सोच विचारः वार्ता विक्रम बेताल-संदीप तोमर

कर्ज माफ़ी या अदायगी
विक्रम ने आज बेताल को खोजने में काफी मशक्कत की थी। बेताल महानगर के एक टावर पर लटका मिला, लटका क्या उलझा कहना ज्यादा उचित होगा। विक्रम को टावर से उतार पीठ पर लादने में भी काफी मेहनत करनी पड़ी। विक्रम की पीठ पर वह हांफ रहा था। कुछ सांसे नियंत्रित हुई तो बेताल ने कहा-
“हे राजन! जब मुझ जैसे शरीर विहीन का दम रेडियेशन के कारण घुट रहा है तो शारीरिक प्राणियों का क्या हाल होता होगा?”
विक्रम ने कोई जवाब नहीं दिया। बेताल बोला-“यह रास्ता सघन कंक्रीट के जंगलों से भरा है, तिस पर यह लगातार निकलने वाली तरंगे, लेकिन तू बड़ा ही बहादुर है, भयमुक्त भी। तू इन तरंगो से निष्प्रभावी है, रास्ता लम्बा है, सफ़र मजे में कट जाए इसके लिए मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूँ। सुन- आर्यव्रत के गुजरात नामक प्रान्त में एक कपडे का व्यवसाय करने वाला धनिक परिवार था, उसमें पैदा हुए लड़के ने ठीक से शिक्षा भी ग्रहण नहीं की तथापि उसने अपना निजी व्यवसाय करने का विचार किया। उसने पहले हीरे का व्यवसाय शुरू किया फिर एक भाई के साथ प्लास्टिक का व्यवसाय किया, इसी बीच सरकारी सहायता से कमोडिटी का एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट करने वाली कंपनी के रूप में धनिक-पुत्र ने एंटरप्राइजेज की शुरुआत की। सम्पूर्ण आर्यावृत में आर्थिक सुधारों की बदौलत उसका बिजनेस जल्द ही डायवर्सिफाई हुआ और वह एक वैश्विक व्यवसायी बन गए। जल्दी ही वह सर्वाधिक दौलतमंद की सूचि में सम्मलित हो गए। उसके व्यवसाय ने कभी सूर्यास्त नहीं देखा। वह विश्व के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति भी हो गए। सरकारें बदलती रही लेकिन धनिक-पुत्र ने व्यवसाय में आर्यवृत के सबसे इमानदार राजा से मित्रता यह कहकर की कि जनता से आप जितना टेक्स उगाहेंगे उतना ही मैं दूंगा, आप और आर्यवृत सम्पूर्ण विश्व में अनूठा होगा।
राजा से मित्रता के बाद लगभग हर सरकारी संस्थान में धनिक-पुत्र की भूमिका तय होने लगी। सुना है लोकतांत्रिक आर्यावृत में सूचना प्रसारित करने का माध्यम मिडिया है, जिसकी वजह से ही तंरगों का प्रसार अधिक हुआ है। टावर का खेल भी इन धनिकों के व्यवसायों के चलते ही बढ़ा। उदारमना राजा के इशारे से धनिक-पुत्र और उसके अन्य सहयोगी धनिकों ने मिडिया को भी खरीदा। सरकार के सहयोगी होने से एक समय ऐसा भी आया जब धनिक ने सरकारी बैंकों से खूब धन लिया। एक दिन राजा ने मुनादी की- धनिक-पुत्र कि सेवाओं से खुश होकर हम धनिक-पुत्र को सब बैंक कर्ज से मुक्त करते हैं।
अब तुम बताओ राजन, गुजरात का धनिक-पुत्र दुनिया का तीसरा अमीर शख्स है, लेकिन क्या वाकई उसके पास बैंक का कर्ज चुकाने के लिए पैसे नहीं है?”
विक्रम ने कहा-
“बेताल! धनिक-पुत्र और उसके जैसे अन्य धनिक ही प्रमुख चौकीदार की व्यवस्था हेतु अपना धन खर्च करते हैं, वे जनता जनार्दन को इस विश्वास में लेते हैं है कि हम आपके गुजारे की व्यवस्था करते हैं, अतः जनता से कोई स्वर धनिकों और सरकारों की ज्यादतियों अथवा लूट-तंत्र के खिलाफ नहीं उठता, इसका सीधा फायदा ये होता है कि सरकार और धनिक मिलकर एक झूठी व्यवस्था कायम करते हैं, लोकतंत्र में राजा प्रमुख नहीं होता इसका आभास दिलाने की जिम्मेदारी सरकार के विरोधियों की होती है, लेकिन लोकतंत्र की एक समस्या यह भी है कि धनिक पक्ष और विपक्ष दोनों को अपने धन-सत्ता के बल पर नियंत्रित करता है, सच तो यह है कि असल सरकार तो धनिक ही होते हैं, व्यवस्था उनके दरवाजे का दरबान होती है, अतः हे, बिना ताल के बेताल यहाँ हर ताल पर जनता ही नाचती है, इसलिए धनिक का कर्ज सरकार माफ़ करे या धनिक ने माफ़ किये, धन को आगामी चुनाव में प्रमुख चौकीदार को दान दे, इसे अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। सरकार द्वारा माफ़ किया गया कर्ज असल में पिछले दरवाजे से खुद लेना ही हुआ। धनिक के पास दूरदृष्टि है तभी वह दोनों हाथों में लड्डू रखता है।“
बेताल बोला-
“तू धन्य है राजन! तू ही सच्चा न्यायप्रिय राजा है। मैं तुझे साधुवाद देता हूँ लेकिन तू बोला सो मैं चला।“

यह कहकर बेताल विक्रम के कंधे से उड़कर कुछ दूर चला लेकिन पुनः टावर से टकराकर उसमें उलझ गया।

सन्दीप तोमर
जन्म : 7 जून 1975
जन्म स्थान: खतौली (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा: एम एस सी (गणित), एम ए (समाजशास्त्र, भूगोल), एम फिल (शिक्षाशास्त्र)
सम्प्रति : अध्यापन
साहित्य:
सच के आस पास(कविता संग्रह 2003)
टुकड़ा टुकड़ा परछाई(कहानी संग्रह 2005)
शिक्षा और समाज (आलेखों का संग्रह 2010)
महक अभी बाकी है (संपादन, कविता संकलन 2016)
थ्री गर्ल फ्रेंड्स (उपन्यास 2017)
एक अपाहिज की डायरी (आत्मकथा 2018)
यंगर्स लव (कहानी संग्रह 2019)
समय पर दस्तक (लघुकथा संग्रह 2020)
एस फ़ॉर सिद्धि (उपन्यास 2021, डायमण्ड बुक्स)
कुछ आँसू, कुछ मुस्कानें ( यात्रा- अन्तर्यात्रा की स्मृतियों का अनुपम शब्दांकन, 2021 )

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