चांद परियाँ और तितलीः दिवाली -तरुण अग्रवाल, शैल अग्रवाल

भगवान श्री राम के अयोध्या आगमन पर दीप जलाकर उनका स्वागत किया गया और खुशियाँ मनायी गयीं.

भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पूर्व चतुर्दशी को किया था. ब्रजवासियों ने दीप जलाकर खुशियाँ मनायीं.

राक्षसों का विनाश करने के लिए देवी माँ ने महाकाली का रूप धारण किया. राक्षसों का वध करने के बाद भी जब माँ महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों के आगे लेट गये. भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध शांत हो गया. उनके शांत रूप माँ महालक्ष्मी की पूजा की गयी. इसी रात इनके रौद्ररूप माँ महाकाली की पूजा का भी विधान है.

कार्तिक अमावस्या के दिन सिखों के छठवें गुरु हरगोविन्द सिंह जी बादशाह जहाँगीर की कैद से मुक्त होकर अमृतसर वापस लौटे थे.

500 ईसा वर्ष पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार उस समय भी दीपावली मनायी जाती थी. उस मूर्ति में मातृ-देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं.

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में हजारों-लाखों दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था.

सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीपावली के दिन हुआ था. असंख्य दीप जलाकर खुशियाँ मनायी गयीं थीं.

ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार कार्तिक अमावस्या के अवसर पर मंदिरों और घाटों पर (नदी के किनारे) बड़ी संख्या में दीप जलाये जाते थे.

अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के ही दिन शुरू हुआ था.

जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने भी दीपावली के दिन ही बिहार के पावापुरी में अपना शरीर त्यागा था.

पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुए. इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय ‘ॐ ‘ उच्चारित करते हुए समाधि ले ली थी.

आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया.

मन पावन और तन पावन
जगमग हैं घर आंगन
खुशियों ने देखो कितने रूप लिए

बच्चों क्या आपने कभी दिवाली की रात पटाखे छोड़ते, मिठाई खाते …सारी मौज-मस्ती और धूम-धड़ाके के बीच सोचा है कि पहली दिवाली कब, कैसे, कहाँ और किसने मनाई थी… आखिर कैसे और कब शुरू हुआ होगा यह दिवाली का त्योहार ! भारत के भिन्न-भिन्न प्रान्तों में अलग-अलग कहानियाँ प्रचिलित हैं – उत्तर भारत में मानते हैं कि भगवान राम जब लक्ष्मण और सीता के साथ चौदह बर्ष का बनवास पूरा करके अयोध्या वापस लौटे तो उनके स्वागत में हर्षातिरेक से झूमती प्रजा ने पूरी अयोध्या को फूल पत्तों से सजाया। सैकड़ों दीप जलाए …और घर घर मिठाई बांटी। और तब उस दिन खुशी और दियों की रौशनी से जगमग अमावस की वह अँधेरी रात पूर्णिमा से भी ज्यादा उजेरी और झिलमिल हो गई थी। तभी से अंधेरे पर रौशनी की…पाप पर पुण्य के विजय का प्रतीक बन गई है दिवाली ; क्योंकि रावण का वध करके , दुनिया को सभी अन्यायी राक्षसों से मुक्ति दिलाकर राम ने सिद्ध कर दिया था कि जीत तो हमेशा अच्छाई की ही होती है। झूठ या पाप कितना भी शक्तिशाली क्यों न लगे, अँततः उसे हारना ही पड़ता है। आज भी हम इन्ही आदर्शों को जीवित रखने के प्रयास में , वैसे ही सैकड़ों दीप जलाकर हर्षोल्लास के साथ दिवाली का त्योहार मनाते हैं। दिवाली का यह त्योहार पांच दिन का होता है। धनतेरस, छोटी दिवाली, दिवाली फिर पड़वा या गोबर्धन और अंत में भैया दूज।दिवाली पर घर में लक्ष्मी पूजन किया जाता है और फिर बड़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। लक्ष्मीजी धन वैभव और सुख शान्ति देती हैं जिससे कि हम सुखी रह सकें और निश्चिन्त होकर अपना और दूसरों का भला कर सकें…सत्कर्म कर सकें। बंगाल में मां काली की पूजा की जाती है दिवाली पर…काली जो कि शक्ति की देवी हैं और जिन्होंने महिषासुर जैसे नरपिशाच का वध किया था। वास्तव में देखा जाए तो लक्ष्मी काली और सरस्वती एक ही देवी के तीन रूप हैं …सरस्वती ज्ञान देती हैं , लक्ष्मी धन-धान्य और काली शक्ति। एक सफल, सुनियोजित और सुखी जीवन के लिए तीनों का ही आशीर्वाद चाहिए…एक का भी अभाव जीवन को हताश् और विकलांग कर देता है। ऐसी इस त्रिशक्ति वाली आदि माँ का नमन तो हमें सदैव ही करना चाहिए… सिर्फ दिवाली पर ही नहीं। खील, बताशे, पटाखे, नए कपड़े और नए खिलौनों के बीच आप यह सोचना मत भूलिएगा कि कैसे हम सब आज भी भगवान राम की ही तरह बड़ों की बात मानकर, कर्तव्य और सच्चाई की राह पर चलकर, लक्ष्मी, सरस्वती और काली तीनों ही देवियों का आशीर्वाद सदा के लिए आज भी ले सकते हैं। व्यापारी वर्ग में दिवाली के अगला दिन नए वर्ष की तरह मनाया जाता है और दिवाली के दिन नए बही-खातों की पूजा के बाद अगले दिन सभी को मिठाई, उपहार और नए वर्ष की शुभकामनाएँ दी जाती हैं। भारत का विक्रम संवत दिवाली के अगले दिन की पडवा से ही शुरु होता है, पडवा यानी कि चंद्रमा के पखवाड़े का पहला दिन जो कि अमावस या पूर्णिमा के बाद आती है। अमावस यानी कि बिना चंद्रमा की रात और पूर्णिमा यानी कि पूरे गोल मटोल तेज चमकते चंदा मामा की रात। और इस तरह से हर महीने ही घटते-बढ़ते चंदा मामा अपना महीना व्यतीत करते हैं। पहले जब घड़ियाँ नहीं थीं, समय को चंद्रमा और सूरज से ही नापा जाता था। कई जगह दिवाली पर ताश खेलने का भी चलन है। दिवाली एक खुशी का त्योहार है और परिवार व प्रियजनों के साथ मिलजुलकर मनाया जाता है। दिवाली सफाई का भी त्योहार है…इस दिन घर आंगन…कमरे-कमरे और कोने-कोने साफ किए जाते हैं। मान्यता है कि दिवाली की रात धन की देवी लक्ष्मी उसी घर आती है जो साफ-सुथरा हो और उसीके बगल में जाकर बैठती है जिसके तन-मन दोनों साफ हों। तो बच्चों खेल और पढ़ाई के बीच आप भी बड़ों को , छोटों को, मित्रों व परिचितों को ‘शुभ दीपावली’ कहना मत भूलिएगा…क्योंकि इस तरह से उन्हें भी तो याद आ जाएँगी वे सारी बातें जो हमने अभी-अभी की हैं…अंत में आप सभी को लेखनी की ओर से ‘ शुभ दीपावली’ और एक सफल व स्वस्थ नव-वर्ष की ढेरों शुभ-कामनाएँ ।

खील बताशे मेवा लाई
संग खिलौने और मिठाई
फुलझड़ी अनार पटाखे से
जगमग गूंजे घर आंगन
ज्यों जमीन पर तारे उतरआए
दीपों का त्योहार है दिवाली
खुशियों का त्योहार है दिवाली

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