कविता आज और अभीः पंकज प्रसून, मदन सोनी, सुशी सक्सेना, रामसिंह यादव

आइये, आपको एक कविता सुनाऊं

आइये, आपको एक कविता सुनाऊं
इस कविता में लालित्य नहीं है
न इसमे हैं कोमल और मादक शब्द
न यह सपने दिखाती है
न यह मीठी-मीठी बात करती है
यह बेहद रूखी है झकझोरती है
यह सच कहती है
सच जो कड़वा होता है
सच जो झुंझला देता है
सच, जो अच्छा नहीं लगता
यह कविता सच्चाई की गाथा है
हारती हुई सच्चाई की
अच्छाई पर बुराई की जीत की
हाशिये पर फेके गये सच की !
सच आत्मसमपर्ण नहीं करता
वह मायमार्ग नहीं होता
वह सवाल करता है
जवाब ढूंढता है
शब्द-जाल में नहीं उलझाता
उलझन सुलझाता है
और खुद दुख झेलता है
सहन करता है-
पराजित नहीं होता
सदियों से हर यगु में
इंसान की पैदााइश से ही
यह कविता उन सबको याद करती है
जो सच के लिए शहीद हो गये
पंकज प्रसून

सुनो ….??
कभी कुछ मुट्ठी चांवल , संस्कारों की पोटली में बाँध
घर से निकला था मैं ….
चाह थी कि कोई तो ऐसा कृष्ण मिले …
जिसे भेंट कर दूं मैं ..तर्पण करने को
.मैत्री के नाम पर मेरे दर्द भरे मुट्ठीभर चांवल
जीवन पथ पर चलते हुए……. देखा मैंने …
”मैत्री ” निकट थी , मगर कृष्ण मुझसे कोसों दूर था ..
मैं ढूंढता रहा , चलता रहा कृष्ण की तलाश में..
एक ऐसी यात्रा पर जिसकी मंजिल तो थी ..
मगर रस्ते का छोर न था….
चलते चलते निराशा और आक्रोश रुपी धुल से..
कई बार मलीन हुए हृदय को …
धोया मैंने ..
दुःख और विक्षोभ भरी आँखों के गर्म आंसूओं से ..
डर रहा था मैं की कही कृष्ण मिला तो कहेगा क्या ..
कि ”मित्र मेरा” रो रहा है ,,,!!??
सच ..
आंसूं पोंछने मित्र आये ..
मगर उनमे मेरा कृष्ण कहाँ था ..??
हाहाकार करता हृदय मेरा ..कैसे स्वीकार करता
कृष्ण के उन सब प्रतिरूपों को …??
फिर भी
चलता रहा मैं मेरे पथ पर ..
मैत्री के चावल बांटता हुआ ”अभिन्न मित्रों ”में
उन मित्रों में तुम थे ..तुम भी थी वो थे और वो सब भी थे ..
तुम सबने बड़ी निष्ठां से अपने संस्कारों से निर्मित
मेरे मन में बसे उस ”कृष्ण” का मंचन
मेरे हृदय रुपी इस सूने रंगमंच पर किया..
और स्नेह से मेरे,
दुःख भरे चंवालों की पोटली को चुपके से खोल
मेरे दुखों को आत्मसात कर मुझे अनुग्रहित किया …
पर ……दुःख की थाह कहाँ है जग में
तृष्णा का जाल लिपटा है मन पर ..और
मैं भटक रहा हूँ कृष्ण -प्राप्ति में
मरीचि हुई लालसा लिए …..
आत्म मंथन ..आत्म विवेचन मेरा
कहता है मुझको .
तुम सब कृष्ण हो मेरे …..कृष्ण रुपी मित्र हो मेरे …
तो आओ आत्मसात कर लो तुम सब ….
मुझे ..मेरी व्यथा को ….. ”सेन्ह्मयी सखा कृष्ण” बनकर
एक बार…
फिर से … …..!!
सुना तुमने ??

– मदन सोनी, जयपुर

अति,
अति की बरसा, अति का सूखा,
अति न किसी की भाये |
अति की आँधी जब चल जाये,
तो प्रलय दुनिया मे आ जाये |
अति की बोली, अति का मौन,
अति की भाषा समझे कौन |
पत्थर के भी टुकड़े हो जाते हैं,
जब मार अति की बो खाये |
अति का कृोध, अति का सहना,
अच्छा न लगे अति का हंसना |
नसूर बन जाते है इक दिन वे भी
अति के आँसू जो पीते जाये |
अति का भला, अति का बुरा,
अति की चाह न किसी को भाये |
सगे सगे भी दुश्मन बन जाते हैं,
अति की नफरत जो दिल मे बस जाये |
अति का रूप, अति कुरूप,
अति की दौलत पागल कर जाये |
भूखा मरे जो अति गरीब हो,
अति न किसी की भाये |
अति की उलझन, अति का सुकून
दिवाना बना दे अति का जुनून |
अति का जमघट, अति का वीराना,
ऐसे मे साँस चैन की को ले पाये |
कविता 2
तुम बेटी हो।
तुम मेरी बेटी जैसी हो, ये कहना बहुत आसान है।
इन शब्दों का लेकिन अब यहां, कौन रखता मान है।
इसी एक झूठे भ्रम में खुश हो लेती है वो नादान है।
कहने में क्या, कहते तो सभी बेटी को वरदान है।
कहने और करने में, फर्क बहुत बड़ा होता है।
बेटियों को भार न समझना मुश्किल जरा होता है।
इस दुनिया में लोगों का, दिल कहां बड़ा होता है।
भेड़िया इंसान के रूप में हर मोड़ पर खड़ा होता है।
नन्ही सी जान के दुश्मन को कौन कहेगा इंसान है।
गर्भ से लेकर जवानी तक उस पर लटक रही तलवार है।
प्यार बांटने वाली बेटी को क्यों नहीं मिलता प्यार है।
उसकी हर एक बात पर उठते हर रोज यहां सवाल है।
न जाने कब जागेगी दुनिया सुनके उसकी चीख पुकार है।
उसकी इस व्यथा वेदना का कब होगा स्थाई समाधान है।
जो कोख में नहीं मरती वो हर रोज यहां मरती है।
अपने अरमानों के संग हरपल थोड़ा थोड़ा बिखरती है।
सुरक्षा की कसम खाके भी हम रक्षा नहीं कर पाते हैं।
उसके हक के लिए बस खोखले नारे ही लगाते हैं।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का चलता हर रोज अभियान है।

सुशी सक्सेना इंदौर

प्रजापालक

सहसा वो बालक उठता है
और भरी सभा में पिता के गले लग जाता है
मानों शिकायत कर रहा हो
ये सब लोग मुझे चिढाते हैं
कोई पप्पू कहता है कोई विधर्मी कहता है।।।
कभी माँ पर तंज कसते हैं तो कभी पूर्वजों का अपमान करते हैं।।।।।

क्या इनमें से हिंदुत्व कोई जानता है????
या इनमें से भारत को कोई पहचानता है?????

अरे हिंदुत्व तो कुछ भी नही है
सनातन भारतीयता के सामने।।।।।
जब भी कोई अपनी माँ के पैरों को चूमता या माथे पर लगाता है
मेरा अर्धनारीश्वर भारत हृदय में हिलोरें मारने लगता है।।।

जब भी कोई बुर्का, टोपी, दाढ़ी और चोटी की मुखालफत करता है
वसुधैव कुटुम्बकम गीता का एक एक श्लोक गूंजने लगता है।।।।।।।

जब नमाज छोड़ जकी कुएं में गिरी गाय को बचाने कूद पड़ता है
मुझे लगता है भारत की अर्थव्यवस्था को जिंदा बचाने को पीढ़ी तैयार है।।।

वो आमिर खान भी है ना,
पी.के. में धर्मों की बुराई करने वाला,,,,
कहीं महाराष्ट्र में पानी बचाने के लिए खुदाई करने निकला हुआ है।।।।।
मां गँगा का भगीरथ बनने को उतावला,,,
उफ्फ्फ ये कैसा हिन्दू है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

स्वात घाटी में फिर से अपने पूर्वज बुद्ध की मूर्ति को बनाते और नमन करते
ये पाकिस्तानी
उफ्फ ये कैसे सनातनी हैं।।।।।।।।।
सुर की साधना में खोए ये सूफ़ी झेलम से कावेरी तक
शिव के सामवेद की झंकार में विलीन होते जाते हैं।।।।।।

पीपल और बरगद के पेड़ लगा कर विश्व कीर्तिमान बनाने वाला पाकिस्तान
बरबस ही आयुर्वेद को भविष्य के लिए संजो रहा है।।।।।

आह ये मेरे महान वैज्ञानिक और विश्व के अग्रज पूर्वज।।।।।।
हे भारत तुझे नमन है।।।।।।।।

लेकिन आज के
ये हिन्दू तो वो हैं जो बंगाल अकाल के कारण थे,
सदियों से मानवता को उंच नीच में बांटे थे।।।
ये मुसलमान तो वो हैं जो बंदा बैरागी जैसे कितने शीश,
न जाने कितनी माँओं का शील विदीर्ण किये थे।।।।।।।

मेरे सनातन भारत को छिन्न करने वालों से
मानवता को बचा लो हे पिता।।।

तुम तुलना कैसे कर सकते हो?
बचपन से दादी और पिता को खोने वाला
वो बालक
सर में पल्लू रखी माँ के वचनों को निभाने
कभी धूप में निकल पड़ता है,,
कभी गावों में धूल फांकता है,,,
सहज मुस्कुराता इंसानियत का पाठ पढ़ा देता है।।।।।

पता है, तुम महात्मा हो,
तुम्हारे अंक में समाना स्वयं में सम्मान है।।।।
पिता के हृदय को हठात आलिंगन करने का रोमांच
देखो तो जरा,,,,
जाओ और गले लग जाओ……
फिर देखो वो सामने वाला बुज़ुर्ग
कृतज्ञ और वात्सल्य से भरा सब कुछ उड़ेल देगा तुम्हारे लिए।।।

हे पिता बहुत विशालता है तुम्हारे भीतर,,,
भारत को सीरिया, अमेरिका, चीन, अफगान या पाकिस्तान बनने से बचाते तुम्हारे कदम
भारत के गौरव को शनेः शनेः स्थापित करते
कभी खुद से लड़ते – कभी घिरे लोगो से लड़ते।।।।।।।

तुम्हे पता है?
“प्रजापालक” — पिता होता है।।।।
तुम्हारे एक निर्णय पर हम सनातनी पलते हैं।
क्या आश्चर्य की आज वो हठी बालक गले लग गया।।।
क्या तुम उसका उपहास उड़ा सकते हो?

नहीं-नहीं——-
तुम ब्राह्मण नहीं हो, तुम चर्मकार नहीं हो..
तुम आर्य नहीं हो, तुम अनार्य नहीं हो…
तुम हिन्दू नहीं हो, तुम मुसलमान नहीं हो,
तुम कुछ भी नहीं हो सिवाय हम डेढ़ अरब मानवों
और स्वछन्द पलते हर जीव – हर पौधे के पिता के ।।।।।।

इन मूर्ख हिंदुओं और मुसलमानों को समझाओ
इतिहास के वो काले अक्षर दिखाओ
एक महान देशभक्त, संयमी, चरित्र और पवित्रता का बिम्ब।।।
आर्यों की सर्वश्रेष्ठ नस्ल स्थापित करने की ललक में इतिहास बदल बैठा…
हिटलर ने तब नही सोंचा था
की भविष्य उसको इतना घृणित और पापी कहेगा।।।।।

लेकिन कभी राजनीति से हटकर देखना,
तुमको सुकून मिलेगा
जब तुम देखोगे
खून से लथपथ सड़क में पड़े इस्कॉन के पुजारी
और उनको अस्पताल पहुँचाता वो मसीहा
जिसके घर का शुद्धिकरण कराया था कभी तुम्हारे धार्मिकों ने।।।

कभी आगरा एक्सप्रेसवे से गुजरते हुए
यूपी के गाँव जाकर किसी बूढ़ी माँ की पेंशन,
किसी मंदिर के पुजारी की तनख्वाह,
या श्रवण चारधाम यात्रा पता करना।
तुम्हें महसूस होगा ये कथित ओरंगजेब बहुत परिपक्व है।।।।

कभी तुम अंध धार्मिकों के कश्मीर में रहते उमर को देखना और सुनना
जो देशद्रोहियों के बीच भारतीयता का स्तम्भ बना बैठा है।।।।।

बस जरा ऐसे ही सोंचना
ये शिवभक्त बच्चा तुम्हारे गले क्यों लगा।।।।।।
तारीख़ में नई किस्म की राजनीति लिखता ये लड़का अमर हो गया।।।।।।
और तुम्हारा वो वात्सल्य पूर्ण सिर को सहलाता हाथ
सबकी नजरों से दूर हृदय की गहराई को अंकन कर गया।।।।।।।।

कभी जरा ऐसे ही सोंचना
गरम खून से उबलते भीड़ के हिस्से से दूर,,,
ये नौजवान लड़के
कभी जुबान से बहके हैं?
तुम्हारे सम्मान में बिना ‘जी’ लगाए बोले हैं?

बिकी मीडिया और इंटरनेट के दुष्चक्र से निष्कलंक
ये भारतीय संस्कार के स्वाभिमानी प्रतिबिम्ब
झंझावातों को संयम से झेलते
धैर्य के साथ भारत को भविष्य की ओर ले जा रहे हैं।।।।।।।
बिना किसी शिकायत के चुपचाप
तुम्हारे कदमों को सहेजते अपने कदम बढ़ा रहे हैं।।।।।।।

ये भावी पीढ़ी भविष्य तो बचा लेगी
पर तुम वर्तमान बचा लो।।।

हे पिता,,,
देखो जरा, ये बादलों से झरता अमृत — कचरे के रूप में बहा जा रहा है….
तुम अब तालाबों, झीलों, नहरों, नदियों की सुधि भी ले लो।।।।।
गौरव भरे राष्ट्रों के मुकुट बिन पानी सूखे रेगिस्तान में,,
रुधिर से सूखे कंठ तृप्त करते कट कट गिरे हैं……..
कंक्रीटों से पटे कन्नौज, पाटलिपुत्र, हस्तिनापुर, गंधार, बुन्देल, आगरा के वीरान मकबरे,,,,,
आज दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई को क़ब्रगाह में तब्दील होते देख रहे हैं।।।।।।।।।

आस है कि तुम शायद अब राजनीतिज्ञ न रहो
बस नए विश्व के पालक बन जाओ।।।।।।।।।।
हिन्दू मुस्लिम चिल्लाते लोगो की परवाह किये बिना,,
पानी बचाकर…..
खाना और रोजगार देकर…..
सीमित जनसंख्या नीति बनाकर……
सब इंसानों को एक छत्र कानून के नीचे लाकर…..
पर्यावरण और नैतिक अर्थव्यवस्था को संस्कारों में भरकर….
नफरत भरे दिलों को इन्सान बनाकर…..
सनातन भारत को पुनः जगाओ,,,
नए विश्व के पालक बन जाओ।।।।।।।।।।।।।
सबको एक नजर से देखने वाले पिता बन जाओ।।।।।।।।।।।।।
-रामसिंह यादव

error: Content is protected !!