बालक के सर्वांगणीय विकास में अनौपचारिक शिक्षा के रूप में बाल साहित्य का विशेष योगदान है। बाल साहित्य के सच्चे एवं प्रखर समीक्षक भी बाल पाठक ही होते हैं। बाल साहित्य की अनेक विधाएँ हैं यथा-बाल काव्य, बाल कथा, बाल उपन्यास, बाल नाटक, बाल एकांकी, बाल जीवनी, बाल यात्रा, ज्ञान-विज्ञान संबंधी लेख एवं आख्यायिका आदि। इनमें बाल काव्य की लोकप्रियता सर्वाधिक है। अपनी गेयता, लयात्मकता, संगीत्माकता एवं भाषा की सरलता के कारण बाल कविता बच्चों को सहज रूप में प्रभावित करके उनके मन एवं कंठ में उतर जाती है।
हिन्दी साहित्य में बाल कविता की एक विशाल एवं प्राचीन परंपरा विद्यमान है। हिंदी के सर्वप्रथम बाल काव्यकार महाकवि सूरदास हुए जो अपनी अंतदृष्टि से बात्सल्य रस का कोना-कोना झांक आए हैं। उन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं का जिस मनोवैज्ञानिक ढंग से निरूपण किया है, वह आज भी हमारे बाल काव्यकारों को लेखन की नई दिशा प्रदान करने में सक्षम है।
तभी से बाल काव्य लेखन की एक स्फुट परंपरा चल निकली। अनेक रचनाएं तो ऐसी हैं जिनके रचयिताओं का कहीं नाम ही नहीं मिलता। जैसेः सूख-सूख पट्टी, चंदन घट्टी/ बाबा के बाग में झंडा गड़ा / झंडा गया सूख, पट्टी गई सूख।
इन अलिखित एवं लोक प्रचिलित बाल कविताओं से प्रेरणा लेकर बाल साहित्यकारों ने लेखन प्रारंभ किया। आरंभिक प्रयासों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र एवं महाबीर प्रसाद द्विवेदी की बाल कविताएं मिलती हैं। इस परंपरा को आगे बढ़ाने में पं.श्रीधर पाठक ने महत्वपूर्ण कड़ी का कार्य किया। उन्होंने बच्चों के प्रिय पशु-पक्षियों पर छोटी-छोटी बाल कविताएँ लिखीं।
स्वतंत्रता के पूर्व के बाल रचनाकारों में इन कवियों के अतिरिक्त, कामता प्रसाद गुप्त, डॉ. विभु, मन्नन द्विवेदी गजपुरी, रामनरेश त्रिपाठी, भूपतनरायण दीक्षित, श्रीनाथ सिंह, सोहनलाल द्विवेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान, आरसी प्रसाद सिंह, शंभुनाथ सक्सेना, रमापति शुक्ल आदि का सर्जनात्मक योगदान रहा है।
स्वातंत्र्योत्तर काल के बाल कवियों में स्वर्ण सहोदर, निरंकार देव सेवक, विष्णुकांत पांडेय, चंद्रपाल सिंह यादव मयंक, राष्ट्रबंधु, रामवचन सिंह आनंद, विनोद चंद्र पांडेय, चिरंजीत, श्रीप्रसाद, धर्मपाल शास्त्री, देवेन्द्र दत्त तिवारी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, नर्मदा प्रसाद खरे, बालस्वरूप राही, शेरजंग गर्ग, चक्रधर नलिन, शिक्षार्थी, अशोक एम.ए., सीताराम गुप्त, कृष्णकांत तैलंग, सरस्वती कुमार दीपक, नारायण लाल परमार, हरिकृष्ण देवसरे, सूर्यकुमार पांडेय, शकुन्तला सिरोठिया, सरोजनी कुलश्रेष्ठ, जगदीश चंद्र शर्मा, सावित्री परमार, पूरन सरमा, राम निरंजन शर्मा ठिमाऊ, भैरूंलाल गर्ग, तारादत्त निर्विरोध, शंभुनाथ तिवारी आदि का योगदान रहा है।
साठोत्तरी हिन्दी बाल काव्यकारों में सुरेन्द्र विक्रम, अजय, प्रसून, नागेश पांडेय ‘संजय’, अजय शर्मा यात्री, उषा यादव, विमला रस्तोगी, धीरेन्द्र कुमार यादव, शिवचरण चौहान, श्याम सुन्दर श्रीवास्तव कोमल, बालकृष्ण गर्ग, जहीर कुरेशी, राजा चौरसिया, राजनरायण चौधरी, पी. आर. शुक्ल, विभा शुक्ल, रंजना वर्मा, सुलेखा पांडेय आदि की लेखन–यात्रा जारी है!
बच्चों के आयु वर्ग के आधार पर बाल कविताओं के तीन प्रमुख भेद माने गए हैं। ये हैं –शिशु कविता, बाल कविता, किशोर कविता।
शिशु कविता के अंतर्गत तीन से पांच वर्ष तक के बच्चों के लिए लिखी गई चार से आठ पंक्तियों वाली वे कविताएँ आती हैं जो नन्हे-मुन्नों के प्रिय विषयों पर सरल भाषा में तुकबन्दी, ध्वन्यात्मकता एवं लयात्मकता को आधार बनाकर लिखी जाती हैं। शिशु कविता के प्रचार-प्रसार में पराग पत्रिका का विशेष योगदान सदैव स्वीकारा जाएगा।
शिशु कविताओं के दो संकलन तीन-तीन खंडों में हिन्दी प्रचारक संस्थान, वाराणसी द्वारा नन्ही कविताएँ एवं रिमझिम नाम से प्रकाशित किए गए। ये संकलन अपने आप में शिशु कविता के इतिहास को भी रेखांकित करते हैं। इनके अतिरिक्त निरंकार देव सेवक की शिशु कविताओं का एक संग्रह बिल्लो के गीत नाम से उपयुक्त प्रकाशन से प्रकाशित और चर्चित हुआ था। सेवक जी की एक शिशु रचना देखेः बाबा पढ़ते हैं अखबार/ अपनी आंखें करके चार/ एनक दिखा रही है शान/ चढ़ी नाक पर पकड़े कान।
वास्तव में ये शिशु कविताएँ ही हैं, जिन्हें बहुत-से लोग शिशु गीत कहते हैं। कविता और गीत के शिल्प विधान में मौलिक अंतर है। शिशु कविताएं बड़ो द्वारा बच्चों को सुनाकर याद करा दी जाती हैं, क्योंकि उस आयु वर्ग में बच्चे उन्हें पढ़ नहीं सकते। हां, चित्रों को देखकर और पंक्तियों को सुनकर वे उनका भाव अवश्य समझ लेते हैं।
बाल कविताएं वे हैं जो पांच वर्ष से बारह वर्ष तक के बच्चों के मनोविज्ञान, उनकी ग्राह्य क्षमता एवं उनके परिवेश को ध्यान में रखकर लिखी जाती हैं। बाल कविताओं और बाल गीतों के कई संपादित संकलन इधर काफी लोकप्रिय हुए हैं। इनमें नवीन रश्मि द्वारा संपादित हिन्दी के श्रेष्ठ बालगीत, हरिकृष्ण देवसरे द्वारा संपादित हिंदी की सौ बाल कविताएँ, रोहिताश्व अस्थाना द्वारा संपादित चुने हुए बाल गीत, अनिल चेतन द्वारा संपादित हिन्दी के सौ बालगीत प्रमुख हैं।
किशोर कविता के अंतर्गत बारह से सोलह वर्ष की आयु को ध्यान में रखते हुए लिखी गई कविताएं आती हैं। इन कविताओं की भाषा अपेक्षाकृत स्तरीय तथा विषयवस्तु किशोरों की आशाओं, आकांक्षाओं, उमंगों एवं अपेक्षाओं के अनुरूप और प्रेरक होती हैं। किशोर लेखनी का संपादन देवेन्द्र कुमार ‘देवेश‘ करते रहे हैं।
किशोर कविता का एक उदाहरण देखेः
तुझको या तेरे नदीश, गिरि वन को नमन करूं मैं
मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूं मैं
किसको नमन करूं मैं, भारत, किसको नमन करूं मैं !
विषयवस्तु के आधार पर बाल कविताओं के निम्न भेद हो सकते हैं। इनके अंतर्गत विपुल मात्रा में बाल-काव्य सृजन हुआ है। ये हैं-लोरयां, प्रभाती, प्रयाण गीत, खेल-कूद संबंधी गीत, राष्ट्रीय गीत, लोकशैली पर आधारित बालगीत, वैज्ञानिक एवं पर्यावरण विषयों पर आधारित गीत, विविध बाल गीत, गीत कथाएं आदि!
माताएं सामान्यतः लोरी गाकर अपने बच्चों को थपकी देते हुए सुलाती हैं। उनमें रात, चांद, परी, नींद आदि का चित्रण होता है। लोरी का नाम आते ही शकुंतला सिरोठिया और सरोजिनी कुलश्रेष्ठ के नाम अनायास ही स्मरण हो आते हैं और लगता है कि माताएं ही सर्वोत्तम लोरियां लिख सकती हैं। ये दोनों ही लोरी लेखन में सिद्ध और प्रसिद्ध हैं। शकुंतला सिरोठिया की लोरियों के संकलन आ री निंदिया और सोओ सुख निंदिया के नाम से छपे हैं। इसी प्रकार सरोजिनी कुलश्रेष्ठ की लोरियां आ जा री निंदिया नामक कृति में संकलित हैं। सरोजिनी जी ने बालकों के लिए ही नहीं, अपितु बालिकाओं के लिए भी समान रूप से लोरियां लिखी हैं।
प्रभातियों की चर्चा आते ही महाकवि सूरदास की जागिए, ब्रज राज कुंअर पंछी बन बोले तथा हरिऔध जी की उठो लाल अब आंखें खोलो नामक पंक्तियां सहज ही स्मरण हो आती हैं। इधर सरोजिनी कुलश्रेष्ठ का प्रभाती संग्रह भोर भई अब जागो प्यारे विशेष चर्चा में रहा है। ये प्रभातियां माताएं बच्चों को जगाने के लिए गाती-गुनगुनाती हैं। इनमें प्रभात का प्राकृतिक वर्णन सहज रूप में मिलता है। सरोजिनी कुलश्रेष्ठ की कुछ पंक्तियां देखेः
फूलों ने पांखें खोली हैं / तुम भी अपनी आंखें खोलो।
ये धुल गई ओस के जल से/ तुम भी अपनी आंखें खोलो।
प्रयाण गीतों में बच्चों को देश की आन-बान, शान की रक्षा करने के लिए आगे बढ़ने का उद्बोधन संन्निहित होता है। एक उदाहरण देखेः
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो !
सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर हटो नहीं, तुम निडर डटो वहीं !
(द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी)
बच्चों में खेलकूद के प्रति रुचि जागृत करना तथा इस क्षेत्र में अनुकरणीय व्यक्तिओं से प्रेरणा दिलाना ही खेल-कूद संबंधी बाल गीतों की रचना का मूल उद्देश्य होता है। उदाहरणार्थः
चलो अखाड़े, पेलो दंड/ बनना तुमको बज्र प्रचंड। (राष्ट्रबंधु)
बच्चों में राष्ट्रीय भावना भरना तथा उन्हें सच्चा देशभक्त बनकर देश की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपने को बलिदान करने के लिए प्रेरित करना आज की अनिवार्यता बन गया है। बाल साहित्यकारों ने इस दायित्व का कुशलतापूर्वक निर्वाह किया हैः
जननी की जय-जय बोलेंगे/ अपनी ताकत को तोलेंगे।
हम धीर-वीर कहलाएंगे/ भारत की ध्वजा उड़ाएंगे।
( सोहनलाल द्विवेदी)
लोक शैली पर आधारित रचनाएं राष्ट्रबंधु व श्री प्रसाद ने विशेष रूप से लिखी हैं। राष्ट्रबंधु की ये पंक्तियां तो बच्चे उनके साथ ही गुनगुना उठते हैः
रे लो, रे लो/ चाई-माई खेलो/ परेशानियां झेलो।
ऋतुओं और पर्वों पर भी पर्याप्त संख्या में बाल गीत लिखे गए हैं। होली, दीवाली आदि पर तो प्रति वर्ष बहुत-से बाल गीत लिखे जाते हैं परन्तु ईद, क्रिसमस आदि पर बहुत कम बाल गीत लिखे गए हैं।
बापू, नेहरू, शास्त्री, इंदिरा, सुभाष आदि पर बाल काव्य ही नहीं, अपितु बाल खंडकाव्य भी लिखे गए हैं। विनोद चंद्र पांडेय का जय सुभाष तथा रोहिताश्व अस्थाना का जय इंदिरा उपयोगी बाल खंड हैं।
बच्चों को हंसाने और गुदगुदाने वाली कविताएँ भी लिखी गईं, जिनमें राष्ट्रबंधु की मामा जी तथा सुंदरलाल अरुणेश की चांदी का चूहा शीर्षक रचनाएँ चर्चित रही हैं!
आज का युग विज्ञान का युग है। नई सदी विज्ञान की सदी होगी। अतः विज्ञान और पर्यावरण संबंधी बाल गीत भी लिखे गए हैं। विनोद चंद्र पांडेय के संपादन में बाल-कविता वार्षिक पत्रिका के विज्ञान एवं पर्यावरण विशेषांक इस दिशा में विशेष चर्चित रहे हैं। घमंडीलाल अग्रवाल ने भी अच्छे बाल विज्ञान गीत लिखे हैं।
वर्तमान में नागेस पांडेय ‘संजय‘, श्याम सुन्दर श्रीवास्तव ‘कोमल‘ महेश चंद्र त्रिपाठी आदि अच्छी बाल पहेलियां लिख रहे हैं। अजय शर्मा यात्री की बाल पहेलियों के दो संकलन भी हाल ही में प्रकाशित और चर्चित हुए हैं।
विविध विषयक बाल गीतों के अंतर्गत समस्त बाल परिदृश्य को रचनाकारों ने वाणी दी है। निरंकार देव सेवक, चंद्रपाल सिंह मयंक, विष्णुकांत पांडेय, रामवचन सिंह आनंद आदि ने उत्कृष्ट गीत कथाएं लिखी हैं।
बाल कविता लेखन में शिल्प और शैलीगत प्रयोग भी हुए हैं। सूर्यकुमार पांडेय ने हाइकू शैली में कुछ प्रयोग किए हैं। एक उदाहरण देखेः
बंदर बोला भेड़ से/ मामा अगर कहा मुझको/ कूद पड़ूंगा पेड़ से।।
मुनिलाल उपाध्याय सरस ने हाइकू से मिलती-जुलती शैली में तीन-तीन पंक्तियों की बाल रचनाएं लिखकर उनका प्रवर्तन ‘ बाल त्रिशूल ‘ के नाम से किया है। ये बाल त्रिशूल बाल प्रयाण नामक संग्रह में छपे हैं। एक उदाहरण देखेः
मेरा बाल त्रिशूल/ हंसी खुशी दे सब बच्चों को/ बिछा सुपथ पर फूल।।
बच्चों के लिए कई रचनाकारों ने बाल दोहे भी लिखे हैं। सूर्यकुमार पांडेय व दिनेश रस्तोगी के बाल दोहे काफी चर्चित रहे हैं।
बच्चों के लिए ब़ाल ग़ज़लें लिखने की शुरुआत निरंकार देव सेवक द्वारा की गई। बाद में लाला जगदलपुरी, सरस्वती कुमार दीपक, अजय प्रसून, सुरेन्द्र विक्रम आदि ने बच्चों के कर्यकलापों को ग़ज़ल के रूप में प्रस्तुत किया।
उस दिशा में सरस्वती कुमार दीपक की कृति नन्ही मुन्नी ग़ज़लें तथा रोहिताश्व अस्थाना की कृति नन्ही ग़ज़लें तथा रोहिताश्व अस्थाना की कृति नन्ही गजलें विशेष उल्लेखनीय हैं।
इधर नए प्रतीकों और बिंबों के माध्यम से बाल कविताएं लिखी जा रही हैं जिनका नयापन बालमन को प्रभावित करता है। नए ढंग से लिखने वालों में हरीश निगम, दामोदर अग्रवाल, दिविक रमेश, जयप्रकाश भारती, सूर्यभानु गुप्त, जहीर कुरेशी आदि के नाम लिए जा सकते हैं। यहां हरीश निगम की नई धुन शीर्षक रचना उद्धरणीय है।
तितली रानी/ बड़ी सयानी/ बोली-भौंरे सुन
ओ अज्ञानी/ बड़ी पुरानी/ तेरी ये गुनगुन।
कालू राजा/ खा के खाजा/ छेड़ नई-सी धुन।।
कुल मिलाकर बाल साहित्य लेखन में कविताओं की दशा अच्छी है। हमारे पास बाल काव्य की जो उपलब्ध परंपरा है, उसे निरंतर नए पन के साथ आगे बढ़ाते रहने की आवश्यकता है। हमारे कवियों को नई सदी की मांग के अनुरूप बाल काव्य रचना होगा। चूंकि मीडिया ने बच्चों की बुद्धिमत्ता को एकदम बढ़ा दिया है, अतः अब वे पुराने ढंग की सीधी-सपाट और उपदेशात्मक बाल कविता पसंद नहीं करते हैं। आज का बच्चा चांद पर कविता पढ़ता हुआ, उस पर सूत कातती हुई बुढ़िया की परिकल्पना से सहमत न होकर राकेट द्वारा वहां जाने के अभियान को अधिक पसंद करेगा। नई सदी का बाल पाठक यह जानना चाहेगा कि आखिर चूहे, बिल्ली के अत्याचार को कब तक सहेंगे और क्या किसी परिस्थिति में वे बिल्ली के गले में घंटी बांधकर निर्भय हो सकेंगे !
आज की परिस्थिति में बच्चों की मनोभावनाओं को रेखांकित करने वाली बाल कविताएं अधिक पसंद की जाएंगी। इस दृष्टि से सुरेन्द्र विक्रम की ‘कम्प्यूटर भैया‘ , ‘पार्क हाथ से निकल गया‘,‘जेब खर्च अब चार गुना हो‘ जैसी बाल कविताएं सचमुच सोद्देश्य और सराहनीय बन पड़ी हैं।
बाल कविता लेखन को सही दिशा में ले जाने के लिए जहां बाल साहित्यकार प्रसाररत हैं, वहां बाल कविताएं अधिक संख्या में छापनी चाहिए। बाल पत्रिकाओं में श्रेष्ठ व पठनीय बाल काव्य कृतियों का समीक्षात्मक परिचय प्रकाशन वर्ग सहित निरंतर छपना चाहिए ताकि बाल पाठक उन्हें पढ़ने का मन बना सकें।
बाल साहित्यकरों को बच्चों में बच्चा बनकर उनके मानसिक धरातल से सोचकर अपनी भावनाओं को काव्यबद्ध करना होगा। बस्ते का बढ़ता हुआ बोझ, अंतरिक्ष में शहर बसाना और यातायात की कल्पना करना, वैज्ञानिक विषयों पर नए ढंग से सोचना, नई सदी के भारत की कल्पना, पर्यावरण प्रदूषण, शांति अहिंसा का महत्व, राष्ट्रीय भावना आदि विषयों पर बच्चे बाल कविता अधिक पसंद करेंगे। आज गांवों में रहने वाले बच्चों के परिवेश तथा बालिकाओं को केन्द्र में रखकर बाल कविताएं और बालगीत लिखने की आवश्यकता है। बाल कविताएं ऐसी हों जिनसे बच्चे स्वयं प्रेरणा गृहण कर सकें।
बाल कविताओं में भाषा की सरलता, तुकबंदी एवं छंदज्ञान का भी बड़ा महत्व है। बाल कविता में यदि किंचित भी छंद दोष होगा तो लय टूट जाएगी और बच्चा उसे धाराप्रवाह न तो गुनगुना सकेगा और न ही कंठस्थ कर सकेगा।
बहुत-से लोग बाल कविता और बाल गीत में शैल्पिक अंतर नहीं कर पाते। सफल बाल काव्य लेखन के लिए तत्संबंधी साहित्य का निरंतर अध्ययन और मनन भी आवस्यक है।
सारांशतः हिन्दी में बाल काव्य लेखन की समृद्ध परंपरा विद्यमान है. हिन्दी में बाल कविता के लिए समीक्षात्मक मानदंड भी शोध अधइकारियों ने स्थापित किए हैं। हमारे बाल साहित्यकार भी सजग होकर सृजन में समृद्ध हैं। प्रतिभासंपन्न बच्चों को भी बाल कविता लेखन के प्रति आकर्षित किया जाना चाहिए। नई सदी में जाते हुए निःसंदेह आज बाल कविता लेखन की नई दिशाएं खुल रही हैं। बाल कविता की यह अजस्र धारा नई दिशाओं में प्रभावित होकर उपलब्धियों और संभावनाओं के नए-नए तीर्थ तलाश करेगी-ऐसा मेरा मत है।