गीत और ग़ज़लः राकेश जोशी


तुम अँधेरों से भर गए शायद
मुझको लगता है मर गए शायद

दूर तक जो नज़र नहीं आते
छुट्टियों में हैं घर गए शायद

ये जो फसलें नहीं हैं खेतों में
लोग इनको भी चर गए शायद

कागजों पर जो घर बनाते थे
उनके पुरखे भी तर गए शायद

क्यों सुबकते हैं पेड़ और जंगल
इनके पत्ते भी झर गए शायद

तुम ज़मीं पर ही चल रहे हो अब
कट तुम्हारे भी पर गए शायद

उनके काँधे पे बोझ था जो वो
मेरे काँधे पे धर गए शायद

सिर्फ कुछ पत्तियाँ मिलीं हमको
फूल सारे बिख़र गए शायद


वो जो चालाकियाँ समझ पाया
उसने धोखा कभी नहीं खाया

मैंने पत्थर कभी नहीं तोड़े
तुमको लिखना कभी नहीं आया

अक्ल का मैं बड़ा ही दुश्मन हूँ
जो न संसार को समझ पाया

जुल्म वैसे तो वो भी ढाते थे
जुल्म ऐसा मगर नहीं ढाया

उसकी ग़ज़लें बहुत ही अच्छी हैं
गीत लेकिन वो गा नहीं पाया

उसको डरपोक लोग भाते हैं
मेरा तेवर उसे नहीं भाया

वैसे मिलने को भीख मिलती है
माँगकर खाया भी तो क्या खाया


अजनबी जब से ज़माना हो गया है
आदमी थोड़ा सयाना हो गया है

बात जबसे हक़ की है करने लगा
आप कहते हैं दीवाना हो गया है

ज़िक्र फिर से आँसुओं का हम करें
छोड़िए, गाना-बजाना हो गया है

आप दर्पण पर न यूं चिल्लाइए
आपका चेहरा पुराना हो गया है

फिर अधूरी ये कहानी रह गई है
फिर से मिलने का बहाना हो गया है

दूरियाँ तुमसे तो बढ़ती जा रही हैं
यूँ तो पैसों का कमाना हो गया है

महफ़िलों में आपके चर्चे हुए
यूं न आना भी तो आना हो गया है


वैसे तो आराम बहुत है
जीवन में पर काम बहुत है

दुनिया इक बाज़ार बनी है
हरेक चीज़ का दाम बहुत है

मन में भी है घुटन बहुत-सी
सड़कों पर भी जाम बहुत है

मैंने तुमसे प्यार किया है
मुझ पर ये इल्ज़ाम बहुत है

हारेंगे हम नहीं लड़ाई
इतना ही पैग़ाम बहुत है

सूरज का आभारी हूँ मैं
धूप मेरे भी नाम बहुत है


बंद सारी खिड़कियाँ हैं, सो रही हैं
नींद में गुम बत्तियाँ हैं, सो रही हैं

तुम इन्हें परियों के सपने सौंप दो
इस तरफ कुछ बस्तियाँ हैं, सो रही हैं

किसने पतझड़ को बुलाया है इधर
पेड़ पर कुछ पत्तियाँ हैं, सो रही हैं

इक सितारा घिर गया तूफ़ान में
और जितनी कश्तियाँ हैं, सो रही हैं

याद तुमको कर रहा हूँ इस समय
क्योंकि जो मजबूरियाँ हैं, सो रही हैं

पास मेरे चंद ख़त हैं, साथ ही
ढेर-सारी तितलियाँ हैं, सो रही हैं

मैं तुम्हारे ख़्वाब में गुम हो गया
बीच में जो दूरियाँ हैं, सो रही हैं

डॉ. राकेश जोशी
असिस्टेंट प्रोफेसर (अंग्रेजी)
राजकीय महाविद्यालय, डोईवाला
देहरादून, उत्तराखंड

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