बाल कोनाः याद पुरानी बचपन की-शैल अग्रवाल

टाइम मशीन

मिलना और बिछड़ना
बिछड़कर फिर मिल जाना
यादें हैं या फिर टाइम मशीन

यादें ये सबको ले आतीं
दूरपास, सबसे मिलवातीं।
बैठकर इनके उड़न खटोले
पूरी दुनिया हम घूम आते

एक तितली बगीचे में आई
फूल फूल कितना मंडराई
रंग बिरेंगे पंखों से अपने
सदा ही मन ललचाती

बादल जब जब नभ से उतरें
जाने कहाँ-कहाँ जा जल बरसाएँ
जी भरकर हम संग संग भीगें- भागें
यादों से फिर कितना बहलाते

गरमी में चिड़िया का वह धूल में नहाना
चींटियों का जत्थों में बिल से निकल आना
मोहित हो-हो प्रकृति को देखते जाना
फिर चावल और चीनी के दाने बिखराना

बचपन नहीं वह जादू का पिटारा था
कितना अपना और कितना प्यारा था
बैठ यादों की टाइम मशीन में
पीछे छूटा जो झट हम वापस ले आते…

भरें उड़ान फिर बचपन की

आओ फूलों से रंग चुरा लें
तितलियों के पंख लगा लें
चिड़ियों की चहचह में डूबें
भरें उड़ान फिर बचपन की

मां की लोरी में जो सोई
सपनों की झोली में जो खोई
ढूँढे फिर वही जादू की छड़ी
सारे दुःखों को छू मंतर कर लें
भरें उड़ान फिर बचपन की

उड़-उड़ आए हैं बादल काले
रिमझिम बरसें नदिया नाले
सूरज चंदा और अनगित तारे
आज भी प्यार से हमें बुलाएँ

बहती नदिया झरनों में मुंह देखें
संग इन्ही के हम दौड़ें भागें
धरती आसमाँ की दूरियाँ नापें
भरें उड़ान फिर बचपन की

बचपन वह जो हंसता गाता
दोस्तों पर कुर्बान हो जाता
हार जीत और प्यार मनुहार
सब में ही जीना सिखलाता

मीठा मीठा था प्यारा प्यारा
बचपन जो ना रोने से शरमाता
अपनी ही जिद पर जब अड़ जाता
बड़ों तक से मन की करवाता

बात असंभव हो पर अगर
झट से खुद मन भी जाता
उस बचपन को गले लगाकर
जी भरकर लड़ियाएँ दुलराएँ

भरें उड़ान फिर बचपन की

श्वेत बिन्दु थे झिलनिल सपने
माँ की आँखों से देखे थे हमने
उन सपनों को आँखों में सजाकर
भूले-बिसरों को गले लगाएँ

आसमाँ के सूरज को बस्ते में रखकर
दुनिया में खूब उजाला फैलाएँ
आओ हम जी भरकर जी लें
सबसे हंसकर मीठा बोलें

भरें उड़ान फिर बचपन की

पोते साहिल के साथ दादी
शैल अग्रवाल
( यादों के ख़ज़ाने से)

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