हास्य-व्यंग्यः आपदा में अवसर-दीपक गोस्वामी

‘रेवड़ी ले लो, रेवड़ी ले लो’ बाहर से जोर जोर से आवाज़ें आ रही थीं।

जनप्रिय नेता पीएल ने अपनी पार्टी की टोपी सीधी की और अपने चपरासी राधे को रेवड़ी बेचने वाले को बंगले के अंदर बुलाने को भेजा। पीएल यानि पोपटलाल भाई। पोपटलाल का नाम पीएल तब पड़ा जब वो कबूतरबाज़ी के शिकार होकर कनाडा के बॉर्डर पर पकड़े गए थे। पकड़े जाने और स्वदेश वापस लौटने से पहले वो लगभग तीन साल अपना नाम पोपटलाल से बदल कर पीएल बन कर रह रहे थे। दरअसल जब परदेस में मेहनत मजूरी करने में जोर पड़ा तब अपना देश ही महान लगने लगा और पोपटलाल बिना हील हुज्जत के उलटे पाँव वापस लौट आये।

जो किसी काम का न हो वो नेता बनने के लिए सबसे अधिक योग्य होता है इसलिए पीएल नेता बन गए।

ऐसे वैसे नेता थोडे न बने बल्कि ऐसे महान नेता जिनकी महिमा और लीला पूरे ब्रह्माण्ड में दिखती है और तीनों लोकों एवं आठों दिशाओं में चमकती भी है। उनकी इतनी लोकप्रियता की मिसाल इससे मिलती है कि बन्दर छाप मंजन के विज्ञापन में भी बन्दर की जगह उन्हीं नेताजी का खीसें निपोरता और मुस्कुराता हुआ फोटो छापा जाता है। इस विज्ञापन में नेताजी के तम्बाकू खाने से काले हुए दांत भी मंजन के बाद कैसे चमकते हैं यह दिखलाया जाता है।

सर पर एक छोटी सी टोकरी लेकर वो मरियल सा रेवड़ी बेचने वाला हॉकर बंगले में उपस्थित हुआ और नेताजी को झुक कर सलाम किया।

नेताजी मुस्कुराये। शायद देश की गरीब जनता का फटा हाल देख कर मुस्कुराये हों। अगर आप खुश हों और सामने कोई आपसे भी ज्यादा खुश व्यक्ति मिल जाए तो आपकी ख़ुशी काफूर हो जाती है। खुश होने के लिए सामने वाले को दुखी देखना परम आवश्यक है।

‘रेवड़ी क्या भाव दी भैय्या?’ ये पूछ कर नेताजी को ऐसा लगा जैसे कि वो किसी स्वरोज़गार योजना के लाभार्थी का इंटरव्यू ले रहे हों।

‘मुफ्त में हैं साहेब’

‘मुफ्त में?’ नेताजी को झटका लगा।

‘जी जनाब, एक दम मुफ्त में’

‘वो कैसे?’

‘क्या खूब सौदा नकद है, इस हाथ ले उस हाथ दे। हुज़ूर, ये झोला आपने ही तो दिलवाया था।’ नेताजी अपनी बड़ी फोटो झोले पर देख कर प्रसन्न हुए लेकिन उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं आया।

बोले ‘अरे हाँ भाई, ये गरीबों को मुफ्त हम ही दिलवाते हैं। लेकिन तुम रेवड़ी मुफ्त में क्यों बेच रहे हो?’

‘सरकार अब ये तो छोटा मुंह बड़ी बात हो जायेगी। लेकिन देशभक्ति का थोड़ा बहुत ज़ज़्बा हम भी पालते हैं। आप मुफ्त की रेवड़ी बांटते हैं तो हम भला क्यों पीछे रहें?’

नेताजी के चेहरे पर असमंजस के भाव आये। अब भला ये गरीब जनता हमारा मुकाबला करने लगी? ये सब सोच कर नेताजी चिंतित हो गए। आखिर राजा और प्रजा में कुछ तो अंतर होना ही चाहिए।

‘क्यों बे, हमारी बराबरी करोगे? हमारी नक़ल करोगे? पाव आधा सेर मुफ्त की रेवड़ी बांटने से तुम महान देशभक्त नहीं बन जाओगे। जिसको हम सर्टिफिकेट देंगे वो ही देशभक्त कहलायेगा, समझे?‘

अब नेताजी भाषण देने के मूड में आ गए ‘देखो ये ‘घर-घर झोला’ योजना के अंतर्गत करोड़ों गरीब जनता के घरों में ये झोला हमने टंगवाया है। वो तो हमारी पार्टी और विपक्ष की रेवड़ीयां एक साथ मिल न जाए इसलिए हमारी फोटो लगवा देते हैं ताकि ताकीद रहे कि हमारी रेवड़ियां सर्व व्याप्त हैं।‘

थोड़ी सांस लेते हुए नेताजी फिर बोले ‘अब अगली बार रेवड़ियों पर भी हमारी फोटो छाप दी जायेगी ताकि किसी कन्फूज़न की कोई गुंजाइश ही न रहे। इटली से नई तकनीक वाली मशीने मंगवाई हैं जो हर तिल के दाने पर, हर गेहूं के दाने पर और हर चावल के दाने पर फोटो छाप सकेंगी।‘

फिर विष्णु के अवतार का पोज़ बना कर नेताजी बोले ‘तुम्हारी देशभक्ति देख कर मैं बहुत खुश हुआ। तुम्हारी इन तीन मुट्ठी भर रेवड़ियों के बदले में मेरी फोटो वाले तीन झोले तुमको दे देता हूँ।’ ये बोल कर नेताजी को लगा कि उनके सामने फटेहाल गरीब सुदामा खड़ा है जिसकी तीन मुट्ठी सत्तू के बदले में भगवान श्री कृष्ण ने तीन लोकों का राज पाट दे दिया था।

गर्दन टेढ़ी कर के नेताजी ने अपने पीए मुरारी लाल सक्सेना को आवाज़ लगाई। ‘अरे मुरारी देखो तो जनता जनार्दन ईश्वर के रूप में अपना आशीर्वाद देने हमारे द्वार पर आई है, तनिक तीन झोले देकर इनके मस्तक पर तिलक तो करो।’

मोटे मोटे लेंस वाला चश्मा पहने हुए धीर गंभीर दुबले पतले और सारी दुनियां का बोझा अपने सर पर उठाये मुरारी प्रकट हुए। उनके चेहरे के हाव भाव पढ़ना यानी प्राचीन ब्राह्मी लिपि को पढ़ने से ज्यादा दुष्कर था। उनके पीछे पीछे नेताजी के फोटो वाले तीन खाली झोले उठाये गिरता पड़ता उनका एक कर्मचारी चला आया।

लड़खड़ाता हुआ कर्मचारी रेवड़ी वाले भैय्या को झोले पकड़वाने वाला ही था कि नेताजी गुर्राए ‘अरे मूर्ख बिना सेल्फी लिए भगवान् के मंदिर में भी दान नहीं दिया जाता, आखिर रिकॉर्ड भी तो रखना होता है।‘

नेताजी अपने पीए मुरारी के कान में धीरे से फुसफुसाए ‘वो जमाना गया जब संत लोग ज्ञान देते थे कि नेकी कर और दरिया में डाल। अब तो बिना कुछ किये सिर्फ सेल्फी के माध्यम से पुण्य कमाया जाता है।’

फोटो सेशन पूरा होने पर मुरारी ने खाली झोले वापस लेकर समेट कर रख दिए और बोले ‘इलेक्शन का फण्ड आएगा तब अपना फोटो वाला आईडी प्रूफ लेकर आ जाना और भरे हुए झोले लेकर चले जाना, ओके। देशभक्ति की खातिर इतना त्याग तो कर ही सकते हो?’

अब देशभक्ति के नाम पर उस रेवड़ी वाले का सीना गर्व से चौड़ा हो गया और उसने मुट्ठी भींच कर जोर से नेताजी ज़िंदाबाद का नारा लगाया।

‘साहेब, एक खुशबखबरी है।’ मुरारी नेताजी के कान में धीरे से बोला और मुस्कुराया

‘क्या?’

‘साहेब अभी अभी मौसम विभाग की विज्ञप्ति आयी है कि भयानक चक्रवात आने वाला है, तेज हवाएं चलेगी, भारी बरसात और तूफान की चेतावनी दी है।’

चेहरे पर चिंता की मुद्रा बनाते हुए नेताजी की आँखे चमकने लगीं ‘कितने नुक्सान का अनुमान है?’

‘तीन सौ करोड़। तो राहत की सूचि बनवा लूँ?’ मुरारी ने अपना चश्मा साफ़ करते हुए पूछा।

‘हाँ, और उनके नामकरण भी जल्द करने होंगे’ नेताजी गहरी सोच की मुद्रा में खो गए।

‘बगैर नामकरण के कोई राहत योजना कभी संभव ही नहीं है।’ यह सोच कर मुरारी के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान छलकी।

‘बिना कोई समय गवाएं एक बजट तुरंत भिजवाओ ताकि ज्यादा से ज्यादा फण्ड हमको उपलब्ध हो सकें। पिछली बार भी जरा सी चूक के चलते करोड़ों के फण्ड वो लाडू प्रसाद हड़प गया था। अब भी जो कव्वे इधर उधर मंडराएंगे उनको थोड़ा बहुत पकोड़ी का प्रसाद फेंकते रहना। आजकल हर काम में कम्पटीशन बढ़ता ही जा रहा है।’ नेताजी ने मुरारी को आगाह किया।

यूँ ही आनन फानन में तीस सौ करोड़ का अंतरिम बजट बन कर तैयार हो गया। अंतरिम इसलिए कि अंतिम नहीं। जितनी बड़ी आपदा उतने ज्यादा शून्य।

फिर नेताजी ने इस कोष का नामकरण किया ‘देशभक्त नेताजी पीएल आपदा राहत कोष’।

पास खड़े एक छुटभैय्ये ने अपनी समझदारी का प्रदर्शन करते हुए धीमे स्वर में पूछा ‘साहेब जब पहले से ही सरकारी राहत कोष उपलब्ध है तो फिर ये नया नाम क्यों?’

नेताजी ने हिकारत भरी दृष्टि से उस छुटभैय्ये नेता को घूरा और समझाते हुए बोले ‘जब जब देश पर बड़ी घोर विपत्ति आती है तब तब नए कोष स्थापित किये जाते हैं। पुराने कोष के नाम पर जनता जल्दी ही उकता जाती है। इसलिए जनता को मोटिवेट करने के लिये नए और आकर्षक नाम रखने पड़ते हैं। किसी की भी जेब से नोट निकलवाना आसान नहीं होता। देशभक्त शब्द देखते ही भोली जनता पिघल जाती है और अपनी रोटी की थाली में कटौती करने में भी संकोच नहीं करती।’

‘लेकिन पीएल शब्द क्यों जोड़ा?’ छुटभैय्ये नेता ने फिर से एक सवाल दागा।

‘वो इसलिए कि जनता इसे पीएल की गारंटी मान कर अपना खीसा ढीला करेगी। हमारे नाम के ब्रांड की बहुत बड़ी वैल्यू है।‘ फिर उपेक्षा की नज़र से दुत्कारते हुए बोले ‘अभी नए नए और कच्चे हो, हमारे सानिध्य में रहोगे तो जल्दी ये सब सीख जाओगे’ गुरु पीएल ने अपने उभरते हुए छुटभैय्ये नेता को ज्ञान पेला।

इतने में मुरारी एक लम्बी चौड़ी लिस्ट लेकर हाज़िर हो गया। लिस्ट में सबसे ऊपर लिखा था ‘आपदा में अवसर’ और नीचे बिंदुवार कुछ योजनाओं के नाम लिखे थे।

‘सर, हमें अविलम्ब एक उत्सव की तैयारी करनी चाहिए। इस उत्सव का नाम होगा ‘जलोत्सव’ मुरारी ने खंखारते हुए गला साफ़ करते हुए कहा।

‘बिल्कुल दुरुस्त कहा आपने। जलोत्सव के नाम से ही जनता में उत्साह की एक लहर दौड़ जायेगी’ नेताजी का चेहरा चमकने लगा।

‘कुछ योजनाएं घोषित की जा सकती हैं। कुछ नाम इस तरह से सुझाये हैं: हर घर नाव योजना, नल बिना जल योजना, जल में घर योजना, हर घर स्विमिंग पूल योजना, हर घर तालाब योजना, जल महल योजना, जल परी योजना’ हाँफते हाँफते हुए मुरारी ने अपनी बात पूरी की।

‘हर घर को जल मार्ग योजना के अंतर्गत अब मुख्य जल मार्ग से जोड़ा जा सकेगा’ नेताजी जोश से बोले।

‘रोजगार को लेकर आजकल बहुत शोर मच रहा है इसलिए रोजगार के नए नए अवसर भी खुलेंगे जैसे कि नाव चालक रोजगार योजना जिसमें हर घर से एक युवा को नाव चालन का प्रशिक्षण दिया जाएगा। अब इसके लिए एक नाव चालन प्रशिक्षण कॉलेज भी खोला जाएगा। इस कॉलेज से डिग्री लेकर नव रोजगार के कई अवसर खुलेंगे।‘ नेताजी का जोश बढ़ता जा रहा था।

‘घर घर मछली मार योजना के तहत भी स्वरोजगार के स्टार्ट-अप बनेंगे और मछली एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा। इसके लिए युवा अपने घर के आँगन से ही ताजा मछली पकड़ कर देश की जीडीपी बढ़ाने में अपना योगदान देंगे। रोजगार और देशभक्ति दोनों काम साथ साथ हो सकेंगे।’ नेताजी ने अति उत्साहित होकर अपना स्वर ऊँचा किया।

दृश्य परिवर्तित हुआ। नेताजी का काफिला राहत सामग्री लेकर चल पड़ा। पहले राहत सामग्री की फोटो खींची गई। कुछ चैनल्स ने इसका एक्सक्लूसिव लाइव कवरेज ब्रेकिंग न्यूज़ कह के किया। फोटो शूट होने के बाद बहुत से खाली डिब्बे हटा दिए गए और बचा हुआ सामान एक ट्रक में रखवा दिया गया।

ट्रक पर चारों तरफ नेताजी के बड़े बड़े पोस्टर पर मुस्कुराते चेहरे के साथ भारत का झंडा थामे हुए लगे हुए थे। चमचमाती कारों का ये काफिला द्रुत गति से आपदा ग्रस्त इलाके की तरफ चल पड़ा। पार्टी कार्यकर्ताओं ने पूरे रास्तों में जनता से पुष्प वर्षा करवाई और नेताजी ज़िंदाबाद के नारे लगवाए। आपदा के इस समय में भी सड़कों पर चिलचिलाती धूप और बारिश में जनता को खाने के पैकेट मुफ्त में बांटे गए जिसका लाइव कवरेज लगातार होता रहा।

आपदाग्रस्त इलाके से कुछ दूरी पर काफिले को रोकना पड़ा। सड़कें जल मग्न थीं। दूर दूर तक पानी ही पानी नज़र आता था। डूब क्षेत्र के नोहटा गांव के सरपंच एक नाव में प्रकट हुए और नेताजी को फूलों का गुलदस्ता भेंट किया। फिर रिवाज़ के अनुसार कई एंगल से काफी सारी सेल्फी खींचीं।

‘कैसा हाल है आपके गाँव में?’ नेताजी ने मोबाइल में व्हाट्सप्प चेक करने के बाद पूछा।

‘क्या बताएं हुज़ूर, हमारा गांव तो क्या आस पास के सभी गांव जलमग्न हैं। खड़ी फसलें बह गई हैं, मवेशी भी इतनी बाढ़ में कहाँ बचते? जैसे तैसे गाँव वाले हमारी हवेली की छत पर शरण लिए हैं। न सर पर छत है और न ही खाने का अन्न का एक भी दाना। सब कुछ पल भर में ख़त्म हो गया।‘

‘ओहो। तब तो हमको जा कर जनता से मिलना पड़ेगा।‘

‘साहेब ऐसा जोखिम उठा कर आप नाँव में बैठ गाँव नहीं जा सकते ‘ मुरारी ने सुझाव दिया। ‘आप आज्ञा दें तो हेलीकाप्टर का इंतज़ाम करूँ?’

‘ठीक है, लेकिन एक दो पोज़ इस नाँव में भी खिंचवा लेता हूँ’ नेताजी ने अपनी अक़्ल दौड़ाई।

‘वाह, क्या आईडिया है। ब्रेकिंग न्यूज़ चलेगी – केवट की नाँव में प्रभु श्रीराम’ सरपंच को भी बोलने का मौका मिला।

‘मैं केवट के रोल में एक चप्पू हाथ में उठा लूंगा और आपके चरणों में शीश नवाते हुआ फोटो भी खिंचवा लूंगा’ सरपंच का रोमांच बढ़ता जा रहा था।

‘अरे हाँ, वो ग्रामीण सड़क निर्माण योजना वाला ठेका आपको मिला कि नहीं? आजकल ये अफसर भी बहुत कोताही करने लगे हैं।’ नेताजी ने लाड जताते हुए सरपंच से पूछा।

‘वो तो कब का हज़म भी हो गया। मुरारी बाबू को हिसाब भी दे दिया था। अब तो नए पंचायत भवन का ठेका खुलने वाला है। आपकी कृपा दृष्टि पा जाएं इसीलिए जोखिम उठा कर इस छोटी सी नाँव में दौड़ा चला आया हुज़ूर। और ये कहते हुए सरपंच पूरे नब्बे डिग्री के कोण पर झुक गया।

‘अरे,आप चिंता न करें। अब ये छोटे मोटे ठेके छोड़िये और बड़ा काम आने के इस मौके में डुबकी लगाएं। कितनी बड़ी आपदा आई है तो आप और हम सब मिल कर ही तो पुनःनिर्माण का कार्य करेंगे।’ नेताजी ने स्पष्ट किया।

‘सर हेलीकाप्टर आ गया है’ मुरारी ने बतलाया।

‘तो चलो, इससे पहले कि वो विपक्ष का मोहनलाल मौका ए वारदात पर पहुँच जाए। हमें सबसे पहले उस इलाके पहुंचना होगा। कुछ खाली झोले भी जरूर रखवा लेना। और हाँ, एक दूसरे हेलीकाप्टर में आप सभी मीडिया को लाना मत भूलना वरना हमारा सारा प्रयास व्यर्थ चला जायेगा।’ नेताजी ने आदेश दिया।

जल मग्न हुए गावों के गांव अब नेताजी को स्पष्ट दिखलाई देने लगे। कुछ छतों पर अटके हुए जन समूह को देख कर नेताजी ने हेलीकाप्टर को स्थिर करवाया।

फिर नेताजी की कमर में रस्सी बांध कर उन्हें हेलीकाप्टर से नीचे लटकाया गया। नेताजी के एक हाथ में मोबाइल था और दूसरे हाथ में फोटो वाला झोला। झोले को वो ऐसे हिला रहे थे जैसे कोई खिलाड़ी मेडल जीत कर अपने देश का झंडा फहराता है। अब नेता जी ने अपने दोनों हाथों को जोर जोर से हिलाया फिर भारत माता की जय का नारा लगाया। मीडिया की तरफ मुखातिब होकर हर एंगल से फोटो खिंचवाए। उधर ब्रेकिंग न्यूज़ में लाइव कवरेज चल पड़ा ‘नेता जी अपनी जान जोखिम में डाल कर जन हित में आपदा ग्रस्त इलाके में राहत सामग्री पहुंचा रहे हैं।’

कुछ दूरी पर जब बहुत से गाँव वाले एक साथ दिखे तब हेलीकाप्टर को पानी में ही उतारा गया। भीड़ देख कर नेताजी ने अपना सम्बोधन प्रारम्भ कर दिया ‘भाइयों और बहनों अभी अभी हमारे ख़ुफ़िया तंत्र से जानकारी मिली है कि विपक्ष ने विदेशी ताकतों की मदद से समुद्री तूफ़ान को हमारे प्रदेश की तरफ मोड़ दिया है। लेकिन हमने भी संकल्प लिया है इस आपदा से आप सबको हम बचाएंगे।’

छतों पर लटकी अटकी हुई भूखी जनता आशा की किरण देख कर नेताजी का जयकारा और जोर जोर से तालियां बजाने लगी।

‘हमने हर परिवार को एक एक छाता मुफ्त में बांटने की योजना बनाई है। अब जापान के सहयोग से बनने वाले ये छाते बाढ़ के समय में नांव भी बन जाएंगे। इस योजना का नाम ‘घर घर छतरी’ रखा गया है’

और फिर तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई देने लगी।

और देखते ही देखते जैसे बादल फट पड़ा। मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई। चारों तरफ पानी ही पानी। जल भराव भरने से जलस्तर तेजी से बढ़ने लगा। छतों पर आसरा पाए ग्रामीण पानी में डूबने लगे। पानी अब गले तक की ऊंचाई पर पहुँच गया।

नेताजी लपक कर अपने हेलीकाप्टर में सवार हो गए।

ऐसा दर्दनाक मंजर देख कर नेताजी की आँखों में आंसू आ गए। मीडिया के कैमरे अब नेताजी की आँखों पर फोकस कर रहे थे। आंसू से भीगी आँखे हर चैनल के स्क्रीन पर लाइव दिखाई जाने लगी। टीवी स्क्रीन पर नेताजी की संवेदनशीलता का महिमामंडन किया जाने लगा।

और कुछ ही क्षणों में जनता ने देखते ही देखते जल समाधी ले ली। चारों तरफ लाशें तैरने लगीं। भावुक नेताजी को मुरारी ने अपना रुमाल पेश किया और धीरे से कान में फुसफुसाया ‘ मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। बजट तीन सौ करोड़ से बढ़ कर तीस हज़ार करोड़ तक पहुँच गया है। मौसम विभाग ने अभी प्रलयंकारी बाढ़ की चेतावनी दी है। लगता है इस तीस हज़ार करोड़ में दो चार शून्य जल्दी ही जुड़ जाएंगे।’

यह सुनते ही नेताजी की आँखों से ख़ुशी के मारे अश्रुधार बह निकली। मीडिया ने उन आंसुओं की एक एक बून्द का अर्थ सविस्तार लाइव टीवी पर समझाया।

‘दो शून्य जुड़ें या चार, शून्य तो आखिर शून्य ही होता है, शून्य की क्या कीमत?’ नेताजी बुदबुदाए और उनके झरझर बहते आंसू बाढ़ के पानी में बह गए।

-दीपक गोस्वामी

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