मायराःमेरी जान- देवी नागरानी


जी हाँ माइरा इस कहानी की किरदार है जो हर पल घर में बारी बारी हर सदस्य के आस पास घूमती फिरती रहती है उम्मीद भरी आंखें लिए, जो कुछ न कह कर भी खामुशी में बहुत कुछ कह जाती है. उसके इज़हार का नमूना अलग ही होता है चाहे वह कुछ खाने की मांग करे या प्यास की पूर्णता की माँग, चाहे स्नेह के सहलाव की इल्तिजा करे या प्यार भरी झपकी की तलब. और सच मानिये आते जाते उसे वह सब कुछ मिल जाता है जिसकी वह तलबगार रहती है. कभी ताज़ी हवा की सैर के लिए खुले में जाना हो तो वह बड़ी आस-उम्मीद भरी नज़रों से यश भैया के कमरे में जाकर उसके तन को ढांपती चादर तब तक खींचती रहती है जब तक वह आंख उठाकर उसकी ओर न देखे. उसे और कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ती, बस आँखों से झलकती विनम्रता उसके लिए वरदान बन जाती है. अब यश तो क्या यश का बाप भी अगर उसके स्थान पर होता तो मुस्कुराते हुए पलंग से उठ जाता है. फिर तो चहल कदमी शुरू होती है इसकी भी व् उसकी भी. मायरा यश की चप्पल एक एक करके ले आती है और उसके पाँव के पास रख देती है. अब कौन ऐसी अनमोल धरोहर की माँग को नकार दे. बस जूती में पैर डालते हुए ‘come on Myra’ कहते हुए यश पलंग से व् कमरे से निकल कर स्नानघर में जाकर मुँह हाथ धोने के लिए दरवाज़ा भीतर से बंद करता है और मायरा एक वफ़ादार साथी की तरह दर के बाहर बैठ कर इंतज़ार करती है, कभी कुछ देर तो कभी बहुत देर. कभी कभार आधा घंटे से भी अधिक देर होने पर वह आवाज़ देती है उसे अहसास दिलाने के लिए कि ‘मैं यहाँ हूँ’ और कुछ ही पलों में यश मुस्कुराता हुआ बाहर निकलता है और उसके कोमल और मुलायम तन पर हाथ फेरते हुए उसके साथ हो लेता है. दरवाज़े पर आकर मायरा रुक जाती है और अपनी गर्दन ऊँची करते हुए यश की आँखों में देखते हुए अपना शुक्रिया अता करती है. घर से बाहर जाने वाला दरवाज़ा खोलते ही मायरा छलांग मारकर बाहर खुली हवा में हवा से बातें करती नज़र आती है. अब उसके चेहरे पर सुकून की परछाइयाँ तैरने लगती हैं. वह बहुत ही निडर होकर बेमक़सद यहाँ से वहाँ, वहाँ से हर दिशा की ओर अपना रुख करते हुए बार बार पलट कर यश को देखती है, जिसका वहां होना ही शायद उसकी महफूजियत का आधार चिन्ह होता है. बीस मिनट यह सलोना खेल हवा के साथ खेलते हुए देख मुझे इस बात का इल्म होता है कि हर प्राणी को जीने ने साथ अपनी आज़ादी पर भी पूरा हक़ मिलने पर सुकून परस्त जीवन का मन चाहा आनंद मिलता है.
चाहत के अनेक रूप सामने आते हैं, पर हर एक की चाहत रंग लाए ऐसा होता नहीं. अब अवस्थाओं व परिस्थितियों के घेरे में लोगों की आशाएँ निराशाओं में तब्दील हो जाती है, कितनों की आशाएं अत्यंत संघर्ष के बावजूद भी पूर्णता नहीं पाती, कईयों को तो बस मन में इच्छा उठने की देर होती है, न जाने उनकी हर आशा कैसे प्रफुल्लित हो जाती हैं. इस विविधता की कगार पर एक और बात अहम है, कोई अपने तमन्ना ज़ाहिर कर पाता है कोई नहीं, बस कुछ पाने की इल्तिजा पेश करते हुए अपना दामन फैलाये रखने की आस कोई नहीं छोड़ता. फैला हुआ दामन ख़ुशी से भर जाए ये ज़रूरी नहीं, पर यह भी समर्पण की भावना है जिसका फन मायरा को प्यार की दौलत से मालामाल करता आ रहा है. मुझे ही देखो, यहाँ आये आठ दिन नहीं हुए है, उसे पुचकारते हुए नाम से बुलाती हूँ, बतियाने का प्रयास करती हूँ. वैसे परिवार में शामिल है उसके माता पिता, एक बड़ा भाई यश और एक छोटी दीदी निकिता और मैं- यश व् निक्की की दादी. बस इस नए समय की नई मांगें व् नई चाल ढाल को देखती रहती हूँ जब प्यार से उसके पिता बहलाते-पुचकारते उसे कोई खाने की चीज़ हथेली पर रखकर देते हैं तो लगता नहीं कि वह नन्हा सा जानवर है. वैसे मैं इन पालतू जानवरों से बहुत डरती हूँ.अब सागर में रहते हुए कौन मगरमछ से बैर रखे.
मायरा को यश के कहने पर सात महीने पहले किसी rescue shelter home से अपने घर लिवा कर लाया गया. बिलकुल निरीह, जीवन से पछाड़ खाकर हारी हुई, निहायत ही कमज़ोर, निरीह व् मरीज़ सी लगाती थी. घर आते ही सब से पहले, उसे नहला धुलाकर साफ़-सुथरा कर, गूगल पर उसके लिए dog-food के कुछ उचित नमूने खान पान के लिए लाए गए. जब अहिस्ता अहिस्ता उसे खुराक मिलने लगी तो उसकी जान में जैसे जान पडने लगी. एक सुंदर सी टोकरी में देख रही हूँ Dental chews, Milk Bone dipped, Bacon flavored curlz, Hugs with real beef, Health bars baked with apples and yogurt, Dog treats with real chicken, Pork chomps…..
उसी शाम उसके लिए दो मुलायम बिस्तर भी लाये गए-एक छोटा एक कुछ बड़ा, जिन पर आज भी वह सुकून से आराम फरमाती है, सो जाती है. गले में हार की बजाय एक सुंदर कॉलर पड़ा रहता है जो उसका शृंगार भी करता है और बाहर जाते हुए सुरक्षा भी बख्शता है.
अब मायरा आठ महीने की हुई है, रुष्ट पुष्ट, अच्छी सूरत और सीरत की मलिका, घर में पनाह पाकर बहुत कुछ स्वीकार कर लेने की स्थिति में रची बसी गई है. कोई उसे समय पर खाना दे तो वाह वाह, न दें तो भूख की सहरा आँखों में लिए लेकर इंतज़ार करना भी उसे ख़ूब भाता है. उसकी अदायगी में हर रंग भरा होता है. प्यार पाकर शुकराना अता करते हुए वह उस अन्नदाता के घुटनों के बीच अपना सर सहलाने लगती है. यह देखकर जान पाना मुश्किल होता है कि कौन किसके प्यार का प्यासा है. बस मायरा के समपर्ण भाव की अदा उसके लिए नेमत बन जाती है. मूकता से वहीँ पावों के पास धरणा मारकर कुछ यूं बैठ जाती है कि सोचों के तेवर भी यही ज़ाहिर करते हैं कि यह तो इंसानों से भी दो क़दम आगे की वफ़ादारी की क़ायल है.
सुना था एक राजा ने एक जब अपना पहला गुलाम ख़रीदा, तो उसे अपनी पेशगी में बुलाकर पूछा- ‘कहो तुम्हारी मांग क्या है?’
‘मेरे आक़ा कुछ भी नहीं.’
‘क्यों नहीं, यह तो बताओ खाना कब और कितनी बार खाओगे, काम कितने घंटे करोगे और सोने का समय भी तय कर लो.’
‘मेरे मालिक, मेरे आका मैं क्या कहूँ? आपका गुलाम हूँ, जब भी देंगे, जो भी देंगे खा लूँगा, जो काम देंगे जब तक कहेंगे करता रहूँगा, जब आप बंद करने का हुकम देंगे तब सो जाऊँगा.’
यह था उस गुलाम का समर्पण जहाँ अपनी इच्छा अनिच्छा सब समर्पण में शामिल हो जाती है. ऐसा ही कुछ मायरा के सद व्यवहार में देखती हूँ तो पाती हूँ कि उसका समर्पण भी उसके अन्नदाता के लिए कुछ कम नहीं. इंसान की सोच, समझ व् आचरण में लेखा जोखा होता है, लेने देने की रस्म की तलब भी समावेश होती है, पर एक इंसान व् जानवर के बीच यह बेजोड़ नाता अद्भुत है और उसकी हर इक अदायगी विस्मय में डाल देती है.
इस पालतू जानवर का ख़याल भी एक बच्चे की तरह किया जाता है, समय पर खाना-पीना और सैर पर ले जाना, साथ में कई बार शौचालय की सामायिक जवाबदारी भी अमल में लाई जाती है. एक तरह से उनके साथ लगाव कुछ इस क़दर हो जाता है कि वह जहाँ चाहें उठ-बैठ सकती है, साथ सोफे पर भी बैठ जाती है और कभी कभी साथ सो भी जाती हैं. बस उसे स्कूल नहीं भेजा जाता है….
घर में अपनों के बीच रहना उसके लिए एक वरदान है जो कई इंसानों को भी नसीब नहीं होता. जैसे एक इंसान अपने तन को सुंदर व् सुढौल बनाये रखने के लिए उपचार व् प्रयत्न करता है, कुछ ऐसे ही मायरा को भी वे सुविधाएं उपलब्ध है. pet grooming shop में ले जाकर, उसके बालों को ब्रश करवा कर, उसके नाखून कटवाए जाते हैं. कभी क्लब में जाकर गरम पानी से नहा धोकर साफ़ सुथरी होकर लौटती है, तो रश्क होता है ऐसी देखरेख व् परवरिश पर. हाँ उसके लिए $ 10 देने पड़ते है. अब सोचती हूँ कि पैसे का रंग गाढ़ा है या प्यार का.
कुछ दिन पहले मायरा कुछ बीमार सी लगती रही, चुप चाप सी हो गई, जो खाती वह उगलती रही. यश उसे डॉक्टर के पास ले जाने लगा तो मैं भी साथ हो चली. पहले कभी ऐसा देखने का मौका न मिला. वेलिंगटन वेटेरनरी हॉस्पिटल ले गए. पहले किसी नर्स ने सवाल जवाब किये, फिर उसका चार्ट खोला. मैं देखकर हैरान हुई कि उसकी photo के साथ चार्ट में मायरा नागरानी लिखा हुआ था. फिर डॉक्टर जी आये…खाने की कुछ खास हिदायतें व् दो दवाएं यश को थमा दी. मायरा के साथ डॉक्टर के पास जाना मेरे लिए यह एक नूतन अनुभव था. अनेक बार अपने बच्चों को ले गई, फिर बच्चों के बच्चों को, पर अपने पोते के साथ मायरा को ले जाना मेरे जीवन के इस पड़ाव का अनोखा तजुर्बा रहा. लगा मैं अपने भीतर के इस कशमकश को लिख दूं.
कितनी अनोखी दुनिया है यह स्नेह की, प्यार की, स्पर्श की जो एक मानव और जानवर के बीच में स्नेह के अनदेखे धागों से बंध जाती है. बस अपनी अनकही ज़ुबान में वह हर उस बात का, अपने ही अलग अंदाज़ में शुक्रिया अता करती है. कभी अपनी पूँछ हिलाकर, कभी आँखों में उमड़ता स्नेह लिए, तो कभी घुटनों के बीच अपना मुँह रगड़ रगड़ कर न जाने किन किन स्नेह के उलझे धागों को सुलझा लेती है. मायरा की बेज़ुबानी को एक मुकम्मल मौन इज़हार कर जाता है. यही है मायारा, यही है उसकी तर्जुबानी.


देवी नागरानी

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