एक मित्र ने हम पर तोहमत लगाई है कि हम कब से राष्टवादी हो गये?यानी जैसे अपने राष्ट्र के बारे में हित-चिन्तन करना कोई अपराध हो गया!अपने देश के हित-अहित के बारे मैं न लिखूँ-सोचूँ तो क्या पराये देश के बारे में लिखकर अपना समय बर्बाद करूं? मैं तो जो ठीक और न्यायोचित लगता है,उसके साथ हूँ अब ठीक और न्यायोचित क्या है? यह विवाद का विषय हो सकता है.हरेक को अपने-अपने तरीके से सोचने और समझने की पूरी आजादी है.यों हम सभी राष्टवादी हैं और होने भी चाहिए.राष्ट्र के हितों के विपरीत बोलने वाले हमारे कश्मीर के ये अलगाववादी और दूसरी तरह के लोग हैं जो आये दिन देश-विरोधी बातें करते हैं.?देश की अखंडता और संप्रभुता पहले, दूसरी बातें बाद में. हमारे बड़े-बुजुर्गों और शिक्षकों ने तो मुझे यही सिखाया है.
About Lekhni
152 Articles
भाषा और भूगोल की सीमाएँ तोड़ती, विश्व के उत्कृष्ट और सारगर्भित ( प्राचीन से अधुधिनिकतम) साहित्य को आपतक पहुंचाती लेखनी द्विभाषीय ( हिन्दी और अंग्रेजी की) मासिक ई. पत्रिका है जो कि इंगलैंड से निकलती है। वैचारिक व सांस्कृतिक धरोहर को संजोती इस पत्रिका का ध्येय एक सी सोच वालों के लिए साझा मंच (सृजन धर्मियों और साहित्य व कला प्रेमियों को प्रेरित करना व जोड़ना) तो है ही, नई पीढ़ी को इस बहुमूल्य निधि से अवगत कराना...रुचि पैदा करना भी है।
I am a monthly e zine in hindi and english language published monthly from United Kingdom...A magzine of finest contemporary and classical literature of the world! An attempt to bring all literature and poetry lovers on the one plateform.
Be the first to comment
This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
Leave a Reply