बाल कहानीः चकमक लाल पत्थरः शैल अग्रवाल

 

       चकमक लाल पत्थर 

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स्कूल से आते ही, बस्ता कोने में पटककर टीना बगीचे के उसी पिछले हिस्से में दौड़ गई, जहाँ उसकी गुड़ियों का घऱ था। असल में घर नहीं, था तो वह रौबी रैबिट का झोपड़ा ही, परन्तु  जब से पड़ोसियों की फैट कैट रौबी रैबिट को खा गई है, टीना उसे  गुड़ियों का घर ही कहती है।  इतना रोई थी टीना उस दिन कि सभी ने मिलकर तय किया कि दूसरा खरगोश तो नहीं  ही पाला जाएगा और तुरंत ही बच्चों ने मम्मी पापा के साथ मिलकर, उस झोपड़े को गुडियों के एक आलीशीन घर में तब्दील कर दिया था। मम्मी ने सुन्दर-सुन्दर परदे सिल दिए और पापा ने लाइट के साथ-साथ  दरवाजे परअसली डोर बेल तक लगा दी,  जो दबाने पर चिड़ियों जैसी चीं-चीं  करती थी। सोफा, पलंग, किचन, डाइनिंग टेबल सब लगाकर तैयार हो गया  एक सुन्दर सा घर, जहां अब टीना की तीनों गुड़िया बाकी सभी खिलौनों के साथ आराम से तुरंत ही रहने भी लगी थीं। चीकू बगीचे की रौकरी से ढूंढकर एक  चिकना-चिकना  लाल पत्थर उठा लाया, जो कौफी टेबल के लिए बिल्कुल ही सही था और टीना,सोनू और चीकू ने मिलकर उसके  ऊपर गुड़िया के सारे कप प्लेट भी सजा दिए,  जिससे कि आराम से दिनभर खाया- पिया  जा सके।

अब टीना सुबह तीनों गुड़ियों को बाई-बाई करके ही  स्कूल जाती और शाम को तीनों को बिस्तर में सुलाकर ही अपने कमरे में वापस जाकर होमवर्क कर पाती।तीनों गुड़िया सिन्डी, कार्ला और तारा भी साथ-साथ मिलजुलकर वहां वैसे ही प्यार से रहतीं, जैसे कि वह, सोनू और चीकू रहते हैं साथ-साथ एक ही कमरे में। यह बात दूसरी है कि अभी भी वे आए दिन ही लड़ भी लेते हैं, जैसे कि पहले लड़ा करते थे क्योंकि  अब भी तो वे एक दूसरे की पेंसिल और रबर खो ही देते हैं, और जरा-जरा सी बात पर अलमारी भी उलटपुलट कर देते हैं । पर एक दूसरे की होमवर्क में मदद भी तो करते हैं  और  साथ – साथ खेलते भी तो हैं । मम्मी पापा को भी पता नहीं चल पाता कि कब उनकी लड़ाई हुई और कब दोस्ती, क्योंकि कट्टी होते ही तुरंत मिल्ली भी तो हो ही जाती  है उनकी आपस में।  सच्ची बात तो यह है कि अब तो अलग-अलग कमरों में रहना उन्हें अच्छा ही नहीं लगता, इसीलिए तो एक कमरा पढ़ने का, एक खेलने का और एक सोने का कर लिया है उन्होंने। मम्मी पापा ने भी तो यही समझाया था कि एक दूसरे के साथ चीजें बांटने से, साथ-साथ रहने और एक दूसरे की मदद करने से आपस में प्यार खुद-ब-खुद बढ़ता ही जाता है।

कल शाम भी वे तीनों देर तक खेले थे गुड़ियों के घर में। चीकू ने अपनी नयी लाल कार लाकर गुड़िया के पोर्च में खड़ी कर दी  थी और रौनी ने पावर रेन्जर का  एस्ट्रोनौट सूट सैन्डी को पहना दिया था और बाकी दोनों गुड़िया के हाथ में  पिस्तौल  दे कर उन्हें पुलिस बना दिया गया, जो बाकी सारे खिलौनों की फैट कैट से या जो भी उन पर आक्रमण करेगा,  रक्षा करेंगी। एक बात तो थी सोफे पर बैठी तीनों गुड़िया बहुत ही सुन्दर लग रही थीं और  सूरज की तेज किरणों में  लपलप करता वह लालरंग का चकमक पत्थर भी।

अगले दिन स्कूल से लौटते ही, दूर से ही टीना ने देख लिया था कि कार्ला और तारा तो वहीं सोफे पर बैठी थीं पर सैन्डी नहीं थी। पास आकर तो उसका मुंह आश्चर्य से खुला का खुला ही रह गया क्योंकि चीकू का वह चकमक लाल पत्थर भी वहां नहीं था और सारे कप, प्लेट बेतरतीबी से जमीन पर बिखरे पड़े थे। जरूर चीकू ने ही किया होगा यह सब… और परेशान करने के लिए सैन्डी को भी कहीं छुपा दिया होगा, टीना ने थोड़े गुस्से और थोड़ी झुंझलाहट के साथ अगले ही पल सोचा। पूरा खिलौनों का डिब्बा उलट-पुलट दिया , पर सैन्डी का तो कहीं पता ही नहीं था और ना ही उस लाल पत्थर का। पूछने पर चीकू ने बताया, ‘सच दीदी, मैने तो कुछ भी नहीं छुपाया ‘ फिर सोनू ने भी मना कर दिया यह कहकर कि-‘ मुझे अपना मैथ्स का होमवर्क करने दो टीना, मेरे पास फुरसत नहीं है कि तुम्हारी गुड़िया और पत्थरों को  ढूंढता फिरूँ।’

‘सैन्डी को सुबह जरूर ढूंढ देंगे। वैसे भी रात के अन्धेरे में तो बगीचे में कुछ भी दिखाई ही नहीं देगा।  कहां जा सकती है तुम्हारी गुड़िया …।  ‘ मम्मी ने भी उसे यही समझाया ।

‘ कहीं स्पेश शटल में बैठकर, चांदपर घूमने तो नहीं चली गयी एस्ट्रोनाट सैन्डी ?’ सोनू ने मजाक किया, ‘ और फिर अब तो उसने नया एस्ट्रोनौट सूट भी पहन रखा है, टीना!’

टीना को अपने मसखरे भाई का मजाक ज़रा भी पसंद नहीं आया..’.कहीं फैटकैट तो सैन्डी को नहीं ले गयी?-‘ टीना का सोच-सोचकर बुरा हाल हो रहा था। तुरंत ही अपनी दोनों गुड़िया कार्ला और तारा को लेकर वह वापस कमरे में आ गई और उसी बिस्तर के पास वाली  टेबल पर बिठा दिया जिस पर वे हमेशा बैठी रहा करती थीं। सुबह का इन्तजार करते-करते चुपचाप सो  गयी टीना, अब तो वह सुबह ही सैन्डी को मम्मी के साथ जाकर ढूंढ  पाएगी।

ठीक आधी रात को टीना की आँखें अचानक ही खुल गयीं। पानी के लिए हाथ बढ़ाया तो टीना ने देखा कि  टेबल पर कार्ला और तारा के बगल में चीकू का वही लाल पत्थर वापस रखा हुआ था और यही नहीं  लपलप भी कर रहा था। अरे यह कहां से आया, टीना सोच तक पाए, उसके पहले ही, चमकीले लाल पत्थर से नीली, हरी, लाल,पीली रोशनी की किरणें निकलनी शुरू हो गयीं और तब  देखते-देखते ही वह पत्थर बीच से खुला और उसका ऊपर वाला आधा हिस्सा ऊपर को उठ गया बिल्कुल एक उड़न तश्तरी की तरह या फिर वैसे ही जैसे एक डिबिया का ढक्कन खोल दिया जाए। अगले पल ही उसे और भी ज्यादा  आश्चर्य चकित करती, उसमें से सैन्डी बाहर निकल आई  और जल्दी-जल्दी उसने तारा व कार्ला के पास जाकर उनसे कुछ बातें की और फिर तीनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े वापस उसी उड़न तश्तरी की तरफ चल दीं। सोनू और चीकू अभी भी इस सबसे बेखबर गहरी नींद सो रहे थे, मानो कुछ हुआ ही न हो। पर टीना ने एक मिनट भी वक्त बरबाद नहीं किया और तुरंत ही वह भी उस अद्भुत स्पेश शटल में दौड़कर जा बैठी । यह अन्दर से काफी बड़ा था और बहुत सारे खिलौने सीट बेल्ट लगाए पहले से ही वहां बैठे हुए थे। अब तो सैन्डी, कार्ला और तारा के साथ-साथ टीना ने भी अपनी सीट बेल्ट पहन ली। बैठते ही स्पेश शटल एक बड़े झटके और तेज आवाज के साथ ऊपर को उठा और तेजी से उड़ चला। तीर की तरह  खिड़की से बाहर निकलकरआकाश में ऊपर को उड़े जा रहे थे वे सब, मानो चांद पर पहुंचकर ही दम लेगा यह । टीना को थोड़ा-बहुत डर तो जरूर लगा, पर अपनी गुड़ियों का रहस्य तो जानना ही  था।  कई सुन्दर नीली सफेद बादलों की झीलें और आग के गोले व ऊंचे ऊंचे चौकलेट के पहाड़ व आइसक्रीम और सोडा पॉप की नदियां थीं रास्ते में। एक जगह तो तारों का एक झुंड हंसहंस कर फुटबाल खेलता भी दिखा टीना को। सभी को पार करने के बाद  वह स्पेशशटल एक खूबसूरत चांद जैसी चमक वाले, नीली-पीली रौशनी भरे मैदान में आकर रुक गया, जिसके एक तरफ  पौपकौर्न और आइसक्रीम के पेड़ थे जिनपर कोन भर-भरके पौपकौर्न औरआइसक्रीम लटक रहे थे और दूसरी तरफ चिप्स के झाड़ थे जिनपर तरह तरह के और मजेदार शकलों के चिप्स लटके हुए थे, जिन्हें जब जी चाहे खिलौने तोड़-तोड़कर ले ले रहे थे।  टीना की उत्सुक आँखें आसपास और चारो तरफ यह आश्चर्य जनक दृश्य देख रही  थीं और वह मन ही मन सोच रही थी- ‘काश्, सोनू और चीकू भी यहां होते, तो उन्हें भी कितना मजा आता!’

तरह तरह के खिलौने चारो तरफ दौड़-भाग रहे थे। एकाध ने तो टीना को वेव भी किया।

वह खिलौनों का देश था। टीना को लगा कि देश बेहद ही साफ-सुथरा और सुन्दर था।पर चारो तरफ खिलौने ही खिलौने … घर, पेड़, मकान सब खिलौनों के…कुछ भी उसकी पृथ्वी, उसके शहर, उसके घर जैसा नहीं। हर चीज बहुत ही सलीके से सजी और सुचारु रूप से चलतीहुई …कार ट्रैफिक कहीं किसी चीज में कोई जाम वगैरह नहीं था।

उतरते ही उन्हें एक बड़े हौल से गुजरना पड़ा, जहां बैठा एक बड़ा भालू जो कस्टम औफिसर जैसा दिखता था, एक-एक करके सबके हाथों या पीठ पर स्टैम्पलगा रहा था जैसे कि अपने यहां नए देशों में जाने पर पासपोर्ट पर लगाते  हैं। और एकखरगोश भी चुपचाप पैड पकड़े उसकी बगल में बेहद सावधानी की मुद्रा में खड़ा था और हर गुजरते खिलौने को बेहद सतर्कता से सूंघ भी लेता था। उसका असिसटैंट होगा जरूर-टीनाने सोचा। फिर एक बन्दर लाल रंग का सफेद स्ट्राइप वाला सूट-कैप और सफेद बो  टाई  पहने आया और एक बड़ी सी बस में बिठाकर उन सबको होटल की तरफ ले चला जहां खिलौनों कीएक महत्वपूर्ण सभा चल रही थी। वहां चूहों के एक बैंड ने देश की राष्ट्रीय धुन बजाकरउनका स्वागत किया और उन्हें एक ठंडा-ठंडा हरे रंग का शर्बत भी दिया गया जो बेहदस्वादिष्ट था।

टीना ने देखा ह़ॉल खचाखच भरा हुआ था और चारो तरफ गोलाकार मेज केकिनारे बैठे सारे खिलौने बड़े ध्यान से उस गुड़िया की बात सुन रहे थे जो टेबल परहाथ पीट पीटकर बता रही थी कि कैसे खिलौनों को अब अपने भविष्य के बारे में  भीकुछ-न-कुछ सोचना ही होगा… एक नया देश बनाना ही होगा, क्योंकि ये पृथ्वी के आदमीबड़ी तेजी से अपने ही घर, पृथ्वी को नष्ट किए जा रहे हैं।

टीना को उनकी बातेंसुनकर बड़ा दुख हुआ। तुरंत ही उसकी बगल में बैठा एक सीधा-सा लगता टेडी बियर उठ खड़ाहुआ और बेहद चिंतित स्वर में   घबराकर  बोला पर हम उन प्यारे-प्यारे बच्चों को कैसेवहां पृथ्वी पर छोड़ सकते हैं, जो हमें इतना अधिक प्यार करते हैं?

भालू ने भी तुरंत ही,  उतनी ही चिन्ता के साथ जवाब दिया,’ हां बच्चों को बचाना तो बेहद जरूरी है पर  इन बच्चों ने भी तो एक भी आदत नहीं सुधारी अभी तक! चीजों की आज भी वैसे ही बरबाद करते हैं जैसे कि उनके मां-बाप किया करते थे, और वैसे ही चारो तरफ गन्दगी भी। न तो कागज फेंकते समय एक बार सोचते हैं  और ना ही कूड़ा, फिर हम उन्हें यहां कैसे अपने साथ इस देश में ला सकते हैं?’

सबकी आंखें यकायक टीना की तरफ घूम गयीं। टीना अब बेहद शर्मिन्दा महसूस कर रही थी। कूड़ा तो वह भी बहुत करती है, पर आगे हरगिज़ नहीं करेगी। ना ही कागज फालतू में बरबाद करेगी और जो चीज रिसाइकिल हो सकती है उसे रिसाइकिल भी करेगी। सोचते ही सब खिलौने उसकी बात समझगए और जोर-जोर से ताली बजाकर उसका स्वागत और समर्थन किया उन्होंने।

खिलौने मन की बात जान जाते हैं, देखकर कोई आश्चर्य नहीं हुआ टीना को, खुशी ही हुई-तभी तो उन्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं पड़ती और वे हमारे इतने अच्छे मित्र होते हैं। टीना को अब उनकी सारी बातें समझ में आ रही थीं। जो वह कह रहे थे वह और जो वे सोच रहे थे वह भी । अब तो उसे अपने  खिलौनों के साथ खेलने में बहुत आनन्द आएगा-टीना ने मन ही मन सोचा। अब उसे उन सभी प्यारे-प्यारे  खिलौनों पर बेहद प्यार आ रहा था, इतने सारे खिलौने उसने एक साथ कभी नहीं देखे थे। अन्त में सर्वसम्मति से यह निश्चय किया गया कि बच्चों को एक मौका और दिया जाएगा अपनी सारी गन्दी आदतें सुधारने के लिए। उसके बाद वह सभा समाप्त हो गयी। और वही स्पेस शटल उन सभी खिलौनों को वापस बच्चों के पास छोड़ गया जो पृथ्वी पर वापस आना चाहते थे और उन्ही बच्चों के साथ रहना चाहते थे, जो उन्हें बेहद प्यार करते थे। टीना ने देखा कि सैन्डी, कार्ला और तारा भी उसके बगल में आ बैठी थीं। जल्दी ही वे चारो अपने कमरेमें वापस भी आ गयीं।

टीना अब कूड़ा इधर-उधर नहीं फेंकती। चीजों का भी ख्याल रखती है।बेमतलब कुछ भी बरबाद नहीं करती, पानी तक नहीं। भाइयों को , अपने सहपाठी और मित्रोंको भी यही समझाती और  सिखाती रहती है। और हाँ, खो जाने पर भी टीना अब गुड़ियों कोवापस नहीं ढूंढती क्योंकि वह जानती है कि वे वापस लौट आएँगीं और जब भी मनचाहे वहभी उनके साथ घूमने जा सकती है उनके देश तक। हां, किसी के बगीचे में, या समुद्र केकिनारे, असल में कहीं भी जब-जब कोई लाल चिकना पत्थर  टीना देखती है, तो मन ही मन मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती,- क्या पता इसके अन्दर कौन-कौन-सा खिलौना बैठा हो? यह बात दूसरी है कि सोनू और चीकू आजतक बारबार समझाने पर भी  उसकी एक बात का भी विश्वास नहीं करते और  कहते हैं कि उस रात उसके साथ जो कुछ भी हुआ, मात्र एक सपना ही था, पर असली सच तो टीना के खिलौनों को छोड़कर, कोई भी नहीं जानता, खुद टीना भी नहीं !…

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