कहानीः सबका साथ, सबका विकास और कविता-शैल अग्रवाल

सबका साथ , सबका विकास!!

रामू बहुत खुश था उस दिन। उसके स्कूल में नेता जी आने वाले थे। बरगद के पेड़ की डाल से लिपटे लाल फीते को काटकर स्कूल का उद्घाटन करेंगे वे… वही बरगद का पेड़ जिसके नीचे बने चबूतरे पर बैठकर गोपाल भैया ने उसे और उसकी बस्ती के एक दो और बच्चों को पढ़ाना शुरु किया था अभी कुछ ही बरस पहले। वक्त निकलते वक्त थोड़े ही लगता है, आज गिनती सौ से ऊपर है। पांच साल गुजर गए इस बात को भी। चार घंटे की क्लास लगती है उनकी। 12 से चार। उसके बाद सभी बच्चों को दूध पीने को भी मिलता है। मुफ्त में ही समझो…बस एक रुपया देना पड़ता है हर बच्चे को। जो नहीं दे पाता उससे लेते भी नहीं गोपाल भैया पर कोई भी बच्चा भूखा और उदास नहीं लौटता, शर्त बस एक ही है सभी बच्चे उनके गांव के ही होने चाहिएँ पर दूध पीते वक्त कई और भी आ जाते हैं इधर उधर के पर उन्हें भगाते नहीं गोपाल भैया…बच्चों से कैसा भेदभाव…बच्चे तो भगवान का रूप हैं, फिर कौन कितना ऊपर लेकर जाता है!
गोपाल भैया के बापू का भैंस का तबेला है सामने ही। 25 तीस भैंसे हैं उनकी। पूरा गांव ही बहुत इज्जत करे है गोपाल भैया की और उनके बापू की भी। गांव के बच्चे सुधर रहे हैं। लिखने-पढ़ने लायक हो रहे हैं। झोली भर-भरकर आशीर्वाद देवें हैं सब और वक्त बेवक्त उनका हर काम करने को भी तैयार रहे है पूरा गांव उनके लिए, कुछ ऐसा भाईचारा बनता जा रहा है उनकी बस्ती में।
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नेताजी के आते ही भगदड मच गई चारो तरफ । भीड़ इतनी कि बच्चे तो मुश्किल से ही उनका चेहरा भी देख पा रहे थे। बस फीता काटने के बाद रामू उन्हें फूलों का गुलदस्ता दे आया था। रामू ने देखा नेताजी ने गुलदस्ता भी नाक पर रूमाल रखकर ही लिया था। हवा में आती गोबर की गन्ध बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी उनसे।
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पांच साल और गुजर गए हैं इस बात को भी। स्कूल वैसे ही चल रहा है जैसे था। टाट के पर्दे वाला एक शौचालय जरूर बन गया है बच्चों के लिए…बस। और कोई कमरा तक नहीं। हाँ पटवारी जी और मिसिर जी का घर जरूर पूरा पक्का हो चुका है। दालान छज्जा सभी। गांव में घुसुर-पुसुर है कि यह सब उसी पैसा से हुआ है जो सरकार स्कूल के लिए दी रही।

रामू अब इंटर की परीक्षा दे रहा है। इरादा तो आई.ए. एस बनकर बड़ा अफसर बनने का था, ताकि गांव के सभी धूर्त बेइमानों को सजा दे सके, पर अब उसने अपना इरादा बदल दिया है। यहीं रहकर गोपाल भैया के स्कूल को आगे बढ़ाएगा और बच्चों को पढ़ाएगा वह भी, ताकि उसके जैसे कई और बच्चों को समझदार और साफ-सुथरी जिन्दगी का मौका मिल सके। समझदार और काबिल हों सकें वे, आगे बढ़ सकें।…नेताजी के आने से पहले ही गोपाल भइया ने ई नारा उनसे हर दिन रोज की प्रार्थना के बाद लगवाया था-सबका साथ सबका विकास…अब वह इस साथ, इस विकास को बीच में ही आधा छोड़कर कैसे शहर जा सकता है!

हम चांद पर जाएंगे


हम चांद पर जाएंगे
पर अपनी धरती को पहले
स्वर्ग बनाएंगे, हमी से तो हैं
सारी उम्मीदें और सपने इसके
हम ही तो हैं नौनिहाल इसके!!

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