हास्य-व्यंग्यः झगड़ा- नरेन्द्र कोहली


वह बहुत क्रुद्ध था। इतना कि उसे अपने वस्‍त्रों का भी चेत नहीं था। वह संतरियों की सलामी की ओर क्‍या ध्‍यान देता।
वह घर में घुसता चला गया। किसी ने उसे टोका नहीं। टोकने से वह रुकने वाला भी नहीं था।
उसने गृहस्‍वामी को देखा तो जैसे उसके कपाल में से अग्नि फूट निकली। उसके मुख से ज्‍वालामुखी के समान अपशब्‍दों का लावा फूट कर बहने लगा। लगा, लावा उसके कंठ में जमा हुआ था, सुपात्र को सामने देखते ही फूट पड़ा।
गृहस्‍वामी की आंखें आश्‍चर्य से फट पड़ीं, ”क्‍या हो गया है तुम्‍हें ? होश में तो हो ?”
”होश में तो तुम नहीं हो। जाने अपने आपको क्‍या समझने लगे हो।”
ज्‍वालामुखी ने कहा, ”मैंने साथ छोड़ दिया तो तुम्‍हारे भी होश ठिकाने आ जाएंगे। चपरासी भी नहीं रह पाओगे, मुख्‍यमंत्री तो क्‍या।” ”पर हुआ क्‍या है ?”
”मेरा सागर तट वाला बंगला क्‍यों तुड़वा रहे हो ?” ज्‍वालामुखी आपे में नहीं था।
”कौन सा बंगला ?”
”यह भी कोई रामसेतु है कि पूछ रहे हो, कौन सा रामसेतु ? कौन सा राम ?”
”मैं सचमुच कुछ भी समझ नहीं पा रहा हूं।”
”नहीं समझ पा रहे तो मैं समझा देता हूं।”
ज्‍वालामुखी बोला, ”मुझे वकील ने बता दिया है कि अगली पेशी में वह न्‍यायालय में कहने वाला है कि हमें मल्‍बा मिल गया है।” ”कौन सा मल्‍बा ?”

”रामसेतु का मल्‍बा।” ज्‍वालामुखी ने कहा, ”राम ने सेतु तुड़वाया तो मल्‍बा कहां डलवाया ? कोई प्रमाण भी तो होना चाहिए।”

”उससे तुम्‍हारे बंगले का क्‍या संबंध ?”
”मेरे बंगले को तोड़ कर वह उस मल्‍बे को रामसेतु का मल्‍बा सिद्ध करेगा।” ज्‍वालामुखी ने कहा, ” पर मेरा बंगला कितना भी बड़ा हो, उसका मल्‍बा इतना नहीं होगा कि तुम उसे रामसेतु का मल्‍बा सिद्ध कर सको।”

”तुम तो ऐसे कह रहे हो, जैसे तुम जानते हो कि रामसेतु कितना बड़ा था।”
”तुम नहीं जानते क्‍या ?” ज्‍वालामुखी बोला, ”रामेश्‍वरम से ले कर श्रीलंका के मन्‍नार द्वीप तक है। छोटा नहीं है। 48 किलोमीटर लंबा है। चौड़ाई … मैं भूल गया हूं।”
”तुम्‍हारा दिमाग सचमुच खराब है।” गृहस्‍वामी बोला, ” तुम यह सब कहीं भी बक दोगे और सिद्ध कर दोगे कि रामसेतु ऐतिहासिक सेतु है। ऐसे में हम उसे तुड़वाएंगे कैसे ?”
”हां दिमाग खराब है मेरा। अपना बंगला तुड़वा कर उसका मल्‍बा समद्र में डलवा दो और कहो कि यह रामसेतु का मल्‍बा है। मेरे बंगले के पीछे क्‍यों पड़े हो ?”
”मैंने तुम से पहले ही कहा है कि मैं तुम्‍हारा बंगला नहीं तुड़वा रहा हूं।”
”तो कौन तुड़वा रहा है – हनुमान् ?”
”अब तुम हनुमान् को भी मानने लगे ?”
” क्‍या तुम नहीं मानते ?”
”मैं यह सब कुछ नहीं मानता।”
”तो हर समय पीला कपड़ा क्‍यों टांगे रहते हो अपने कंधों पर ?”
”उसका इससे क्‍या संबंध ?”
”वह सब बाद में बताऊंगा।” ज्‍वालामुखी बोला, ” अभी तो इतना ही कहने आया हूं कि यह मल्‍बे का चक्‍कर छोड़ो।”
”तो यह कैसे सिद्ध करेंगे कि राम ने स्‍वयं सेतु तुड़वाया था ?”
”तुम और तुम्‍हारा वकील दोनों ही पागल हो। यदि यह सिद्ध करोगे कि रामने स्‍वयं सेतु तुड़वाया था तो तुम कितनी बातें स्‍वीकार कर रहे हो, मालूम भी है ?”
”क्‍या स्‍वीकार कर रहे हैं कि तुम्‍हारा बंगला अवैध रूप से बनवाया गया था ?”
”वह तो स्‍वयंसिद्ध है।” ज्‍वालामुखी बोला, ” तुम स्‍वीकार कर रहे हो कि राम सचमुच ऐतिहासिक पुरुष हैं। वे सचमुच हुए थे।…”
”यह क्‍या बकवास है ?”
”अरे यदि वे हुए नहीं थे तो सेतु कैसे बनवाया ? और यदि बनवाया नहीं तो तुड़वाया क्‍या – तुम्‍हारा सिर ? और अब …” ”और अब क्‍या ?”
”अब मेरे बंगले के मल्‍बे को सेतु का मल्‍बा बता कर तुम सिद्ध करोगे कि उस समय सीमेंट लोहा, कंकरीट सब कुछ हुआ करते थे।” ज्‍वालामुखी भड़क उठा, ”तुम पागल हो गए हो एकदम।”
”अनाप शनाप बकना छोड़ो और होश में आओ।” गृहस्‍वामी ने कहा।
”देखा।” ज्‍वालामुखी बोला, ” मेरा बंगला टूटा तो मैं न्‍यायालय में यह सिद्ध करूंगा कि राम ने सेतु बिना सीमेंट के बनवाया था। पत्‍थरों में जोड़ नहीं थे। वे बड़ी बड़ी शिलाएं थीं, जो अपने भार के कारण एक दूसरे पर टिकी हुई थीं। वे इतनी भारी थीं कि समुद्र की लहरें भी उन्‍हें हिला नहीं पा रही थीं । इसलिए यह मल्‍बा उस सेतु का नहीं हो सकता।”
”तो उससे क्‍या सिद्ध होगा ?”
”उससे सिद्ध होगा कि सेतु को न किसी ने तोड़ा न तुड़वाया। तुम ही हो जो उसे तोड़ना चाहते हो। ”
”लक्ष्‍य क्‍या बताओगे ?”
गृहस्‍वामी बोला, ”मैं सिद्ध करूंगा कि तुम तुड़वाना चाहते हो, ताकि तुम्‍हारे जलपोत उस मार्ग से आ-जा सकें।”
”और मैं सिद्ध करूंगा कि तुम यह सब वोटों के लिए कर रहे हो। तुम एल.ट.टी.ई. के छोटे बजरों को अवैध रूप से शस्‍त्र लाने, ले जाने की सुविधा देना चाहते हो। तुम इस देश को तोड़ना चाहते हो।”
” अभी तो मैं तुम्‍हारा सिर तोड़ना चाहता हूं।” गृहस्‍वामी ने पास पड़ा लठ उठा लिया।
(8.8.2008)

-नरेन्‍द्र कोहली, 175 वैशाली, पीतमपुरा, दिल्‍ली-110034

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