होली विशेष
फागुन के दिन चार रे
फागुन के दिन चार रे, होरी खेल मना रे।
बिनि करताल पखबाज बाजै अणहद की झणकार रे।
बिनि सुर राग छतीसों गावैं, रोम रोम रंग सार रे।
सील संतोष की केसर चोली, प्रेम प्रीत पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयौ अंबर, बरसत रंग अपार रे।
घट के पट सब खोल दिए हैं लोक लाज सब डार रे।
होली खेलि पीय घर आये, सोई प्यारी प्रिय प्यार रे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरण कमल बलिहार रे।
मीराबाई
लेखनी परिवार से होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!!
माय करी मन की पद्माकर,फाग की अमीरन ज्यों,
गहि गोविंद लै गई भीतर गोरी, नाय अबीर की झोरी।
छीन पितंबर कम्मर ते, सुबिदा दई मीड कपोलन रोरी,
नैन नचाय मुस्काय कहें, लला फिर अइयो खेलन होरी।
-कवि पद्माकर
द्वार पर आ गई होली रे
द्वार पर आ गई होली रे, चित्त में बनी रंगोली रे
द्वेष भाव सब छोड़ के बोलो मीठी बोली रे
कोई लिये गुलाल खड़ा है कोई ले पिचकारी
देवर ने भाभी की चूनर रँग डाली है सारी
घूम रही है गली-गली हुड़दंगी टोली रे
द्वार पर आ गई होली रे, चित्त में बनी रंगोली रे
नन्द गाँव के हुरियारे हैं, बरसाने की छोरी
श्याम लला को रँगने आई राधारानी गोरी
श्याम ने रंग दी है राधा की चूनर चोली रे
द्वार पर आ गई होली रे, चित्त में बनी रंगोली रे
बात बड़ी अनहोनी लेकिन किस्सा है ये सच्चा
अबके चाची को रँग आए जाकर अब्दुल चच्चा
घूँघट-घूँघट में शरमाई सूरत भोली रे
द्वार पर आ गई होली रे, चित्त में बनी रंगोली रे
अलग-अलग पहनावा अपना, अलग-अलग है भाषा
अलग-अलग है ढंग मगर है मन की इक अभिलाषा
भारत माता के बेटे सब, हैं हमजोली रे
द्वार पर आ गई होली रे, चित्त में बनी रंगोली रे
अबके ऐसा हो, कलकत्ता गुजराती में बोले
केरल, काश्मीर, कर्नाटक, मन की गाँठे खोले
गूँजे राँझे और हीर की हँसी ठिठोली रे
द्वार पर आ गई होली रे, चित्त में बनी रंगोली रे
दुश्मन जब भी खड़ा हुआ है सीमाओं पर तन कर
रोज़ शान्ति के श्वेत कबूतर डसता विषधऱ बनकर
समर भूमि में चली लगाकर रक्त की रोली रे
द्वार पर आ गई होली रे, चित्त में बनी रंगोली रे
नफरत की होलिका गोद में ले प्रह्लाद को बैठी
आतंकी हिरणाकश्यप की टोली सबसे ऐंठी
घर-घर से उठवा दो अब नफरत की टोली रे
द्वार पर आ गई होली रे, चित्त में बनी रंगोली रे
विनीत चौहान
फाग
फागुन का महीना है, मचा है फाग
होली छाक छाई है; सरस रँग-राग !
बालों में गुछे दाने, सुनहरे खेत
चारों ओर झर-झर झूमते समवेत !
पुरवा प्यार बरसा कर, रही है डोल
सरसों रूप सरसा कर, खड़ी मुख खोल !
रे, हर गाँव बजते डफ़ मँजीरे ढोल
देते साथ मादक नव सुरीले बोल !
चाँदी की पहन पायल सखी री नाच
आया मन पिया चंचंल सखी री नाच !
महेन्द्र भटनागर
अम्बर ने खोली
मुठ्ठी जो एक रंगभरी
भीगी-भीगी-सी
धरती मुस्काई
कोयल सी कूके
हरित नवेली चूनर ओढ़े
फिर-फिरके ये
बूटे-बूटे सज आई
रंगों में
पात-पात महके लहके
सकुचाई शरमाई
झूम रही धरती बौराई
फाग ठिठोली कर गया
अब यह अवगुंठित खड़ी
सोच रही है बहकी-बहकी
खुशियां कब छुपें छुपाए!
-शैल अग्रवाल
होली का त्यौहार आ गया
फागुनी बौछार लेकर
भौरों का अभिसार लेकर
मन में उल्लास जगा गया
रसभरा त्यौहार आ गया
केसर चन्दन टेसू रंगों में मुस्कराता
मधुमास छा गया
चंग और फाग-राग गाता
होली का त्यौहार आ गया
केसरिया पिचकारी लेकर
कुमकुम गुलाल अबीर की
उल्लसित फुहार बरसा कर
मौसम पर पलाश छा गया
होली का त्यौहार आ गया
रसिया गाता हवाओं संग
कलियों में तरुणाई जगा
जाफरानी अमराई महका
होली का त्यौहार आ गया !
सरस्वती माथुर
होली आई- होली आई
दहके फूल पलाश के
महके रंग गुलाल के
सरसों ने ली अंगड़ाई
होली आई होली आई
फागुन का देख जोश
धरती डूबी मस्ती में
मौसम में मादकता छाई
होली आई होली आई
डाल डाल टेसू खिले
चैत की गुहार पर
चेहरों पर उल्लास मिले
होली आई होली आई
हवा के पंख पर केसर उड़े
लेकर फगुआ का सन्देश
कूकी कोयलिया वन वन
होली आई होली आई
मुखरित हो अब छेड़ो राग
ढाई आखर प्रेम के रहें
द्वेष बचे न शेष
होली का उल्लास गूंजे
भीगी बौराई पुरवाई
होली आई होली आई l
आई…. . होली….. आई….. .
सरस्वती माथुर
हायकु
धूप पंखुरी
खिली फागुन बन
बजे मृदंग
मौसम टेसू
मन हुआ फागुन
होली के संग
महकी हवा
रसपगी होली सी
बिखरे रंग
होली के रंग
उमंग नवरंग
भंग के संग
-सरस्वती माथुर
लाल थे गाल
हथेलियों से लाल
रंग गुलाल
झुके नयन
गुलाल गाल पे
ठिठकी गोरी।
हुलसा मन
सिकुड़ी सिमटी को
भायी ठिठोली।
बृज के छोरे
रंग दूँगी तोहे मैं
अपने रंग
जाएगा कैसे
दूर अब मुझसे
हँस के बोली।
रहेगी साथ
रंगभरी तरंग
प्रीत में डूबी-
शैल अग्रवाल
बसंती हवाओं में बिखरी सु्गंध है.
मौजों के ऊपर से चंदा भी झांक रहा,
छाया यह कैसा मदहोशी रंग है.
शमशेर अहमद खान
होली का मतलब मिलन, रंग-अर्थ है प्यार.
मिले सभी आ कर तभी, सतरंगी संसार.
फागुन में सब जल गया, जितना भी था रार,
निर्मल मन को कर गया, ये अद्भुत त्यौहार..
फाग लिए अनुराग की, पिचकारी के साथ,
कर देता है प्यार की, अंतस में बरसात.
-गिरीष पंकज
यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ’ रंग अलग,भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,
आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो।
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो!
निकट हुए तो बनो निकटतर
और निकटतम भी जाओ,
रूढ़ि-रीति के और नीति के
शासन से मत घबराओ,
आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो।
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो!
प्रेम चिरंतन मूल जगत का,
वैर-घृणा भूलें क्षण की,
भूल-चूक लेनी-देनी में
सदा सफलता जीवन की,
जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो।
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो,
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,
भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!
-हरिवंश राय बच्चन
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
देखी मैंने बहुत दिनों तक दुनिया की रंगीनी,
किंतु रही कोरी की कोरी मेरी चादर झीनी,
तन के तार छूए बहुतों ने मन का तार न भीगा,
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
अंबर ने ओढ़ी है तन पर चादर नीली-नीली,
strong>हरित धरित्री के आँगन में सरसों पीली-पीली,
सिंदूरी मंजरियों से है अंबा शीश सजाए,
रोलीमय संध्या ऊषा की चोली है।
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
हरिवंश राय बच्चन
होली के रंग
होली के रंग कितने निराले,
आओ सबको अपना बना लें,
भर पिचकारी सब पर डालें,
पी को अपने गले लगा लें ।
रक्तिम कपोल आभा से दमकें,
कजरारे नैना शोखी से चमकें,
अधर गुलाबी कंपित दहकें,
पलकें गिर गिर उठ उठ चहकें ।
पीत अंगरिया भीगी झीनी,
सुध बुध गोरी ने खो दीनी,
धानी चुनर सांवरिया छीनी,
मादकता अंग अंग भर दीनी ।
हरे रंग से धरा है निखरी,
श्याम वर्ण ले छायी बदरी,
छन कर आती धूप सुनहरी,
रंग रंग की खुशियां बिखरीं ।
नीला नीला है आसमान,
खुशियों से बहक रहा जहान,
मस्ती से चहक रहा इंसान,
होली भर दे सबमें जान ।
कवि कुलवंत सिंह
होली आई है
धरती की चूनर लहराई होली आई है।
सूरज लेता है अंगड़ाई होली आई है।।
जाने किन प्यासे अधऱों ने इसको छेड़ दिया
पुरवा घूम रही पगलाई होली आई है।।
पिचकारी ले देवर घूमे किस पर रंग डाले
संसद में पहुँची भौजाई होली आई है।।
नयी-नयी कोरी साड़ी है अब तो घर आओ
रधिया ने पाती लिखवाई है होली आई है।।
रंग उड़े हैं फिर बुधवा के देख रहा घर में
बजी आठवीं बार बधाई है होली आई है।।
कक्का जी बूढ़ी काकी से धीरे से बोले
छानो थोड़ी सी ठंढ़ाई होली आई है।।
उनकी आँखों में गुलाल का रंग नहीं आया
जिनके हाथ लगी तनहाई होली आई है।।
खिसियानी मुस्कान बधाई फिर भी जनता को
जिनको सीट नहीं मिल पाई होली आई है।।
भूख-प्यास के सारे मसले आज न हल होंगे
खुशी आज दौरे पर आई होली आई है।।
जैसे भी हो जहाँ वहीं पर नये फाग गाओ
‘पुष्पा’ देती तुम्हें बधाई होली आई है।।
पुष्पा कात्यान
होली हाइकू
फागुन मन
इन्द्रधनुष तन
होली पे आज
उमड़ा फिर
रंगों का सागर
पलकों तले
मलते हम
प्यार का गुलाल
छूटे ना कभी।
-शैल अग्रवाल
राधा जब हो गई पराई
मिटे स्वप्न मिट गई आस सब राधा जब हो गई पराई
बोल साँवरे ! किसके ऊपर भर पिचकारी मारेगा तू ।
बहुत रोकता था मग उसका, पनघट-पनघट द्वारे-द्वारे
बहुत छेड़ता था ग्वालिन को बेमतलब बिन सोच विचारे।
यह पल भर का नेह हो गया
तेरे जीवन भर का परिचय।
गाँव विराने चली आज वह
फिर अब किसे निहारेगा तू।
बोल साँवरे ! किसके ऊपर भर पिचकारी मारेगा तू।
कान्हा ! तेरी वंशी सुन जब लहर-लहर बन गई दिवानी
अल्हड़ता बन गया बालपन, बूढ़ापन बन गई जवानी।
यदि अब तूने उस वंशी से
दर्द भरे कुछ गीत न गाये।
रीत प्रीत की मिट जायेगी
तब फिर किसे पुकारेगा तू।
बोल साँवरे ! किसके ऊपर भर पिचकारी मारेगा तू।
आनी जानी दुनिया है यह अपनी उमर विरानी समझो
मिली नजर अफसाने हैं यदि बिछुड़ी नजर कहानी समझो।
चल उठ बरसाने का हर मन
हर कण तेरा दर्द पियेगा।
दर्द दिया है जिसने उसको
कब तक डगर बुहारेगा तू।
बोल साँवरे! किसके ऊपर भर पिचकारी मारेगा तू।
– जयन्ती अग्रवाल
होरी
रंग रंग
अंग अंग
गुलाल कियो रे
अनंत परंत
युगोपरंत
देखी तुम्हारी हंसी
मेरे तो तन मन
संवार गइयो रे ।
कैसी है, होत होरी
कैसे होरी के रंग रे
मेरे तो तन मन रहे
भौंरे के भौंरे रे।
मीठी रतनार छवि
देखी न सुनहु कबहुं
आज तनह मनह
जादू डार गइयो रे।
एक ही तेरी
झलक…
मन में उमंग
तन में तरंग
के कैसे कैसे रूप
उतार गइयो रे।
यौवन के आस पास
उगा उल्लास हास
तन मन मेरा
हुलै हुलास गइयो रे।
मन में उठी तरंग
हृदय की भाखा संग
सारे गुलाल रंग
जन्मजात– पात पात
मेरे कपोल गात
रंगई रंग गइयो रे।
-सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी ‘ ‘
किससे खेलूं होली रे !
पी हैं बसे परदेश, मै किससे खेलूं होली रे !
रंग हैं चोखे पास
पास नही हमजोली रे !
पी हैं बसे परदेश, मै किससे खेलूं होली रे !
देवर ने लगाया गुलाल
मै बन गई भोली रे !
पी हैं बसे परदेश,मै किससे खेलूं होली रे
ननद ने मारी पिचकारी,
भीगी मेरी चोली रे !
पी हैं बसे परदेश, मै किससे खेलूं होली रे !
जेठानी ने पिलाई भांग,
कभी हंसी कभी रो दी रे !
पी हैं बसे परदेश, मै किससे खेलूं होली रे !
सास नही थी कुछ कम,
की उसने खूब ठिठोली रे !
पी हैं बसे परदेश, मै किससे खेलूं होली रे !
देवरानी ने की जो चुहल
अंगिया मेरी खोली रे !
पी हैं बसे परदेश, मै किससे खेलूं होली रे !
बेसुध हो मै भंग में
नन्दोई को पी बोली रे !
पी हैं बसे परदेश, मै किससे खेलूं होली रे !
-कवि कुलवंत
अलसाए मन में यह कैसा उमंग है,
बसंती हवाओं में बिखरी सु्गंध है।
मौजों के ऊपर से चंदा भी झांक रहा,
छाया यह कैसा मदहोशी रंग है।
-शमशेर अहमद खान
प्रेम -सुखों की वर्षा बरसे
सबका जीवन हर पल हरसे ।
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
होली का मतलब मिलन, रंग-अर्थ है प्यार।
मिले सभी आ कर तभी, सतरंगी संसार।
फागुन में सब जल गया, जितना भी था रार,
निर्मल मन को कर गया, ये अद्भुत त्यौहार..
फाग लिए अनुराग की, पिचकारी के साथ,
कर देता है प्यार की, अंतस में बरसात।
-गिरीष पंकज
तन झूमें मन मस्त हो, पुलकित हो परिवार,
जीवन का हर पल रंगे, रंगों का त्योहार।
सपनों में पातल खिलें, सांसों में मकरंद,
होली के इस पर्व मे, मिले अमित आनंद।
पगलाए से दिन मिलें, मादक-मादक रात,
होली का त्योहार दे सपनों की सौगात।
जीवन की कड़वाहटें सारी जाएँ भूल,
मेरी ये शुभ कामनाएँ करें जनाब कबूल।।
नरेश व पुष्पा कात्यान
तो समझो होली है
मन में रहे उमंग तो समझो होली है
जीवन में हो रंग तो समझो होली है
तन्हाई का दर्द बड़ा ही जालिम है
प्रिय मेरा हो संग तो समझो होली है
स्वारथ की हर मैल चलो हम धो डालें
छिड़े अगर यह जंग तो समझो होली है
मीठा हो, ठंडाई भी हो साथ मगर
थोड़ी-सी हो भंग तो समझो होली है
निकले हैं बाहर लेकिन क्यों सूखे हैं
इन्द्रधनुष हो अंग तो समझो होली है
दिल न किसी का कोई यहाँ दुखाए बस
हो सुंदर ये ढंग तो समझो होली है
तन में रंग और भंग हो ज़ेहन में
पूरा घर हो तंग तो समझो होली है
दुश्मन को भी गले लगाना सीख ज़रा
जागे यही उमंग तो समझो होली है
रूखी-सूखी खा कर के भी मस्त रहो
बाजे मन का चंग तो समझो होली है
इक दिन सबको बुढऊ होना है पंकज
दिल हो लेकिन ‘यंग’ तो समझो होली है
गिरीष पंकज
तन मन लाल
पंछी करें टीका अम्बर भाल
धरा का हो गया तन मन लाल
फागुन की अँगुलियों में
सजा गीतों का छल्ला
नीले पीले रंग चले
मचाते हुए हो हल्ला
ईद मिल होली से पूछे हाल
धरा का होगया तन मन लाल
रंगों भरी चादर हटा
गुनगुनी धूप झांके
गुलाबी ठण्ड थाम के चुनर
गलियों गलियों भागे
टेसू खिले हर बाग हर डाल
धरा का होगया तन मन लाल
गोरी की हसुली टूटी
नील पड़ा था हाथ
सजना की ठिठोली हुई
पांव फिसला था हाट
लज्जा वश सुर्ख उसके गाल
धरा का हो गया तन मन लाल
पापड़ चिप्स छज्जे फैले
ताके बैठा कौवा घर में
गुझिया चहक रही
बाग भटक रहा महुआ
ठंढाई पीके बदली चाल
धरा का हो गया तन मन लाल।
रचना श्रीवास्तव
कौन रंग फागुन रंगे
कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत,
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।
रोम रोम केसर घुली, चंदन महके अंग,
कब जाने कब धो गया, फागुन सारे रंग।
रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले फाग,
साँसों में कस्तूरियाँ, बोये मीठी आग।
पलट पलट मौसम तके, भौचक निरखे धूप,
रह रहकर चितवे हवा, ये फागुन के रूप।
मन टेसू टेसू हुआ तन ये हुआ गुलाल
अंखियों, अंखियों बो गया, फागुन कई सवाल।
होठों होठों चुप्पियाँ, आँखों, आँखों बात,
गुलमोहर के ख्वाब में, सड़क हँसी कल रात।
अनायास टूटे सभी, संयम के प्रतिबन्ध,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छंद।
अंखियों से जादू करे, नजरों मारे मूंठ,
गुदना गोदे प्रीत के, बोले सौ सौ झूठ।
पारा, पारस, पद्मिनी, पानी, पीर, पलाश,
प्रणय, प्रकर, पीताभ के, अपने हैं इतिहास।
भूली, बिसरी याद के, कच्चेपक्के रंग,
देर तलक गाते रहे, कुछ फागुन के संग।
-दिनेश शुक्ल
होली का त्योहार निराला, धाट धाट पर धार है,
शेर हिरन हो एक मुहाने, ऐसे स्वप्न हजार हैं।
भई, शेर बना सरदार है ।
खट्टे हैं अंगूर या देखो, बिल्ली से तकरार है ,
खीसियानी हो खम्भा नोचे, तीखे -तीखे वार हैं ।
शेर बना सरदार है ।
चूहे बिल्ली ब्याह रचाऐ , किन्तु सब बेकार है ।
भौंक भौंककर कुते थक गए, हाथी चले बाजार है ।
शेर बना सरदार है ।
बंदर बाँट बाटती बिल्ली , चटकर गई आहार है ।
भाग से उसके छींका टूटे, नखरे करे हजार है ।
शेर बना सरदार है ।
साँप छछुंदर खेल खेल रहे, मुँह मे टपके लार है ।
मोर पपीहा सभी बौराए , सबके सब लाचार है ।
राम राज की बात करे सब, जात-पात से प्यार है ,
कैसे हो साकार ये सपना, गिरगिट की भरमार है ।
भई शेर बना सरदार है ।
कैसे तान सुने बँसुरी की, सबके मन मे खार है ।
होली के मौसम में देखो, गाए गीत मल्हार है।
भई शेर बना सरदार है ।
जंगल में मंगल है देखो, कीचड़ की भरमार है ,
फूल खिल रहे “इन्दु” फिर भी , ये बासंती राग है।
भई शेर बना सरदार है ।
इंदु झुनझुनवाला
प्यार के हैं कई रंग
और हर रंग की अपनी तरंग
पिचकारी यह रंग बिरंगी
लाल गुलाबी नीली पीली
हरी एक हरियाली-सी
खुशियाँ भरभर लाए
तभी होली है
अपने ही रंग में दो रंग
तभी होली है
-शैल अग्रवाल
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