अजय शीशे के सामने टाई की नॉट ठीक कर रहा था। डाइनिंग टेबल की ओर नाश्ते की ट्रे ले जाती नीरा उसे देख कर रुक गयी। लम्बा कद, गोरा रंग, गठा हुआ शरीर और आकर्षक चेहरा, अजय सरकारी अधिकारी कम मॉडल ज्यादा लगता है। माना अजय ने अपने को मेनेटेन कर रखा है, लेकिन वो भी अपने फ्रेंड सर्किल की सबसे स्लिम-ट्रिम लेडी है। 42 साल की इस आयु में भी न आंखों के नीचे झाइयां हैं न थुलथुल करता शरीर। मेकअप के बगैर भी चेहरा दमकता है, जीन्स पहने या साड़ी सब फबते हैं। जबकि उसके साथ की अधिकांश महिलाएं अपने जेवरों, लकदक करते कपड़ों, भारी मेकअप और गोगल्स के साथ चर्बी की कई पर्तों और तरह-तरह के दर्द/बीमारियों/कमजोरियों को भी ढोती हैं। लेकिन उसने अपने अपने साथ कभी लापरवाही नहीं की है। जब अजय के बॉस जिलाधिकारी मि॰ गुप्ता ने उसे देख कर कहा, ‘‘नीरा तुम तो बैक गेयर में चल रही हो! जैसे-जैसे समय बीत रहा है तुम और अट्रैक्टिव लग रही हो’’, तो वह बस मुस्करा कर रह गयी थी। उसे समझ नहीं आया कि ये तारीफ है या एक मर्द की आंखें उसे टटोल रही हैं?
फिर ऐसा क्या है जो अजय इतना यांत्रिक हो गया है? माना एस॰डी॰एम॰ होना ढेर सारे तनाव, परेशानियां और व्यस्तता लाता है लेकिन क्या ये सब जिंदगी से ज्यादा हैं? कई बार तो समझ ही नहीं आता कि हम जिंदगी को बिता रहे हैं या जिंदगी हमें बिता रही है? जिंदगी एक ऐसे ग्रे-मैटर में तब्दील हो गयी है कि समझ ही नहीं आता है कि क्या स्याह, क्या सफेद? अजय सब कुछ करता है लेकिन उसकी हर चीज बेजान सी हो गयी है, यहां तक उसका प्यार करना भी। कई बार लगता है रात में उसकी देह भी बस ड्यूटी ही निभा रही है, कहीं कोई भावनाएं नहीं, कहीं कोई उबाल नहीं, बस ब्रश करने, नहाने की तरफ ये ड्यूटी भी निभा दी जाती है।
‘‘नीरा! आय एम गेटिंग लेट! ब्रेकफास्ट प्लीज’’, अजय घूम कर बोला तो नीरा चैंक गयी। वह बस मुस्करा दी, आजकल उसे मुस्कराने की आदत हो गयी है। कोई भी बात हो बस मुस्करा देती है!
डायनिंग टेबल पर बैठते ही अजय ने ब्राउन ब्रेड पर जल्दी-जल्दी पीनट बटर लगाना चालू कर दिया और हमेशा की तरह नीरा ने उसका ओरेंज जूस का गिलास भर दिया।
‘‘आराम से खाओ अजय! अभी कोई लेट नहीं हुए हो!’’ नीरा उसकी हर काम जल्दी-जल्दी करने की आदत से खिसयाती है।
‘‘अरे यार तुम्हें कुछ नहीं मालुम, यहां घर में बैठ कर सब आसान लगता है! कल कमिश्नर का दौरा है, पूरा आफिस एक टांग पर खड़ा है, काम साला कुछ नहीं, ड्रामेबाजी-ड्रामेबाजी!! शिट्!!’’ अजय ने ब्रेड पर ऐसे दांत मारा जैसे वो उसकी दुश्मन हो।
नीरा ने अजय की तरह देखा, आंखों में सवाल उभरे लेकिन कहा कुछ नहीं, अपनो के साथ यही तकलीफ है, खरोंचेगे उन्हें और निशान अपने मन पर उभरेंगे। सुबह-सुबह टेंशन का मतलब दिन का सत्यानाश। कह तो सकती थी कि यार मालुम तो तुम्हें भी कुछ नहीं है, बाहर से सब आसान लगता है, जबकि घर चलाने में ऐसी-तैसी हो जाती है।
अजय ने तेजी से जूस का गिलास खाली किया और वाॅशबेसिन की और चला गया।
‘‘क्या नीरा तुम कुछ देखती हो या नहीं? ये जूतों की रैक के पास कितनी मिट्टी जमा है!’’, अजय फिर चिड़चिड़ाया। नीरा सोचती है कि कितने बड़े गधे हैं जो कहते हैं कि धर्म खतरे हैं, हकीकत मैं तो इंसान की मुस्कराहट खतरे में है, चिड़-चिड, चिड़-चिड़ …. लगता है आदमी नहीं चैराहे पर लगा पुराना ट्रान्सफार्मर है जो हर समय स्पार्क करता रहता है।
‘‘क्या हो गया?’’, नीरा तेज कदमों से वहां पहुंची, देखा जूते की रैक के नीचे जूतों के साथ आ गयी मिट्टी पड़ी थी।
‘‘क्या करूं ये नई काम वाली है ही ऐसी! राधा होती तो ऐसा कभी नहीं होता, एक-एक काम इतने तरीके से करती थी कि जी खुश हो जाए।’’
‘‘राधा माई फुट!! राधा नहीं होगी तो दुनिया नहीं चलेगी। ये कामवाली की नहीं तुम्हारी लापरवाही है! तुम्हें उस पर निगाह रखनी चाहिए न!’’ अजय पैर पटकता हुआ बाहर निकल गया। नीरा समझ नहीं पायी कि क्या प्रतिक्रिया दे और चुपचाप उसे देखती रही।
नीरा ने खिड़की के पास आकर देखा, अजय अपने पी.ए. से गेट पर खड़ा कुछ बोल रहा था। ड्राइवर अपनी सीट पर बैठा था और एक हाथ से अपनी कार्बाइन संभालता कांस्टेबल दूसरे हाथ से कार का दरवाजा खोले खड़ा था। अजय के चेहरे पर अब भी वहीं तल्खी थी। वह पीछे वाली सीट पर बैठ गया तो कांस्टेबल ने दरवाजा बंद कर दिया और ड्राइवर के बगल में बैठ गया। पी.ए. भी दूसरी तरफ से आकर उसकी बगल में बैठ गया। नीरा ने एक गहरी सांस ली और डाइनिंग रूम में पड़े सोफे पर बैठ गयी।
सोफे के बिलकुल बगल में पीतल के कलशनुमा गमले में रखे रबर प्लांट के पत्ते को कुछ पल पुचकारा फिर सोफे के पीछे सर टिका कर आंखें मूंद लीं।
‘‘मैडम फिर वही औरत आयी है?’’ एक मिनट भी नहीं हुआ था कि गार्ड ने आकर टोक दिया।
‘‘हे भगवान अजय इसका मामला निबटाता क्यों नहीं? और इसको घर का पता किसने बता दिया, यहीं मेरा खून पीने चली आती है!’’
‘‘भगा दूं मैडम?’’ गार्ड ने पूछा।
‘‘तुम चलो मैं अभी आती हूं, आज उसको अच्छी तरह सुना ही दूं!!’’, नीरा ने कहा और गार्ड के चले जाने पर अपनी साड़ी ठीक करी और गैलरी में आ कर बाहर की ओर चल दी।
गेस्ट रूम के बाहर खरंजे पर वो बैठी हुई थी। बीस साल से ज्यादा नहीं होगी, लेकिन चेहरा मुरझाया हुआ, झुलसा हुआ सा रंग, हाथ पैर ऐसे दुबले जैसे हड्डियों पर खाल को कपड़े की तरह लपेट दिया गया हो, फीके से रंग की साड़ी पहने, सर ढके हुए और आंखों में दयनीयता का गहरा भाव जो नीरा को समझ नहीं आ रहा था कि अभिनय था या हकीकत। नीरा के गुस्से का सारा जायका खराब हो गया, अब इस निरीह से प्राणी को क्या सुनाए!
‘‘मेमसाहब एक बार साहब से मिलवा दो’’ उसने हाथ जोड़ कर कहा।
‘‘तुम ऑफिस जाओ, ये घर है। साहब वहीं मिलेंगे।’’ नीरा चाह कर भी अपने स्वर में वो कठोरता नहीं ला पायी जो वो चाहती थी।
‘‘मेम साहब, बहुत बार आॅफिस के चक्कर मार लिए, नहीं मिलते साहब, भगवा और देते हैं’’, उसकी आंखें शायद गीली हो गयीं, क्योंकि वो साड़ी के पल्लू से अपनी आंखें पोंछने लगी।
‘‘क्या मुसीबत है!’’, नीरा को मालूम है अजय को उसके काम में दखलंदाजी बिलकुल पसंद नहीं है फिर भी उसने पूछ ही लिया,
‘‘क्या प्रॉब्लम है तुम्हारी?’’
‘‘मेमसाहब! अपना अनाथालय है न, उसी के बराबर से खोखा है मेरा। हफ्ता भर पहले, सब सरकार लोग जे.सी.बी.-वे.सी.बी. लेकर आए थे, पूरा खोखा उठा ले गए। हम बहुत चिल्लाए, बहुत रोए लेकिन नहीं छोड़े, बोले यहां खोखा लगाना गलत है, ये सरकार की जमीन है। हम बोले साहब सरकार के पास तो पूरे देश की जमीन है हमारे लिए इत्ती सी जमीन छोड़ दोगे तो क्या होगा? लेकिन नहीं माने हमारा खोखा ट्रक में रख कर ले गए। हम बोले हमारा सामान तो दे दो तो बोले जब निशान लगा के गए थे तो सामान क्यों नहीं उठाया? मेमसाहब अपनी कसम, हमने नहीं सोचा था कि इस तरह उठा कर ले जाएंगे वर्ना हम किसी भी तरह सामान हटा लेते।’’, वो लड़की वहीं बैठ गयी और रोने लगी।
‘‘अरे सुनो! सुनो! तुम रो नहीं इधर आओ इधर बैठो!’’, नीरा ने बरामदे में पड़ी हुई कुर्सी खींचते हुए कहा।
‘‘नहीं मेमसाहब! हम यहीं ठीक हैं! आप किसी तरह साहब से मिलवा दो! हम साहब से पैर पकड़ कर कहेंगे कि कम-से-कम खोखे का सामान तो दिलवा दो, हम और कुछ नहीं तो फेरी लगा कर ही सामान बेच लेंगे। मेमसाहब हम भी उसी अनाथालय में पले हैं। दुनिया में हमारा कोई नहीं है। अनाथालय वालों ने हमारी शादी करा दी थी। लेकिन मेमसाहब हमारा आदमी कोई काम नहीं करता था। हम दूसरों के घरों में बरतन साफ करते और वो बस दारू पीता और हमें मारता। एक दिन हमने बोला कि दारू के लिए पैसे नहीं देंगे तो ये यहां ये देखिए खौलता पानी डाल दिया।’’
उसने अपनी बांह दिखायी, कोहनी के ऊपर की त्वचा बदरंग थी और त्वचा की कई पर्तें आपस में मिल कर एक अजीब-सी डरावनी आकृति बना रही थीं। उन आकृतियों को देख कर नीरा को चक्कर से आने लगे। वो खुद कुर्सी पर बैठ गयी।
‘‘किसी तरह हमने यहां अनाथालय में फोन किया, वो लोग हमको वापस लेकर आए, रहने को एक कमरा दिलवाया और फिर उन लोगों ने आपस में ही चंदा करके हमारा खोखा खुलवाया। अनाथालय में आने वाले लोग बच्चों के लिए टाॅफी, बिस्कुट, नमकीन खरीदते थे और हमारी रोजी-रोटी चल जाती थी। अब मेम साहब हम कहां रहेंगे? कैसे काम चलाएंगे? कैसे खाएंगे’’
‘‘तुम जब साहब से मिलने गयी थीं तो क्या हुआ?’’, नीरा ने उसके चेहरे की ओर देखते हुए पूछा।
‘‘वो अपनी सीट मिलते ही नहीं, एक बार मिले तो बोले अभी बिजी हैं, बाद में आना! हमने मिलने की जिद की तो पुलिस वालों ने बाहर धकिया दिया। बस मेमसाहब आप एक बार मिलवा दो।’’
‘‘तुम्हें यहां का पता किसने दिया?’’
‘‘साहब के ऑफिस में है कोई, हम नहीं जानते, हमने कई बार चक्कर मारा तो बोले मैं साहब के घर का पता बता देता हूं, किसी को मेरा नाम नहीं बताना, शायद तुम्हारा काम हो जाए।’’, उसका रोना रुक गया था और उसने पल्लू से अपना पूरा चेहरा पोंछ लिया।
‘‘हरिप्रसाद! हरिप्रसाद!’’, नीरा ने आवाज दी।
‘‘जी मैडम!’’ हरिप्रसाद सामने था, अधेड़ नौकर।
‘‘इसके लिए पानी ले आओ!’’
‘‘जी मैडम!’’
‘‘ठीक है तुम सब्र रखो मैं बात करती हूं! तुम्हारे लिए कुछ-न-कुछ जरूर हो जाएगा’’, इतना कहकर नीरा बैड रूम में आ गयी। मोबाइल उठाया और अजय का नंबर मिला दिया।
‘‘ओह नीरा! हाय! यार सुबह कुछ गरमी में आ गया सौरी!’’, अजय का स्वर अप्रत्याशित रूप से नर्म था।
‘‘इट्स ओके अजय! आई कैन अण्डरस्टैंड योर वर्क प्रैशर!’’, नीरा ने भी सब कुछ भुला कर अपना पूरा प्यार अपने स्वर में उड़ेल दिया।
‘‘माई डियरेस्ट वाइफ! लव यू सो मच! बताओ कैसे फोन किया? कुछ काम था?’’
‘‘नहीं कुछ काम तो नहीं …. बस ये पूछ रही थी कि … कि… ये खोखे वाली लड़की का क्या चक्कर है?’’
‘‘अरे वो फिर आ गयी? गार्डस् को बोलो उसे घसीट कर बाहर फैंके! ठहरो, मैं अभी गार्ड को फोन करता हूं!’’
‘‘अरे सुनो तो! उसका मैटर क्या है? उसके खोखे का सामान वापस दिलवा दो न!’’
‘‘नीरा!! बी इन योर लिमिट्स!!’’, अजय भड़क गया, पल भर पहले प्यार की नर्म बयार से भरा उसका स्वर अचानक भट्टी से निकली हवा की तरह भभक उठा।
‘‘मतलब!’’
‘‘नीरा! तुम्हें जो शाॅपिंग करनी हो करो, जहां जाना हो जाओ, जितनी पार्टी देनी हो दो, बच्चों के लिए जो करना हो करो, जो मर्जी आए वो करो लेकिन मेरे काम में दखल देने की सोचो भी मत!!’’
‘‘मैं तुम्हारे काम में दखल नहीं दे रही लेकिन एक इंसान के नाते मेरा भी कुछ वजूद है। अगर मुझे कुछ महसूस होता है तो मैं अपनी आवाज तुम तक पहुंचा सकती हूं!’’
‘‘एक इंसान होने से पहले तुम मेरी पत्नी हो! और वही तुम्हारी असली पहचान है! वाइफ ऑफ़ अजय मिश्रा पी॰ सी॰ एस॰!! अपनी उसी पहचान तक सीमित रहो, एक्टिविस्ट बनने की कोशिश नहीं करो।’’
‘‘अजय बात एक्टिविस्ट बनने की नहीं है! वो लड़की वाकई परेशान है। तुम्हें उसकी मदद करनी चाहिए!’’
‘‘नीरा! नीरा! तुम्हारी अक्ल क्या वाकई घुटनों में ही है? मैं क्या फ्रैंच में बोल रहा हूं जो तुम्हारी समझ नहीं आ रहा है? उस लड़की को अभी बाहर फिंकवाओ, अगर में इस तरह मदद करने लगा तो सुबह से शाम तक बस मदद ही करता रहूंगा। मेरे पास दिन में ऐसे 320 लोग आते हैं, उनसे डील करना मुझे आता है। और तुम अपने काम से काम रखो, फिजूल में मेरे को टैंशन मत दो। अच्छा छोड़ो! कूल डाउन! वो होटल इन्द्रप्रस्थ में डायमंड की सेल लगी है वहां से कुछ बढि़या ज्वैलरी खरीद कर लाओ। ओ. के.? अच्छा अब फोन रखो। मुझे कुछ काम करना है!’’
‘‘तो तुम उस लड़की के लिए कुछ नहीं करोगे?’’, नीरा का स्वर पत्थर की तरह सख्त हो गया।
‘‘ओह गॉड! हैव यू गॉन मैड! फोन रखो मेरा दिमाग मत खराब मत करो!’’
‘‘अजय, शायद तुम भूल रहे हो मैंने वकील की प्रैक्टिस तुम्हारे और बच्चों के लिए छोड़ दी थी …. मेरी सारी किताबें आज भी अलमारी में भरी हैं … सिर्फ थोड़ी सी धूल ही हटानी है!’’
‘‘तो तुम मुझे धमकी दे रही हो?’’
‘‘हां तुमको ये धमकी लगती है तो धमकी ही सही …. मि॰ अजय मिश्रा पी॰सी॰एस॰, एस॰डी॰एम॰ साहब, आप या तो उस लड़की का खोखा वापस देने की व्यवस्था करें वर्ना … मैं नीरा मिश्रा, बी॰ए॰, एल॰एल॰बी॰, गोल्ड मैडलिस्ट, बार काउन्सिल नं 04890 आपको कोर्ट ऑफ़ लॉ में मिलूंगी!!!!’’, नीरा ने फोन पटक दिया। उसकी आंखों में चिरमिराहट हो रही थी, सांस तेज चल रही थी, सर घूम रहा था लेकिन पहले कभी उसे अपने भीतर ऐसी ताकत का अनुभव नहीं हुआ था।