कविता आज और अभीः गीत सलोने


माँ मुझको चंदा दिखला दो,

माँ मुझको चंदा दिखला दो,
दूर गगन में कितना प्यारा
चमकीला सा ,सबसे न्यारा ,
अपनी गोदी में बैठाकर ,
उससे मेरी बात करा दो
माँ मुझको चंदा दिखला दो,
वो भी मेरे जैसा गोलू ,
क्या अपनी मुट्ठी में ले लूँ?
जैसे मैं हूँ तुमको प्यारा ,
वह भी माँ का राज दुलारा?
बोलो माँ कुछ तो बतला दो,
माँ मुझको चंदा दिखला दो,
जैसे मैं हूँ तुम्हे जगाता ,
वह भी रात रात भर जगता ,
मैं कभी हंसाता ,खेल दिखाता
वह भी सबका मन बहलाता ,
माँ,उससे मुझको मिलवा दो,
माँ मुझको चंदा दिखला दो,

चाँद तुम —
नील नभ में मुस्कराता ,
चाँद तू मेरे गगन का ,
शुभ्र मंगल भावनामय ,
गीत तू मेरे सृजन का ,
चाँद तू मेरे गगन का ,
फूल बन महका है जैसे ,
मेरे हृदय की वाटिका में ,
दीप ज्यों जगमग जला है,
नील -नभ नीहारिका में ,
स्नेह सबकामिले तुझको ,
है यही आशीष मन का ,
चाँद तू मेरे गगन का ,
नन्द घर आनंद लाया ,
माँ यशोदा का खिलौना
वो कन्हैया मुस्कराता
काली आँखों का दिठौना ,
चांदनी के तीर चमका ,
चाँद तू मेरे गगन का ,

सो जा ,मेरे स्वप्न सलोने !
काली आँखों में सुरभित हों
सुख के सारे स्वप्न सलोने ,
निंदिया रानी की नगरी से
लाना सारे खेल -खिलौने
नील गगन से जगमग उतरें –
चन्दा ,तारों के मृग छौने-
फूल बाग़ में सोन चिरैया ,
गीत सुहाने गाती –
दूर देश से प्यारी परियां ,
तुझे सुलाने आतीं —
निंदिया की रानी से कह दो ,
मीठे सपने लाना ,
हाथी ,घोडा ,चिड़ियों वाले –
सभी खिलौने लाना-
सो जा मेरे राज दुलारे !
मम्मा की आँखों के तारे ,
अधरों पर मुस्कान खिलाये –
देखे सपने प्यारे -प्यारे ,

-तू कान्हा बन कर आया है —
अपनी नन्हीं आँखों में ,
क्या स्वप्न संजो कर लाया है ?
बंद मुट्ठियों में अपनी ,
क्या स्वर्ग उठाकर आया है ,
मेरी बगिया का फूल सलोना,
सबके मन को भाया है ,
हर्षित मन में चटकी कलियाँ ,
जीवन -उपवन महकाया है ,
चंचल मन ,भोला सा आनन् ,
चन्दा की छवि पाया है-
घर -आंगन के भाग्य जगे ,
-तू कान्हा बन कर आया है —
माँ की ममता की छाँव -तले ,
तू शुभ -मंगलमय छाया है।


पद्मा मिश्रा
जमशेद पुर, भारत

ख्वाबों की दुनिया

यदि मैं होती नक्षत्र कोई,
रोज परिधि नयी बनाती।
अपने चंचल स्वभाव से,
सौरमंडल में हलचल मचाती।

कभी मार्स से मिलने जाती,
रंग लाल उधार ले आती।
खेल चाँद संग होली फिर,
उसको भी रंगीन बनाती।

विनस से ले चमक उधार,
सैटर्न की रिंग में सजाती।
प्लूटो से छीन कर ठंडक,
सूरज पर बिखेर आती।

नेप्चून से नीला रंग ले,
तारों की चुनर बनवाती।
ओढ़ उसे मैं इठलाती,
धरती की सैर कर आती।

छुपनछुपाई सीखा सभी को,
एक दूजे के थप्पा करवाती।
छुक छुक ट्रेन बनाती मैं,
सबके आगे खड़ी हो जाती।

कई और नए नक्षत्रों को,
मैं अपना दोस्त बनाती।
कैसे जीवन जिया जाता,
नया अन्दाज सीखा आती।


गाँव की बात

आओ चुन्नू, आओ मुन्नू, कहती एक कहानी।
सुनना इसको बड़े ध्यान से, सच्ची बात पुरानी।

था इक गाँव जंगल पास में, उसकी बात निराली।
पेड़ बड़े थे घने वहाँ पर, ऊँची ऊँची डाली।

कोयल मीठा गीत सुनाती, खेतों में हरियाली।
घर-घर में होती गाय खड़ी, घी से सजती थाली।

कल कल नदिया भी बहती थी, निर्मल उसका पानी।
छोटी सी होती पगडण्डी, चलती हवा सुहानी।

मिलकर सब त्योहार मनाते, होती हँसी ठिठोली।
झूमे पूरा गाँव साथ में, मस्तानों की टोली।

सीधे-साधे लोग वहाँ के, मन होता था भोला।
दिल से थामते हाथ सभी का, न दिखावे का चोला।

शशि लाहोटी, कोलकाता
मन के भाव को कागज पर उतारने का शौक रखती शशि लाहोटी ने राजस्थान के सीकर जिले से M.A economics में शिक्षा पूर्ण की है।
अभी कोलकाता में रहती है।

इनकी रचनाएँ सन्मार्ग, प्रभात खबर, काव्य रंगोली आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है।
कई साझा संकलन में भी कविताएँ प्रकाशित हुई है।
अपनी रचना ‘मेरे मन के मोदी मेरी कलम से’ के लिए प्रधानमन्त्री कार्यालय से धन्यवाद पत्र भी प्राप्त हुआ है।
अन्तर्राष्ट्रीय महिला काव्य मंच दक्षिण इकाई की उपाध्यक्ष है।
अगस्त 2022 में एकल काव्य संकलन ‘क्या छुपा सन्दूकची में’ का प्रकाशन हुआ है। जो अमेजॉन फ्लिपकार्ट सभी पर उपलब्ध हैं।
‘कविता दिल की’ नाम से फेसबुक पेज है।
कई साहित्यिक समूह से जुड़ी हुई है जहाँ से कई बार उनकी रचनाएँ विजित हुई है।

सर्कस में ले जाते

पापा हमको सर्कस में ले जाते
मौज मना कर वापस घर हम आते

पार हुई जब लंबी क्यू की रेखा
बंदर, चीते क्या क्या हमने देखा

शेर दौड़ते जलती रिंग से आते
हाथी करतब नए नए दिखलाते

जादूगर की डण्डी जैसे घूमे
तस्वीरें उड़कर आपस में झूमे

कईं कबूतर करतब नए बताते
सता सता कर खुद को हमें हँसाते

झूला झूलें, लगे हवा में जुड़ने
कलाकार ने छोड़ी डंडी , उड़ने

लोटपोट हम भालू की टक्कर में
ज्ञान मिला मस्ती के इस चक्कर में

पापा हमको सर्कस में ले जाते
मौज मना कर वापस घर हम आते

-हरिहर झा

गिलहरियाँ

मम्मी के बग़ीचे में गिलहरियाँ आती हैं
चुन कर सबसे मीठा फल खाती हैं
किस पेड़ के फल पक गये और किस के नहीं
वे ही मम्मी को बताती हैं
बिहीं की डगाल से
चीकू के पेड़ में छलाँग लगाती हैं
अनार के पेड़ से पहला अनार
वे ही खाती हैं
थोड़ा कुतरती हैं, बाक़ी का पूरा नीचे गिराती हैं।  


एक था कद्दू

एक था कद्दू, वह था बुद्धू
पर कहता मैं तो हूँ राजा
इधर लुढ़कता, उधर लुढ़कता
बगिया में उत्पात मचाता
बेल बेचारी बड़ा समझाती
शैतानी से बाज ना आता

गिलकी, लौकी लौंच डालता
लाल टमाटर कुचल डालता
पालक, मैथी रौंद डालता
आलू, गाजर खौंद डालता

इक दिन माली को ग़ुस्सा आया
कद्दू को उसने उठाया
इधर-उधर झटक-पटक कर
ठोंक पीट कर बजा-बजा कर
बीजे-गूदा हटा, सफ़ा कर
तम्बूरे में उसे बिठाया
कद्दू अब कुछ कर ना पाया
बुद्धू कद्दू बन गया बाजा

क्या करोगे?

१। नाई जी, नाई जी!
क्या करोगे तुम?
बैठो जी, सिर के बाल करूँगा कम।
२। हलवाई जी, हलवाई जी!
क्या करोगे तुम?
आओ, मैं खिलाऊँ जलेबी गरम-गरम।
३।मोची जी, मोची जी!
क्या करोगे तुम?
आओ, मैं चमका दूँ जूते चम-चम
४। शिक्षक जी, शिक्षक जी!
क्या करोगे तुम?
आओ, मैं पढ़ा दूँ स्वर-व्यंजन
५।गायक जी, गायक जी
क्या करोगे तुम?
आओ सुनाऊँ तुम्हें मीठी सरगम
६।नर्तक जी, नर्तक जी!
क्या करोगे तुम?
बाँध के घुँघरू मैं नाचूँगा छम-छम-छम
७। सब्ज़ी वाले, सब्ज़ी वाले !
क्या करोगे तुम?
दूँगा तुमको आलू, मटर और बैंगन
८। फल वाले, फल वाले!
क्या करोगे तुम?
बेचूँगा मैं आम और केले १० दर्जन
९।बढ़ई जी, बढ़ई जी!
क्या करोगे तुम?
लकड़ी से बनाऊँगा कुर्सी और पलंग
१०।डाकिया जी, डाकिया जी
क्या करोगे तुम?
लाऊँगा मैं चिट्ठी, हर मौसम


हाथी

हाथी के कान – बड़े-बड़े
हाथी के दाँत – लम्बे-लम्बे
हाथी के पैर – चौड़े-चौड़े

हाथी की सूँड़ – लम्बी-लम्बी
हाथी की आँखें – छोटी-छोटी
हाथी की पूँछ – पतली-पतली

हाथी का सिर- बड़ा-बड़ा
हाथी का माथा – चौड़ा-चौड़ा
हाथी का पेट – मोटा-मोटा

हाथी की चाल- मस्त-मस्त
हाथी की चिंघाड़ – ज़बरदस्त

रिचा जैन
आई टी प्रोफेशनल, लेखिका और हिन्दी शिक्षिका।
जन्म – जन्म एवं इंजीनियरिंग तक की शिक्षा जबलपुर, मध्य प्रदेश मे.
विधाएँ – कविता, बाल साहित्य, संस्मरण, ग़ज़ल

प्रकाशित पुस्तकें – प्रथम काव्य संग्रह ‘जीवन वृत्त, व्यास ऋचाएँ’ भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा 2020 में प्रकाशित।
कहानी के माध्यम से जर्मन सीखने के लिए बच्चों की किताब ‘श्पास मिट एली उंड एजी’ गोयल पब्लिशर्स द्वारा 2014 में प्रकाशित।

हिंदी एवं अंग्रेज़ी कविताएँ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं, वेबसाइट्स और संकलनों में प्रकाशित।
सम्मान – काव्य संग्रह जीवन वृत्त, व्यास ऋचाएँ भारतीय उच्चायोग लंदन से लक्ष्मीमल सिंघवी अनुदान योजना के तहत पुरस्कृत और सम्मानित
निवास – परिवार के साथ लंदन में निवास, पर्यटन में गहरी रुचि। ईमेल – richa287@yahoo.com

जिंदगी हँसकर बिताना चाहिए,
चुटकुले सुनना, सुनाना चाहिए।

रात-दिन आँसू बहाने से भला,
फूल बनकर मुस्कराना चाहिए।

चाट का ठेला खड़ा है सामने,
आज कुछ खाना, खिलाना चाहिए।

आ गया इतवार पापा जी हमें-
आज तो सरकस घुमाना चाहिए।

मास्टर जी हम पढ़ेंगे शौक से-
पर खिलौने कुछ दिलाना चाहिए।

देश को खुशहाल रखना है अगर-
हमको संसद में बिठाना चाहिए।

मूंछें नत्थूलाल की ,
सचमुच बड़े कमाल की .
पुलिसमैन भी हार गया ,
डाकू भी झख मार गया .
एक इंच से पिछड़ गईं बस ,
मूंछें खास दलाल की .
उन्हें तेल में रोज भिगोते ,
खूब एंठते , खूब सँजोते .
शान देखते ही बनती –
उनकी फौलादी चाल की .
नत्थू को न सताएँ मच्छर ,
मूंछों में फंस जाएँ मच्छर .
बड़े मजे से सो जाते वे ,
चिंता नहीं बबाल की .
चाहें दूध-मलाई खाएँ ,
या फिर रोटी दाल पचाएँ .
नत्थू की मूंछें रखती हैं
खबर पेट के हाल की .
हम सबकी ऐसी हों मूंछें ,
नत्थू की जैसी हों मूंछें .
हम राणा प्रताप के वंशज ,
शोभा भारत भाल की .

कितनी है चालाक लोमड़ी,
खूब जमाती धाक लोमड़ी।

सदा सफलता पाती है वह,
नहीं छानती खाक लोमड़ी!

भोली बनकर सबको ठगती,
करती खूब मजाक लोमड़ी!

पशुओं में बाँटा करती है,
जंगल भर की डाक लोमड़ी।

अपनी चतुराई के बल पर,
है जंगल की नाक लोमड़ी!


रोहिताश्व अस्थाना
01 दिसम्बर 1949, अटवा अली मर्दनपुर, हरदोई, उत्तर प्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ
नन्हीं गज़लें, आओ गाएँ धूम मचाएँ, मोनू के गीत, स्वप्न लोक, हँसते मुस्कुराते सपने

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