उसने कभी अपनी माँ को नहीं देखा, देखा भी हो तो उसे याद नहीं। एक फोटो जरूर रहती है पापा के कमरे में, बस।
कहते हैं साल भर की ही थी जब माँ तारा बन गई थीं। हर रात वह तारों में माँ को ढूँढती रहती और फिर थककर उदास सो भी जाती। बड़ा गुस्सा आता उसे भगवान पर – सब बच्चों की माँ हैं , उसी की माँ को आखिर क्यों तारा बना दिया उन्होंने !
एक ऐसी ही रात थी जब वह बेहद उदास और अकेली थी। पापा अभी-अभी दूध का गिलास पिलाकर , गुडनाइट कहकर सोने चले गए थे और एक बार फिर वह अपनी गुड़िया सूजी के साथ अपने कमरे में अकेली थी। सूजी जो न उससे बात करती थी, न मुस्कुराती थी। बस बड़ी बड़ी आँखों से कहीं भी एकटक देखती रहती। कई बार तो गुस्से में बिस्तर से भी नीचे फेंक दिया था रिंकी ने सूजी को। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ और अब एकबार फिर सूजी बिस्तर के नीचे जमीन पर पड़ी थी और रिंकी अकेली अपने बिस्तर पर अकेली रोती-बिसूरती ।
पर आज पहली बार भगवान से लड़ने और सूजी पर लात घूँसे बरसाने के बजाय रिंकी ने प्रार्थना की थी कि क्या एकबार भगवान माँ को उससे मिलवा सकता है जो तारा बनकर उन्ही के पास रहती है अब? भगवान ने मानो तुरंत ही उसकी प्रार्थना सुन ली। एक सुखद आश्चर्य हुआ। एक तारा चुपचाप आया और उसकी खिड़की पर बैठ गया। तेज इतना कि आँखें न टिकें और शीतल व सुखद इतना कि सम्मोहन की-सी स्थिति में पहुँच गई रिंकी।
‘कौन ‘हो तुम? ‘ अँधमुदी आँखों से उसने पूछा-‘ अवश्य ही मेरी माँ हो… सिर्फ माँ का सानिध्य ही इतना सुखद हो सकता है? ‘
तारा खिलखिलाकर हँस पड़ा और सुमधुर वाद्ययंत्र की मधुर लहरियों से उसका कमरा गूँजने लगा।
‘ हमारे दिल्यलोक में रिश्ते नहीं होते। हम सब बस दिव्य आत्माएँ हैं, जो धरती और आकाश के बीच कभी तारों के रूप में तो कभी सशरीर विचरती रहती हैं। जब धरती पर सशरीर तब तो माँ बाप भाई बहन, वरना बस ज्योति पुंज। यदि सुख मिलता है तो तुम माँ ही कह लो मुझे।‘
रिंकी अब खुश थी, बेहद खुश।
‘ वादा करो रोज आओगी मिलने। मेरे साथ खेलने? ‘
मधुर ‘ हाँ ‘ सुनकर तो वह उछलकर उठ ही बैठी। हाथ बढ़ाया तो वह तारे को छू सकती थी और वह तारा भी खिलखिलाकर कभी पास आता तो कभी दूर चला जाता। रात भर यूँ ही खेलता रहा तारा उसके साथ।
सबने देखा अब रिंकी हमेशा खुश रहती है और सूजी को भी लात मारकर गुस्से में नीचे नहीं गिराती।
उसे पता जो चल गया है कि ये तारे भी गुस्सैल बच्चों के साथ खेलना पसंद नहीं करते और हाँ एक बात और रोज रात को भगवान की प्रार्थना और उनका आभार कहना भी नहीं भूलती रिंकी अब तो । आखिर वही तो हैं, जो मिलवाते हैं प्रिय परिजन और मित्रों से इस धरती पर हमें, भले ही वे तारे बनकर हमसे दूर क्यों न जा चुके हों।…
कहाँ पे चंदा
कभी बॉल सा इत उत घूमे
नीबू की फांक बना कभी ललचाए
कभी फूल के कुप्पा हो जाए
कभी सर्कस के जोकर-सा
पेड़ पहाड़ी चढ़े, दौड़े-भागे
नदी में सोए, जमीं पर जागे
रातभर देखा हमने इसे खेलते
बहुत ग़ज़ब का है खिलाड़ी बंदा
चलो, छत पे चढ़कर ढूंढे इसको
छुपा आज की रात कहाँ पर चंदा !