दो बालगीतः प्रभुदयाल श्रीवास्तव


दादा दादी बहुत रिसाने

दादा दादी आज सुबह से,
बैठे बहुत रिसाने हैं
नहीं किया है चाय नाश्ता,
न ही बिस्तर छोड़ा है।
पता नहीं गुस्से का क्योंकर,
लगा दौड़ने घोडा है।
अम्मा बापू दोनों चुप हैं,
बच्चे भी बौराने हैं।

शायद खाने पर हैं गुस्सा,
खाना ठीक नहीं बनता।
या उनकी चाहत के जैसा,
सुबह नाश्ता न मिलता।
हो सकता है कपडे उनको,
नए नए सिलवाने हैं।

 कारण जब मालूम पड़ा तो,
सबको हँसी बहुत आई।
बापूजी का हुआ प्रमोशन,
बात उन्हें न बतलाई।
डाँट रहे अम्मा बापू को,
क्यों न होश ठिकाने हैं।
अम्मा समझीं बापू ने यह,
बात उन्हें बतला दी है।
बापू समझे माँ ने उनके ,
कानों तक पहुंचा दी है।
अम्मा बापू  से मंगवाली ,
माफ़ी  तब ही  माने हैं।


नानी मुझसे नहीं छुपाओ
नानी मुझसे नहीं छुपाओ,सच्ची सच्ची बात बताओ।
नाना ने नानी तुमको,कभी चिकोटी काटी क्या?
अक्ल नापने की मशीन से,अक्ल तुम्हारी नापी क्या?
याद करो अच्छे से नानी,हँसकर मुझे नहीं बहलाओ।
क्या नानाजी तुम्हें घुमाने,पार्क कभी ले जाते थे?
कहीं किसी ठेले पर जाकर,चाट तुम्हें खिलवाते थे?
इसमें डरना कैसा नानी,बतला भी दो न शरमाओ।
कभी गईं हो क्या तुम नानी,नाना के संग मेले में?
दोनों कहीं किसी होटल में,बैठे कभी अकेले में?
भेद नहीं खोलूँगी नानी,मुझसे बिलकुल न घबराओ।
सुनकर हँसी जोर से नानी,बोली बेटी हां -हाँ -हाँ।
सब करते हैं धींगा मस्ती,नाना करते क्यों ना- ना।
अब ज्यादा न पूछो बिट्टो,मारूँगी !अब भागो जाओ।

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