माह की कवियत्रीः चन्दा प्रहलादिका


सृष्टि की अद्भुत कलायें, देख गाते क्यों नहीं ।
खोज हँसने के बहाने, गम भुलाते क्यों नहीं ।

भानु तपता ,हो विकल ढूँढे गली फिर छावँ की ,
बादलों को नैन तकते ,मेघ लाते क्यों नहीं ।

रश्मियाँ स्वर्णिम अकंपित,नभ धरा ऊर्जा भरे ,
सांध्य बेला ओ पवन तुम साथ आते क्यों नहीं ।

पुष्प परिमल सम सुवासित खिल उठेगी ज़िंदगी,
राग छेड़े भाव हर्षित , गुनगुनाते क्यों नहीं ।

अंह का निस्तार पल में,हो सुगम राहें सभी ,
मत सहेजे द्व्ंद अंतर ,खिलखिलाते क्यों नहीं ।

सब क्षणिक सुख पीर धारा,भाव मिथ्या से घिरे,
ज्ञान का दीपक जले फिर,जाग जाते क्यों नहीं।

सत तिमिर निस्पंद अंचल, रश्मियों की ओट लें ,
ज्योत फैले हो विकंपित,मुस्कुराते क्यों नहीं ।

सतत कर्म शुचि सेवा में रत,जो सुजान रहते,
भाव विशद रख कर्मवीर वो, तब कहलाते हैं ।

लक्ष्य साधकर बढ़ते जायें ,सत्य पंथ पाये,
हो गंतव्य समक्ष साध मन ,धैर्य बँधाते हैं।

निजी सुखों को भूल चले अब,परहित में जीते ,
जगी चेतना ध्यान साधना, भाग्य बनाते हैं ।

ज्ञान सृष्टि का सत हो जागृत ,भ्रमित असत्य परे ,
अधरों पर मुस्कान सजा दे, हँसी लुटाते हैं ।

संयम शांति के पुष्पों की ,माला पहन चले,
दर्द बाँट ले प्रीत सुधा की , धार बहाते हैं ।

एक ज्योत जलती दिल में है, भेद नहीं कोई ,
निराकार कण-कण में चंदा, भक्ति जगाते हैं ।

दीप से अनेक दीप यूँ जलाइए ।
हो जहाँ तिमिर कहीं उसे भगाइए ।

राग द्वेष दूर हर दिलों उजास हो,
वैर भाव भूल अब गले लगाइए ।

लक्ष्य साध बढ़ चले सुपथ तभी मिले,
रीत तो सुकर्म की नहीं भुलाइए ।

दीप जो जले मिटा निजी वजूद को,
प्रेरणा मिली सुधर्म को निभाइए ।

मही पुकारती उठी ,असंख्य चेतना जगे ।
प्रबुद्ध शौर्य संगिनी ,सुधीर कर्म में लगे ।
सुशांत मान में जिये, झुके नहीं रुके नहीं ।
वृथा नहीं ये ज़िंदगी, स्वदेश प्रेम हो वही।।

सुभाष की धरा यही, अखंडता सशक्त हो
प्रशस्त राह है समक्ष ,राग से विरक्त हो।
विवेक बुद्धि साधते, विवाद को सँवारते।
विकास तो,प्रकाश हो, प्रवीर ज्ञान धारते।।

प्रसार धर्म शांति का ,बहे सुधा सुप्रीत की।
सुजाग भाव साधना, नवीन ज्योत रीत की ।
स्वराष्ट्र आन-बान हो, प्रपंच द्वेष से बचे ।
बढ़े चलो सुपंथ तो, सुकीर्तिमान ही रचे ।

समस्त देशवासियों, समर्थ देशभक्ति में ।
विनाश शत्रु का सदा ,समत्व योगशक्ति में ।
हुंकार गूँजती धरा ,प्रवाह ब्रह्म नाद ले ।
स्वतंत्रता सुधर्मिता ,हँसी- ख़ुशी विषाद ले।

बहा लहू शहीद का, अमर्त्य वीर पा गये।
सदैव गर्व भावना ,स्वदेश को जगाइये ।
युगों चले सुनाम ये ,प्रभुत्व शुद्ध भारती ।
सपूत मातृभूमि के ,उमंग से निहारती ।।

चलो विचार ये करे , रहे सुखी यहाँ तभी ।
हवा चले बहार की ,सँवार दो पलों तभी ।

असत्य कर्म हो परे , सुकर्म सींचते धरा,
विराग हो विकार से ,युगों रहे प्रभा तभी।

चिराग ज्ञान दीप ले, अनंत रश्मि पुंज ये,
सहेज, चेतना जगी ,यहाँ सुधा बही तभी ।

उजास प्रात का दिखे,उदास आज यामिनी,
विराम आदि अंत पे , उमंग संग है तभी ।

असंख्य उर्मि प्रीत की, अथाह धार तृप्ति की,
समस्त व्याधियाँ मिटे,दिशा सही मिले तभी ।

समाधि सत्य बोध की ,अशेष भ्रांति यूँ मिटी ,
यथार्थ रूप को लिए, नवीन आस हो तभी ।


अतुल मुखर हो अशेष बातें, जहां रचित वो किताब हो तुम।
सरस करुण रस बहे निरंतर, नयन झरे अजाब हो तुम।

कहीं बिछुड़ जो गये कभी हम, तुम्हीं बताओ कहां ठिकाना,
निशा विकल‌ क्यों कलुष समेटे, नमीं लिए वो गुलाब हो तुम।

हंसी -खुशी में सिमट उदासी, प्रणय अकथ‌ सा वृथा बिसारे,
बसी दिलों में सुप्रीत गाथा ,
मिजाज‌ रंगी शबाब हो तुम।

नवीन भावों सहेज चंदा,
दुखों सुखों का प्रगाढ़ बंधन,
घने तिमिर में अनंत ऊर्जा,
सलामतें आफताब हो तुम।


जीव जलधि में तिरती शुद्ध भावना ।
साध लें जो मनुज मन यही साधना ।
ईश कण-कण बसे सत्य ये जानना।
जान ले जो मनुज बस यही साधना ।

जब सिमटे असंख्य व्याधियाँ कामना।
ज्यों हृदय में जले ज्योत सद्भावना ।
रहे सतत विकारों की अवमानना ।
हो सदाचार सुकर्म यही साधना ।

ज्ञान गीता का सच्ची आराधना ।
सार ग्रंथों का निज को है जानना ।
वेद की पढ़ ऋचाएँ दृग बाँधना ।
राम आदर्श चले जो रत साधना ।

साज छेड़े प्रीत के , हर दुख भुलाने के लिए ।
प्यार की धुन को बजा,साथी रिझाने के लिए।

बोल मीठे बोलकर यूँ जीत पायेंगे हृदय,
वक्त थोड़ा ही बचा हँसने हँसाने के लिए ।

क़ीमती हर पल नहीं खोना ज़रा सा वक़्त भी ,
एक क्षण होता बहुत बिगड़ी बनाने के लिए ।

ईश के हाथों टिका बनना बिगड़ना जान लें ,
है मनुज के पास क्या जीवन सजाने के लिए ।

साधना कर ध्यान से तब भाव में हो शुद्धता ,
है क्षणिक दुख को समझ चिंता मिटाने के लिए ।

सृष्टि ये प्रभु ने बनायी बीज शुभ कर्मों पड़े।
नित्य पूजन वंदना हो मुक्ति पाने के लिए ।

जीव सागर में बहे जो नाव सी अनुभूतियाँ ,
आज लेती डुबकियाँ सब मोक्ष पाने के लिए।

नेह धागों से बँधे मन मुस्कुराने के लिए ।
कोशिशें सबके दिलों में घर बनाने के लिए ।

ठोकरें खाकर समझ फिर दोष निज के दूर कर ,
मंज़िलें होगी निकट जीवन सजाने के लिए ।

सृष्टि सारी बस सिखाती, है भला देना यहाँ,
चाँद सूरज दे रहे ऊर्जा जमाने के लिए ।

मौन बसुधा ये सिखाये किस तरह जीना यहाँ,
धैर्य,संयम दीप अंतर में जलाने के लिए ।

हम रहें कल या नहीं बस ईश ही यह जानता ,
कर्म ऐसे हो दिलों अमरत्व पाने के लिए ।


सत ज्ञान गीता अप्रतिम संवाद कृष्ण अर्जुन सजल।
गांडीवधारी नत नयन कर विषम भव से हो विकल।

हर कर्म हो निष्काम ऐसी भावना मन में सतत,
नहीं चाह कोई फल सुनिश्चित भाव‌ तृप्ति के सरल।

त्याग ममता और आसक्ति का मनन करना है अब,
जितेन्द्रिय परमात्मा को सर्व कर्म अर्पण अविरल।

ज्ञान गीता का सुनाया पार्थ ने‌ रणभूमि में जब,
तत्व ज्ञान से मोह भंग धनुर्धारी अर्जुन सबल।

पास बैठे आज भी वो गुनगुनाना याद है।
भूलकर सारा जहां बस मुस्कुराना याद है।

श्वास में बस, नाम तेरा हर घड़ी हमराज़ सुन,
अंजुमन परिशर खड़े पलकें झुकाना याद है।

ये खुमारी है अजब बन जिंदगी भर का नशा,
जागते सोते रहे‌ वो खिलखिलाना याद है।

ये कशिश दस्तक दिलों के द्वार पर‌ ताउम्र ही,
प्यार का दरिया बहा प्रिय डूब जाना याद है।

अजनबी अंदाज में अहसास चंदा हो फना,
हो गये तन्हा वो‌ मंजर‌ सूफियाना याद है।

बूँद बूँद ज़िंदगी तन्हा पुकारती उसे ।
खो गई हँसी ख़ुशी वफ़ा तलाशती उसे।

कामना बढ़ी वृथा अनंत आस पालती,
प्रीत को सहेजती सदा सँवारती उसे।

शूल‌ पंथ‌ पर‌ बिछे असंख्य सोचते रहे,
कर्म शेष शांत‌ भाव‌ से बिसारती उसे।

मोह से जुदा हुए न भ्रांति का वजूद है ,

नैन कोरे नहीं, कुछ बहा तो चले ।
चाँद तन्हा रहा ,पर निशा तो चले।

मत पड़ो फेर में क्या मिला ना मिला
जो वफ़ा तुम करो दिल लुटा तो चले ।

ये तिजारत नहीं प्यार की बात है
जान लें ,ज़िंदगी वो बना तो चले।

हसरतें मिट गई हो गये जो जुदा
धूल अब चाहतों की उड़ा तो चले ।


सृष्टि की अद्भुत कलायें, देख गाते क्यों नहीं ।
खोज हँसने के बहाने, गम भुलाते क्यों नहीं ।

भानु तपता ,हो विकल ढूँढे गली फिर छावँ की ,
बादलों को नैन तकते ,मेघ लाते क्यों नहीं ।

रश्मियाँ स्वर्णिम अकंपित,नभ धरा ऊर्जा भरे ,
सांध्य बेला ओ पवन तुम साथ आते क्यों नहीं ।

पुष्प परिमल सम सुवासित खिल उठेगी ज़िंदगी,
राग छेड़े भाव हर्षित , गुनगुनाते क्यों नहीं ।

हँस दिए दर्द को यूँ भुलाते रहे ।
बेख़ुदी में सदा मुस्कुराते रहे ।

ज़िंदगी चार दिन की न सोचा अभी ,
जो मिले पल उसे ही सजाते रहे ।

खो गई राह ढूँढे नज़र रात दिन ,
बीच काँटों पुहुप को खिलाते रहे।

रोशनी की लिए चाह खुद से लड़े ,
दीप जलते गये तम भगाते रहे ।

ठोकरों ने बताया न हैरान हो ,
धैर्य संयम रखे ये सिखाते रहे ।

लक्ष्य को साधकर साहसी बन चले,
मंज़िलें सामने पग बढ़ाते रहे ।

आज उम्मीद का चाँद निकला विशद,
चाँदनी में ख़ुशी की नहाते रहे ।

जीवन को ऐसे क्यूँ मानव ,व्यर्थ गँवाते है ।
पल-पल की क़ीमत होती क्या ,समझ न पाते हैं ।

सतत कर्म शुचि सेवा में रत,जो सुजान रहते,
भाव विशद रख कर्मवीर वो, तब कहलाते हैं ।

लक्ष्य साधकर बढ़ते जायें ,सत्य पंथ पाये,
हो गंतव्य समक्ष साध मन ,धैर्य बँधाते हैं।

निजी सुखों को भूल चले अब,परहित में जीते ,
जगी चेतना ध्यान साधना, भाग्य बनाते हैं ।

ज्ञान सृष्टि का सत हो जागृत ,भ्रमित असत्य परे ,
अधरों पर मुस्कान सजा दे, हँसी लुटाते हैं ।

संयम शांति के पुष्पों की ,माला पहन चले,
दर्द बाँट ले प्रीत सुधा की , धार बहाते हैं ।

एक ज्योत जलती दिल में है, भेद नहीं कोई ,
निराकार कण-कण में चंदा, भक्ति जगाते हैं ।

हँस दिए दर्द को यूँ भुलाते रहे ।
बेख़ुदी में सदा मुस्कुराते रहे ।

ज़िंदगी चार दिन की न सोचा अभी ,
जो मिले पल उसे ही सजाते रहे ।

खो गई राह ढूँढे नज़र रात दिन ,
बीच काँटों पुहुप को खिलाते रहे।

रोशनी की लिए चाह खुद से लड़े ,
दीप जलते गये तम भगाते रहे ।

ठोकरों ने बताया न हैरान हो ,
धैर्य संयम रखे ये सिखाते रहे ।

लक्ष्य को साधकर साहसी बन चले,
मंज़िलें सामने पग बढ़ाते रहे ।

आज उम्मीद का चाँद निकला विशद,
चाँदनी में ख़ुशी की नहाते रहे ।

नाम-

नाम-चन्दा प्रहलादका 
शिक्षा-बी ए आनर्स (हिन्दी साहित्य)कोलकता
आठवीं कक्षा से ही कविता लेखन में संलग्न 
दसवीं कक्षा में पहला रेडियो प्रोग्राम, एवम पत्रिका में कविता प्रकाशित-
अज्ञेय,महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद से प्रभावित साहित्य एवम दर्शन का गहरा अध्ययन ।
काव्य लेखन स्वांतः सुखाय के लिए।
हिन्दी कवियित्री, गायिका
मदर टेरेसा अवार्ड 2020 प्राप्त
महिला काव्य मंच में सम्मानित
एवम् अनेकों सम्मान एवम पुरस्कार प्राप्त ।
छंद गुरु -अभ्युदय काव्य गुरुकुल
अंंतरराष्ट्रीय अभ्युदय संस्था की महासचिव
महिला काव्य मंच की दक्षिणी ईकाई की अध्यक्ष
लोक संस्कृति संस्था में सक्रिय  सदस्य ।
मारवाडी संस्कृति मंच में कार्यकारिणी सदस्य।
अन्तराष्ट्रीय मारवाड़ी समिति में कार्यकारिणी सदस्य ।
नवसंध्या सास्कृतिक संस्था में कार्यकारिणी सदस्य।
भारतीय विकास परिषद की सक्रिय सदस्य
अखिल भारतीय महिला समिति की साहित्य प्रमुख
रचनाकार साहित्यिक संस्था की संगठन मंत्री

अनेकों सांस्कृतिक एवम् साहित्यिक कार्यक्रमों में मंच संचालन
कलकत्ता दूरदर्शन पर कई बार कार्यक्रम प्रस्तुति
काव्य गोष्ठियों में कविता पाठ एवम गीत प्रस्तुति ।
समाज सेवा में सक्रिय रूप से संलग्न
अनेकों पत्र पत्रिकाओ मे कविता प्रकाशित ।
अहसास काव्य पुस्तक(सम्मिलित संग्रह )
पुष्प परिमल-सम्मिलित काव्य संग्रह भावनाओं के अंकुर-एकल काव्य संग्रह
मुखरित मौन -एकल काव्य संग्रह
यशोधरा एक व्यथा- खंडकाव्य
गूँज अनुगूँज -एकल छंद काव्य संग्रह
वृथा नहीं ये रागिनी – एकल छंद काव्य गीतिका संग्रह
छंद काव्य संग्रह -सुदीप्त छंद रश्मियां

हिंदी काव्य रत्न
मानद‌ उपाधि सम्मान

विश्व हिंदी भूषण सम्मान
शब्द साधना अलंकरण सम्मान

हिंदी काव्य शिरोमणि सम्मान
नारी‌सरोकार सम्मान
हिंदी साहित्य सम्मान

साहित्य साधना सम्मान
साहित्य शिल्पी सम्मान
साहित्य पुरोधा सम्मान
कलम रथ आजाद प्रहरी सम्मान

कोंच साहित्य गौरव सम्मान

error: Content is protected !!