कहानी समकालीनः बदनुमा दाग-संदीप तोमर

Young affectionate mother taking care of her crying son at home.

वह एक लाइब्रेरीनुमा कमरा था। मैंने कमरे को हैरत भरी निगाह से देखा। इतनी सारी किताबें किसी के घर पर पहली बार देख रही थी। इतनी किताबें तो पढ़ते हुए कॉलेज की लाइब्रेरी में ही देखी थी।

मैंने एक सोफ़े की कुर्सी पर कब्जा जमा लिया। तभी एक छोटी सी बच्ची कमरे में दाखिल हुई। “गुड इवनिंग मैडम।“-उसने बड़ी दबी सी आवाज में कहा।

कॉपी, किताब उसके हाथ में थी। मैंने उसे बैठने का इशारा किया।

निखिल के गुजर जाने के बाद घर का खर्च चलाने के लिए ट्यूशन करना मेरी मजबूरी थी। ट्यूशन के साथ ही बच्चो की परवरिश कर सकती थी। एक 8 साल की बेटी और दूसरी तीन साल की, उनकी परवरिश करना कितना कठिन है, ये निखिल के जाने के बाद ही पता चला।

उस छोटी लड़की से मैनें नाम पूछा था। लड़की ने जबाव में कहा-“आई एम यशिता।”

ट्यूशन मेरी मजबूरी थी लेकिन इतनी छोटी बच्ची को ट्यूशन? जिन्होंने मुझे यहाँ भेजा था, उनसे क्लास और फीस की बात ही नहीं हुई थी। इस कमरे में बैठे मैं कुछ असहज महसूस करने लगी थी। अनमने से ही सही लेकिन यशिता को पढ़ाने के लिए मैंने कॉपी खोल उस पर कुछ आड़ी-तिरछी रेखाएं खींच दी। कुछ निर्देश दिए तो यशिका अपने काम में मग्न ही गयी और मैं… मैं… कहीं खो सी गयी। इतनी किताबें रखने वाला इंसान और बेटी के लिए लेडी ट्यूटर? मैं स्वयं कोई जवाब खोजती तभी एक आहट ने मेरा ध्यान भंग किया।

“हेलो, मिस…।”

“कनिका। माय नेम इज कनिका।”-मैंने स्वयं से कहा।

“यस आई नॉ।”

“….?”

शायद आपको याद नहीं, हम पहले भी मिल चुके हैं।”

मैंने दिमाग पर जोर डाला। चेहरा वाकई कुछ जाना पहचाना था। अनायास ही मेरे मुँह से निकला-“मिस्टर सहाय……।”

“यस कनिका, आई एम मिस्टर सहाय। आप मुझे सुकुमार भी कह सकती हैं।”-मिस्टर सहाय ने कहा।

“ओके मिस्टर सहाय, आई मीन सुकुमार। आपका बड़ा नाम है, लेखन की दुनिया से बहुत परिचित तो नहीं लेकिन आपके चर्चे अखबारों और कुछ पत्रिकाओं में पढ़े जरूर हैं।”-मैनें उनसे कहा।

“ओह! तो आप साहित्य में रुचि रखती हैं?”

“ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़ा बहुत पढ़ लेती हूँ, बस समय मिलना चाहिए।”

अभी एक शांति सी कमरे में पसर गयी है। मैं यशिका की कॉपी पर निगाहें गड़ा लेती हूँ।

मिस्टर सहाय ने आराम कुर्सी को पकड़ा है। उसी के बराबर में एक छोटा सा फ्रीज़र है। मिस्टर सहाय एक बीयर और दो कांच के मग निकालते हैं।

मग में बीयर डलने की आवाज से मेरी निगाह ऊपर उठती है। एक आदमी और दो मग? मैं कुछ बोलती इससे पहले ही मिस्टर सहाय एक मग उठाकर मेरी तरफ बढ़ाते हैं “मिस कनिका, लीजिये कुछ ठंडा हो जाये।”

“जी लेकिन ये तो बीयर है, और…।”

मैं आगे कुछ बोल पाती उससे पहले ही मिस्टर सहाय बोल पड़ते है-“मिस कनिका, बी बोल्ड यार, आप नए जमाने की महिला हैं, निखिल के साथ एक जमाने में हमारे बिजनेस रिलेशन थे। आज वे यहाँ नहीं है। वक़्त ने उन्हें इस दुनिया से जुदा कर दिया। लेकिन आपके जज्बे को मैं सलाम करता हूँ। कितने सलीके से आपने गृहस्थी को संभाला है।”

“सब वक़्त की फैसला है सुकुमार।” मग को हाथ में लेते हुए मैनें कहा।

यशिका वहाँ से दूसरे कमरे में जा चुकी थी। मुझे महसूस हुआ –“कितनी समझदार बच्ची है, उसे मालूम है कि पापा अगर अपनी लाइब्रेरी में हैं तो उसे वहाँ से चला जाना चाहिए। मुझे याद आया कि मिस्टर सहाय की पत्नी को गुजरे हुए दो साल से ज्यादा समय हो चुका है, याशिका तब मात्र डेढ़-दो साल की रही होगी, कितना मुश्किल होता है एक पिता के लिए माँ हो जाना? उतना ही मुश्किल है एक माँ के लिए पिता हो जाना।“

निखिल से मेरी मुलाकात एक शादी में हुई थी, इतना हैंड्सम लड़का देख मेरे दिल में कितने ही ख्वाबों ने एक साथ दस्तख दी, काश ये लड़का मेरी जिन्दगी में आये। मैं ये सब सोच ही रही थी कि निखिल मेरे पास आया और उसने कहा था-“मिस बहुत खुबसूरत हैं आप, क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ?”

“जी, कनिका शर्मा।“

“मिस कनिका, मुझे निखिल कहते हैं, छोटा सा कारोबार है, ‘चोपड़ा सर्जीकल’ के नाम से, जिसका प्रोपरायटर मैं ही हूँ। हैंडीकैप लोगो के उपकरण बनाता हूँ, ये एक समाजसेवा भी है और बिजनेस भी।“-निखिल ने एक ही पल में अपना पूरा बायोडाटा मेरे सामने रख दिया था।

इस एक मुलाकात ने हमने बहुत करीब का खड़ा किया। दो-चार मुलाकातों के बाद ही बात शादी तक पहुँच गयी थी। मेरे पापा डॉक्टर थे, इसलिए मेरे लिए अपनी ही लाइन के लड़के की खोज में थे। कितना लड़ी थी मैं निखिल के लिए। आखिर पापा को मेरी जिद्द के आगे झुकना ही पड़ा था, पापा की लाडली जो थी। पापा को जितना भी मेरी शादी में खर्च करना था वह सब पापा ने कैश के रूप में निखिल को देते हुए कहा था-“बेटा, इस राशि को अपने बिजनेस को बढ़ाने में इस्तेमाल करना। नाजो से पाली है मैंने अपनी बेटी, जीवन भर साथ निभाना।“

साथ निभाने पर याद आया, वह एक मनहूस रात थी। निखिल अभी घर वापिस आये ही थे, उन्होंने कहा था- “कनिका, बहुत जोरो की भूख लगी है, जल्दी से खाना लगाओ, मैं बाथरूम से फ्रेस होकर आता हूँ।“

मैं खाना लगा ही रही थी कि निखिल के मोबाइल पर कोई कॉल आया, पता नहीं क्या बात हुई, निखिल बाथरूम से निकले तो बोले -“कनिका, जल्दी से हॉस्पिटल पहुँचना है, मेरे दोस्त का रोड एक्सीडेंट हुआ है, सीरियस हालत है, उसे इमिडियेट ब्लड की सख्त जरुरत है। कितना मुश्किल होता है छोटे शहरों में ब्लड का इंतजाम करना।“

मैंने निखिल को कहा था-“निखिल इफ यू डोंट माइंड, मैं भी साथ चलूँ?”

कुछ सोचते हुए निखिल ने कहा-“ठीक है, चलो लेकिन तैयार होने में ज्यादा समय मत लगाना, बस एक चुटकी सिन्दूर लगा तुम बहुत खुबसूरत लगने लगती हो।“

बिना समय गवाए दुपट्टा उठा, चप्पल पहन मैं दो मिनट में निखिल के सामने थी, खाना डाइनिंग टेबल पर ढककर रख दिया था, तभी मैंने निखिल को कहा-“सुनो, खाली पेट डॉक्टर, ब्लड नहीं लेते, एक रोटी खा लो।“

निखिल ने मुझे एक पल निहारा और खड़े-खड़े ही एक रोटी के ग्रास बना खाते हुए कहा था- “माय लवली स्टुपिड वाइफ, कितना ख्याल रखती हो मेरा।“

हम दोनों बाइक पर बैठ हॉस्पिटल पहुँचे, ब्लड दिया और डॉक्टर से बातचीत करके हॉस्पिटल से निकल पड़े। अभी कुछ दूर ही चले थे, सामने से आते ट्रक से बाइक टकरा गयी। जब होश आया तो बस कुछ शब्द मेरे कानों में पड़े थे, निखिल इज नों मोर…।

मिस्टर सहाय की आवाज मेरे कानो में पड़ी-“मिस कनिका, कहाँ खो गयी? बियर का गिलास गरम हो जायेगा।“

“कुछ नहीं, सुकुमार, बस वह मनहूस रात याद हो आई थी, जब निखिल…।“

“हाँ कनिका, शहर की सबसे दर्दनाक रात थी वह, हमारे शहर में तब मातम का माहौल था। होनी बलवान है।“

मैंने मिस्टर सहाय से कहा-“सुकुमार, आज मूड नहीं, आप बियर एन्जॉय कीजिये, फिर कभी कंपनी दूंगी।“-कहकर मैं हाथ में लिया गिलास मेज पर रख उठ खड़ी हुई थी।

यशिका को पढाना शुरू कर दिया था। यशिका की रोजमर्रा की जरूरतें यूँ तो सुकुमार पूरी करते लेकिन मुझे महसूस हुआ- एक माँ के काम करने का जो तरीका होता है वह एक पिता का कभी नहीं हो सकता। धीरे-धीरे मैंने यशिका के बहुत से छोटे-मोटे काम करने/देखने शुरू कर दिए। मिस्टर सुकुमार बेटी का बहुत ख्याल रखते, उसके कपड़ो से लेकर उसकी अलमारी, उसके खिलौने, उसकी किताबें सब करीने से लगी होती, किचेन में नुडल्स से लेकर अन्य जरुरत की चीजे भी रखी होती, जब मैं पढ़ाने जाती तो यशिका का दूध तैयार करके मग उसके हाथ में रखती और कहती-“हमारी बिटिया रानी जितनी जल्दी पीयेगी, उतनी जल्दी बड़ी होगी।“ उसका जवाब होता-“ओके मिस।“ और एक बार में मग का दूध खत्म करके रख देती। मुझे यशिका के लिए काम करना अच्छा लगता।

इधर मैंने महसूस किया कि सुकुमार मुझे खूब बातें करते, अपने निजी जीवन की, अपने लेखन की, अपने अकलेपन की। मुझे महसूस होता कि सुकुमार मुझसे कुछ कहना चाहते हैं लेकिन कह नहीं पाते। यशिका से स्नेह बढ़ता जा रहा था। मुझे लगने लगा- जैसे जिन्दगी की और जरूरतें है वैसे ही यशिका भी मेरी जरूरत में सुमार हो गयी है।

एक शाम मैं निर्धारित समय पर यशिका को पढ़ाने गयी। मैं अक्सर उसे सुकुमार की लाइब्रेरी में ही पढ़ाती थी। उस समय सुकुमार वहाँ नहीं आते थे। अभी एक घंटा ही बीता होगा, मैं लगभग सारा होमवर्क उसे करा चुकी थी, तभी सुकुमार लाइब्रेरी आये, मैंने कहा-“सर, याशिका को होमवर्क करा दिया है, वह दूध भी पी चुकी है, सब्जियाँ बनी हुई है बस रोटियां सेक लेना। मैं अब निकलती हूँ।“

“रुकिए न मिस कनिका, हमसे तो बात किये अरसा हो गया। एक उधार भी बाकी है, इजाजत हो तो चिल बियर का एक-एक मग हो जाये।“

“सुकुमार, यूँ तो मूड नहीं लेकिन आपका आग्रह बार-बार टालने का मलतब आपको नाराज करना होगा, और आपको हम नाराज करना नहीं चाहते।“- मैंने आगे कहा-“लाइए, आज ड्रिंक्स हम बनाते हैं।“ मैंने दो गिलास उठाये और बियर की बजाय वोडका की बोतल उठा दो पैग बनाये, एक में सिक्सटी एमएल और दूसरे में थर्टी एमएल, सोडा डाल कर एक गिलास में पानी डाला। गिलास मेज पर रख मैंने कहा-“लीजिये सुकुमार, हैव अ चियर्स।“

दोनों ने अपना अपना गिलास उठाया और आपस में टकराकर होंठो से लगा लिया। सुकुमार ने कहा-“मिस कनिका, इतना कम पानी आपके गिलास में?”

“मैंने पानी डाला ही कब? सिर्फ सोडा है, मैं ड्रिंक में पानी नहीं लेती और थर्टी एमएल के दो पैग से ज्यादा कभी नहीं।“

बातें हो रही थी, सुकुमार ने चौथा पैग ख़त्म कर लिया था, मेरा अभी दूसरा यानि लास्ट हाथ में था। गिलास रख नट्स उठाने के लिए हाथ आगे बढाया ही था कि सुकुमार ने मेरी कलाई को अपने हाथ में लेते हुए कहा-“मिस कनिका, यशिका की कितनी जरूरतों में तुम हाथ बँटाने लगी हो, बहुत खुश रहती है वह तुम्हारा साथ पाकर।“

“जी।“- मेरे मुँह से निकला, मैंने अपनी कलाई छुड़ाने का कोई उपक्रम नहीं किया, बरसों बाद मुझे निखिल की छुवन जैसा ही का अहसास हुआ। मुझे लगा मानो सुकुमार के भेष में निखिल मेरे सामने बैठा कह रहा हो, “निकिता! बच्चे तुममे इतने खोये रहते हैं कि मेरी याद ही नहीं आती”, मेरी आँखों से आँसू टपकने लगे। सुकुमार का हाथ मेरे गालो पर था, मेरे आँसू पोछ उन्होंने कहा-“मिस कनिका, लगता है कुछ पुराना याद आ गया। कहीं निखिल की यादें…?“

“जी, कभी-कभी निखिल की यादें बहुत पीछा करती हैं।“

मैं थोडा नर्वस फील कर रही थी लेकिन सुकुमार की बातों में, उनके हाथों में एक अजीब आकर्षण था। कब मेरा हाथ पकड उन्होंने अपने होठों से लगाकर चूमा, मुझे पता ही नहीं चला। जैसे एक इंद्रजाल मेरे चहु और है और मैं उनके नियंत्रण में हूँ। कुर्सियों के बीच की दूरी घट गयी थी और दो जिस्मों के बीच की भी। सुकुमार का हाथ पीठ से होता हुआ दांये हिस्से की गोलाई को छूने लगा। एक झटका मुझे लगा, मैंने कहा-“ सॉरी, सुकुमार हम कुछ ज्यादा आगे बढ़ रहे हैं और हाँ, बच्चे भी घर पर मेरा इन्तजार कर रहे होंगे।“-मैं एक झटके में उठी और बाय बोल घर के लिए चल दी।

रास्ते भर मैं विचारों के अंधड़ में घिरी रही। घर पहुँची तो बेटी को किचेन में पाया, मन किया सारा प्यार जो सुकुमार से बचाकर, छुपाकर लायी सब मेरी बेटी पर लुटा दूँ। बेटी ने कहा-“ममा, छोटी खाने की जिद्द कर रही थी, मैंने सोचा एक परांठा बनाकर उसे खिला दूँ, लेकिन वह मैगी की जिद कर रही थी फिर पेस्ट्री की डिमांड करते करते सो गयी।“

मेरा हाथ मैगी के डिब्बे की ओर बढ़ा , देखा डिब्बे में कोई पैकेट शेष नहीं था, राशन के डिब्बे भी मेरी किस्मत की तरह खाली थे। मेरी आँखों के सामने सुकुमार का चेहरा घूमा, एक मुस्कान मेरे चेहरे पर फ़ैल गयी। रात में सोते वक़्त दोनों बेटी मेरे दायें-बाएं थी। घंटो मैं उनका सिर सहलाती रही, अश्रुधारा मेरा चेहरा गीला किये थी।

अगले दो दिन मैं यशिका को पढ़ाने नहीं गयी लेकिन ज्यादा दिन खुद को जाने से रोक नहीं पायी। मैं याशिका की जरुरत थी, मुझे वहाँ होना चाहिए। जैसे ही मैं वहाँ पहुँची तो देखा- सुकुमार किचेन में थे, यशिका के लिए उपमा बना रहे थे, मैंने कहा-“लाइए, मैं बना देती हूँ, आप आराम कीजिये: और हाँ, चाय लेंगे या कॉफ़ी?”

“कॉफ़ी”- सुकुमार ने कहा तो मैंने पूछा-“ लेकिन आप तो हमेशा चाय ही प्रिफर करते हैं, फिर आज…?“

“मिस निकिता, आप चाय पीती नहीं हैं, कॉफ़ी पियूँगा तो आप साथ देंगी ही।“

मैंने यशिका के लिए उपमा बनाते हुए ही दूसरे स्टोव पर कॉफ़ी बननी रख दी। समय बचाना भी जरुरी था ताकि यशिका का पिछले दो दिन का पढाई का हर्जाना भी पूरा हो सके।

यशिका ने जल्दी ही उपमा खत्म किया और लाइब्रेरी में किताबें लेकर पहुँच गयी। मैंने कॉफ़ी के दो मग हाथ में लिए और सुकुमार से पूछा कि आप लिविंग रूम में कॉफ़ी पियेंगे या फिर लाइब्रेरी? उन्होंने लाइब्रेरी आने का बोला तो मैं मग ले लाइब्रेरी की ओर बढ़ गयी।

यशिका को पाठ समझा मैंने कॉफ़ी का कप हाथ में लिया और सिप लेने लगी। मिस्टर सुकुमार भी आ चुके थे, आराम कुर्सी पर बैठ वह अपना कॉफ़ी का मग लिए बैठे रहे। मैं यशिका को पढ़ाने में व्यस्त हुई तो कुछ और देखने-समझने का दिमाग में नहीं आया।

याशिका ने अपना काम निपटाया और अपने रूम की ओर बढ़ गयी, मैंने कहा-“सुकुमार, मैं जा रही हूँ, खाना खा लीजियेगा, यशिका को भी खिला दीजिये।“

जैसे ही मैं आगे बढ़ी, सुकुमार ने मेरी कलाई को पकड लिया। मेरी निगाह उनके चेहरे पर पड़ी, आँखों से निकले आँसू सूख चुके थे लेकिन निशान अभी तक बाकी थे, कॉफ़ी के मग में कॉफ़ी ठंडी हो चुकी थी। सुकुमार ने कहा-“मिस निकिता कुछ पल बैठो। आपसे कुछ बात करनी है।“

“जी, कहिये।“- कहकर मैं कुर्सी खीँच उनके पास बैठ गयी, “बेटियां इन्तजार कर रही होंगी, छोटी कितनी ही बार इंतजार करके भूखें ही सो जाती है।“–मैंने कहा।

“मिस कनिका, यही तो मैं कहना चाहता हूँ, यशिका को भी आपकी जरुरत है और उन दोनों बच्चियों को भी, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तीनों बच्चियाँ साथ ही रहे ताकि तुम्हारी दो जगह की चिंता भी ख़त्म हो और मैं भी यशिका की बड़ी चिन्ताओ से मुक्त।“

मैं कुछ भी जवाब दे पाने की स्थिति में नहीं थी, मुझे लगा कि दो बच्चों की विधवा माँ को क्या ये अधिकार है कि वह किसी का दामन थाम समाज में किसी की लिवइन पार्टनर होने का बदनुमा दाग अपने माथे पर ले ? क्या ये दाग लेकर वह लेकर कहीं आ जा सकेगी? मैं चुप बैठी रही।

मिस्टर सुकुमार आराम कुर्सी से उठ कमरे में चहलकदमी करने लगे। फिर आकर बैठ गए, एक छोटी सी डिब्बी उनके हाथ में थी। उन्होंने मेरी कलाई को हाथ में थाम मेरी अंगुली में डिब्बी से अंगूठी निकाल पहना दी। एक चीख मेरे अंदर से निकली-“नहीं सुकुमार, ये नहीं हो सकता…। कैसे मैं निखिल को भुला सकती हूँ…?”

मिस निकिता मैं कब कह रहा हूँ, कि तुम निखिल की यादों को भुला दो, बस मैं इतना चाहता हूँ कि आज से तुम मिसेज निकिता सहाय कहलाओ। इजाजत दो तो कल ही कोर्ट जाकर शादी की फोरमेलिटी पूरी करता हूँ, किसी के साथ लिवइन में रहने का मैंने कभी ख्वाब नहीं पाला।“

यशिका का चेहरा मेरी आँखों के सामने तैरने लगा, मेरे कान मानो उसके मुँह से माँ सुनने को लालायित हों, अगले ही पल निखिल का चेहरा मेरे जेहन में आया, वह मुस्कुराता कह रहा था-“निकिता, मैं तो बीता हुआ कल हूँ, पूरा जीवन तुम्हारे सामने है।“

एक अश्रुधारा मेरी आँखों से बह निकली।

सन्दीप तोमर
जन्म : 7 जून 1975

जन्म स्थान: खतौली (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा: एम एस सी (गणित), एम ए (समाजशास्त्र, भूगोल), एम फिल (शिक्षाशास्त्र)

सम्प्रति : अध्यापन

साहित्य:

सच के आस पास(कविता संग्रह 2003)

टुकड़ा टुकड़ा परछाई(कहानी संग्रह 2005)

शिक्षा और समाज (आलेखों का संग्रह 2010)

महक अभी बाकी है (संपादन, कविता संकलन 2016)

थ्री गर्ल फ्रेंड्स (उपन्यास 2017)

एक अपाहिज की डायरी (आत्मकथा 2018)

यंगर्स लव (कहानी संग्रह 2019)

समय पर दस्तक (लघुकथा संग्रह 2020)

एस फ़ॉर सिद्धि (उपन्यास 2021, डायमण्ड बुक्स)

कुछ आँसू, कुछ मुस्कानें ( यात्रा- अन्तर्यात्रा की स्मृतियों का अनुपम शब्दांकन, 2021 )

पता:D 2/1 जीवन पार्क, उत्तम नगर, नई दिल्ली – 110059

मोबाइल :8377875009

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