वह जामुन का पेड़ पुश्तैनी था। सभी पेड़ कट चुके थे , बगीचा मैदान बन चुका था पर वह अभी भी वहीं और ज्यों का त्यों खड़ा था, वजह-उस पर मीठे-मीठे जामुन आते थे। बस एक ही समस्या थी मालिक या उसके बच्चों को एक खाने को न मिलती, पकने के पहले ही सारी जामुन बंदर खा जाते। जो खा न पाते उन्हें भी तोड़-तोड़ कर जमीन पर बिखरा देते। चिढ़ जाते थे पापा बंदरों को देखते ही और बंदर पापा को देखकर। एक दिन तो हद ही हो गई , जब पापा डंडा लेकर उन्हें भगाने जा रहे थे तो बंदर पापा के मुँह से उनका चश्मा ही छीन ले गए। फिर तो लाख कोशिशों और केले के लालच के बाद भी कई टुकड़ों में ही कांच टूटा चश्मा वापस मिला था उन्हें।
बहुत दुखी थे सभी क्या किया जाए, झर्रे वाली बन्दूक तक से नहीं डरते थे बंदर। एक-आध को तो थोड़ी बहुत चोट भी लगी थी, फिर भी वही रोज-रोज का उपद्रव। हारकर पेड़ कटवाने का फैसला कर लिया है पापा ने, सुनकर तो चुनमुन का तो रोना ही नहीं रुक रहा था। असल बात यह थी कि उसे जामुन से भी ज्यादा बंदर अच्छे लगते थे। अब वह कैसे समझाए पापा को कि बन्दरों को भी तो भूख लगती ही है- फिर इनके पास डबलरोटी तो नहीं जिसे सुबह सुबह खा लें , फिर इन्हें टाइनिंग ट्बल पर बैठकर खाना भी तो नहीं सिखाया किसी ने। जो मिलेगा और जैसे आता है, वही तो और वैसे ही तो खाएँगे बेचारे।
अब उसने एक निश्चय किया कि मम्मी का झूठा बचा-कुचा खाना जो मम्मी कूड़े में फेंक देती थीं, बन्दरों के लिए जामुन के पेड़ के नीचे एक कोने में रख दिया करेगी।
धीरे-धीरे बंदर उसे भी उतने ही प्यार से खाने लगे, वह भी बिना फैलाए । और पेड़ पर भी कई जामुन बचने और पकने लगीं, जो चुनमुन और उसके पापा बड़ा स्वाद ले-लेकर खाते हैं। और हाँ, एक जादू और हुआ अब बंदर उन्हें देखकर गुर्राते नहीं, टुकुर-टुकुर राह देखते हैं उसका और पापा का। इंतजार करते हैं जैसे कि एक दोस्त दूसरे का करता है।….
साझा यह संसार हमारा
धरती हमारी आसमान हमारा
नदिया, झरने, पंछी और पौधे
कितना सारा बिखरा खजाना हमारा
तरह तरह के लोग यहाँ पर
तरह तरह के जीव
रहेंगे सब मिल-जुलकर
तभी निभेगी प्रीत, जीने की रीत
सब अच्छे हैं बुरा कोई नहीं
शर्त यही बस अपना-सा जानो
उनका भी सुख-दुख पहचानो
शैल अग्रवाल
shailagrawal@hotmail.com
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