धर्म,जाति अथवा सम्प्रदाय से जुड़े किसी भी संवेदनशील मामले को लेकर हत्या किसी की भी हो या कोई भी करे,एक जघन्य अपराध है।कानून को तुरंत इस बारे में कार्रवाई करनी चाहिए और अपराधी को कठोर दंड मिलना चाहिए। रही बात ऐसे अवसरों पर लेखकों/कवियों की नैतिक ज़िम्मेदारी की।यानी रचनाकारों का ऐसे मौकों पर क्या रोल हो?उसके लिए निवेदन है कि अव्वल तो ऐसे दुष्कृत्यों की रचनाकार द्वारा कठोर भर्त्सना की जानी चाहिए और अगर भावुकतावश कविता या लेख लिखना ज़रूरी हो जाय तो दृष्टि उसकी संतुलित रहे।अगर एक समुदाय-विशेष के लिए ही वह आहत होकर आंसू बहाने लग जाय और दूसरे समुदाय के लिये चुप्पी साध ले, तो कवि की संवेदना अथवा निष्पक्षता पर प्रश्न-चिन्ह लगना स्वाभाविक है।कवि को समदर्शी होना चाहिए।हर तरह की हैवानियत और दरिंदगी अथवा अत्याचार पर उसकी कलम समान रूप से चलनी चाहिए।अगर वह ऐसा नहीं करता तो निष्कर्ष निकलना स्वाभाविक है कि कवि-लेखक मित्र भी अपने लेखन से तुष्टीकरण या वोट की राजनीति कर रहे हैं।
डॉ० शिबन कृष्ण रैणा
अलवर
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