बेकल था तेरा हिया, मैं हो उठा अधीर ।
मैं रोया इस पार था,तुम्हें उठी जो पीर । ।
तुम जागे थे रात भर ,दूर कहीं परदेस ।
हम सपनों में खोजते , धरे जोगिया भेस । ।
द्वार तुम्हारा तो मिला ,तुम थे गुमसुम मौन ।
हमने बाँचा हूक को , और बाँचता कौन । ।
साँस रही परदेस में , जुड़ी कहीं पर डोर ।
प्रेम नाम जिसको दिया , उसका मिला न छोर । ।
किया आचमन मन्त्र पढ़,सुबह-शाम जो नीर ।
पोर पोर नम कर गई , वो थी तेरी पीर । ।
ढूँढ़ा जिसको उम्र भर , उसको कहते प्रीत ।
धरती -सागर खोज के ,मिले तुम्हीं बस मीत ।
अपने ही घर में लगा , हम हैं पाहुन आज ।
भोर हुई तो चल पड़े ,अपने-अपने काज ।
मन्दिर जाकर क्या करूँ , मुझको मिला न चैन ।
पण्डित जो रहता वहाँ , वह भी है बेचैन । ।
दो पल में माटी हुआ ,जीवन भर का मेल ।
हमसे खेले यार सब , सदा कपट का खेल । ।
कुटिया रोई रात भर , ले भूख और प्यास ।
महल बेहया हो गया , करता है परिहास । ।
दीमक फ़सलें चट करें ,घूम -घूम घर द्वार ।
गाँव- नगर लूटे सभी, लूटे सब बाज़ार । ।
इज़्ज़त लुटी गरीब की , लूट लिया हर कौर ।
डाकू तो बदनाम थे , लूटे कोई और । ।
पोथी से डरकर छुपा , जेबों में कानून ।
जिसकी जेबें हों भरी , उसको चढ़े जुनून । ।
कर्ज़ चढ़ा हल तक बिका, बिके खेत खलिहान ।
दो रोटी की भूख थी, सिर्फ़ बचा अपमान । ।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जन्म :19 मार्च 1949, बेहट जिला सहारनपुर, भारत में
शिक्षा : एम.ए., बी.एड.
संप्रति : प्राचार्य, केन्द्रीय विद्यालय हज़रतपुर, फ़ोरोज़ाबाद (उ.प्र.) के पद से सेवानिवृत
प्रकाशन :
कविता संग्रह: 1. माटी, पानी और हवा 2. अंजुरी भर आसीस 3. कुकड़ कूँ 4. हुआ सवेरा