वैटिकन सिटी और सैंट पीटर बैसिलिका -शशि बंसल

किसी धार्मिक स्थल की अपनी एक खास पहचान होती है, जो उस स्थान की हवा में तैरती है,वहां चारों तरफ झलकती है। यों ही किसी स्थान की महिमा नहीं बनती, उसके नियम कायदे होते हैं तथा पावनता -पवित्रता का अहसास होता है। उसकी माटी में त्याग और बलिदान दफ़्न होता है, उस अनगढ़ को तराशने में लगा खून पसीना वहां की दीवारों, गुम्बदों और चबूतरों पर बहता हुआ दिखता है। तभी वह प्रकाश का एक ऐसा ज्योति बिंदु बन पाता है जिसकी किरणें वहां से निकल, विश्व के कोने -कोने में फ़ैल कर सब को प्रभावित करती हैं।रोम में वेटिकन सिटी का सैंट पीटर चर्च ऐसा ही लाइट हाउस है, जहाँ से पोप का संदेश सम्पूर्ण दुनिया के घटनाक्रम पर असर डालता है। मैंने अक्सर टेलीविजन की ख़बरों में ही पोप को देखा था और पृष्ठभूमि में चर्च के घंटियों की आवाज सुनी थी। इसीलिए तभी से सोचती कि स्क्रीन पर दिखने वाला वह स्थान न जाने कैसा होगा ? जिसकी दुनिया में इतनी महिमा है। प्रथम दिन ही ‘ Hotel Mercure ‘ में हमारी गाईड ने हमें दो बातों के लिए सावधान कर दिया था। एक तो ‘शॉर्ट्स ‘ मतलब छोटे कपडे नहीं पहनने हैं, दूसरे मार्ग में ठगों से सावधान रहना है। इसीलिए जब अगले दिन बस से उतर कर फ्लाईओवर से नीचे उतरे और फिर पुल के नीचे से गुजरे, तो हमें बड़ी भारी भीड़ के बीच से गुजरना पड़ा। सड़क के दोनों ओर भीख मांगने वालों का जत्था खड़ा था, जो पर्यटकों का रास्ता रोक रहे थे। इतने में एक अजीब सी आकृति की एक महिला , काला दुपट्टा ओढ़े, रोनी सी सूरत बनाये, अपनी भाषा में कुछ बोलती हुई हमारे आगे खड़ी हो गयी। तभी हमारा ‘टूर ऑपेरटर ‘हमें उससे बचाता हुआ तेजी से आगे ले गया और हमें सतर्क किया। वहां से निकल हम खुले स्थान पर आ गए, जहाँ सामने विशाल प्रांगण में सैंट पीटर चर्च हमें बांहे पसारे मुक्त भाव से पुकार रहा था। हालांकि जून का महीना था और भारत में जो धूप आँखों को चुभ रही थी, वह यहाँ गोद सी गुनगुनी गर्माहट दे रही थी और हवा जैसे सहला रही थी। यह विश्व का सबसे बड़ा कैथोलिक चर्च है और क्रिश्चियन गतिविधियों का मुख्य केंद्र स्थल है।अगर हम वेटिकन सिटी का इतिहास या भूगोल समझे तो यह मात्र 110 एकड़ में फैला एवं केवल एक हजार नागरिकों का देश है। जिस के नागरिक यहाँ पैदा नहीं हुए, फिर भी वेटिकन सिटिज़न हैं। सन 2011 तक यहां के नागरिकों की संख्या सिर्फ 594 थी, जिसमे चर्च के सभी सदस्य, नन और स्विस गॉर्डस भी शामिल थे। दुनिया के सबसे छोटे इस देश की सबसे छोटी रेलवे लाइन है, लेकिन दुनिया का सबसे बढ़िया ‘पोस्ट ऑफिस ‘है। हैरानी यह है कि इस ‘स्मॉलेस्ट कंट्री ‘में सारी दुनिया की अपेक्षा शराब सबसे ज्यादा ‘कन्जूयम ‘होती है। इस की अपनी अलग मुद्रा ,स्टैम्प ,झंडा और राष्ट्रीय गीत है तथा इसके नागरिकों के अलग पासपोर्ट हैं। इसका प्रशासन पोप के हाथ में है, जिसका खर्च म्यूजियम की ‘एंट्री फीस’ एवं ‘सौवेनिर सेल्स ‘से प्राप्त आमदनी से चलता हैं। वैसे वेटिकन सिटी का इतिहास रोम शहर से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इस का दो मील बॉर्डर रोम से लगता है। और उतना ही प्राचीन है ,जब AD 64 में रोम शहर में आग लगी थी। सम्राट नीरो ने स्वयं का दोष, रोम में उपस्थित क्रिश्चियन लोगों पर लगाया। उन बेगुनाह लोगों को सलीब पर टांगा और फिर यहीं दफनाया गया। उन लोगों में जीसस क्राईस्ट के शिष्य सेंट पीटर भी थे, जो रोम के प्रथम बिशप थे। वे ईसा मसीह के धर्म प्रचारक व् दूत थे, उन्हें भी सलीब पर उल्टा टांगकर, वेटिकन हिल पर कब्र में दफना दिया गया।वैसे तो तीसरी सदी से ही ‘क्रिश्चियनिटी ‘धर्म का ध्रुव केंद्र स्थल रोम ही रहा और वेटिकन हिल ‘क्रिश्चियन पिलग्रिमेज’ बना। किन्तु चौथी सदी में क्रिश्चियन धर्म की पहचान के बाद ही रोम के राजा ‘Constantine ‘ने मूल चर्च का निर्माण करवाना प्रारम्भ किया ,जहाँ सैंट पीटर के दफनाने का स्थल माना जाता है। इसीलिए यह कहा जाए कि येरुशलम की अपेक्षा रोम से ही ‘क्रिश्चियन रिलीज़न ‘ अन्य देशों में एवं फिर पूरे विश्व में फैला तो यह अतियुक्ति न होगी।
इस तरह छठी शताब्दी से पंद्रहवीं सदी तक रोम ‘क्रिश्चियन ‘धर्म के मुख्यालय के रूप में जाना जाता था। पंद्रहवीं सदी में जब चर्च का पुनः निर्माण हुआ, तब तक यह धन – सत्ता एवं कला -सौंदर्य का क्षेत्र माना जाता था। किन्तु चौदहवीं सदी तक पोप वेटिकन में नहीं रहता था एवं मध्य युग में कई बार उसे विपरीत हालातों और परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ा। वेटिकन की कहानी से पता चलता है कि कई बार पोप को जान बचाने के लिए गुप्त रास्तों से भी निकलना पड़ा। जिसके लिए तेरहवीं सदी में ही ‘हाफ माईंड ‘सुरंग पोप के किले से ‘टाइबर रिवर ‘तक बनाई गयी। सन 1506 ईसवी में पोप जूलियस II ने अपनी सुरक्षा के लिए स्विस फ़ोर्स को ‘hire ‘किया, जो अभी तक कायम है। लेकिन सन 1870 ईस्वीं में नयी सरकार ने वेटिकन के छोटे से हिस्से को ‘सीज़’ कर दिया,जिससे चर्च और इटेलियन गवर्नमेंट के मध्य ‘कोल्ड वार ‘छिड़ गयी। पोप ने ‘किंगडम ऑफ़ इटली ‘के अधिकार को मानने से इंकार कर दिया तथा वेटिकन क्षेत्र ‘इटेलियन नेशनल कण्ट्रोल ‘से बाहर रहा। लगभग साठ वर्षों तक पोप Pius IX ने स्वयं को वेटिकन में कैदी बनाये रखा। एवं जब तक ‘ इटेलियन ट्रुप्स ‘ सैंट पीटर स्कवॉयर ‘में स्थित रहे, तब तक पोप ने अपनी बालकनी से आम लोगों को भी ‘ब्लेसिंग ‘देने से इंकार कर दिया। यह झगड़ा सन 1929 ईस्वीं में ‘लैट्र्न पैक्ट्स ‘के तहत शांत हुआ, जिसमे वेटिकन की स्वायतता को स्वीकार किया गया। तब हर्जाने के तौर पर चर्च को 92 मिलियन डॉलर दिए गए और चर्च ने इस धन राशि को अपनी सम्पदा में सुरक्षित रख लिया। उस समय इटेलियन सरकार के प्रमुख मुसोलनी ने इस समझौते पर, राजा विक्टर एम्यूलन III के प्रतिनिधि तौर पर हस्ताक्षर किये। लेकिन तानाशाह मुसोलनी के पतन और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह शहर जर्मनी की नाजी सेना द्वारा अधगृहीत कर लिया गया। युद्ध में यह शहर अन्य यूरोपियन सिटीज की तरह बर्बाद हो गया, जिसमे 19 जुलाई 1943 को 3000 लोगों की मृत्यु हुई और 11000 लोग जख्मी हुए। इस प्रकार रोम में भी सदैव पोप का ही प्रभुत्व रहा, जब तक ‘इटली संघ’ नहीं बना। यह तो 1950 और 1960 के दशक में आधुनिक रोम की नींव पड़ी, हमारी गाईड ‘बेसिलिका ‘के प्रदर्शन से पूर्व की पूर्वपीठिका हमें समझा रही थी। जगह -जगह पर स्विस रक्षक अपनी खास तथा विलग वेशभूषा में तैनात थे, जिनके सिर पर ‘हैट ‘के ऊपर लाल रंग का फ़र्र दूर से दिख रहा था। पास पहुँचने पर उनके कॉलर एवं ग्लब्स का ‘व्हाईट ‘ तथा पोशाक के बटन एवं बैल्ट के बक्कल का ‘गोल्डन कलर ‘ अलग से चमक रहा था। हम लोग सीधे – सीधे चलकर उस विराट स्थल पर पहुंचे ,जहाँ ईस्टर एवं नए पोप के चुनाव जैसे किसी ख़ास मौके पर लगभग चार लाख लोग इक्कट्ठे हो जाते हैं। सैंट पीटर स्क्वॉयर ( Piazza San Pietra ) के बीचोंबीच इजिप्टियन मीनार ( Obelisk ) लगी हुई थी एवं उसी के दायीं तरफ एक फव्वारा लगा हुआ था। इस मीनार के विषय में हमारी गाईड ने बताया कि यह इजीप्ट ( Egypt )में ही स्थापित थी, जिसे 37 AD में ख़ास जहाज से रोम लाया गया था। फिर इस चर्च के नवनिर्माण के दौरान पोप ने ‘obelisk ‘ को यहाँ लगाने का निर्णय लिया। यधपि फासला सिर्फ 300 मीटर का था, किन्तु फिर भी यह असंभव सा कार्य था। जिसे नौ सौ मजदूरों और लगभग 75 -140 घोड़ों की सहायता से रस्सियों के सहारे लाया गया। इसके बाद 1613 ईस्वीं में इसके करीब फव्वारा भी लगाया गया ,जिसने इस अहाते को भव्य स्वरूप प्रदान किया। यहीं से चर्च का अगला हिस्सा ( Front Facade ) सूरज की धूप में बहुत उजला दिख रहा था। “हमारे लिए आज यहाँ आना बहुत शुभ और सुलभ रहा ,क्योंकि चर्च में प्रवेश के लिए आज लम्बी लाइन में खड़े होने के इन्तजार से बच गए “, हमारी गाईड ने हमें यह कहकर वहां भीड़ न होने का संकेत दिया। भारतीय मंदिरों की तरह, सामान जमा करने वाले स्टोर के निकट आ पहुंचे थे। जहाँ चमड़े से बनी कोई भी वस्तु,चाहे वह बेल्ट -पर्स हो या जूते -चप्पल हों, एक ट्रे में डालकर एक्स रे मशीन से निकालना पड़ा।
नजदीक आते -आते दूर से अस्पष्ट दिख रही आकृतियां, अब साफ़ नजर आने लगी थी।सेंट पीटर स्क्वॉयर के दोनों तरफ बने बॉर्डर पर अर्ध गोलाकार स्तंभावली ( Colounades )बनी हुई थी, जो महानं वास्तुकार बर्निनी द्वारा डिजाईन की गयी थी। सन 1660 ईस्वीं में बनी इन समानांतर स्तम्भों की चार पंक्तियाँ, जिनमे 284 खम्बे हैं एवं जिनके 88 चतुर्भुज यानी चौकोर स्तम्भ हैं। ये स्तम्भ बीस मीटर ऊँचे तथा 1.6 मीटर चौड़े हैं,जिनके ऊपर 140 प्रतिमाएं स्थापित हैं। ये सब मूर्तियां पोप तथा प्रमुख हस्तियों के साथ शहीद और बलिदान देने वाले धर्म प्रचारकों की हैं, जिन का निर्माण बर्निनी एवं उनके शिष्यों ने किया। दूर से एक नजर आने वाली पंक्ति निकट से देखने पर चार भागों में विभक्त दिखती है,जो बर्निनी को महान शिल्पकार के साथ गणित और ज्यॉमेट्री का जानकार भी घोषित करती है। 45.5 मीटर ऊंची दीवार पर सामने 5.7 मीटर ऊंची ‘क्राईस्ट ‘की प्रतिमा सुशोभित है। इसके साथ ही ईसा मसीह द्वारा धर्म प्रचार के लिए नियुक्त धर्मदूत सेंट पीटर तथा ईसाई दीक्षा लिए जॉन की मूर्तियां हैं। इनके दोनों ओर बड़ी -बड़ी घड़ियाँ सजी थी, जो देव दूतों,फरिश्तों और कैथोलिक चिन्हों से सजी हुई थी, जो सिर्फ कैथोलिक चर्च में नियुक्त पोप के कोट पर ही लगाएं जाते हैं। जब हम दालान को पार कर रहे थे, तभी गाईड ने चर्च के साथ बने भवन की बालकनी की ओर इशारा करके कहा “यहाँ से पोप क्रिसमस और ईस्टर पर लोगों को आशीर्वचन दिया करते हैं। यह ‘Apostolic Palace ‘ है, जो वेटिकन सिटी के भीतर पोप का सरकारी आवास है। इस भवन का निर्माण 1477 -1480 के मध्य हुआ और इसी के भीतर वह म्यूजियम है, जिस का कला संग्रहालय विश्व प्रसिद्ध है। जिसमे लगी कलाकृतियाँ रोमन मिथक तथा जीसस क्राईस्ट और पादरियों के जीवन से सम्बन्धित कथाओं पर आधारित हैं।” यह कहते हुए गाईड के हाव -भाव में एक गर्व और गरिमा थी, जो सम्भवतः उन्हें रोम की जमीन से प्राप्त हुई है।
गाईड ने अपनी बात को जारी रखते हुए बताया,” ‘The Sistine Chapel ‘ नाम से विख्यात कला संग्रहालय अथवा म्यूजियम की छत विश्व प्रसिद्ध मूर्तिकार, चित्रकार माइकल एंजलों की बहुमुखी प्रतिभा का प्रत्यक्ष प्रमाण है। चैपल की छत पर चित्रित कलाकृतियां और दीवार पर बनी प्रतिमाएं दर्शक को अचंभित करती हैं। उनके द्वारा निर्मित ‘Seperation of Light from Darkness ‘ में मानवीय मूर्त में ‘दिन -रात ‘और सुबह -शाम ‘ की परिकल्पना को साक्षात् दर्शाया है। इसके अतिरिक्त ‘The God with Adam ‘ बेहद चर्चित कलाकृति है, जिसमे ‘गॉड फिगर ‘ की संरचना के पीछे बादल इंसान के ‘दिमाग ‘ की आकृति में है। एवं ईश्वर की अंगुली से कुछ फासले पर आदम की उँगली आधुनिक वैज्ञानिकों और ‘न्युरोंसाइंटिस्ट ‘को हैरान करती हैं। क्योंकि इन सब आकृतियों में मानव अंगों को, उनकी भीतरी जटिलताओं के साथ सही आकारों में उभारा गया है। प्रत्येक कृति की शारीरिक संरचना और हाव -भाव के अनुकूल उसकी आकृति आश्चर्य पैदा करती है। इन मे पर्त दर पर्त अनेक रहस्य उद्घाटित हो रहे हैं, जो उस काल में कृतिकार की वैज्ञानिक जानकारी को लेकर हैं। जिस तरह से संवेगों को उभारा गया है, वह विज्ञान और कला का सम्पूर्ण समायोग है।” अपने वक्तव्य में गाईड ने विस्तृत वर्णन के बीच बताया कि ये कलाकृतियां बहुमूल्य या कहो बेमोल हैं। इसीलिए लोहे के सलाखों वाले प्राचीन गेट तथा नयी आधुनिक तकनीक के गुप्त लॉक लगवाएं गए हैं। इनकी सार -सम्भार के साथ सुरक्षा का दायित्व पूरा करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की तैनाती की गयी है। ये प्रातः पांच बजे से इस म्यूजियम के भारी -भरकम सुरक्षा द्वारों के तालें खोलने के साथ, भीतर के नक्काशी किये दरवाजों के भी लॉक खोलते हैं।जिसके लिए छोटी -बड़ी लगभग सत्तर चाबियां हैं, क्योंकि कलाकृतियों को चोरी से बचाना बेहद महत्वपूर्ण है। चूँकि यहाँ पर एक कीमती कृति को तोड़ने का प्रयास हो चुका है, इसीलिए ऐसे सिरफिरे विंध्वंसक दिमागों से भी हिफाजत जरूरी है।
यह सारी भूमिका बांधते हुए गाइड हमें भीतर जाने से पूर्व कुछ विशेष जानकारी देना चाहती थी।क्योंकि माइकल एंजलो को जानने के लिए हमें इटली से उपजा ‘रेनेसां ‘समझना जरूरी था,जिसने पूरे यूरोप की कला संस्कृति का ताना -बाना बुना। तेरहवीं सदी में कवि डांटे द्वारा इटली के ‘फ्लोरेंस ‘शहर से प्रारम्भ हुआ ‘नवजागरण’,चौदहवीं -पंद्रहवीं सदी में यहीं की तिकड़ी ने परवान चढ़ाया। जिनमे ‘लियोनार्दो दा विंची ‘के साथ ‘राफ़ेल ‘और ‘माइकल एंजलों’ का योगदान अभूतपूर्व है। जहाँ लियोनार्दो ने ‘मोनालिसा ‘की चित्रकारी में और रफ़ेल ने जीसस क्राईस्ट की माता ‘मेडोना ‘का चित्र बना कर प्रसिद्धि हासिल की। वहीँ एंजलों द्वारा निर्मित बेसिलिका की प्रतिमाएं और इसका आकर्षक गुम्बद, उनकी बहुमुखी प्रतिभा की परिचायक हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या वास्तव में एंजेलों मानव शरीर की बाह्य और भीतरी संरचना के पूर्ण जानकार थे ? जिसको उन्होंने अपनी कृतियों में भावों, भंगिमाओं, मांसपेशियों की स्थिति और क्रियाकलापों के अनुरूप ढाला है। उनकी आदम और ईव की दोनों तरह की (नग्न और वस्त्रों में )प्रतिमाएं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। 500 वर्ष पूर्व 12000 स्कवेयर फ़ीट हॉल में लगभग 300 प्राणियों के जीवंत ‘स्ट्रक्चर ‘ कितनी खूबसूरती से बनाएं गए हैं,यह आश्चर्यजनक है। यह कार्य माइकल एंजलों ने मात्र 33 वर्ष की आयु में 1508 ईस्वीं में शुरू किया और सन 1512 में पूरा किया। छत पर इन आकृतियों को उकेरते तथा चित्रित करते हुए, उन्हें सिरदर्द तथा गर्दन की जकड़न के साथ मांसपेशियों के खिंचाव की भी तकलीफ झेलनी पड़ी। यह बताते हुए तभी गाईड ने बांयें हाथ को बने एक विश्राम गृह में बात करते हुए हमें इशारा किया। उसने आग्रह करके हम सभी पर्यटकों के लिए ‘ईयर कॉड ‘ उपलब्ध करवाये, जिससे बेसिलिका के भीतर गाईड की आवाज हम सब को संयत्र के माध्यम से साफ़ सुनाई दे।
अब हम मुख्य चर्च के कॉरिडोर में प्रवेश कर चुके थे, जहाँ स्तम्भों के बीच में से तेज हवा और तीखी धूप प्रवेश कर रही थी। जिस गलियारे से सभी गुजर रहे थे, वहां बेसिलिका में प्रवेश के लिए पांच दरवाजे थे। किन्तु बीच का प्रवेश द्वार ‘ब्रॉन्ज ‘ यानी तांबे की धातु से निर्मित था तथा दाएं हाथ को बना दरवाजा बंद था। गाईड ने उस संदूकची नुमा, रहस्यमयी कपाट की ओर अंगुली करते हुए कहा कि यह पच्चीस साल में एक बार खुलता है।क्यों ? का प्रश्न था, किन्तु इसका जवाब न मिला। चर्च के भीतर बहुत भीड़ नजर आई, इतनी कि कोई अपनी पहचान का न हो तो खो ही जाएँ। पता लगा कि यह लगभग 15,160 स्क्वेयर मीटर एरिया है, जिसमे साठ हजार पर्यटकों के समाने की क्षमता है। बीच में कहीं -कहीं वेलवेट के भारी -भरकम पर्दों से हॉल के कुछ हिस्सों को विभाजित कर दिया गया था। तभी गाईड हमारे ग्रुप को दायीं तरफ ले गयी, जहाँ बुलेट प्रूफ ग्लास में संरक्षित एक कलाकृति की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित किया। “यह ‘The Pieta’ के नाम से विश्वविख्यात प्रतिमा है, जिसे खंडित करने का प्रयास हुआ, ” गाईड ने कहा। मैंने देखा कि उसमे एक युवती ने अपनी गोद में मृत सी देह को लिटाया हुआ था। कुछ सोचते हुए जब दिमाग पर जोर डाला, तो उसके कथन का अर्थ समझ आया। तदोपरांत मन में करुणा के साथ, भयानक पीड़ा का भाव बोध उभरा। मैंने अभी तक जीसस की ‘ क्रॉस ‘पर टंगी लहुलहान छवि देखी थी या फिर ‘क्रिसमस डे ‘पर नन्हे यीशु की झांकी को घास -फूस की टोकरी में देखा था। इस नयी आकृति जिस मे मदर मेरी ने अपने पुत्र के अचेत शरीर को उठाया हुआ है, उसमे माँ के चेहरे पर ममता और दुःख का सम्मिश्रित भाव ह्रदय विदारक अहसास पैदा करता है।तभी गाईड ने कहा,”इसी कलाकृति पर ही एक सिरफिरे हंगरी के नागरिक ने सन 1972 ईंसवीं में हथौड़े से प्रहार किया और इस मूर्ति के बाएं हाथ, उसकी एक आँख और नाक को क्षति पहुंचाई। इसीलिए बुलेट प्रूफ कवच से सुरक्षित कर दिया है,जिससे कोई वहां न पहुंचे।”
गाईड की आवाज से चौंकते हुए सुना कि ईसा मसीह के सलीब पर टाँगे जाने के बाद, इस विषय पर माईकल एंजलों की यह पहली कृति है। जिसे उसने महज पच्चीस वर्ष की आयु में बनाया और दो सौ वर्ष पूर्व ही यहाँ स्थानांतरित किया गया। दुनिया में सिर्फ यही प्रतिमा ऐसी है, जिसमे कलाकार ने अपने हस्ताक्षर किये हैं।वह भी मदर मेरी के वक्षस्थल पर लिपटे रिबन के ऊपर, जिसके पीछे भी एक दन्त कथा प्रचलित है। यह प्रतिमा जहाँ पहले अवस्थित थी, वहां उसे देखने वाले पर्यटक किसी दूसरे शिल्पकार का नाम ले रहे थे। वहीँ उपस्थित एंजलों ने जब यह सुना, तो उस पर अपना हस्ताक्षर अंकित किया। जिससे लोग मूरत पर उसका नाम पढ़कर, उस के काम से परिचित हो सकें। इसके बाद सीधे चलते हुए गाईड हमें चर्च के मुख्य स्थल पर ले गयी, जहाँ सैंट पीटर की कब्र विधमान है। ‘Confessio’ नामक इस गोलाकार क्षेत्र में, केवल पोप ही प्रवेश कर सकता है। इसके ठीक ऊपर छत में बने गुम्बद के छिद्र से प्रकाश की सतरंगी किरणों की सवारी सीधे इस पर पहुँचती हैं।यह भव्य एवं आलीशान गुम्बद भी एंजेलों द्वारा निर्मित और डिजाईन किया हुआ है, जिसकी संरचना ‘Gothic Art ‘ पर आधारित है। इसकी सोलह बड़ी आयताकार खिड़कियों से आती सूर्य की किरणें, इंदरधनुषी रंगों की छटा बिखेरती है। यहाँ हर रोज किसी विशेष वक्त के किन्ही ख़ास पलों में, रोशनी का त्रिकोण, रूहानी और रहस्य पूर्ण सा माहौल पैदा करता है। जो स्वर्ग का सा दृश्य रचता हुआ, किसी दूसरी दुनिया का सा अहसास देता है।इस विशाल गुम्बद का 42 . 34 मीटर घेरा है, जो चार स्तम्भों पर टिका है। एवं पिलर्स के ऊपर सिलेण्डर के आकार का ‘ड्रम ‘,’Ribbed Vault ‘ आर्किटेक्ट पर आधारित है। ये सभी ऊपर आँख (Oculom ) की सी गोल आकृति पर एकत्रित होती हैं, जहाँ लैनटेन लगी हैं। गुम्बद तक पहुँचने के लिए अलग सीढ़ियां बनी हैं ,जहाँ से पूरे शहर का विहंगम दृशय देखा जा सकता है। वास्तव में बैसिलिका का यह गुम्बद बाहर से भी दिन के प्रकाश में और रात की रोशनी में कई रंग पलटता है। गुम्बद के विषय में इतनी जानकारी मिलने के साथ मेरे मन में प्रश्न आया कि सभी धार्मिक स्थलों पर गुम्बद क्यों बनाया जाता है। उनकी आकृति चाहे थोड़ी सी भिन्न हो जाए,किन्तु मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च, सभी के ऊपर गुम्बद बनाया जाता है। वास्तुकला में इस बात का भी जरूर कोई सांकेतिक अर्थ होगा ? क्योंकि भारत के प्राचीन मंदिरों में गर्भ गृह के ऊपर बने सभी शिखरों और गुम्बदों पर अध्भुत मूर्ति कला के दर्शन होतें हैं। अचानक मुझे पिचानवें लैंप्स से जगमगाते उस गोलाकार क्षेत्र के गर्भ गृह में जाने के लिए भी सीढ़ियां दिखाई दी, जहाँ केवल पोप को प्रवेश करने का अधिकार है। सामने नक्काशी की हुई ‘Bronze Baldachin ‘भी दिखी, जो मध्यकाल के मशहूर आर्टिस्ट ‘Lorenzo Bernini ‘ द्वारा निर्मित हैं। रोम के ‘एन्सिएंट वंडर ‘ के नाम से प्रख्यात ‘The Pantheon ‘के ‘मार्बल कॉलम्स ‘से प्रेरित हो, बर्निनी ने इनका निर्माण तांबा धातु से किया। ये पञ्चमुखी चार स्तम्भ 26 मीटर ऊँचे हैं, जिन पर पाँच मीटर ऊंची आदमकद मूर्तियां लगी हैं। सैंट एन्ड्रयू, वर्णिका, हेलेना एवं लॉगिंस की इन प्रतिमाओं को भी बर्निनी के शिष्यों और ‘असिस्टेंट्स ‘ने बनाया था। यहीं आखिरी छोर के स्तम्भ पर सैंट पीटर की कांस्य प्रतिमा मौजूद है, जिस के साथ ही उनकी अति अलंकृत और सुसज्जित कुर्सी भी रखी हुई थी । उसी के पीछे ऊपर की ओर बड़ी सी अंडाकार खिड़की पर रंगीन शीशा लगा हुआ था,जिस के फ्रेम पर चारों तरफ एंजेल्स की आकृतियां बनी हुई हैं। गाईड का कहना था कि ढलते हुए सूरज की मद्धिम रोशनी इस पारदर्शी शीशे से निकल अध्भुत सन्देश देती है, जैसे कि अंधेरों के बीच प्रकाश की महिमा का बखान होता है। सैंट पीटर की कुर्सी या सिंहासन के दायीं तरफ पोप अर्बन की कब्र भी बर्निनी द्वारा बनाई गयी और इसके साथ अलेक्जेंडर VII की भी। गाईड ने उसके लिए एक ख़ास बात बताई कि इसके ऊपर यह जो ढांचा ( Skelton )दिखाई दे रहा है, उसकी पोशाक को पाषाण से गढ़कर बाद में बनाया गया है।
अब हम चर्च के बीचोबीच पहुँच गए थे, जहाँ पीछे के ऊँचे रोशनदानों से तीन धाराओं में प्रकाश पुंज पहुँच रहा था। अधिकतर कोनों में बड़ी -बड़ी प्रतिमाएं लगी हुई थी, जो देखने में पादरी प्रतीत होते थे।किन्तु इनकी शारीरिक संरचना के साथ, उनके लिबास की सहज सलवटें उन्हें जीवंतता के साथ असली चेहरा प्रदान कर रही थी। ये सारी प्रतिमाएं रोमन कैथोलिक पादरियों का पाषाण प्रारूप थी ,जो बेजान होते हुए भी सजीव लग रही थी। तब मुझे भारतीय मंदिरों में लगी देवी -देवताओं की मूर्तियों का स्मरण हो आया, जिन्हे वस्त्र और आभूषण पहनायें जाते हैं।उन मूर्तियों को स्थापित करने से पूर्व, पौराणिक तरीके से उनकी मंन्त्रोच्चारण के साथ प्राण -प्रतिष्ठा की जाती है। उसके बाद विभिन्न आभूषणों और अलंकरणों से उन्हें सज्जित किया जाता है, जो अपनी उपस्थिति में भारतीय संस्कृति की मिथकीय कथाओं के अनुरूप प्रतीकात्मक छवि और अर्थवान हैं। चाहे हम उनमे अपने देवी -देवताओं के कल्पित प्रतीक देखते हैं और उनके सन्मुख नतमस्तक होकर प्रार्थना भी करते हैं। किन्तु उनमे मानवीय सजीवता या प्राणवत्तता कभी नजर नहीं आती जबकि चर्च की इन प्रतिमाओं में सहजता के दर्शन होते हैं। सीधे -सीधे अर्थों में ये सभी मानव रूप में वे लोग हैं, जिन्होंने मनुष्यता के धर्म का प्रचार -प्रसार किया। और अपने कार्यों के कारण इतनी ऊंचाई प्राप्त कर सके कि उनकी प्रतिमाएं ढालकर यहाँ लगाई गयी हैं। और यहाँ ये प्रतिमाएं इतनी सजीव और अपनी भंगिमा में सटीक थी,जैसे जीवंत हों अभी बोल उठेंगी। इंसान के खिलाफ हिंसात्मक रवैया रखने वाले चंद लोगों के खिलाफ जिन लोगों ने अपनी आवाज बुलंद की और दुनिया में शान्ति और प्रेम का संदेश दिया, निस्संदेह वे अनुकरणीय हैं। हमारे यहाँ मैं महात्मा बुद्ध ,महावीर स्वामी ,गुरु नानक और महात्मा गांधी को इसी दर्जे में रखती हूँ, जिन्होंने अपने काल और स्थान के चक्र को सही दशा और दिशा देने का प्रयास किया।हमारे देश में किसी भी महान आत्मा को पूजा के कर्मकांड में समेत दिया जाता है, जबकि उनका चरित्र और आचरण ही अनुकरणीय होता है।
आज के समय में उन शिक्षाओं को अपनाने और उन पर चलने की ज्यादा जरुरत है, बिनस्पत किसी ढकोसले के। सैंट पीटर चर्च में ऐसे महामानवों को दर्शनीय और अनुकरणीय स्वरूप में सज्जित किया है, जिस में सब कुछ साफ़ -सुथरा है।मैं यह सोच ही रही थी कि गाईड के पीछे चलते हुए अब हम चर्च के उस कॉरिडोर में आ पहुंचे थे,जिसकी छत भी ‘आर्च शेप ‘में बनी हुई थी। छत की ‘सीलिंग ‘पर भी बहुरंगी सजावट थी और स्तम्भों पर भी गॉथिक कला का अध्भुत संयोजन था। दीवारों पर दोनों तरफ बड़ी -बड़ी वॉल पेंटिंग्स लगी हुई थी, जिनमे अधिकतर किसी घटना या कहानी से सम्बन्धित पात्रों को चित्रित किया हुआ था। सम्भवत जैसे हम अपनी संस्कृति के प्रसिद्ध मिथकीय चरित्रों से परिचित हैं, क्रिश्चियन समुदाय भी इन कथाओं के पात्रों और उनके कार्यों से चिरपरिचित होंगे। लेकिन हमें तो उन कृतियों की सजीवता और सहजता आकर्षित कर रही थी, जैसे हमारे सम्मुख जीवित पात्र चित्रकला में सिमट आये हों। तभी गाईड ने इन की गाथा बताते हुए कहा कि यह ‘मोज़ेक आर्ट ‘ से निर्मित कलाकृति हैं,जिनमे कैनवास रंगों का प्रयोग नहीं है। पहले ये सभी कलाकृतियां रंगों से ही बनी हुई थी, किन्तु ‘ह्युमिडिटी ‘यानी नमी के कारण वे सब खराब हो गयी थी। जिन्हे रंगीन छोटे पत्थरों और कांच के टुकड़ों से हूबहू बना दिया गया, जिससे मौसम और समय चक्र का कोई असर नहीं होगा। इस तरह वहां सभी भित्तिचित्र हतप्रभ करने वाले थे, जो हमें कलाकारों की कला के समक्ष नतमस्तक करने वाले थे। जिस तरह लेखन से पूर्व उस विषय की वैज्ञानिक जानकारी और सत्यता की पहचान जरूरी होती है, उसी तरह कलाकार के लिए चित्रित आकृति के व्यक्तित्व और विचारों को भी पहचानना आवश्यक है। वस्तुतः कला और विज्ञान का बेजोड़ नमूना हैं यहाँ के चित्र, जिनमे कल्पना और सत्यता का भी सम्मिश्रण है। काश कि हमें उन पात्रों और उनकी जीवन घटनाओं की रूपरेखा मालूम होती, तो उनको देखने की नजर ओर अधिक गहरी होती ? यह सोचते हुए हम चर्च के आखिरी स्थल पर पहुंचे,जहाँ से बाईं ओर बाहर निकल आये।
सीढ़ियों से उतरते हुए भी दिमाग में भीतर की तस्वीर छाई हुई थी, यह ‘संसार का आश्चर्य ‘मानव निर्मित और उसकी अध्भुत कलात्मक परिकल्पना का परिचायक है। पिछले दिनों वेटिकन ने मदर टेरेसा को उनके देहावसान के उन्नीस वर्ष बाद ‘संत ‘की उपाधि दी, तो पूरी दुनिया में उसका सहर्ष स्वागत हुआ था । किन्तु रोमन कैथोलिकों के नेता चुने जाने के साथ पोप फ्रांसिस शुरू से कट्टरपंथियों के निशाने पर रहें हैं। उनकी उदारवादी नीतियों के कारण अभी हाल में जो हुआ, वह पोपतंत्र का सबसे भयंकर संकट कहा जा सकता है। इसका कारण अन्य धर्मों की भांति चर्च का भी राजनीति और संस्कृति में बँटे हुए होना है, जिसमे कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट दो शाखाओं के अनुयायी हैं। वर्तमान युग में अधिकतर धर्मों की तरह कैथोलिक भी परम्परागत मान्यताओं के पक्षधर हो गए हैं, जिनमे राष्ट्रवाद ,गर्भपात ,समलैंगिकों एवं महिला पादरियों के मुद्दे प्रमुख हैं।यधपि तालाकशुदा और पुनर्विवाहित लोगों के लिए चर्च के द्वार खुले हैं, लेकिन वर्तमान में प्रशिक्षु महिला पादरियों के यौन शोषण का मुद्दा मुख्य है। हालांकि ये आरोप नए नहीं हैं और पोप ने कहा कि वे स्त्रियों के यौन शोषण पर मौन को सहन नहीं करेंगे। सैक्स या यौन हिंसा तथा शोषण के विरुद्ध पोप ने ‘कमिटमेंट ‘भी किया और महिला पादरियों के सवाल पर एक कमेटी बनायी। इसके अतिरिक्त यह भी कहा कि प्रत्येक स्तर पर चर्च में महिलायें अपनी जिम्मेदारी निभाएंगी, क्योंकि वे निर्णय और न्याय के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।अभी हाल में वेटिकन की मीटिंग में ‘स्त्रियों की चर्च में अहम् भूमिका ‘मानते हुए उन्हें ‘भागीदारी दी गयी है।चूँकि वर्तमान पोप की छवि प्रगतिशील है, इसीलिए सारे कट्टरपंथी उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं। वह पोप तंत्र की वैधानिक राजशाही से छुटकारा और वेटिकन की नौकरशाही में भी परिवर्तन लाना चाहते हैं। यह भी कट्टरपंथियों की नाराजगी का एक कारण है, इसीलिए पोप फ्रांसिस को अपने आलाचकों का सामना करना पड़ रहा है।


संतोष बंसल
शिक्षा – एम. ए.हिंदी ,दिल्ली यूनिवर्सिटी।
‘गोधूलि ‘एन जी ओ (NGO)की सदस्य और नांगलोई स्कूल की संचालिका ( सड़क पर घूमने वाले पांच साल के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा )तथा लेखिका एवं कवयित्री ( नव उन्नयन शोध संस्था की एवं इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ऑथर्स ‘की सदस्य )
पुस्तकें प्रकाशित –
१- ‘इक्कीसवीं सदी का उजियारा सूरज ‘कविता संग्रह ( हिंदी अकादमी ,दिल्ली से प्रकाशित -१९९९ )
२- ‘सरस्वती लुप्त नहीं हुई ‘कविता संग्रह ( सरस्वती नदी की जीवन यात्रा -२००१ )
३- ‘जागे अरु रोवे ‘संत कबीर के जीवन पर आधारित कविता संग्रह (हिंदी अकादमी दिल्ली से प्रकाशित – २००५ )
४- ‘कलम धरत मेरो कर कम्पत है ‘कवयित्री मीरा बाई के जीवन पर आधारित कविता संग्रह ( २००९ )
५- ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी ‘ बाबा तुलसीदास के जीवन पर आधारित कविता संग्रह ( २०११ )
६- ‘वन मिलियन डॉलर प्रश्न ‘- अमेरिका प्रवास के दौरान डायरी लेखन ( हिंदी अकादमी दिल्ली से प्रकाशित -२०१२ )
७- ‘बीस दस में सावन ‘हिंदी एवं अंग्रेजी में अनुवादित कविता संग्रह ( २०१४ )
८- ‘पत्नी के पत्र पति के नाम ‘पत्र लेखन ( पुस्तक मेला -२०१५ )
९ – विद्यापति कवि गायल रे ‘ प्रबंध काव्य ( हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा प्रकशित -२०१८ )
१०- फेसबुक ऑफ़ सिलिकॉन वैली ‘यात्रा वृतांत ( पुस्तक मेला -२०१९ )
11 अन्य पुस्तके प्रकाशनार्थ एवं निरंतर लेखन। ‘आपबीती ‘कॉलम ‘Women on top ‘ ई पत्रिका एवं ‘प्रतिलिपि ‘ई मैगजीन में रचनाये। महत्वपूर्ण विषयों पर लेख प्रकाशित एवं कविताओं का उड़िया एवं अंग्रेजी में अनुवाद।

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