पंछियों-सा नील गगन में उड़ना, मछलियों सा जल में क्रीड़ा करना और हंसों सा पानी पर तैरना। एक महाद्वीप में सोना और दूसरे में जगकर सुबह का नाश्ता कर लेना, कितना कुछ साध लिया है आज के चतुर मानव ने। सह-भोग्या धरती पर बसते अन्य जानवर और जीव-जन्तुओं को अपना गुलाम बनाए तो लाखों साल बीत गए, पर अब तो उसकी नजर सूरज चांद तारों पर है, अन्य गृह और उपगृहों पर है। मम
कितना कुछ है अभी भी इस धरती पर, जिसे आँखें देख नहीं पाईं, खोज नहीं पाईं। जो खोज और बसा लिया है हमने , वह भी तो कितना खूबसूरत और रम्य है। 100 -150 साल पहले कई बातें जो असंभव लगती थीं, आज वे संभव हैं। पहले जब हमारे पूर्वज कहीं पर्यटन पर जाते थे तो पग-पग धरती नापते थे। हजार कठिनाइयों से जूझते थे। वाहन के नाम पर उनके पालतू घोड़े और ऊंट , हाथी वगैरह ही होते थे उनके पास । और उनकी गति व क्षमता ही चालक की गति व क्षमता होती थी। जिन यात्राओं में आज चंद घंटे लगते हैं तब कई-कई महीने लग जाते थे। परन्तु आज के इनसान के पास सुपर सौनिक जेट
पंछियों-सा नील गगन में उड़ना, मछलियों सा जल में क्रीड़ा करना और हंसों सा पानी पर तैरना। एक महाद्वीप में सोना और दूसरे में जगकर सुबह का नाश्ता कर लेना, कितना कुछ साध लिया है आज के चतुर मानव ने। सह-भोग्या धरती पर बसते अन्य जानवर और जीव-जन्तुओं को अपना गुलाम बनाए तो लाखों साल बीत गए, पर अब तो उसकी नजर सूरज चांद तारों पर है, अन्य गृह और उपगृहों पर है। मम
कितना कुछ है अभी भी इस धरती पर, जिसे आँखें देख नहीं पाईं, खोज नहीं पाईं। जो खोज और बसा लिया है हमने , वह भी तो कितना खूबसूरत और रम्य है। 100 -150 साल पहले कई बातें जो असंभव लगती थीं, आज वे संभव हैं। पहले जब हमारे पूर्वज कहीं पर्यटन पर जाते थे तो पग-पग धरती नापते थे। हजार कठिनाइयों से जूझते थे। वाहन के नाम पर उनके पालतू घोड़े और ऊंट , हाथी वगैरह ही होते थे उनके पास । और उनकी गति व क्षमता ही चालक की गति व क्षमता होती थी। जिन यात्राओं में आज चंद घंटे लगते हैं तब कई-कई महीने लग जाते थे। परन्तु आज के इनसान के पास सुपर सौनिक जेट हैं। आलीशान और आरामदेह पानी के जहाज हैं और क्या पता शीघ्र ही अब उसकी पहुँच चांद-सूरज तक भी हो जाए इन नित नए विकसित होते अंतरिक्ष यान और उनके नए-नए प्रशिक्षण के माध्यम से। अब कोई दूरी, दूरी नहीं और कुछ भी असंभव नहीं।
एक नहीं कई-कई लेखकों की कलम से लिखे गए पचास से अधिक नए-पुराने रोचक यात्रा वृतांत और संस्मरणों को संजोए यह बृहद विशेषांक हमने बहुत धैर्य और मेहनत से संजोया है। उम्मीद है बांधे रखेगा आपको। जहाँ एक संतोष मिल रहा है कि एक और मील का पत्थर हासिल कर लिया लेखनी ने अपने इस 155 वें अंक द्वारा। सितंबर-अक्तूबर के अंक की योजना भी तैयार होनी शुरु हो चुकी है। यह अंक -खुद के आइने में -यानी आत्म अवलोकन और आत्म दृष्टि पर है, क्यों करता है कोई रचनाकार या कवि या चित्रकार सृजन, क्या उद्वेलित और प्रेरित करता है ? क्या यह नश्वर मानव की अमरत्व की तलाश है या फिर सब कुछ जानने और बचाने की वह अथक और अनंत प्यास है जो उसे थिर नहीं होने देती। सशरीर न जा पाए तो कल्पना के पंख तो सदैव ही हैं और रहेंगे उसके पास …दाँते के इनफर्नो से लेकर कालीदास का मेघदूत और विक्रम बेताल पचीसी से लेकर वोल्गा से गंगा तक कई-कई अजब-गजब यात्राएँ की हैं इसने। ऐलिस इन संडरलैंड की तरह घूमा और घुमाया है। पर क्यों? ऐसे और अन्य मुद्दे उठाएगा अगला अंक । रचनाकार ईमानदारी से खुद को ही जांचे-परखेगा और शब्दों में बांधेंगे पाठकों के लिए। रचना भेजने की अंतिम तिथि 20 सितंबर है।
हाल ही में हमने अपने दो बेहद प्रिय और समर्थ रचनाकारों को खो दिया प्रिय अमित आनंद पांडेय जी को मात्र 46 वर्ष की आयु में और मशहूर ग़ज़लकार हस्तीमल हस्ती जी को दोनों ही क्षति हिन्दी साहित्य के लिए बड़ी क्षति हैं। दोनों ही पुण्य-आत्माओं को लेखनी पत्रिका व परिवार की तरफ से भाव-भीनी और विनम्र श्रद्धांजलि और पीछे छूटे परिवार व परिजनों के साथ हार्दिक संवेदनाएँ। श्रद्धा सुमन की तरह दोनों रचनाकारों की कुछ रचनायें हमने इस अंक में सम्मिलित की हैं। कहानी धरोहर में भुवनेश्वर की कहानी भेड़िया है। जिसकी गति और चुम्बकीय बांधे रहने की शक्ति चमत्कृत करती है। सुना है अमेरिका में इसे मैनेजमेंट के कोर्स में भी रखा गया है।
अन्य कहानियाँ भी रोचक हैं। सुधा ओम धींगरा जी एक सशक्त रचनाकार हैं और उनकी कहानी भी अंत तक बांधे रखती है। इंदु झुनझुनवाला की कहानी एक नए अंदाज में दास्तां बयान करती है। मेरी कहानी नागफनी पर तितलियाँ सुरक्षा कर्मियों के कठिन जीवन , उनके संयम और त्याग के साथ-साथ आतंकवादियों के कुप्रयास और तोड़-फोड़ पर है। पद्मा मिश्रा की कहानी लावारिस वृद्धावस्था की त्रासदी पर है। इसके अलावा पचास से अधिक यात्रा-वृतांत और अन्य सामग्री के साथ अंक निश्चय ही रोचक बन पड़ा है और उम्मीद है आपको पसंद आएगा। तारा चंद शर्मा जी एक बेहद संवेदन शील कवि और ग़ज़ल कार हैं। गीत और ग़ज़ल में हम उनकी कुछ बेहद खूबसूरत ग़ज़ल उनके सद्य-प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह कल हो ना हो से लेकर आए हैं, जो निश्चित ही आपको बांधे रखेंगी। अंग्रेजी सेक्शन में भी बेहद खूबसूरत और गहरी कविता कहानियाँ हैं। बारिश के मौसम में बरखा की रिमझिम बूंदों को संजोय़ा है हमने और 15 अगस्त के उपलक्ष में देश-प्रेम की कविताओं को। कितना कुछ है इस जुलाई अगस्त के संयुक्तांक में यह सब तो आप पढ़कर ही जान पाएँगे। प्रतिक्रिया देंगे तो और भी अच्छा लगेगा।
आगामी जुलाई और अगस्त के सभी पर्व और त्योहारों की बहुत बहुत बधाई के साथ अंक पर सदा की भांति ही आपकी प्रतिक्रिया का तहे-दिल से स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया हमारा परितोष और उर्जा तो है ही, मार्ग-दर्शक भी। इंतजार रहेगा,
शैल अग्रवाल
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