कहानी समकालीनः डायन-अर्पणा सन्त सिंह

भयावह रात थी वह। जितनी रात भयावह थी ,उस से भी बढ़कर मेरी स्थिति ।
रात के अंधेरे में जंगल में इधर उधर छुपती मैं, एक तरफ जंगली जानवरों का डर तो दूसरी ओर इन आदमखोर जानवरों का खौफ। इनके हाथ लगने से अच्छा है कि मैं मर जाऊँ। भूखे भेड़ियों के जैसे मशाल और टॉर्च लिए मुझे ढूंढ रहे हैं चारों ओर,,,। हे मां मंगला! मेरे किन पापों की सजा दे रही हो ?भागते भागते जब कहीं जगह नहीं मिली, तो मैं एक घने बरगद के पेड़ के सामने आते ही उसपर चढ़कर छुप गई। इतने में हल्की बूंदा-बांदी शुरू हो जाती है ,कुछ देर के बाद उनकी आवाज़ , मशाल एवं टॉर्च मुझसे दूर जाने लगते हैं।यह आभास होने पर कि वे चले गए हैं मैंने चैन की साँस ली…मन में भयानक तूफान मचा था ,,,इसी बीच न जाने कब मेरी आँख लग गई।अचानक वहीं खौफनाक झुंड की आवाज ….जागते ही मेरे सामने वहीं चुनौती ,,,, बस बचने का एक ही रास्ता पुलिस चौकी।
अगहन का महीना था,सूरज की तपिश जैसे जैसे दिन चढ़ने के साथ और प्रचण्ड होने लगी, इन लोगों की चहलकदमी वैसे वैसे कम होने लगी। मुझे खोजते हुए वे लोग दूर निकल गए थे। मैं धीरे से,पेड़ से उतर कर उस सड़क की ओर तेजी से भागने लगी जो पुलिस चौकी तक जाती थी।
अचानक से आवाज आई “इधर आओ इधर आओ डायन इधर हैं।” एक सिहरन मेरे बदन में बिजली की गति पैदा कर देती हैं और मैं सड़क की तरफ , बेचैन बदहवास भागने लगी और वे सभी मेरे पीछे-पीछे ।
तभी कुछ दूर में सड़क पर चलती दिखी एक कार और उसके पीछे एक और गाड़ी।हमें देख कर वे रूक गए ।शायद मां मंगला की ही कृपा थी । उस कार में बड़े पुलिस बाबू बैठे थे ,,,उनके आदेश पर सभी को पुलिस चौकी भेज दिया गया और मुझे एक महिला पुलिस कर्मी के साथ जिला अस्पताल भेजा गया।वहां मेडिकल जांच के बाद मुझे नहाने, खाने और कपड़ें दिए गए।फिर मुझे भी पुलिस चौकी ले जाया गया।
बड़े पुलिस बाबू के पूरी घटना के बारे में पूछते ही मैं फूट फूटकर रोने लगी। रूंधे गले से बताया-” मेरा नाम इतवारी है । मेरी शादी मात्र 14 वर्ष की आयु में 30 साल के रामदीन से कर दी गई थी।”
मेरे मना करने पर मां ने कहा कि ” अरे इतवारी! तेरा बाप हंडिया पी पीकर बीमार रहता है। और भी मेरे बच्चे हैं रे। कम से कम तू जाएगी तो तेरे खाने का खर्चा तो कम होगा । रामदीन की थोड़ी उम्र तुझसे ज्यादा है लेकिन आदमी की उम्र नही देखी जाती।इसकी पहली पत्नी इसे बच्चा नहीं दे पाई थी। तू इसे बच्चा दे देगी तो यह तुझे रानी बनाकर रखेगा । मुझे पता था कि मां मुझे बेच ही देगी, चाहे शादी के रूप में या बड़ी दिदिया की तरह साहूकार को। मां ने साहूकार से कर्ज लिया था, साहूकार ने दिदिया को दिल्ली में नौकर लगवाने की बात कहकर पता नहीं कहां भेज दिया कि आज तक उसकी खबर नहीं मिली,,,”
” हम गरीब आदिवासी लड़कियों का किस्मत ऐसा ही होता है साहब। इसलिए मैंने भी शादी कर ली।शादी के बाद जैसे ही मैं घर आई जेठ और जेठानी और दोनों देवर देवरानी मुझसे बहुत नाराज़ रहते और नफरत किया करते थे क्योंकि उन्हें लगा कि मेरे कारण अब रामदीन को भी हिस्सा देना पड़ेगा। इतना ही नहीं मेरी शादी के बाद भी जब मुझे बच्चा नहीं हुआ तो मुझे बांझ अपशगुनी कहकर मुझसे दुर्व्यवहार करते थे।”

“पिछले दिनों गांव में कोरोना के कारण कई लोग बीमार पड़ने लगे लेकिन कोई भी डॉक्टर से इलाज कराने के बदले ओझा से इलाज कराते और न ही वेक्सीन लगवाते। बल्कि गांव में अफवाह फैला दी गई कि कोरोना के वैक्सीन से ही लोग बीमार हो रहे हैं और मर रहे हैं। यदि मरने से कोई बच भी जाएगा तो वो नपुंसक हो जाएगा। कुछ दिन पहले http://www.lekhni.net/wp-admin/themes.phpमेरी देवरानी के घर में भी सबको कोरोना हो गया लेकिन सभी ओझा से इलाज करवाते रहे जिसके कारण पहले बेटी फिर उसके बेटे की भी मौत हो गई।

ओझा ने सभी को उकसाया कि मैं डायन हूं इसीलिए बच्चों को खाती हूँ और एक- एक करके पूरे गांव के बच्चों को खा जाऊंगी। आनन-फानन में यह खबर पूरे गांव में फैल गई और उन्होंने पंचायत लगाया ।पंचायत में औरतों को कुछ कहने का अधिकार नहीं है और रामदीन भी चुप रहा, सभी ने कहा कि मैं डायन हूं और फिर मेरे चेहरे पे कालिख पोत कर मारते- पीटते, गंदी गंदी गालियां देते , अर्धनग्न कर, मल- मूत्र पिलाते हुए गांव में घुमाया गया। मैं रोती गिड़गिड़ाती रही, अपने मरे बाप की मां की सौगंध खाती रही, विनती करती रही, सब से गुहार लगाती रही मैं निर्दोष हूं, मैंने कोई भी जादू टोना नहीं किया है, लेकिन उस भीड़ में मेरी किसी ने नहीं सुनी ।पति ने भी इस संकट में मेरा साथ नहीं दिया उल्टे मेरे परिवार वालों ने बढ़-चढ़कर उन लोगों का साथ दिया। इसके बाद इन लोगों ने मेरे साथ सब मिलकर गलत करने की बात कही तब मैं बहुत डर गई साहब और कुछ देर में जैसे ही मौका मिला एक कटार हाथ में उठाया और इस भीड़ को भगाते हुए जंगल की ओर भाग गई।”

अभी मेरी रिपोर्ट हवलदार पूरी तरह से लिखा भी नहीं था कि तभी उधर से एक सिपाही घबराते हुए कमरे में आया और बोला-” चलिए साहब, चलिए, अभी खबर मिली है कि बांकुड़ा में एक महिला को पत्थर से कूच- कूच कर गांव वालों ने मार डाला है क्योंकि वो डायन थी।”

अर्पणा संत सिंह
संस्थापक व संचालक गृहस्वामिनी ई. मैगजीन
जमशेदपुर, भारत

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