अनिता रश्मि के नव्यतम कथा संग्रह “हवा का झोंका थी वह” का लोकार्पण प्रभात प्रकाशन के सभागार में संपन्न हुआ। पुस्तक प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित की है। यह लेखिका का छट्ठा कथा संग्रह (14वीं पुस्तक) है।
“हर आदमी के अंदर दो जंगल हुआ करते हैं। एक खूबसूरत, दूसरा भयावह। साहित्यकार इन्हीं दो को बचाने के लिए लिखता है। जंगल की खूबसूरती बचाने के लिए और जंगल की भयावहता, जंगलीपन से मनुष्यता को बचाने के लिए ही लिखती रही हूँ मैं।”
अनिता रश्मि ने अपनी रचनात्मकता के बारे में बताते हुए यह लेखकीय वक्तव्य दिया।
अध्यक्षता डाॅ. अशोक प्रियदर्शी ने की। मुख्य अतिथि डाॅ, विद्याभूषण, विशिष्ट अतिथि डाॅ. माया प्रसाद व निरंजन प्रसाद श्रीवास्तव थे।
चर्चा मे शामिल प्रसिद्ध उपन्यासकार राकेश कुमार सिंह के शब्द थे,
“अनिता रश्मि की सहज कहानियाँ रचना सामर्थ्य, मिट्टी, प्रेम और अपने समय, समाज में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप करती हैं। ये कहानियाँ हवा के झोंके की तरह केवल छूकर गुजर नहीं जाती हैं, बल्कि पाठकों के पास ठहर पाठक को संवेदित भी करती हैं।”
चर्चा में शामिल दूरदर्शन के पूर्व निदेशक, साहित्यकार पी. के. झा ने कहा,
“कहानी और लेखन को समझने के लिए लेखक को समझना आवश्यक है। कथाओं में फोटोग्राफिक डिस्क्रिप्शन है।”
चर्चाकार सुप्रसिद्घ कथाकार पंकज मित्र के अनुसार ‘बड़ी माँ की गठरी’ अनाम शहीद पर लिखी एक मुक्कमल कहानी है। गठरी एक विरासत की तरह है यहाँ। इसका अंत प्रभाव और रोचक है। कहानी के कहन के संबंध में भी उन्होंने महत्वपूर्ण बातें कहीं।
विशिष्ट अतिथि डाॅ. माया प्रसाद ने गजल की एक पंक्ति से शुरूआत की –
जब उठाते हैं कलम
चूड़ियोंवाले हाथ…
उन्होंने स्त्री लेखन के बारे में बताते हुए कुछ कथाओं पर संक्षेप में विचार रखे।
निरंजन प्रसाद श्रीवास्तव ने कथा संग्रह पर हेमिंग्वे के माध्यम से सारगर्भित बातें रखीं। उन्होंने पुस्तक को सफल बताया व चंद कथाओं पर अपने विचार रखे।
डाॅ. प्रियदर्शी जी एवं विद्याभूषण जी की वक्तव्य सभी लेखकों के लिए मार्गदर्शक की तरह उपयोगी थे।
स्वागत कवयित्री, कथाकार रश्मि शर्मा व संचालन वरिष्ठ पत्रकार, कवि घनश्याम श्रीवास्तव ने की।
सभागार में आकाशवाणी के कुमार ब्रृजेन्द्र, प्रवीण परिमल, चंद्रिका ठाकुर देशदीप, राकेश रमण, मयंक मुरारी, नीरज नीर, संगीता कुजारा टाक, शोधार्थी
गुलाचों कुमारी, जयमाला आदि उपस्थित थे।
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