जिस भाषा के पास ढाई लाख शब्द का विशद कोष हो ,,जो भाषा पांच करोड़ लोगों की जुबान पर हो ,,जिसका अपना विपुल साहित्य हो ,,जिसका गौरवमयी इतिहास हो ,,,जिसे केंद्रीय साहित्य अकादमी ने भाषा के रूप में स्वीकार किया हो ,,जो भाषा वीरों की गाथाओं, ख्यातों ,रासौ व विगतों से भरी हो ,,,उस भाषा को संवैधानिक अधिसूचना के लिये संघर्ष करना पड़े ,,,इसे विडम्बना नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे ,,,,
28 जनवरी को #नयाअदब बेंगलुरु के जानिब से #राजस्थानिसाहित्य पर मुझ राजस्थान के अकिंचन मूल निवासी को ,,अन्य भाषा भाषाईयों के मध्य व्यख्यान के लिये आमंत्रित किया गया जो वहाँ बताया उसका कुछ सार यहां आपके साथ साझा कर रहा हूँ।
राजस्थानी भाषा में ई सन 1000 से विभिन्न विधाओं में लिखा जा रहा है।पद्मश्री सीताराम लालस जी ने ग्यारह खंडों में ढाई लाख शब्दों को संकलित किया ।
,,श्री सूरजमल मिश्रण से इसका आरम्भ माना गया है वंश भास्कर वीर सतसई कुछ प्रमुख ग्रन्थ हैं।
1184 ई में भारत बाहुबली रास व भारू गुर्जर भाष ,,शीलभद्र द्वारा रचित प्रकाश में आया।
राजस्थान इतिहास के लिखित इतिहासकारों में जेम्सहाड जन्हें कर्नल टॉड के नाम से जाना जाता है ने मेवाड़ के गांव गांव ढाणी ढाणी घूम घूम कर दस्तावेज़ एकत्रित किये उन्हें घोड़े वाले बाबा के नाम से पुकारा जाता। उनके अनुसार 17वीं सदी तक यह स्वतन्त्र भाषा का रूप ले चुकी थी।
1907-1908 में सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने “लिग्युस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया”के दो खंडों में राजस्थान में बोले जानी वाली 72 बोलियों का जिक्र किया ,,उसमें राजस्थानी की चार उपशाखाएँ बताई गईं
1, पश्चिमी राजस्थानी
मारवाड़ी,मेवाड़ी बागड़ी बोलियों को सम्मिलित किया।
2,मध्यपूर्वी राजस्थानी
इसमें ढूंढाड़ी,हाड़ौती को शामिल किया गया
3,उत्तरी राजस्थानी
जिसमें मेवाती,अहीरवाडी रखी गई
4, दक्षिण पूर्वी
इसमें माळवी,निमाड़ी को स्थान दिया।
1914-1916 में इटली के भाषाविद एल पी तेस्तितोरी ने “इंडियन एन्टीक्वेटी। पत्रिका”में राजस्थानी भाषा की उत्तपत्ति और विकास पर प्रकाश डालेते हुए यह वर्गीकरण किया गया की इस भाषा की दो प्रमुख शैलियां हैं
1 .डिंगल
यह मारवाडी शैली है जिसका प्रयोग जोधपुर बीकानेर ,जैसलमेर ,पाली नागौर जालौर सिरोही में प्रयुक्त होती है ,,इसमें जैन साहित्य , वेली किसन रुक्मणि री,ढोला मरवण ,मूमल ,,1817 में आसिया कवि बांकीदास जी ने “कुंकुवि बत्तीसी” की रचना की अधिकांश साहित्य वीर रसात्मक रचा गया ,,जिसे चारण कवियों ने लिखा ,,राजरूपक ,अचलदास खीची री वचनिका ,रतन सिंह वचनिका ,ढोला मारू रा दुहा, राव जैतसी छंद, रुक्मणी हरण ,राठौड़ों की ख्यात आदि ग्रन्थ हैं।
2 पिंगल
यह मेवाड़ी ,,ब्रिजभासा का मिश्रण है ,,अधिकांश काव्य भाट जाति द्वारा रचित है उदयपुर इसका मुख्य केंद्र है।
पृथ्वी राज रासौ ,(चन्द्र बरदाई) ,खुमाण रासौ( दलपति)
राजस्थानी भाषा की विपुल साहित्य है।
मूथा नेंणसी रा ख्यात ,, मारवाड़ परगना री विगत भी प्रमुख ग्रन्थ हैं।
बहुत बातें हैं बताने को राजस्थानी का आधुनिक काल में ,,
1.विजयदान देथा ,,,तीडो राव ,बातां री फुलवारी,मां रो बदळो,अलेखूं ,हिटलर।
2.यादवेंद्र शर्मा चन्द्र ,,हूँ गौरी किण पीव री,खम्मा अन्न दाता।
3. मणि मधुकर ,,,पगफेरो,
4. नारायण सिंह भाटी ,,,सांझ ,दुर्गादास
5. श्रीलाल नयनमल ,,एक बीनणी दो बींद,
6. लक्ष्मी कुमारी चूडावत ,,मझली रात ,मूमल ,बाधो भामरली
7. चंद्र प्रकाश देवल ,,पागी
8.कन्हैया लाल सेठिया ,,,,पाथळ अर पिथळ
9. मेघराज मुकुल ,,,,,सेनाणी
10. हरीश भादाणी ,,,बोले सरणाटो
11. रेवदान चारण ,,,,धरती रा गीत ,चेत मानखा
12. डॉ आईदान सिंह भाटी ,,खुली आँख रा हरियल सपना
13. मीठेश निर्मोही ,,,, मुगति
14. अर्जुन देव चारण ,,धरम जुद्ध
कुछ ऐसे गीतकार हुऐ जिनको सुनते गाते हम बड़े हुऐ
1.कल्याण सिंह राजावत ,,बागां बीच बेलड़ी
2.कानदान कल्पित ,,डब सब भरिया बाईसा रा नैण
3.शक्तिदान कविया ,,त्रिकुट बंध
4. सुरेश राही ,,,,काम क्यां सरे रे भाई
5. सत्येंद्र जोशी,,,फेर रिसाणा हो ग्या लोग
6. भंवर जी भंवर
7. ,,मो सदीक,,,,,,लीरां जिंदगी है इणने सिवो तो सरी,,, गांधी थारी बकरिया बादाम चरे रे
राजस्थानी मैगज़ीन ,,,
1.माणक ,,,श्री पदम् मेहता
2.रूड़ो राजस्थान ,,,डॉ सुखदेव राव
राजस्थानी फिल्में
बाबोसा री लाड़ळी, लाज राखो राणी सती,रमकुड़ी झमकुड़ी आदि।
राजस्थानी लोक गीत
घूमर ,गणगौर ,,कुरजा ,पिणियारी,मोरिया गौरबन्ध ,निम्बूड़ा आदि।
बहुत कुछ छूट गया ,,फिर भी ,,,,
प्रेम तन्मय
शैल अग्रवाल जी
आपके द्वारा प्रकाशित ई पत्रिका *लेखनीनेट के माध्यम से आप साहित्य व समाज की महत्वपूर्ण सेवा कर रहे है ,प्रकाशित सामग्री बहुत स्तरीय साहित्य उपलब्ध कराती है बहुत साधुवाद
धन्यवाद, प्रेम तन्मय जी।