रिजेक्शन-रंजना जयसवाल

घर में दो दिन से बहुत चहल-पहल थी… उमेश चाचा जी का फोन आया था लड़के वाले शनिवार को देखने के लिए आ रहे थे।माँ सुबह से घर की सफाई में लगी हुई थी।

“अरे भाग्यवान!!… यहाँ क्यों सफाई कर रही हो…वैसे ही काम बढ़ा हुआ है और तुम…इन औरतों को कोई कुछ नहीं समझा सकता।”

“तुम तो कुछ समझते ही नहीं सिर्फ ड्राइंग रूम की सफाई करने से काम नहीं चलेगा आजकल लोग घरों के अंदर भी झाँकने लगे हैं… कैसे रहते हैं.. क्या खाते हैं… क्या पहनते हैं… यह भी जानना चाहते हैं।”

“शादी होने से पहले यह सब भी तो जानना जरूरी होता है।तुम औरतों की सोच नहीं समझते…अपनी आँखों से घर का पूरा एक्स रे कर देंगी।”

“बाल सफेद होने को आ गए..पर जरा भी अक्ल नहीं लगाते। कोई बाथरूम के बहाने अंदर आ गया तो क्या कहेंगे…भैया जरा रुक जाओ घर साफ नहीं है…जरा घर तो साफ कर लें।”

माँ की बात सुन पूजा को हँसी आ गई।पूजा के लिए अब यह हर महीने की ही बात हो गई थी।

ग्रेजुएशन करने के बाद पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने यह महसूस कराना शुरू कर दिया था कि वह जवान हो गई है और उसकी शादी अब हो जानी चाहिए।

हमारा समाज चाहे मंगल ग्रह पर पहुँच जाये… पर बेटियों की शादी की चिंता माँ-बाप से ज्यादा पड़ोसियों और रिश्तेदारों को होती है।

इन 6 महीनों में चार लोग उसे देख कर जा चुके थे… हर बार उसे सामान की तरह देखा, पढ़ा और समझा जाता और कभी रंग के नाम पर कभी घर की आर्थिक स्थिति तो कभी दहेज के नाम का बहाना कर उसे रिजेक्ट कर दिया जाता।

शादी के लिए देखे गए उसके सपने धीरे-धीरे कहीं टूट रहे थे वह बिखर रही थी… बिखर तो उसका परिवार भी रहा था पर ना जाने वो इतनी हिम्मत कहाँ से जुटा लेते थे और फिर से जुट जाते थे अपनी बेटी को पार कराने में।

“पूजा आज कॉलेज मत जा कल लड़के वाले आ रहे हैं तुझे देखने के लिए…”

“क्या माँ!!… यह हर महीने तुम जो मेरा कॉलेज जाना रोक देती हो…. कितनी पढ़ाई बर्बाद होती है… जब होनी होगी शादी तो हो ही जाएगी।”

“यह क्या बात हुई एक अकेली तुम ही तो नहीं हो दुनिया में… न जाने कितनी लड़कियाँ है और उनकी शादियाँ भी होती हैं तुम तो हर बार मुँह फुला कर बैठ जाती हो…”

“ऐसा है रुचि के साथ पार्लर चले जाओ और वो जो चेहरे पर फेसिअल वेसिअल कराते हैं…करा लेना।”

“माँ!!.. मुझे मत भेजो… हर बार तो भेजते हो क्या फायदा होता है।सिर्फ पैसे की बर्बादी है।”

रुचि ने अजीब सा बनाते हुए कहा…पूजा कहीं टूट कर बिखर गई।सही तो कह रही थी रुचि…

छोटी बहन भी तो शादी की लाइन में थी।उस की वजह से कही न कही उसकी शादी भी रुकी हुई थी।

तीन भाई बहन थी पूजा…. आकाश,पूजा और रुचि ।आकाश यानी बड़े भैया…. पूजा से दो साल बड़े थे… जब भी भैया की शादी की बात होती तब भैया हमेशा यही कहते…

“पहले पूजा की शादी कर दो पता नहीं कितना खर्च हो…यहाँ कोई पेड़ थोड़ी लगा है। मेरी शादी में कम ज्यादा तो चल लाएगा…पर पूजा की शादी में लड़के वाले पता नहीं क्या डिमांड करेंगे।”

” वैसे भी…न जाने कैसी लड़की आये।अपनी बहन के लिए मैं कुछ खर्च करना चाहूँ और उससे अच्छा ना लगे। भैया भी अपनी जगह सही ही थे ।”

भैया की बातें सुन पूजा के मन मे हमेशा उनके लिए सम्मान और भी बढ़ जाता था।

पापा भैया के लिए भी एक अच्छी लड़की की तलाश में थे…पर पता नहीं क्यों…बात नहीं बन पा रही थी।भैया एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे।सैलेरी भी ठीक-ठाक ही थी…भैया देखने में ठीक थे। पर फिर भी…

“दीदी चलना है तो चलो… मुझे और भी काम है।”

पूजा सपनों की दुनिया से वापस आ गई। रुचि का मूड उखड़ा हुआ था…पर पूजा कर भी क्या सकती थी। पूजा और रुचि पार्लर चली गई।

रात आँखों मे ही कट गई थी…हर लड़की अपनी शादी के लिए कितने सपने देखती है।पूजा ने भी तो सपना देखा…न जाने क्या सोचकर पूजा मुस्कुरा दी।

उसने भी तो सपना देखा था कि किसी शादी में या फिर कॉलेज से लौटते वक्त कोई राजकुमार सा लड़का उसकी सादगी पर मर-मिटेगा और उसका परिवार आगे बढ़कर पापा से उसका हाथ माँग लेगा…पर जीवन की सच्चाई इससे बिल्कुल अलग थी।

पिछली बार भी कितना ताम-झाम किया था पापा ने। मेज तरह-तरह के नाश्ते से भरी हुई थी। दो तरह की मिठाई ,नमकीन ,समोसे ,ढोकला, कोल्डड्रिंक और न जाने क्या-क्या…।गुलाबी रंग की शिफान की साड़ी,कान में छोटे-छोटे बूंदे,एक हाथ मे घड़ी और दूसरे हाथ में काँच की चूड़ियां पहनकर जब कमरें से निकली तो माँ ने कितनी बलाये ली थी।

” बेटियाँ इतनी कब बड़ी हो जाती है पता ही नहीं चलता।”

“रुचि जरा दौड़कर मेरे कमरे से काजल तो ले आ…कही मेरी ही नजर न लग जाये पूजा को।”

“आकाश के पापा देख लेना इस बार लड़के वाले झट से हाँ कर देंगे।”

माँ की बात सुनकर पूजा सकुचा गई। पापा की आँखें न जाने क्या सोचकर भीग गई थी पर न जाने लड़के वालों को क्या पसन्द नहीं आया।

दरवाजे की आवाज से पूजा की नींद खुल गई।

“पूजा!!…उठ गईं बेटा… ये ले तेरे लिए हल्दी और मलाई का उबटन लाई हूँ।”

“क्या माँ!!!…तुम भी न …अभी कल ही तो फेसियल करवाया था। मुझ से न होगा…”

पूजा ने चिढ़ कर कहा,

“तेरी नानी कहती थी कि इसको लगाने से गुलाब की तरह रंग खिल जाएगा।”

“पिछली बार भी तो तुमने यही कहा था माँ… क्या फायदा हुआ।”

पूजा की आँखों मे दर्द उभर आया…माँ की आँखें पनीली हो गई।

“तेरा दर्द समझती हूँ बेटा… पर इस जग की यही रीत है।तेरे पापा भी तो मुझे देखने आए थे।”

“आपकी बात दूसरी है माँ!!…”

“क्यों मैं लड़की नहीं थी मेरे अरमान नहीं थे।”

माँ के चेहरे पर एक अजीब सी कड़वाहट उभर आई थी।

“तेरे पापा से पहले भी दो लड़के मुझे देख चुके थे…हम लड़कियों की किस्मत में ये दर्द झेलना लिखा है तो क्या कर सकते हैं।”

कमरे में एक गहरा सन्नाटा छा गया।पूजा और माँ की सांसों के अलावा कोई आवाज उस कमरे में महसूस नहीं कि जा सकती थी।

“पूजा एक बार समझ लो बेटा… समाज सबके लिए बदलता है पर औरतों के लिए नहीं।”

“तेरी साड़ी अलमारी में प्रेस करके टांग दी है और हाँ ये उबटन छोड़े जा रही हूँ…उबटन लगाकर नहा लेना।”

पूजा अपने आपको बहुत लाचार महसूस कर रही थी। लड़की होना इतना गुनाह हो गया है… बाजार में रखी सब्जी की तरह आज उसे फिर जाँचा -परखा जाएगा…पसन्द आया तो ठीक वरना वही उसे छोड़कर आगे बढ़ जाया जाएगा।

माँ भैया के साथ दौड़ दौड़कर काम कर रही थी।

“आकाश वो महंगी वाली क्रोकरी निकाल दे …मेरा हाथ नहीं पहुँच रहा।”

“अभी आया माँ…”

भैया ने आवाज दी।

“अजी सुनते हो…!!”

“आग लगे इस अखबार को …भगवान जाने किस आदमी ने इस अखबार की खोज की । मुझे मिल जाये तो गोली मार दूँ उसको..।”

“लड़के वाले आने वाले ही होंगे और आपको इस नाशपिटे अखबार से ही फुर्सत नहीं।”

” अरे यार!!..तुम भी न …अभी उन्हें वक्त लगेगा। ट्रेन लेट हो गई थी … होटल में थोड़ा आराम करके आएंगे। अभी-अभी उनका फोन आया था।”

“चलो अच्छा है… हमें काम करने के लिए समय मिल गया। आकाश जरा देखो पूजा तैयार हुई हैं कि नहीं…।”

” मैं अकेली जान क्या-क्या देखूँ… माँ तुम परेशान मत हो सब कुछ हो जाएगा।रुचि को बता दो वो मैनेज कर लेगी।”

“अरे वो अपने आप को ही सम्भाल ले बहुत है। एक काम कहो तो महरानी का मुँह फूल जाता है।”

माँ की बात सुनकर रुचि पैर पटकती हुई कमरे में चली गई।

“माँ तुम चिन्ता मत करो…मैंने सारा सामान किचन में रख दिया है.. एक बार नजर डाल लो कही कुछ छूट तो नहीं गया है।वरना मैं दौड़कर ले आऊँ।”

“जरा अपनी बहन को देख वो तैयार हुई कि नहीं..”

“अभी देखता हूँ माँ…!!”

आकाश माँ की बात सुन पूजा के कमरे की ओर बढ़ गया। दरवाजे पर पर्दा खींचा हुआ था।

“पूजा तुम तैयार हो गई…अंदर आ जाऊँ..।”

अंदर से कोई आहट नहीं आई।आकाश ने दो मिनट तक इंतजार किया और फिर पूजा को आवाज देता हुआ कमरे में घुस गया।

” पूजा…पूजा।”

“ओह भैया!!…क्या हुआ…कोई काम है क्या।”

“तू अभी तक तैयार नहीं हुई…।

माँ की प्रेस की हुई साड़ी, चूड़ी चेन और अंगूठी वैसे ही बिस्तर पर पड़ी हुई थी।

“बस जा ही रही हूँ।”

पूजा ने दबे हुए स्वर में कहा

“कुछ हुआ है क्या…??”

“कुछ भी नहीं …”

पूजा के शब्द लड़खड़ा गए

“अपने भैया से भी नहीं बतायेगी।”

पूजा की आँखें भर आईं उसके होंठ काँपने लगे …लगा वो अब रोई तब रोई।

“क्या हुआ पूजा…किसी ने कुछ कहा”

“थक गई हूँ भैया…इस रोज-रोज के नाटक से।हर महीने मेरे सपनों… मेरे अरमानों की जो प्रदर्शनी लगती है न। सरेआम उसे नीलाम होते देखना अब…अब बर्दाश्त नहीं होता।”

भावों का बांध सारे बन्धन को तोड़ आँखों से बह निकला।

“हर दूसरे महीने कोई न कोई रिश्ता लेकर चला आता है और माँ उन की सेवा-सत्कार में जान लगा देती है।”

“वो काजू कतली और मलाई गिलोरी खा …धीरे से कह कर निकल लेते हैं। हम अपना निर्णय फोन से बता देंगे।”

“मैं कोई लॉटरी का टिकट हो गई हूँ… निकली तो निकली वरना…”

आकाश के चेहरे पर मुस्कुराहट छा गई।

“तुझे किस बात की शिकायत है कि वो तेरी काजू कतली और मलाई गिलोरी खा कर भी नहीं पसीजते।”

“भैया आप भी न …इतनी सीरियस टॉपिक पर बात हो रही और आपको मजाक लग रहा।”

“पूजा इधर आ तू मेरे पास बैठ…”

“क्या है भैया!!… मैं यही ठीक हूँ।”

” तू इधर आ ना…”

भैया ने प्यार से पूजा को अपनी पास बैठा लिया और उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा

“मैं समझता हूँ तुम्हारा दुख… रिजेक्शन किसी का भी हो… बुरा लगता ही है।”

“आप क्या जाने रिजेक्शन क्या होता है…ये कष्ट तो हम लड़कियों के हिस्से में ही आता है।”

“क्यों… तुम्हें ऐसा क्यों लगता है।”

“आप लड़कों को कौन सा अपनी प्रदर्शनी करनी होती है। आप लड़का हो न… हम लड़कियों का दुख नहीं समझोगे।”

पूजा ने चिढ़ते हुए कहा

“पूजा एक बात बता…पापा ने कभी किसी लड़के की फोटो तुझे दिखाई है।”

“नहीं!!..”

“शादी के लिए तेरी तो फोटो खींची गई पर मेरी…??”

“आप कहना क्या चाहते हैं..??”

“पूजा …तुझे पता है पापा मेरी शादी के लिए भी उतने ही परेशान हैं जितना तेरी।”

” भैया उसे परेशान नहीं चिंता कहते हैं… परेशान तो वो मेरी शादी के लिए है।”

“तुझे पता है ऑफिस में हर तीसरे-चौथे दिन कोई लड़की वाला आता ही रहता है।”

“ऑफिस में…??”

“वहाँ क्यों…!!”

“मुझे देखने के लिए…”

“वो लोग यहाँ भी तो आ सकते हैं।”

“मैंने भी उनसे यही कहा..”

“फिर…”

“उन सबका यही कहना है कि घर तक पहुँचने से पहले वो लड़के को समझना चाहते हैं।”

“वहाँ क्या समझ पाएंगे…”

पूजा ने आश्चर्य से पूछा

“अब तक न जाने कितने लोग आकर जा चुके हैं…अब तो मुझे उन लोगों को ऑफिस के बाहर लेकर जाना पड़ता है।आखिर ऑफिस के लोगों को मैं रोज-रोज क्या जवाब दूँगा कि मुझे देखने आए हैं ।”

“बात तो सही कह रहे हैं आप… पर उनमें से कोई भी घर क्यों नहीं आया।”

भैया मुस्कुराने लगे…

“क्योंकि उन्हें मैं पसंद नहीं आया।”

“आप!!!… आप.. उन्हें पसंद नहीं आए।”

पूजा की आँखें आश्चर्य से बड़ी- बड़ी हो गई।

” क्या खराबी है आप में…देखने सुनने में भी अच्छे है… अच्छा कमाते हैं और क्या चाहिए किसी लड़की को…”

“प्राइवेट नौकरी है कल चली गई तो… पेंशन भी नहीं मिलेगी।दो -दो बहनें जीवन भर उनकी जिम्मेदारी ही पूरी करते बीत जाएगी।”

” किसी को लगता… एकलौता लड़का है माँ-बाप की जिम्मेदारी उसी पर ही आएगी।”

“तुम ही बताओ जिससे रिश्ता अभी जुड़ा भी नहीं उस की खातिर बहनों को छोड़ दूँ या फिर अपने माँ-बाप को।”

“मैं उन माँ-बाप को भी गलत नहीं मानता…वो भी तो अपनी बेटी की खुशियाँ ही तो चाहते हैं।”

“बहू तो सबको परिवार सम्भालने और साथ लेकर चलनी वाली चाहिए पर दामाद सबको पैसे वाला और इकलौता चाहिए।”

“सोचकर देखो पापा ने भी तो सब ठोक बजाने के बाद ही तुमको दिखाने के लिए हाँ कही है।जब लड़के वालों ने तुम्हें फोटो से पसन्द किया तब तुम्हे देखने-दिखाने की बात हुई…पर मैं तो हर बार रिजेक्ट होता रहा…कभी प्राइवेट नौकरी के नाम पर….कभी इकलौते बेटे के नाम पर… तो कभी दो बहनों के इकलौते भाई के नाम पर…तो कभी बैंक बैलेंस के नाम पर।”

” मैं तो रोज अपमानित होता हूँ…पर मेरा अपमान कौन देख रहा है।”

“चल अब खुशी-खुशी चल… देर मत कर वो लोग आते ही होंगे।”

भैया पूजा को अकेले कमरे में छोड़कर निकल गए।पूजा सोच रही थी ये लड़के भी न जाने किस मिट्टी के बने होते हैं… इतना दर्द समेटे वो हँसते-मुस्कुराते रहे और किसी को पता भी नहीं चला।

आज न जाने क्यों उसे अपना दर्द हल्का महसूस हो रहा था।
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डॉ. रंजना जायसवाल
मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश

एम.ए. पी.एच. डी.(हिन्दी साहित्य)
ब्लॉग, मातृभारती एप पर कहानियों का प्रकाशन, दिल्ली एफ.एम.गोल्ड, आकाशवाणी वाराणसी और आकाशवाणी मुंबई संवादिता से लेख और कहानियों का प्रकाशन,अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं से लेख और कहानियों का प्रकाशन।

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