नोटबन्दी, दो शब्द चित्रः-शैल अग्रवाल-लेखनी-जनवरी-फरवरी 17

नीचे की दराज
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दुकान एक चमचमाते माल में थी। सारा सामान मंहगा व विदेशी।। हेयर क्लिप 325 रुपए की थी, उसने 400 दिए थे । 75 की जगह बस 10 रुपए हाथ में वापस देते हुए दुकनदार बोली , छुट्टा नहीं है।
उसने भी पैकेट वापस रख दिया –नहीं चाहिए अभी। बाद में ले लूंगी। इसकी ऐसी कोई तुरंत जरूरत नहीं।
दुकानदार सुनते ही कउन्टर पर झुकी और पैसे लौटाने की बजाय 75 ही इसबार देते हुए बोली-ये लीजिए मिल गए मुझे, नीचे की दराज में थे कुछ।

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आराम-आराम का पैसा

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दो हजार का नोट उसकी तरफ फेंकते हुए मिल मालिक बोला-हिसाब किताब बराबर।
कैसे बाबूजी, दस दिन से रोज लाइन में दोनों आदमी खड़े रहे । लाख रुपया से ऊपर का नोट बदला।
अरे भाई, दस दिन की मजदूरी दो आदमी की सौ रुपए रोज के हिसाब से कितनी हुई जोड़ ले और फिर यहाँ तो पत्थर भी नहीं तोड़े, आराम-आराम का पैसा है सारा ।

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