प्रिय विक्रम!
चाँद पर यथाभिलाषित हो,
भारत के अरमानों से पालित हो,
इसरो के संस्कारों से संचालित हो,
हम सबकी उमंगों से उल्लासित हो,
चंदा मामा भोले शंकर के सिर का ताज है,
तू भारत के ज्ञान-विज्ञान-मान का नाज़ है,
धरती माँ और चंदा मामा के बीच साज है,
वीर हनुमान की तरह करना तुझे बड़ा काज है||
प्रिय विक्रम!
यदि तू संकट में है,
तो कृष्ण को याद कर कर्म कर,
राम को याद कर परेशानी को हर,
नचिकेता बन यम से भी न डर,
अर्जुन बन संकट में भी लक्ष्य पूर्ण कर,
गांधी बन चल लोक-कल्याण की डगर,
लौट आने पर तेरा अभिनंन्दन होगा,
माँ भारती के लाल तेरा वंदन होगा||
प्रिय विक्रम,
अब तुम्हारी चिंता बहुत सताती है,
संदेश न आने की व्याकुलता डराती है,
तुम्हारे बिन सूना सब संसार है,
तुम्हारी कुशलता के लिए दुआओं में डूबा,
तुम्हारा प्यारा भारत परिवार है।।
बृजेन्द्र श्रीवास्तव ‘उत्कर्ष’
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