प्रसिद्ध कूट-नीतिज्ञ चाणक्य का कथन है कि राजा का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने राज्य में प्रजा के जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करे। राजा से यह भी अपेक्षा की जाती है कि तमाम सामाजिक संकटों में अपनी प्रजा की वह रक्षा करे। यही नहीं राजा को अपनी प्रजा की अकाल, बाढ़, महामारी आदि में समुचित रक्षा-व्यवस्था करनी चाहिए। भारत में कोरोना महामारी की स्थिति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री संभवतः चाणक्य द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों का अनुसरण कर रहे हैं। हालांकि कोरोना वायरस को हराने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें युद्ध स्तर पर काम कर रही हैं लेकिन किसी भी महामारी को पराजित करने के लिए जन-सहयोग बहुत जरूरी है। अगर जनता जागरूक होकर सरकार के साथ भागीदारी करे तो कोरोना वायरस का प्रसार/कम्युनिटी-ट्रांसमीशन रोका जा सकता है।
गत वर्ष प्रधानमंत्री ने देशवासियों को सम्बोधित करते हुए कोरोना वायरस से फैलने वाली महामारी को रोकने में मदद की अपील के साथ 22 मार्च को जनता-कर्फ्यू लगाए जाने की बात कही थी जिसका समूचे देश में व्यापक स्वागत हुआ।
प्रधानमंत्री ने जिस जनता-कर्फ्यू की बात कही उसका मूल मंतव्य विचारणीय है। वैसे तो कर्फ्यू दंगों में लगाया जाता है लेकिन जनता-कर्फ्यू जनता की ओर से जनता के लिए खुद लगाया जाता है। यह एक तरह से स्व-अनुशासन है।यों तो करोना वायरस से बचाव के लिए हमारे और विदेश के आयुर्विज्ञानियों ने कुछेक वैक्सीन अवश्य तैयार की हैं और ये वैक्सीन संसार-भर में करोड़ों लोग लगवा चुके हैं मगर फिर भी यह सलाह बराबर दी जा रही है दो गज की दूरी, मास्क का इस्तेमाल बराबर कडाई से किया जाना चाहिए। बीमारी से बचने के लिए सोशल-डिस्टेंसिंग की बहुत जरूरत है। हम सतर्क न हुए तो हमारे देश में भी में भी अन्य देशों इटली,ईरान,चीन,अमेरिका,इंग्लैंड आदि की तरह महामारी का विस्फोट हो सकता है। थोड़ी-सी लापरवाही बड़ी आबादी का जीवन खतरे में डाल सकती है। राष्ट्र अपना दायित्व निभा रहा है,जनता भी जागरूक होकर तनिक अपना कर्तव्य निभाएं।
एक बात और। कहते हैं कवि और सिपाही का धर्म एक-समान होता है।फर्क सिर्फ यह है कि एक बंदूक का इस्तेमाल करता है और दूसरा लेखनी का।एक यथार्थ में जीता है और समय पड़ने पर वतन पर जान न्योछावर करता है जबकि दूसरा कल्पना-लोक में जीकर मात्र ‘आशाओं’ अथवा “मुझे है कल की आस” की बात करता है।मानव-जाति पर आन पड़ी कोरोना-विपदा से हमारे सैनिक,पुलिसकर्मी,डॉक्टर,नर्सें,आवश्यक सेवाओं से जुड़े कर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर युद्ध स्तर पर बचाव कार्य में लगे हुए हैं।और कवि/लेखक ! ये बन्धु सोफों पर लेटे-लेटे बंद कमरों में सरकार की सटीक और यथोचित पहल की तारीफ करने के बदले उसे अपने स्वभावानुसार नीचा दिखाने हेतु सोशल-मीडिया में पोस्ट-पर-पोस्ट डाले जा रहे हैं।थाली बजाने या ताली बजाने का मजाक उड़ा रहे हैं.एक लेखिका ने तो हद ही कर दी। लिखा: ”थाली तो बजवा दी,अब गोमूत्र कब पिलवा रहे हैं?” वे शायद नहीं जानती कि थालियां/तालियां बजाने के आव्हान के पीछे युद्ध-स्तर पर काम करने वाले हमारे उन सेवाभावी कर्मियों का हमपर “अनुग्रह” का भाव उमड़ रहा था।ऐसे सेवाभावियों को शतशत साधुवाद और नमन!
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
DR.S.K.RAINA
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
पूर्व सदस्य,हिंदी सलाहकार समिति,विधि एवं न्याय मंत्रालय,भारत सरकार।
पूर्व अध्येता,भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान,राष्ट्रपति निवास,शिमला तथा पूर्व वरिष्ठ अध्येता (हिंदी) संस्कृति मंत्रालय,भारत सरकार।
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