वे हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार होने के साथ-साथ एक सशक्त कहानीकार, नाटककार और आलोचक भी थे। इनके सम-सामयिक विषयों पर विचारोत्तेजक lलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से प्रकाशित होते रहे हैं।वे गांधीवादी चिंतक/विचारक भी थे।
अपने समय में इनका उपन्यास ‘ढाई घर’ अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था। वर्ष 1991 में प्रकाशित इस कृति को 1992 में ही साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। गिरिराज किशोर द्वारा लिखा गया “पहला गिरमिटिया” नामक उपन्यास महात्मा गांधी के अफ्रीका प्रवास पर आधारित था,जिसने इन्हें विशेष पहचान दिलाई। ‘अकार’ नामक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन भी इन्होनें बहुत दिनों तक किया।साहित्य सेवाओं के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा व्यास सम्मान, गाँधी सम्मान, भारतीय भाषा परिषद सम्मान, साहित्य भूषण, वीरदेवजू सम्मान, भारतेन्दु सम्मान आदि से समय-समय पर नवाज़ा गया था।
हम दोनों लगभग दो वर्षों तक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान,शिमला में साथ-साथ रहे।उनका चर्चित उपन्यास ‘पहला गिरमिटिया’ यहीं से हिंदी जगत के सामने आया था।ये बातें 1999 और 2002 के बीच की हैं।शिमला प्रवास के दौरान उनसे जुडी अनेक स्मृतियाँ जेहन में ताज़ा हैं।उस जमाने में संस्थान ने प्रत्येक फेलो/अध्येता को एक-एक कंप्यूटर मुहैया कराया था। मुझे याद है उनके कंप्यूटर में कोई प्रॉब्लम होती तो मुझे इण्टरकॉम से तुरन्त बुलाते। प्रॉब्लेम ठीक होने पर मुझे ख़ुशी से शाबाशी देते।मुझे यह भी याद आ रहा है कि उन्होंने मुझ से कश्मीर से ‘फिरन’ (सर्दियों में पहनने का ऊनी कपड़े का चोला) मंगवाया था जो मैं उनके लिए जम्मू से खरीद के लाया था।इसी तरह का फिरन भीष्म साहनी भी विशेष अवसरों पर पहना करते थे।साहनी शिमला में मुझ से पहले अध्येता रहे हैं।
उस ज़माने में कृष्णा सोबती और रामकमल राय भी हमारे साथ संस्थान में थे।ये दोनों भी अब हमारे बीच नहीं रहे।गिरिराज किशोर की स्मृति को नमन
DR.S.K.RAINA
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
Ex-Member,Hindi Salahkar Samiti,Ministry of Law & Justice
(Govt. of India)
SENIOR FELLOW,MINISTRY OF CULTURE
(GOVT.OF INDIA)
2/537 Aravali Vihar(Alwar)
Rajasthan 301001
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