सोच विचारः ख़ुशी और ग़म- पद्मा मोटवानी, प्रेम तन्मय

“श्रद्धांजलि”

तेरह वर्षीय दिव्या के पिता का दो दिन पहले आकस्मिक निधन हो गया था। घर में ग़मगीनी का माहौल था। दिव्या अपने विचारों में खोयी हुई सी अपने पिता को बार-बार याद कर रही थी। पिता की प्रेरणात्मक बातें उसके कानों में गूॅंज रही थीं। चारों कोनों में सुनसान शांति पसरी हुई थी। ऐसे में माॅं की एक हिम्मत भरी आवाज़ से दिव्या चौंक उठी।

“माॅं, तुम यह क्या कह रही हो? क्या इस बात के लिए अपने समाज के बड़े बुजुर्ग और दादा-दादी मानेंगे?”

“हाॅं बेटा, मैंने उनसे बात कर ली है। तुम्हारे पिता का स्वप्न था कि उसकी बेटी कमर में कमरबंद या करधनी बांधने और गले में हीरे मोतियों की माला पहनने के साथ साथ अपनी सुरक्षा की खातिर ऐसा कुछ सीखे जो उसे जीवन की हर परिस्थिति में उपयोगी हो। अपने बल पर वह किसी भी अनहोनी का सामना कर सके। इसके लिए तुम्हारे पिता ने तुम्हें जूड़ो कराटे का प्रशिक्षण दिलवाया है। कल जो तुम्हारी राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा होने वाली है, उसमें तुम्हें भाग लेने अवश्य जाना है।”

माॅं की इतनी हिम्मत भरी बातें सुनकर दिव्या तुरंत ही माॅं के गले लगकर फिर से रोने लगी। माॅं ने उसे आश्वासन देते हुए कहा “बेटा तुम जाओ और और अपने पिता की इच्छा को पूरा करो।”

माॅं की हौसला अफजाई से प्रेरित होकर दिव्या दूसरे दिन उस स्पर्धा में भाग लेने गई। माॅं की आशीर्वाद और पिता के प्रोत्साहन को याद करते हुए अपना बेहतरीन प्रदर्शन किया। मानसिक स्थिति को संतुलित करते हुए अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति और सिखाए गये नीति नियमों से उसने प्रथम पद पर जीत हासिल की।

खुशी और गम की मिली जुली भावपूर्ण स्थिति में उसकी ऑंखों से ऑंसुओ की झरी बह निकली ।

उसकी कमर में ब्राउन बेल्ट और गले में स्वर्ण पदक उसके पिता को सही श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए शोभित हो रहे थे।

पदमा मोटवानी
गांधीधाम (कच्छ) गुजरात
भारत
padmamotwani1411@gmail.com

ख़ुशी और ग़म

क्या आप एडजेस्ट करते हैं,,,,,सोच कर देखिये फिर ,,,फिर आप बच्चों को देखिये ,,क्या वे एडजेस्ट करते हैं ,,,मै देखता हूँ ,,एक ऑब्जर्वर की तरह,,,।
गाँव में माता पिता हैं शहर में बेटे बहु,,,और बच्चे, सब चाहते तो हैं कि साथ रहें लेकिन ,,,ये जो लेकिन ,,है ना ,,,उसे ही समझना है ।
माता पिता के जीवनयापन का तरीका ,,संगी साथी बातें ,खानपान उठना बैठना सब अलग है।
बेटे बहु के अपनी अलग तरह से जिंदगी जीने का तरीका है उनके दोस्त अलग ,,खानपान पार्टी पिज़्ज़ा बर्गर ,,होटल ,रिसोर्ट मौज मस्ती ,,
बच्चों की अलग ही फेंटेसी की दुनिया है बढ़ते बच्चे हैं जिंदगी इंद्रधनुष सी सतरंगी दिखती है ,,,।
ये तीन तरह की जिंदगी है ,,तीनों के सपने अलग दुनिया अलग ,,सभी एक दूसरे के जिंदगी जीने के तरीके की खोट निकालने में लगे रहते हैं और खुद की जिंदगी को बेहतर बताने की होड़ में बहस करते हैं या मुँह फुला कर बैठ जाते हैं ,,बहस का अंत मनमुटाव व अलगाव होता है ,,
फिर निर्णय ,,की माता पिता गांव में ,बेटे बहु शहर में ,बच्चे होस्टल में।
हम सब जानते हैं कभी कभी ही सही ,टूरिज़्म के यदि विज्ञापन देखो तो वे शहर वालों को विलेज सफ़ारी ,,गांव वालों को मॉल आधुनिक होटल बार क्लब दिखा कर लुभाते हैं।
शहर वाले गांव की गलियों ,,झोपड़ियों खेतो कुओं पेड़ो के साथ सेल्फी डाल कर खुश हो जाते हैं ।बाबूजी मॉल के एलिवेटर पर ,बहुमंजिली इमारत के साथ फोटो डाल कर मित्रो को इठलाते हुऐ दिखाते हैं
अब सोचना यह है कि ,,जो जैसी जिंदगी चाहता है वैसी जिंदगी उसे कहीं भी मिल सकती है बस उसे तलाशनी पड़ेगी ,,, बेटे बहु ,,,गांव नहीं आ सकते ,,उनका कमाना ,,अब गांव में संभव नहीं ,,माता पिता ने ही तो बच्चों को ऐसी शिक्षा दिलवाई ,,की उससे गांव छूटना ही था ,,,पढ़ाई के बाद कौन सा रोजगार है जो उसे गांव देता है तो उसकी निकासी तो आपने ही तय कर दी।
तो बचा एडजेस्टमेंट ,,,,माता पिता ,,अपने जैसे साथी तलाश करें मिल जाएंगे ,,साथ घूमे फिरे ,,पार्क में बैठे , आनंद लें।
बेटे बहु भी उनकी मदद करें ,,,समाज हर जगह रहता है विदेशों में भी ,,,बस यह पक्का तय हो कि साथ रहना है बिना टोका टाकी के ,,,उनकी जिंदगी वे जीये ,,आप अपनी ,।,,,बस थोड़ा एडजस्टमेंट ,,बिना निंदा किये ,,,,बिना मुँह फुलाये ,,
दो क़दम हम भी चलें दो कदम वे भी चलें ,,,।
मिल कर रहने में जो मज़ा है वो अकेले में हरगिज़ नहीं ,,,यही तनाव मुक्ति और खुशी का मूल मंत्र है।
डॉ. प्रेम तन्मय
बेंगलूरू, भारत

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