था और उनके स्कूल भी खुल गए थे,भतीजी की भी नयी जॉब थी तो वो तीनों रुक गए और हम अपने साथ ,पानी और ढेर सारे नाश्ते के साथ निकले !
मेलबर्न में दरसल जनसँख्या कम और लेंड ( ज़मीन ) ज्यादा है सो शहर से निकलते ही दूर दूर तक फैले खेत, खूबसूरत जंगल,बाग़-बगीचे दीखते गए !
मुझे आश्चर्य हुआ देख कर कि वहां पेड़ भी बड़े करीने से लगाए गए थे जंगल में जो कुछ कुछ ज्यामितीय रचना में थे,कितनी मेहनत और दिमाग लगाया होगा इसकी कल्पना ही की जा सकती है बस ! इस तरह का जंगल पहली बार देखा मैंने !

कई जगह खेतों में चरती हुई ढेर सारी गाय दिखाई दीं तो मन हर्षित हुआ,मुझे लगा डेनमार्क की तरह यहाँ दूध उत्पादन ज्यादा होता होगा ! पूछने पर पता चला दूध के अलावा वहां गाय खायी भी ज्यादा जाती हैं, मन थोड़ा खिन्न हुआ ! पर सुन्दर प्राकृतिक दृश्य देख फिर उन्ही में खो गयी ! प्रवीण बहुत खुशमिजाज़ और एक बहुत अच्छे मेज़बान हैं,उनके साथ कोई बिलकुल भी बोर नहीं हो सकता ! जहाँ वो अपने साले-सलहज से हंसी मज़ाक कर रहे थे वही मेरा और पतिदेव का भी पूरा पूरा ख्याल रख रहे थे ,खासकर मेरे पतिदेव का !

ग्रेट ओशन रोड —
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ग्रेट ओशन रोड नाम से कुछ ज्यादा आकर्षित नहीं हुई उतना तो उसे देख कर हम सब अचंभित हो गए ! इंद्रधनुष से कहीं ज्यादा रंग दिख रहे थे एक साथ सागर में ! दूर क्षितिज में काला,फिर गाड़ा सलेटी,फिर गाड़ा नीला,हल्का नीला, लालिमा लिये नारंगी,गाड़ा गुलाबी,हल्का गुलाबी,गहरा हरा,हल्का हरा,फिरोज़ी,चटक लाल,केसरिया पीला और समीप से देखने पर नीलिमा लिया साफ़ पानी ! उठते हुए तेज ज्वार-भाटे ,तेज हवा के झोंके लगता था सागर की लहरों संग हमे ही उड़ा ले जाएंगे ! विंड चीटर पहने होने के बावजूद मुझे और इन्हे कंपकपी छूट जाती ! अचानक ही सूर्य बादलों पर हावी हो जाता तब बदन गरमा जाता ! लगता था सूर्य की हवा से शर्त लगी है कि,” आज देखतें हैं जीत किसकी होती है ?”… मुझे बचपन में पढ़ी इसी भाव की कविता याद भी आ रही थी जिसमे हवा और सूरज की शर्त लगी थी,किन्तु कविता याद नहीं आ रही ( अब मैं पढ़ा-लिखा सब भूलने लगी हूँ ) रस्ते में कई सुन्दर” बीच” थे,एक जगह हमने गाड़ी रोक कर विश्राम किया नाश्ता जो घर से बना कर ले गए थे खाया ! समुद्र तट पर बहुत सी नवयौवनाएं स्वीमिंग सूट में सनबाथ लेती दिखीं ! कुछ जोड़े कार के भीतर एक दुसरे में समाए अर्धनग्न अवस्था में दिखे ! अमेरिका में इतनी नग्नता नहीं दिखी जितनी यहाँ दिखी !

ग्रेट ओशन रोड 664 किलोमीटर लम्बी सड़क है जहाँ हमने कई जगह सागर के सुन्दर नज़ारे देखने को गाडी रुकवाई जिनमे १- लन्दन ब्रिज,२- 12 एपोस्टल और ३- कनिघम पीर देखे ! दूर तक फैले अथाह सागर में ये एपोस्टल ,सचमुच किसी देवदूत सामान स्थित थे,भयंकर ज्वार-भाटों में भी निश्चिन्त,अटल खड़े मानो अपनी विजय पर इतराते खड़े थे ! प्रकृति के इन सुन्दर नज़ारों से हटने का मन ही नहीं हो रहा था किन्तु शाम होने को थी और अब हमे किसी जगह पनाह लेनी ही थी !

प्रवीण ने पहाड़ी इलाके की खूबसूरत वादी में एक बहुत सुन्दर और बड़ा घर रेंट किया हुआ था ! विदेशों की यह तहजीब मुझे बहुत पसंद आती है कि लोग पर्यटकों को अपना पूरा घर मय रसोई के सामान और फलों,ब्रेड मक्खन दूध और जूस से भरे फ्रिज के साथ रेंट पर दे देते हैं ! रेंट भी बहुत ज्यादा नहीं होता (यह तब जब मकानमालिक खुद घूमने चले) किन्तु मकान मालिक का घूमने का किराया निकल आता है ,घर की देखभाल भी होती है और सबसे बड़ी बात कि पर्यटकों को घर और रसोई मिलने से वो अपना चाय,नाश्ता,खाना खुद बना सकते हैं क्यों कि ऑस्ट्रेलिया में शाम 7 बजे के बाद मार्किट बंद हो जाते हैं !

तो उस सुन्दर घर में जहाँ लांड्री भी थी और रसोई भी वहां मुझे और पतिदेव को छोड़कर बच्चे अपने जीजाजी के साथ कार में पेट्रोल भरवाने और खाना पैक करवाने चले गए ! घर क्या वो पूरी कोठी थी जिसमे सामने की तरफ बड़ा सा पोर्टिको और दोनों तरफ तथा कोठी के पीछे 3 वरांडे थे ! तीनो में टेबल और चार चार कुर्सियां पड़ी थीं,जिन पर सुन्दर गुलदान में कई रंगों के गुलाब सजे थे !
बाहर गार्डन में गुलाब की कम से कम 15 किस्मे थीं और थे नीम्बू से लदे पेड़ !

रसोई इतनी बड़ी कि दो चारपाई आ सकें ! कोठी में 4 बेड रूम 2 बाथरूम थे ! ड्राइंग रूम में दो जोड़ी भव्य सोफे और बड़ी बड़ी सुन्दर तस्वीरें सजी थीं ! मैं विदेश में बाहर का खाना नहीं खाती क्यों कि मैं अंडा नहीं खाती ,मांस नहीं खाती तो अपने साथ बढ़िया बासमती चावल,आलू प्याज और थोड़े मसाले हरी मिर्च लेकर चलती हूँ साथ में पापड़ भी !

बच्चे वापिस आये तो पिज़ा लेकर ! सबने पहले चाय पी ! उसके बाद बच्चों ने पिज़ा खाया पर आधा-अधूरा ( शायद जितना अच्छा दिख रहा था उतना स्वादिष्ट नहीं था ) ! मैं आलू प्याज काट कर तहरी बनाने की तैयारी कर रही थी तभी प्रवीण आये,”बुआ,आप सारे चावल छौंक लें सभी खाएंगे !”मैंने पुलाव बनाया और प्रवीण ने वाईन की बोतल खोलकर आवाज़ दी,”बुआ आपकी वाइन लीजिये हम सर्व कर देंगे !”

वाइन के साथ हंसी मज़ाक,बचपन के किस्से और पापड़ नमकीन काजू का दौर चला फिर सबने पेट भर के पुलाव खाया और अपने अपने कमरों में आये ! सोने के समय मैंने नाइट बल्ब बंद करना चाहा पर उसका स्विच मिलकर नहीं दिया ! वाइन का सुरूर कम होने की झुंझलाहट होने लगी तभी गलती से लेम्प से मेरा हाथ छू गया और लेम्प ऑफ़ हो गया,मैंने दुबारा टच किया तो जल गया फिर टच किया तो बुझ गया ! मैंने थोड़ी देर छोटी बच्ची बनकर लेम्प से खेलती रही,कब नींद के आगोश में गयी पता ही नहीं चला !
बर्तन रात में ही डिशवाशर में बच्चों ने लगा दिए थे,चाय नाश्ता कर घर की सफाई करके हम वापिसी को रवाना हुए ! रास्ते जगह जगह हमे जंगली कंगारू,नील गाय और कुछ अन्य जंगली जानवर भी दिखे जिनके नाम ठीक से याद नहीं ! कुछ ज्यादा ही लम्बी ड्राइव थी तो कभी बेटा गाड़ी चलता कभी दामाद ! रास्ता आसानी से काटने के लिए गाने गाते, बिस्किट,टॉफी खाते कि गाड़ी चलाने वाले को नींद ना आ जाये !
फिलिप आइलैंड —
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अगले दिन मेलबर्न के फिलिप आइलैंड गए ! यहाँ छोटा सा चिडयाघर था जहाँ ढेर सारे कंगारू और वहां के रंगीले मोर,पेंगुईन देखे ! कंगारू एक पालतू कुत्ते के सामान प्यार से हमारे करीब आये और उनका भोजन जो हमने वहीं खरीदा था वो हमारी हथेली से इस तरह प्यार से खा रहे थे जैसे हमे बरसों से जानते हों ! उनके हथेली से भोजन लेने से वहां गुदगुदी होने लगी हमें इतना आनन्द मिला जिसे शब्दों में बताया नहीं जा सकता ! उसी रात हमने समुद्र के किनारे रात 9. 30 के करीब होने वाली” पेन्गुइन परेड”देखी ! एकदम अँधेरा होने के बाद बर्फीली ठण्ड में जब समुद्र के बाहर का तापमान बर्फीले पानी के तापमान के बराबर हो जाता है तब सागर से हज़ारों की संख्या में पेंगुइन निकल कर तट पर बनाये अपने ज़मीन के भीतर के घरों में अपने अंडे और उसमे से निकले बच्चे देखने,उनके साथ रात बिताने आती हैं और सुबह सूरज निकलने से पहले झुण्ड बना कर वापिस सागर में ! बड़ा ही अलौकिक दृश्य था वो माँ-बच्चे के मिलने का ! पेंगुइन और उनके बच्चे ज्यादा भीड़भाड़ और रौशनी देख डर ना जाएँ इसलिए वहां अँधेरा और पिन ड्राप साइलेंस किया जाता है !
इसके अलावा मेलबर्न के म्यूज़ियम,चॉकलेट फ़ैक्ट्री, विनयार्ड जो कि सैंकड़ों की संख्या में हैं सब देख कर बहुत मज़ा आया !
ऑस्ट्रेलिया में जहाँ वृद्ध लोगों को सुविधाएं मिलती हैं उतनी ही पढ़ने वाले बच्चों को भी यह वहां की सबसे अच्छी व्यवस्था लगी ! जिनकी आय कम और बच्चे ज्यादा हैं उनके हर बच्चे को शिक्षा पर होने वाले खर्चे का आधा सरकार की तरफ से मिलता है, यह व्यवस्था सरकारी स्कूलों में ही है ! उच्च शिक्षा के लिए इंटरेस्ट फ्री लोन भी सरकार उपलब्ध करवाती है ! जब इतनी सुविधाएं हैं तो शिक्षा का स्तर भी बहुत अच्छा है ! अच्छी पढाई करने वालों को नौकरी के लिए मारा मारा नहीं फिरना पड़ता है और ना किसी राजनितिक नेता की सिफारिश और ना रिश्वत का सहारा ! यह जानकार मन में टीस उठी कि काश हमारे देश में भी ऐसा होता तो देश की प्रतिभाओं को बाहर जाने की जरुरत नहीं पड़ती !

मेलबर्न में भारतियों की संख्या भरपूर है जिनमे सरदार के अलावा गुजरती लोग जो वहां भी व्यापार कर रहे हैं और मद्रासी बहुतायत से हैं ! इन्होने वहां गुरूद्वारे, मंदिर बना रखे हैं जो सुन्दर होने के साथ बहुत सफाई व्यवस्थायुक्त हैं ! अपने त्योहारों, जन्मदिन आदि पर सब वहां एकत्र होते हैं और हमसे बेहतर तरीके से त्यौहार मानते हैं ! यहाँ साऊथ इंडियन भोजन के रेस्त्रां भी तमिलनाडु के लोगों ने खोल रखे हैं जहाँ नॉन वेज बड़े भी खूब मजे से वहां के लोग खाते हैं !

सिडनी —
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इसके बाद 4 दिन हमने सिडनी घूमने का कार्यक्रम बनाया ! यहाँ भी रेंटल घर लिया ! यहाँ के बड़े बड़े चर्च,बहुत सुन्दर लुभावने हैं ! सिडनी,ऑस्ट्रेलिया का सबसे पुराना शहर है !यहाँ ब्राउन रेत के 40 से भी ज्यादा बीचेज़ हैं जिनमे से हम बस 2 ही देख सके ! यहाँ फैरी ( बड़ी नौका ) से हम 1 घंटे घूमे,इसका आनंद भी गजब का था क्यों कि एक तरफ “हार्बर ब्रिज”और दूसरी तरफ “ओपेरा हॉउस” की सुंदरता देखते ही बनती थी !
ओपेरा हॉउस —
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यह न्यू साऊथ वेल्स में स्थित प्रदर्शन कलाओं का एक बहुत बड़ा कला-संकुल है जो बाहर से कुछ कुछ लोटस टेम्पल की तरह दीखता है किन्तु अंदर से बहुत भव्य और दुमंज़िला ईमारत है !
इसमें थिएटर भी हैं और बड़े बड़े हॉल भी ! जहाँ नाटक, प्रदर्शनी, थियेटर और अन्य कार्यक्रम होते हैं ! ओपेरा हॉउस जितना बाहर से सुंदर है उससे कहीं ज्यादा अंदर से ! दर्शकों के बैठने के लिए आराम दायक कुर्सियां,वाशरूम इत्यादि सभी सुविधाओं से युक्त !
रॉयल बॉटेनिकल गार्डन —
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ओपेरा हॉउस के एक छोर पर सामने की तरफ यह गर्दन बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है ! जहाँ एक तरफ फूलों के,दूसरी तरफ ऑर्किड्स के और सभी तरह की वनस्पतियां हैं ! यहाँ पैदल घूमना वो भी कुछ घंटों में मेरे लिए असम्भव था तो कुछ देर पैदल,फिर कार्ट से घूमी किन्तु इतना थक गयी कि चाह कर भी आधा भी नहीं देख सकी ! बच्चे पूरा घूमे और मैं पार्क की बेंच पर बैठ ऊँघने लगी !

एक्वेरियम —
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तीन मंजिला एक्वेरियम !! आप कल्पना कर सकते हैं कि कितना बड़ा होगा ? मानव-विकास क्रम की नॉन-कॉर्डेट से व्हेल तक की छोटी से बड़ी ना जाने कितनी जाति -प्रजाति थीं वहां ! व्हेल,शार्क मछली को पहली मंज़िल से नीचे से ऊपर की ओर ,दूसरी मंज़िल से ठीक सामने से और तीसरी मंज़िल से ऊपर से नीचे की ओर करीब से देखा तो देखती ही रह गयी ! एक्वेरियम इतना बड़ा था कि यह मछलिया एक चैंबर से दूसरे चैंबर तक मज़े में विचरण करती इतनी लुभा रही थीं कि उनके पास से हटने का मन ही नहीं हो रहा था किन्तु पैरों ने जवाब दे दिया था !
हमे रात की फ्लाईट से वापिस मेलबर्न जाना था और बड़े बेटे को सिडनी से सीएटल ! हम चार दिन सिडनी रहे और चारों दिन बारिश होती रही तो बहुत सी जगह बिना देखे मन मारकर वापिस आना पड़ा ! बेटे को उसके दुसरे रेंटल घर में जो सिर्फ एक कमरे का था वहां छोड़कर हमने एयरपोर्ट की राह पकड़ी ! मेलबर्न पहुँच कर जिस टेक्सी से हम घर तक आये उसे हैदराबाद का एक अधेड़ चला रहा था जो रस्ते भर चिकनी चुपड़ी बातें बनता रहा और घर पहुँच कर उसने फिक्सड से 5 डॉलर ज्यादा वसूल कर लिए ! बहुत बुरा लगता है जब अपने ही देश के लोग विदेश में हमे उल्लू बनायें, लेकिन रात का 1 बज चूका था और हम बेटी दामाद,और उनके पड़ौसियों की नींद में खलल डाल कर यात्रा का मज़ा किरकिरा नहीं करना चाहते थे ! २० दिन के प्रवास में हमने वहां भरपूर लुत्फ़ उठाया जीवन का जो हमेशा याद रहेगा !


पूर्णिमा शर्मा
सांता क्रूज, वेस्ट
मुंबई

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