मेरी जलियांवाला बाग की यात्रा, रोमांचक और अविस्मरणीय यात्रा थी..अपने विगत को करीब से प्रत्यक्ष देखने और अनुभव करने का पहला अवसर था। हमारी पीढी ने आजादी के बाद का सूरज देखा था.स्वतंत्रता के संघर्ष में उन अनाम शहीदो के जीवन के सूरज को अस्त हो जाने की कहानियां सिर्फ किताबों और इतिहास के पन्नो में पढी थी।.पवित्र स्वर्ण मंदिर के दर्शनों के बाद आज हम जलियांवला बाग देखने जा रहे थे। बडे से विशाल दरवाजे पर लिखे शहीदो की स्मृति”शब्द ने रोमांचित कर दिया.। अंदर प्रवेश करते ही दाहिनी ओर से हरे भरे फूलों से सुसज्जित पार्क से गुजरते हुए अमर शहीद ज्योति तक पहुंच कर मन न जाने क्यों विह्वल हो गया। तस्वीरो मे. वो पल कैद कर हम ठीक सामने स्मृति स्तंभ को देखने गये.जो शहीदो की याद मे बनाया गया था।.कहते है.कि इसके ठीक विपरीत दिशा में वो छोटा सा गेट था.जिसे अंग्रेजों के क्रूर अफसर जनरल ओ डायर के सैनिको ने घेर लिया था और सभा करते हुए निर्दोष नागरिक भाग नहीं पाये और उनकी गोलियों का शिकार हो गए। क्या दोष था उनका ??उन गोलियों के अमिट निशान आज भी बाग की एक दीवार पर मौजूद हैं.।घूमते हुए मेरा मन भर आया था। कहीं किसी मार्गदर्शन या गाइड की जरूरत नहीं पडी।. एक एक दीवार. बचे हुए अवशेष सभी चीख चीख कर गवाही दे रहे थे कि इतिहास का वह क्रूरतापूर्ण कांड यहीं पर घटित हुआ था।.बांयी ओर शहीदी कुआं था.जिसमे जान बचाकर सैकड़ो बच्चे. महिलाएं-और पुरूष कूद गए थे और दम घुटने के कारण मारे गए.उस जालियों.से घिरे कुंए में झांकते हुए मन रोमांचित हो गया ,लगा जैसे अचानक लोगों के चीखने ,चिललाने और वंदेमातरम की आवाजें मेरे अहसास में गूंजने लगीं। मन भावुक हो गया था। अपने विगत इतिहास को अपनी अनुभूति में साकार हो जाने का अनुभव अकल्पनीय था।बस मुंह से यही निकला अशेष नमन. उन अनाम शहीदों के नाम ।एक छोटा सा संग्रहालय भी था जिसमें तत्कालीन समाचार पत्रों की कटिंग.शीर्ष नेताओ और विश्व के महारथियों की प्रतिक्रियाएं लगायी गयी थी.। गुलजार रचित दो पंक्तिया प्रमुखता से दर्शाई गई थीं.।मुझे याद नही.अब।लगभग सात वर्ष हो गए वहां गये परंतु आज भी सबकुछ यादो में प्रतिबिंबित है।.आज.वैशाखी पर अपने भाव सुमन अर्पित करती हूं,शहीद तुम्हरी कुर्बनी .हम याद रखेंगे सदियों तक ।
पद्मा मिश्रा, जमशेद पुर
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