कान्तिमयी, क्रान्तिमयी, जीवन की ज्योतिर्मयी, स्वर्णमयी लंका के सम्राट, महापण्डित, दसकन्धर रावण की…जै।…रावण की, जै…। अचानक जयकारें गूँजे और फिर बादलों की गड़गड़ाहट-सी हँसी गूँजी और फिर एक पॉप संगीत से भी ज्यादा भयानक स्वर उभरा। कोई कह रहा था,’हम लंकेश हैं। हा…हा…हा…हम लंकेश हैं। ’ आंखें खुलीं तो देखा वाकई दस सीस और बीस भुजाधारी रावण सामने घड़ा था। जैसे परेड मैदान का रावण (पुतला) भाग कर मेरे पास आ गया हो।
’ प्रातः स्मरणीय, प्रतिभा के प्रदीप्त सूर्य, पाण्डित्य के अपार पारावार, कविता कर्ममनि से कमल कान्त, गौरव के गुरत्व दिव्य, यौग के युगावतार ब्राह्मण जयी रावण को प्रणाम।’ मुझे नहीं मालूम कि भयवश अथवा इसलिए कि मैं एक दिन पूर्व रामलीला देखकर आया था, मैने उसकी मक्खनपुर्सी की। वह ठहाका लगाकर हंसा और सामने के सोफे को अपना पुष्पक विमान जानकर बैठते हुए बोला, ’ वाह! तू भी मक्खनियाँ भाषा बोलने लगा रे ! तेरे भीतर किसी चमचे की आत्मा उतर आई है क्या ? ’
मैं रावण के बदले-बदले तेवरों को देखकर हैरान था। उसने मेरी हैरानी भांप ली थी जैसे। बोला, ’ डोन्ट वरी ! मैं तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ूंगा।…क्योंकि तेरे पास अब बिगड़ने के लिए बचा ही क्या है ? ’ मैने उसे आश्चर्य से देखा तो वह मुँह नम्बर तीन से मुस्कराया फिर उसी से बोला, ’ चिंता मत करो प्यारे ! आज अचानक मेरे मन में आया कि इस बार दशहरे पर जाते-जाते एक झन्नाटेदार इंटरव्यू प्रकाशित करवाता जाऊँ।…इन दिनों जब मायावती, कासीराम, मुलायम सिंह, चन्द्रास्वामी जैसे छोटे-छोटे प्राणी इंटरव्यू दे रहे हैं तो मैं कोई इनसे कम तिकड़मबाज तो हूँ नहीं जो इंटरव्यू न दे सकूँ। सो फटाफट हो जाए क्वैश्चन और आन्सर और मैं ( कलाई नम्बर 8 पर बंधी घड़ी देखते हुए ) भागूं। अभी आठ बजे हैं । दस बजे राम जी मारेंगे मुझे।…समय से नहीं पहुँचा तो बेचारे का मेहनताना काट लिया जाएगा। ’
अब मेरा भय निकल गया था ! मेरे सामने रावण नहीं, ’ एक्सक्लूसिव ’ खड़ा था मैने लपक के उसके पाँव छू लिए। वह बुदबुदाया , ’ अबे बुद्धू, मेरे पाँव मत छू। कांसी ने देख लिया तो तुझे शम्बूक का चाचा मानकर पार्टी में शामिल कर लेगा। धरी रह जाएगी तेरी ’नागरिकगिरी’ ? ’
मैने बिना समय गँवाए इंटरव्यू शुरू कर दिया।
फ्रश्न- अच्छा रावण जी ! पहले तो आप यह बताइये कि आपको हर वर्ष जलाया जाता है तो आप हर वर्ष जिन्दा कैसे हो जाते हैं?
उत्तर- (मुंह नं.1 से हँसा और नं. दस से रोने लगा) गुड क्वेश्चन। यह एक रहस्यमय बात है जो कोई नहीं जानता है। तुमने पूछा है तो बता रहा हूँ।
सच तो यह है कि जब भी कोई नई सरकार आती है तो गरीबी खत्म करने का वादा जरूर करती है, पर कोई गरीबी खत्म करता है क्या ? नहीं करता है। क्योंकि यदि गरीबी खत्म हो गई तो वे वोट किसके नाम पर मांगेंगे। बस इसी तरह मुझे भी मारने का नाटक किया जाता है।…वे जानते हैं कि रावण मार दिया गया तो फिर अगले साल रामलीला कैसे होगी ? रामलीला नहीं होगी तो कितने राम, लक्ष्मण, दशरथ के घर उजड़ जायेंगे ? यही तो अफसोस है कि मैं कभी मरता ही नहीं?
प्रश्न- अच्छा आपको वाकई मरना हो तो कैसे मारा जाये ?
उत्तर- ( दसों मुँह हँसते हुए) बहुत खूब ! मुझसे ही मेरी मौत का सामान पूछ रहे हो । पर मैं कोई नेता तो हूँ नहीं जो साफ-साफ न बोल कर लफ्फाजी करूँ…। सुनो प्यारे ।…अब मुझे मारना इतना आसान नहीं कि विभीषण रहस्य बता दे और मैं ’हम छोड़ चले हैं महफिल को, याद आए कभी तो मत रोना’ गाते-गाते विदा ले लूँ।…अब मेरे प्राणतत्व सिर्फ मेरी नाभि में नहीं हैं बच्चू। सगे भाई की धोखाधड़ी ने सिखा दिया है सब कुछ। इसलिए थोड़ा-थोड़ा अंश बाँट दिया है कई लोगों को। अब मारो…कैसे मारोगे ?
प्रश्न- किस-किस को सौंपे हैं प्राण तत्व ?
उत्तर- अधिकांश खद्दरधारी नेताओं, वर्दीधारी पुलिस जनों, सूदखोर सेठों, कमीशनखोर ठेकेदारों, ट्यूशनखोर शिक्षकों, घूसखोर अफसरों, कुछ तथाकथित स्वामियों, कट्टरपंथी धर्मगुरुओं, कलमबेच पत्रकारों व सत्तामुखी लेखकों जैसे तमाम लोगों के बीच रहता हूँ मैं। पहली बात तो आप मुझे पहचान नहीं पायेंगे और यदि पहचान गये तो मार नहीं पायेंगे। क्योंकि अब मुझे मारने के लिए इस देश में कोई भी ऐसा नहीं रहा जिसके साथ पूरा देश हो।
प्रश्न- क्यों…s श्री राम हैं जी तो हमारे देश में ?
उत्तर ( फिर से हंसा है) तुम किस राम की बात कर रहे हो ?
उस टुइयां राम की जो सरकंडे का तीर लेकर मंच पर खड़ा होता है । या उस राम की जिसके सम्मान में मायावती, कांसीराम अपनी संपूर्ण सेना के साथ अपशब्द वाचन कर रहे हैं? या उस राम की जिसको नारा बनाकर कुछ लोग इन्द्रप्रस्थ की गद्दी पाने की तिकड़म में हैं। अथवा उस राम की जिसे आधुनिक अर्जुन ने पूरे ’सहमत ’ के साथ सीता का भाई बताया था। अथवा उस राम की जिनकी अभी तक जन्म-भूमि तक तय नहीं हो पाई है । भैये ! भूल जाओ कि ये राम मेरा कुछ बिगाड़ पायेंगे ।…सच तो यह है कि इन रामों का पूरे रामदल ने मेरी सेना में विलय कर लिया है।
प्रश्न- अच्छा रावण जी यह बताइये कि जो लोग राम को अन्यायी बता रहे हैं आप उनसे तो बहुत खुश होंगे?
उत्तर- नहीं बिल्कुल नहीं ! अहसान फरामोश और धोखेबाज हैं वे। मुझे उन पर कतई विश्वास नहीं। क्योंकि जो लोग अपने पूर्वजों ( श्रीराम) के नहीं हो सकते, वे मेरे कैसे हो सकते हैं ? प्रश्न- रावण जी! यदि आप को इस देश का प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो?
उत्तर- ( आल्टरनेट मुँहों से हँसता है) दिस इज वेरी फनी क्वैश्चन।… फ्रधानमंत्री और मैं…। न मम्मी न। जरा सोचो इन दिनों प्रधानमंत्री बने रहने का खास गुण है मौनव्रत। और मेरे तो दस मुँह हैं। एक नहीं बोलेगा तो दूसरा बोल देगा। नागरिक जी! एक बात गांठ बाँध लो कि मैं चाहे जितना पापी, अन्यायी हूँ पर मेरे भी सिद्धांत हैं। मैं वोट के खातिर न तो आतंकवादियों को विरियानी खिला सकता हूँ, न तिरँगा जलाने पर खामोश रह सकता हूँ। मेरी गति भी इतनी धीमी नहीं है कि चार सालों में बस ‘ चार कदम चलूँ‘ वह भी जमीन की ओर नहीं बल्कि सूरज की ओर। न बाबा न मैं प्रधानमंत्री नहीं बन सकता।
प्रश्न- मेरे ख्याल से पहले एक-एक गिलास पानी, फिर एक-एक चाय हो जाये फिर आगे बात की जाये।
उत्तर- (रावण का शरीर काँप-सा उठा) नो, बिल्कुल नहीं। मैं न पानी पीयूँगा, न चाय। तुम्हारे शहर का पानी इतना गन्दा है कि मैं उसे पीकर मरना नहीं चाहता हूँ। और बच्चे तुम अपना पानी बचा के रखो वैसे यदि मैने तेरा पानी पी लिया तो तेरा शहर एक-एक बूँद पानी को तरस जायेगा।
प्रश्न- अच्छा तो रावण जी यह बताइए कि आपके विशेष कार्यक्रम जैसे- ‘ जेहि जेहि देश द्विज धेनु पावैं, नगर, गांव, पुर आग लगावैं । ‘ आदि अभी भी चल रहे हैं या नहीं।
उत्तर- बहुत अच्छी तरह से। जहाँ तक देश के द्विजों अर्थात प्रतिभा सम्पन्नों का सवाल है तो उन्हें निपटाने के लिए हमने आरक्षण व्यवस्था कर दी है और धेनु अर्थात सीधे-सादे लोगों के लिए भी माकूल इंतजामात किए हैं। तंदूर काण्ड, मुजफ्फर नगर में सामूहिक बलात्कार आदि इसके उदाहरण हैं।…और जहाँ तक नगर-गाँव में आग लगाने की बात है तो भाई हम अब ‘आलू मण्डी ‘ जैसी आग तो कम साम्प्रदायिकता की आग ज्यादा लगवाते हैं। ( इसी बीच उसने दांयी टांग सामने पड़ी स्टूल पर फैलाई तो अंगूठे से खून रिसता देखकर मैं चौंक गया ।) वैसे यही और भी कई…।
प्रश्न – (बीच में टोककर) आपके अँगूठे में यह चोट…?
उत्तर- अरे हाँ ! अभी एक रैली में, मेरे एक खाकी वर्दीधारी मित्र ने पुष्पक विमान उठवा लिया था जो अभी वापस नहीं आया है। सो पैदल आना पड़ा। शहरों की सड़कें तो बिल्कुल कुआँ छाप हैं। यह तो कहो सिर्फ अँगूठा घायल हुआ। बच गया नहीं तो मैनहोल में होता।…अब देखिए मेरे चेले कितने फास्ट हो गए हैं। सौ में से नब्बे खा जाते हैं। भाई मैं तो कहता हूँ कि बेईमानी करो पर ईमानदारी के साथ। ( उसने कलाई घड़ी पर निगाह डाली और उठ खड़ा हुआ !) अच्छा अब चलते हैं…समय हो रहा है।
प्रश्न- जाते-जाते एक सवाल और! आप देश के नवजवानों के लिए कुछ कहेंगे।
उत्तर- वत्स! यही सवाल मेरे सिराहने बैठकर लक्ष्मण ने किया था।…मुझे याद नहीं कि क्या जवाब दिया था मैने। पर इस समय तो युवा पीढ़ी को कुछ भी करने की जरूरत नहीं है क्योंकि…
‘ उसके एक हाथ में
लॉटरी है और
दूसरे में पान मसाला।
दिल में रम्मा-रम्मा है
और जुबान पर ताला।
उन्हें कहो कि
बेरोजगारों की लाइन में खड़े हों
‘ दे दाता के नाम ‘ गायें,
और-
शाम को मैनड्रेक्स खाकर
किसी अस्तबल में सो जायें
वरना मांगते-मांगते
उनकी जबान का चमड़ा छिल जायेगा।
यह लंका नहीं,
हिन्दुस्तान है प्यारे
अब यहाँ उन्हें कोई आदर्श
नहीं मिल पायेगा ? ‘
इसी के साथ उसने एक बार फिर हुँकार भरी और बोला,‘ अच्छा ! गुड बाई। अगले वर्ष मिलेंगे…। मत भूलना कि हम लंकेश हैं…।‘ और इसी के साथ मेरी नींद खुल गयी। छत पर चढ़कर देखा तो सामने के पार्क में रावण का पुतला धूं-धूं जल रहा था। उससे फूट रहे एक-एक पटाखे से आवाज आ रही थी- ‘ हम लंकेश हैं…। हम लंकेश हैं…। ‘
सुरेश अवस्थी
कानपुर, भारत।