लेखनी-अक्तूबर/ नवंबर 2014
सोच और संस्कारों की सांझी धरोहर
” एक इस आस पे अब तक है मेरी बन्द जुबाँ,
कल को शायद मेरी आवाज़ वहाँ तक पहुँचे । ”
-गोपाल दास नीरज
वर्ष 8-अंक 89
( धर्म-अधर्म)
इस अंक में कविः कविता धरोहरः रामधारी सिंह दिनकर। कविता आज और अभीः मीना चोपड़ा, बीनू भटनागर, उपासना सियाग, सीताराम गुप्ता, शैल अग्रवाल, सरोज व्यास, सुनील कुमार परीट । माह विशेषः डॉ. रमा द्विवेदी। गीत और गजलः अनिरुद्ध सिन्हा। माह की कवियत्रीः पुष्पिता अवस्थी। बाल कविताः शील निगम।
रचनाकारः कविता में इन दिनोः ओम निश्चल। परिचर्चाः शिवेन कृष्ण रैणा। मंथनः गोवर्धन यादव। कहानी समकालीनः अशोक गुप्ता। कहानी समकालीनः महेन्द्र दवेसर। कहानी समकालीनः सुशांत सुप्रिय। धारावाहिकः शैल अग्रवाल। लघुकथाः अनीता रश्मि। हास्य-व्यंग्यः संजीव निगम।
In the English Section : Favourite Foreverः Percy Blyth Shelley. Poetry Here & Now: Ashok Gupta Story Classic: Maxim Gorky . Talk About: Narendra Modi: Basudev Adhikari. Kids’ Corner: Story: Shail Agrawal. Poem: Spike Milligan.
माह का विचारः ‘ बहुमत और अल्पमत को परिभाषित करने के उद्धेश्य से धर्म का इस्तेमाल गलत है। धर्म बांटता नहीं, एकता सभी धर्मों का मूल स्वभाव है। यदि मैं एक तानाशाह होता तो धर्म और राष्ट्र अलग-अलग होते। मैं अपने धर्म के लिए जान तक दे दूंगा, लेकिन यह मेरा निजी मामला है। राज्य का इससे कुछ लेना देना नहीं है। एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कल्याण, स्वास्थ्य, संचार, विदेश संबंध, मुद्रा इत्यादि का ध्यान रखेगा, मेरे या आपके धर्म का नहीं। ‘
– लाल बहादुर शास्त्री
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