जीवन के ५९ बसंत पार करने के बाद आज कह सकती हूँ कि अभ्युदय अन्तरराष्ट्रीय संस्था द्वारा साहित्यिक-सांस्कृतिक ये कुछ अविस्मरणीय यात्राएँ थीं। ये यात्राएँ जीवन की वो यात्राएँ बनी, जो सबसे अलग, सबसे खास बन गई, इसलिए नहीं, कि ये साहित्यिक यात्रा थी, इसलिए भी नहीं, कि इसमें सारे साथी बहुत अच्छे थे, इसलिए भी नहीं, कि मौसम अच्छा था, इसलिए भी नहीं, कि देश की आध्यात्मिक नगर की यात्रा की, इसलिए भी नहीं, कि बड़े होटल का स्वादिष्ट भोजन का आनन्द लिया।
तो फिर मन पूछता है कि आखिर क्या था जो ये यात्राएँ जीवन की सबसे खास यात्राएँ बन गई। कहीं अतिशयोक्ति तो नहीं कर रही मैं!
बात अकेले दिल की हो, तो कहता है मन, बिल्कुल भी नहीं!
बात अकेले साहित्य की हो, तो कहता है हृदय बिल्कुल भी नहीं! बात सिर्फ संस्कृति की हो तो कहता है विवेक, बिल्कुल भी नहीं! और कहीं-न-कहीं सिर्फ अध्यात्म की हो तो कहते हैं अहसास, बिल्कुल भी नहीं, वास्तव में
मेरी ओर से अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं ये कथन। बात इन सब के मिले -जुले उन अनुभवों की है जिसे एकांत होकर नहीं छुआ जा सकेगा।
इसलिए थोड़ा रूककर कुछ भी राय बना लेने के पहले ,आइए ले चलती हूँ मेरी इन यात्राओं पर आपको भी अपने साथ ।
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मन चला पहली अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय की विशेष यात्रा पर और पहुँच गए दिल्ली, कोलकता से महासचिव चन्दा प्रह्लादका के साथ और दिल्ली के अभ्युदय के साथियों के साथ।
पहले प्यार की तरह विशेष पहली साहित्यिक यात्रा दिल्ली की चित्रा दीदी के लिए और ब्रह्मशक्ति हायर सेकेंडरी स्कूल के लिए।
पहुँचा काफिला सोनीपत के बह्मशक्ति हायर सैकंडरी विद्यालय, प्राचार्य रामबीर सिंह राम की निष्ठा, देशभक्ति, लगन और निःस्वार्थता ने आज के युग में राम के होने का अहसास कराया और प्रेरणाश्रोत बन गए प्राचार्य रामबीर सिंह ‘राम’। उनके छात्र-छात्राओं की योग्यताओं और अनुशासन ने चकित ही कर दिया।
शिक्षा अनुदान देते हुए और उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत करते हुए जैसे हम ही सम्मानित और पुरस्कृत हो गए। हमें आन्तरिक हर्ष हुआ, जिसे शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता।
फिर डॉ. मंजरी पाण्डेय का भी वाराणसी से दिल्ली आना और पहली बार उस काव्या से रूबरू होना, जिसके नाम काव्य मंजरी प्रकल्प अस्सी धाट पर चल रहा था, वो मंजरी जी जिसने मुझे ‘काव्या’ के रूप उनकी आत्मकथा लिखने की इजाजत दी और मेरा पहला उपन्यास उस दिन हमारे साथ था, चित्रामुद्गल जी के हाथों लोकार्पण के लिए।
वरिष्ठ साहित्यकार चित्रा मुद्गल जी के निवास स्थान पर जाना और अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय का शलाका सम्मान व पुरस्कार(2021) देकर स्वयं को अत्यंत भाग्यशाली समझना, अभ्युदय के लिए ये क्षण अप्रतिम रहे। जहाँ अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय के सभी वरिष्ठ पदाधिकारी गण, संस्थापक सह अध्यक्ष डॉ अमरनाथ अमर, उपाध्यक्ष भीम प्रकाश शर्मा, दिल्ली शाखा अध्यक्ष सुषमा सिंह, सचिव प्रियंका कटारिया, सचिव सुमन द्विवेदी आदि के साथ साहित्यकार रमा सिंह दीदी के साथ अन्य सुप्रसिद्ध साहित्कारगणों की उपस्थित, चित्रा दीदी के स्वास्थ्य की नाजुक स्थिति के बाद भी वहाँ हम सभी के साथ प्यारी बातें।
अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय के कुछ विशेष सम्मान 2021 चित्रा जी के हाथों मिलना भी अभ्युदय पदाधिकारियों के लिए एक बहुत ही विशेष महोत्सव बन गया था।
कुछ आनंद गूंगे की शर्करा के रूप में परिभाषित किए जा सकते हैं, चित्रा दीदी का इस प्रकार सान्निध्य पाना कुछ ऐसा ही था।
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पहला स्वाद इतना भा गया कि मन चला फिर से एक नए सफर पर, साथी बने, बैंगलोर, दिल्ली व कोलकता के अभ्युदय के सदस्य।
बेंगलोर से सुबह की फ्लाइट, फ्लाइट पर मुलाकात एक नव विवाहित जोड़े से। आदित्य अग्रवाल और उसकी पत्नी, बहुत प्यारा-सा रिश्ता था दोनों का, दोनों नौकरी पेशा, पर कमाल है आज की युवा पीढ़ी।
जिस संस्कृति को हम भूलते जा रहे हैं, जिस सभ्यता की बातें हम दोहराते तो हैं, पर अमल नहीं कर पाते। योग और दर्शन की जिन गहराईयों को हमने समझने का प्रयास ही नहीं किया, उन्हें जानने-समझने में रत वो दोनों। लम्बी बातें। जाना दोनों को, सुना भी और सुनाया भी। ध्यान के महत्व को समझते ध्यान के लिए तत्पर। सुखद आश्चर्य मेरे लिए। बस, ये तो शुरूआत के क्षण हैं।
सफर तो अभी शुरू होनेवाला है, जिसकी भूमिका है ये। कब ढाई धंटे बीते और प्लेन ने उतरने के लिए भूमि तलाशी। प्लेन से उतरकर बाहर निकलने पर मंजरी जी का आतिथ्य स्वीकारते हुए उनकी कार की ओर बढ़े कदमों को जैसे किसी अनजाने अहसास ने छूआ, जैसे अनजान होते हुए भी किसी बहुत ही जानी पहचानी खुशबू के घेरे में। आनंदित मन सराबोर रस से। क्या और कैसे, मुझे समझ नहीं आया।
मेरे लिए तो बनारस एक शहर भर, अन्य शहरों की तरह। पर आज, अब? अब मेरे लिए बनारस एक रहस्य बन गया ।
रोक नहीं पाई मंजरी को यह बताने से। सुना और मुस्कुराकर रह गई वो। जैसे एक बच्चे की भोली बात पर माँ मुस्कुरा भर देती है।
पर कुछ तो था जिसने वाराणसी के एयरपोर्ट से ही मुझे अचंभित कर दिया।
हवा का एक झोंका अन्तरात्मा को छूकर गुजरा और बदल गया सब कुछ। क्या था आज भी मन तलाशने के लिए बेताब है, फिर – फिर जाने के लिए बेताब, उस भूमि की मिट्टी को सिर पर लगाने के लिए नहीं, उस मिट्टी के अन्तस में, उसके कण-कण में छुपे उस अहसास को महसूस करने के लिए, जो कभी कबीर ने किया था और बुन दिया था अपनी चुनरिया के धागे में, तो कभी तुलसी ने राम नाम की माला में पिरोया था, तो कभी शिव की नगरी में शिव और पार्वती के शाश्वत प्रेम और माँ गंगा की बहती लहरों में अनन्त की यात्रा के लिए बहते रहने की चुनौती को स्वीकार किया था।
जो भी, अवर्णनीय था। था नहीं आज भी खुशबू को महसूस कर पाता है मन जब-जब नाम लेता है उस वाराणसी का। यात्रा साहित्यिक थी। सांस्कृतिक बनी और फिर ना जाने कैसे धरती पर पाँव रखते ही आध्यात्मिकता की ओर स्वयं ही मुड़ गई।
जो वर्णन किया जा सके अब उसकी बात –
कबीर मठ, कुआँ और बाग बगीचे, पत्थरों उकेरे गए दोहे, मूर्तियों की बोलती-सी झलकियाँ और मन्दिर में सजी कबीर प्रतिमा। लमही और प्रेमचन्द की अमूल्य यादें और धरोहर से रुबरू होना, डॉ रामचन्द्र शुक्ल का घर और उसकी दिवारों में एक अलग ही अनुभूति। डॉ मुक्ता के संस्मरण। प्रेमचन्द की प्रतिमा पर माल्यार्पण और सजे सँवरे हॉल में उनकी कहानियों का चित्रण। सब कुछ इतना मन भावन और मंत्रमुग्ध कर देने वाला।
बात यही समाप्त नहीं होती। धाट पर संध्या आरती का अनुपम अनूठा नजारा गंगा की लहरों के बीच नाव पर बैठकर। अद्भुत,अविस्मरणीय। स्वर्गिक आन्नद की अनुभूति।
बात यहाँ भी समाप्त नहीं की जा सकती। अमृत महोत्सव के अवसर पर अभ्युदय और बौद्धायन सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में दो भव्य आयोजन- 25 कवयित्रियों का सम्मेलन पुरातत्व विभाग के उस अनुपम प्राचीन सौन्दर्य से भरपूर स्थान पर जहाँ पत्थर भी अपनी महती गाथा सुना रहे हों। फिर दो पुस्तकों का लोकार्पण और परिचर्चा- ‘काव्या’ और “छन्नपकैया”। दोनों ही बहुत विशेष अपने कलेवर की अलग ही गाथा के साथ। साथ में ‘बुद्ध यात्रा अन्तर की’ पहली प्रतिलिपि पुस्तक रूप में समर्पित बुद्ध मठ के भारत संध के प्रमुख डी रेवती थेरो को, और फिर ठीक दूसरे दिन मिलने पर पुस्तक की भूरि -भूरि प्रशंसा समृद्ध मंच पर करते हुए आशीर्वचन देना, उसमें विद्यमान वाराणसी का विद्व-समाज और इस यात्रा के पथिक- दिल्ली-बैंगलुरु के वरिष्ठ साहित्यकार और कवि दिल्ली से डॉ अमरनाथ अमर, सुमन द्विवेदी, बैंगलोर से डॉ. प्रेम तन्मय, कमलकिशोर राजपूत, डॉ उषा श्रीवास्तव। कार्यक्रम के बाद अंकिता खत्री का दिल से किया गया आनन्ददायी आतिथ्य भोज।
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एक बहुत ही विशेष यात्रा इन्तजार कर रही थी, नवम्बर की इस वाराणसी यात्रा के बाद, दिसम्बर 2021 के दिसम्बर में, जहाँ अभ्युदय की ओर से दक्षिण भारत में हिन्दी की स्थिति और अभ्युदय की प्रतिनिधि रूप मुझे वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया गया और जद्दोजहद के बाद सूरत से छोटे भाई विमल जैन के साथ इटावा की वो साहित्यिक यात्रा – जम्मू के पूर्व राज्यपाल डॉ. मनोज सिन्हा, लक्ष्मीशंकर बाजपेयी व ममता जी, हास्य कवि अशोक चक्रधर,कीर्ति काले ,कवि मुरादाबादी और भी वरिष्ठ कलाकारों के साथ मंच साझा करने का सुअवसर। अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय की भूमिका दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार प्रसार में।
एक अद्भुत अनुभव , जहाँ साहित्यिक आयोजन में कड़कड़ाती ठंढ में दोपहर दो बजे से रात दो बजे तक अनवरत सैंकडों श्रोताओं का बैठे रहना और आनन्द लेना। इसके लिए इटावा की साहित्यिक संस्था के वतर्मान प्रभारी व हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए निरन्तर प्रयासरत प्रदीप कुमार एडवोकेट जी का आभार शब्दों में व्यक्त करना सम्भव ही नहीं है।
फिर तो अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय की साहित्यिक ऐसी यात्राएँ जुड़ती चली गई, जो मंजिल नहीं चाहती, बस अनवरत चलने के लिए उद्धृत करती हैं।
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इसी आनन्द को फिर-फिर पाने की प्यास लिए एक बार फिर 2021 की भाँति 2022 में एक और यात्रा वाराणसी की, जिसमें विश्वनाथ मन्दिर के दर्शन की ओर एक अद्भुत अहसास के साथ। ‘बुद्ध यात्रा अन्तर की’, का नाट्य-मंचन, डॉ मंजरी पाण्डेय व बाल-मुकुन्द त्रिपाठी के निर्देशन व संयोजन में वाराणसी के कलाकारों के द्वारा। वहाँ मौजूद दूरदर्शन व रेडियो के मुख्य प्रभारी गण अपनी टीम के साथ। जैसे अनदेखा स्वप्न भी यथार्थ के कलेवर में स्वप्निल भाव प्रतीत करा रहा था।
तत्पश्चात् ‘बुद्ध यात्रा अन्तर की’, ‘कबीर एक शाश्वत यात्रा’ और ‘प्रेमचन्द सन्दर्भ एवम् कथन’ ‘यशोधरा एक व्यथा’ और भी अनेकों पुस्तकों का लोकार्पण इस पावन पुण्य स्थली पर। बहुत खास बात, लंदन से प्यारी और सबसे न्यारी शैल दीदी का मिलना, जैसे पूर्वजन्म का कोई बहुत अपना एक बार फिर से अपने पास। अद्भुत ही था सब कुछ।
पर इससे भी अधिक अद्भुत एक सुबह जैसे हम सभी का इन्तजार कर रही थी सुबह-ए-बनारस के रूप में ।
प्रातः चार बजे वाराणसी के अस्सी धाट पर देवलोक का एक दृश्य। देव कुमारियों के साथ हवन और देव कुमारों के साथ आरती के विशाल दीप पुंजों को प्रज्ज्वलित करने का अनिर्वचनीय आनंद और फिर वेद मंत्रों के साथ पूजन और माँ गंगा की अनुपम, अद्भुत आरती। आदरणीय डॉ. रत्नेश वर्मा जी का नाम नहीं लेना अकृतघ्नता होगी। जिन्होंने ऐसे अकल्पनीय आनंद की बारिश से हम सभी को ऐसा सराबोर किया कि वैसी सुबह के लिए मन वहीं बस जाना चाहता है।
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अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय की पाँचवी और छठी साहित्यिक सांस्कृतिक यात्राएँ- वर्ष 2022- 2023
अभी पिछली यात्राओं का खुमार उतरा भी नहीं था कि कब कुछ महीनों में ही बदलते कैलेंडर के साथ कोलकाता की ओर एक और साहित्यिक व सांस्कृतिक यात्रा, बैंगलोर की कवयित्री ममता मावंडिया के साथ, जहाँ अभ्युदय बंगाल शाखा द्वारा भव्य आयोजन भाषा परिषद में, जिसमें मंच को समृद्ध किया गायत्री चक्रवर्ती, वरिष्ठ कवि सुरेश चौधरी और ताजा टी वी के संस्थापक नेवर जी ने। इस सुअवसर पर इन तीन मनीषियों के लिए अभ्युदय की ओर से 2022 के तीन के सम्मान की धोषणा की, और पुस्तको का लोकार्पण, काव्य गोष्ठी व सांस्कृतिक मनभावन कार्यक्रम जिसमें एकांकी व नृत्य अत्यंत प्रशंसनीय रहे।
उसके पश्चात कोलकता का मारवाडी संस्कृति मंच द्वारा आयोजित सांस्कृतिक मेला, जिसके आयोजकों में प्रमुख इसके अध्यक्ष ललित प्रहलादका जी हैं। कोलकता की धरती पर हर वर्ष की भाँति राजस्थान को बसाता-सा, खान-पान हो या नृत्य या पहनावा या ऊँट की सवारी, मटके बनाने हो या बाजरे की रोटी का अभ्यास, लाख(लाह) की चुड़िया या कैर सांगरी का आचार। साथ में मधुर श्रेष्ठ गीत संगीत सुप्रसिद्ध राजस्थान गायिका सीमा मिश्रा व मनोहर शर्मा पुजारी द्वारा, जिसपर झूम रहा था कोलकता का विशाल जन समूह।
ऐसा भव्य मेला सीधा राजस्थान की भूमि पर तो ले ही जाता है, साथ ही बचपन की अठखेलियों में खो जाने को भी बेताब करता है।
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और कैलेंडर के साल के साथ बदला यात्रा का एक और पड़ाव, डॉ मृदुल कीर्ति के लिए यात्रा को अन्तरराष्ट्रीय बनाता हुआ आस्ट्रेलिया से फिर दिल्ली-ॠषिकेश- हरिद्वार-वन्दावन और फिर मेरठ विश्वविद्यालय तक अभ्युदय अपने काफिले को लेकर।
बहुत ही खास बात, दूरदर्शन यानि मोबाईल और लैप टाप से मिले चेहरे को अपने पास अपने साथ पाना और उससे भी खास उनका बिल्कुल चिर-परिचित लगना, जिसमें अभ्युदय के दिल्ली के साथियों के साथ सात समुन्दर पार से आईं डॉ. मृदुल कीर्ति जी, हम दोनों एक दूसरे से बिना रूबरू हुए एक दूसरे को बाँटते रहे दो सालों से अधिक समय तक और मृदुला बिहारी जी से मिलना, दिल्ली के अपने उन अभ्युदय के साथियों से मिलना, जो सोशल मीडिया के माध्यम से मन के करीब थे, जिनमें करीब 50 से अधिक नाम है, जिनकी चर्चा मनभावन है।
डॉ मृदुल कीर्ति जी से और मृदुला बिहारी जी से अचानक मिल कर लगा चिरपरिचित ही तो है ठीक शैल दीदी और डॉ मंजरी पाण्डेय की भाँति। फिर उनके साथ देर रात तक बैठना, सुनना-सुनाना, बतियाना और दिल्ली के आदरणीय वरिष्ट साहित्यकार डॉ. विजय किशोर मानव, लक्ष्मीशंकर बाजपेयी, ममता जी, डॉ प्रेम जनमेजय, डॉ मृदुल कीर्ति, मदुला बिहारी जी, जयपुर से जोन अध्यक्ष निशा अग्रवाल, राजपुताने इतिहास के अध्येता विशेष सचिव श्री शिवराज पाल, महाराष्ट्र शाखा अध्यक्ष लता नौवाल, राजस्थान शाखा सचिव छत्र छाजेड़, जोन अध्यक्ष संतोष बंसल, सुप्रसिद्ध साहित्यकार अलका सिन्हा, दिल्ली शाखा अध्यक्ष सुषमा सिंह, संस्था उपाध्यक्ष भीमप्रकाश शर्मा और भी अनेकों विद्वजनों द्वारा देश की राजधानी के हिन्दी भवन में दस पुस्तकों का लोकार्पण और सम्मान समारोह, जिसमें सर्वाधिक उल्लेखनीय रहा “डॉ मृदुल कीर्ति जी का अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय शंकराचार्य सम्मान व पुरस्कार 2021” और मृदुला बिहारी जी को “अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय का शलाका सम्मान व पुरस्कार 2022” । और इसके साक्षी दिल्ली से उत्तर प्रदेश, कलकता, जयपुर, बैंगलोर के साथी गण। इतना ही नहीं, फिर उनके और अपने अन्य साथियों के साथ मेरठ, वृन्दावन ऋषिकेश की यात्रा। फिर से माँ गंगा से मिलना और आँचल में समेट लेना वृन्दावन के साँवले मुस्कुराते कान्हा को। कवि रसखान की समाधि के फूल, धण्टियों के स्वरों के बीच आरती के पवित्र स्वर पर झूमता मन, शिव की जटा से बहती गंगा में बहता मन, साथियों के साथ हवन के मंत्रों का उच्चारण करते हुए कहीं किसी और लोक में विचरता मन। स्वामी जी की कुटिया में एक अलग ही ऊर्जा से भरा मन।
और फिर तथा कथित की धरती पर उतर कर मेरठ विश्वविद्यालय के अद्वितीय साहित्यिक कुटीर में रम जाता मन और फिर बच्चों के बीच स्वयं को बच्चा पाता मन। वास्तव में जितना विस्तार से लिखा जाए, उतना ही कम है।
इन साहित्यिक-सांस्कृतिक यात्राओं में भीगा मन कब अध्यात्म से सराबोर हो उठता है और जैसे कह उठता है भारत हमारा देश, अगर स्वर्ग कहीं है, तो यही हैं, यहीं है।
अगर ईश्वर के निवास की कल्पना सार्थक हो सकती है तो वो भारत की पवित्र भूमि में ही हो सकती है जहाँ वेद की ऋचाएँ गढ़ी गई और उपनिषद के सूत्र रचे गए। आगम-निगम के शास्त्रों के अमूल्य मोती, और बुद्ध, महावीर, कृष्ण, राम, महावीर जैसे महा ज्ञानी। या कहूँ एक शब्द में महा मानव या दिव्य गुणों से विभूषित देवता, या भगवान की संज्ञा से विभूषित पथ प्रदर्शक।
अब समझ सकी हूँ यात्रा का वास्तविक अर्थ क्या है, जब साहित्यिक और सांस्कृतिक यात्राओं को जी पाया है मन पूरी तरह।
हृदय तल से आभार इन तीनों यात्रा के उन साथियों का, डॉ अमरनाथ अमर, डॉ प्रेम तन्मय, कमलकिशोर राजपूत, डॉ उषा श्रीवास्तव, चन्दा प्रहलादका, सुनीता बंसल, सविता भुवानिया, डॉ अर्चना शर्मा , सुषमा दिनेश सिंह, सुमन द्विवदी, प्रियंका कटारिया, डॉ. प्रो. नवीनचन्द लोहनी, सनातन दूबे जी, अंकिता खत्री और विशेष रूप से डॉ. मृदुल कीर्ति, शैल अग्रवाल, डॉ. रत्नेश वर्मा जी व डॉ मंजरी पाण्डेय- जिनके बिना इस यात्रा के इस आनन्ददायक सफर की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।
दिल्ली की यात्राओं में वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ तिवारी पर बनी साहित्य अकादमी की डॉक्यूमेंट्री फिल्म के कुछ हिस्से को सुमन द्विवेदी और साथियों के साथ देख पाने का सौभाग्य, सुप्रसिद्ध साहित्यकार कुमुद शर्मा से अनौपचारिक वार्ता डॉ. अमरनाथ “अमर” के निवास पर काव्य गोष्ठियाँ और साहित्कारों से रूबरू होने का सौभाग्य जैसे सोने में सुहागा रही।
बहुत कुछ कहने के लिए शेष है। अभी भी बातें ढेरों हैं पर शब्द, अब शब्द नहीं। ये तस्वीरें खुद कहेंगी बाकी की पूरी गाथा…
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डॉ. इन्दु झुनझुनवाला, बैंगलोर
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