लड़ाई
यह लड़ाई क्या होती है?
पांच साल के प्रणव ने माँ से पूछा।
जब दो लोग आपस में मिल-बैठकर अपनी समस्या का हल न ढूंढ पायें या दूसरे पर हमला करके उसकी चीज को अपने कब्जे में करना चाहें और वह अपनी वस्तु की सुरक्षा के लिए, अपने अधिकारों के लिए पीछे न हटे। डटकर सामना करे। दुश्मन को भगाने की कोशिश करे और अपनी रक्षा करे। और जरूरत पड़े तो पलटकर मारे भी।
अच्छा , माँ। फिर तो बड़ा मजा आता होगा लड़ाई करने में। पर नेहा तो ऐसा नहीं करती , रोने लग जाती है।
उसे अपनी तीन साल की बहन का ध्यान आ रहा था जिसे रोता छोड़कर वह उसकी सारी रंगीन पेंसिल और क्रेयौन ले लेता है अक्सर।
हाँ कमजोर ऐसा ही करते हैं क्योंकि उनमें क्षमता और बल नहीं होता अपने से बड़े या अधिक शक्तिशाली से लड़ पाने का।
तो फिर वे अपनी रक्षा कैसे कर पाते हैं?
प्रणव के प्रश्नों का अभी भी समाधान नहीं हो रहा था।
संगठन बनाकर। अपनों से अधिक समर्थ से मदद लेकर।
माँ ने मुस्कुराकर जबाव दिया।
अच्छा जैसे नेहा रो-रोकर आपसे मेरी शिकायत करती है और आप मुझे डांटती हो।
प्रणव की समझ में अब कुछ-कुछ बात आ रही थी।
पर हमारी लड़ाई तो झूठमूठ की होती है। हम तुरंत ही कट्टी के बाद मिल्ली भी तो कर लेते हैं। और टूटे ही सही, मैं उसके क्रेयौन लौटा भी देता हूँ।
पर तुम्हारा काम अपने क्रेयोन से क्यों नहीं चल पाता। हरेक के पास जो है उसी में संतुष्ट रहना चाहिए । और दूसरों की चीजों पर मन नहीं ललचाना चाहिए। यही लालच बड़ी बजह बनता है लड़ाई और दुख का। और बड़ों की लड़ाई तो झूठमूठ की भी नहीं होती। इससे बड़े-बड़े नुकसान भी हो जाते हैं, प्रणव। कई लोग बेघर हो जाते हैं, कइयों की जान चली जाती है।
तो फिर , बड़े लड़ते ही क्यों हैं, क्या इन्हें रोका नहीं जा सकता ?
नहीं , सदियों से चली आ रही है यह ताकत और मालिकाने की लड़ाई । जंगल राज है चारो तरफ। बड़ी मझली छोटी को खा जाती है। फिर बड़े बच्चों की तरह सहज और सरल भी तो नहीं रह पाते, जो सब भूल जायें, अपनी जिद छोड़ दें। स्वार्थी और धूर्त हो जाते हैं ये अपने मद में।
सबकुछ बस अपने लिए ही चाहने लग जाते हैं।
पर लड़ाई किसी वजह से भी लड़ी जाए, व्यर्थ है। सिर्फ घाव देती है।
आंसू पोंछती मां चौके में चली गईं। पर पांच वर्ष की आयु में भी प्रणव जान चुका था कि उसके फौजी पापा सरहद पर लड़ने गए हैं और माँ उन्हें लेकर बहुत चिंतित हैं ।
शैल अग्रवाल
परीक्षा एक उत्सव
परीक्षा एक उत्सव है और है त्योहार
परीक्षा से पुष्पित होता है संस्कार
मन पसन्द विषय पढ़ो, जीवन में आगे बढ़ो
गुणों को गढ़ो, बनो सफल कलाकार
अपने सूरज को उगाओ, उसे चम-चम चमकाओ
कलम-कमल को खिलाओ, आए जीवन में बहार
ग्रहण करो शिक्षा, है हर घड़ी परीक्षा
है जीवन का अभिन्न अंग, इसे करो स्वीकार
भरो गागर में सागर, परीक्षा है महासागर
‘सावन’ पावन मंजिल हेतु करना होगा पार
पढ़ाई से करो यारी, खुशी-खुशी करो तैयारी
परीक्षा से लग जाए जीवन में चांद चार
अपने मन को सुनो, मन से मंजिल चुनो
प्यारी ज़िन्दगी का करो परीक्षा से श्रृंगार
परीक्षा एक उत्सव है और है त्यौहार
परीक्षा से पुष्पित होता है संस्कार
सुनील चौरसिया ‘सावन’
स्नातकोत्तर शिक्षक (हिन्दी)
केन्द्रीय विद्यालय टेंगा वैली, अरुणाचल प्रदेश।
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